Introduction to Shrimad Bhagwata Puran


ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]







श्रीमद्भागवत हिंदुओं के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है। 


श्रीमद भागवत की जो अमृतरूपी कथा है, उसमें प्रारम्भ से अन्त तक श्रीनारायण जी के लीला-चरित्रों का वर्णन है। इसमें भगवान के सम्पूर्ण अवतारों का लीला बद्ध वर्णन है भगवान का बारह अवतार धारण करना सती के देह त्याग की कथा, राजा ध्रुव का वर्णन, खण्ड और सातों समुद्रों का वर्णन, नसिंह अवतार, भक्त प्रहलाद समुद्र मंथन, भगवान कृष्ण, राम आदि अवतारों का लेना तथा उनकी लीलाओं का विशद वर्णन कौरवों पाण्वों द्वारा महाभारत.. कराकर पृथ्वी का भार उतारने का वृनान्त, छप्पन करोड़ यदुवंशियों का दुर्वासा के श्राप द्वारा नाश कराना एवं श्रीहरि के परम परम धाम गमन का हाल हमने तुम्हें सुनाया हैं संसारी मनुष्यों को चाहिए कि वे अपनी जिहा से आठोंग्हर श्रीनारायणजी का नाम लें और ध्यान से उनके लीला चरित्रों को सुने ।
यह कथा सुनने वाले व्यक्ति को एक जबरदस्त अंतर्दृष्टि, एक गहन दृष्टि और एक पूरी तरह से नया दृष्टिकोण देता है।  सुनने पर इंसान कभी एक जैसा नहीं रहता।  एक पूर्ण कायापलट है, एक पूर्ण परिवर्तन है, वस्तुतः एक नया जन्म है।  आत्मा (आत्मा) अपने स्वयं के स्वभाव से प्रभु है - यह स्वभाव से बाध्य नहीं हो सकती - जो भी बंधन महसूस किए जाते हैं वे मन के भ्रम हैं।  श्रीमद्भागवत वह प्रकाश प्रदान करते हैं जो जीव (मनुष्य) को मुक्ति की अद्भुत स्वतंत्रता का अनुभव करने में सक्षम बनाता है।  कोई महसूस करता है, "हाँ, मैं आज़ाद हूँ!"  इस दर्शन को श्रीमद्भागवत ने भगवान विष्णु के 24 अवतारों की जीवन गाथाओं के माध्यम से व्यक्त किया है।  इनमें से श्रीमद्भागवत के दसवें खंड में अनंत विस्तार से भगवान कृष्ण की कथा का वर्णन है।  चूंकि सभी 24 अवतार भगवान विष्णु के हैं, इसलिए यह वैष्णवों के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।

ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखित भागवत किसी भी विषय को अछूता नहीं छोड़ता है - सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था - इन सभी को उनके द्वारा कवर और टिप्पणी की गई है।  श्रीमद्भागवत में केवल आत्म-मुक्ति से संबंधित मुद्दे ही नहीं बल्कि हमारी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं का भी प्रभावी ढंग से समाधान किया गया है।  अत: यह जोर से कहा जा सकता है कि श्रीमद्भागवत एक व्याख्या है, जो मानव जीवन को बहुत स्पष्ट रूप से समझाती है, यह आत्मा की परम मुक्ति की ओर ले जाने वाली दिशा है।  इसलिए यह मनुष्य के सभी मामलों में आचरण के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है।

आमतौर पर श्रीमद्भागवत को पढ़ना और सुनना एक सप्ताह का अनुष्ठान (एक धार्मिक प्रतिबद्धता) है, लेकिन इसे गहराई से समझने और दूसरों को समझाने के लिए पूरा जीवन भी पर्याप्त नहीं हो सकता है।  यह कितना अद्भुत, उदात्त शास्त्र है लेकिन राजा परीक्षित के पास जीने के लिए केवल सात दिन थे और कहा जाता है कि भागवत कथा के ऐसे सात दिन के कथन को सुनकर राजा परीक्षित को मुक्ति मिली!  मृत्यु से नहीं, अज्ञान और भय से मुक्ति से।  इस प्रकार श्रीमद्भागवत हमें भय, समस्याओं और अज्ञान से मुक्ति दिलाते हैं।  संक्षेप में यही श्रीमद्भागवत का सार है।  सामग्री के अनुसार, इसमें तीन मुख्य संवाद या प्रमुख वार्तालाप शामिल हैं - एक शुकदेवजी और राजा परीक्षित का, दूसरा सुतजी और शौनक और अन्य ऋषियों के बीच नैमिषारण्य में और तीसरा विदुरजी और मैत्रेय के बीच गंगा नदी के तट पर।  ये तीन प्रमुख वार्तालाप सुतजी और शौनक और अन्य ऋषियों के बीच संवाद के साथ शुरू और समाप्त होने वाले विशाल भागवत को व्यक्त करते हैं।

भागवत के इस चार चतुर्थांश (8 श्लोक) को श्री नारायण भगवान ने आवाज दी थी और दूसरे खंड में वर्णित ब्रह्माजी द्वारा सुना गया था।  ब्रह्माजी ने तब नारद को वही चार श्लोक (श्लोक) सुनाए, जिन्होंने बदले में ऋषि वेद व्यास को बताया लेकिन उन्हें बताया कि यह केवल सूत्रबद्ध था, अब इसके (व्यास) दायरे का विस्तार करें।  जिस आसन से इस प्रकार के ज्ञान की व्याख्या और व्याख्या की जाती है, उसे 'व्यास पीठम' कहते हैं।  इसी कारण से हम श्रीमद्भागवत के कथावाचक को 'व्यास' कहते हैं।  यह व्यक्तिगत संज्ञा से अधिक गुणात्मक संज्ञा है।  इस प्रकार व्यास ने ३३५ अध्यायों और १२ खंडों में फैले ९००० छंदों में चार श्लोकों (श्लोकों) का विस्तार किया।  तब भगवान वेद व्यास ने इसे शुखदेव को सिखाया, जिन्होंने तब राजा परीक्षित को सुनाया।  नमिषारण्य में सुत्जी ने शौनक और अन्य ऋषियों को भी यही बातचीत बताई है।  श्रीमद्भागवत में इन अलग-अलग वार्तालापों के सभी अलग-अलग कालखंडों का उल्लेख है।

श्रीमद्भागवत कथा का वर्णन कई कारणों से व्यवस्थित है;  चिकित्सा संस्थानों की मदद के लिए या प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को चिकित्सा राहत प्रदान करने के लिए, स्कूल/कॉलेजों को निधि देने और बढ़ाने और ग्रामीण विकास में मदद करने के लिए धन जुटाना।  लेकिन यह मुख्य रूप से लोगों और समाज के उत्थान और कल्याण के लिए व्यवस्थित है, जो कथा सुनने से भगवान को समझेंगे और उन तक पहुंचने का तरीका सीखेंगे, अपने भीतर आध्यात्मिक विकास को प्रेरित करने में मदद करेंगे और सबसे महत्वपूर्ण रूप से धर्मी और गुणी इंसान बनेंगे।  पुराने दिनों में यह मुख्य रूप से तब व्यवस्थित किया जाता था जब परिवार में मृत्यु होती थी।  उदासी और तीव्र अवसाद के घेरे के बीच, कथा कथन ने एक बड़ा परिवर्तन किया, जो एक शोकग्रस्त पारिवारिक सांत्वना, आराम, समभाव और एक दार्शनिक दृष्टि लेकर आया।  भागवत कथा ने उन्हें उनके दुख से निकाला और उनके शोक से दूर किया।  इसलिए भागवत कथा को "शोक मोह भयापहा" के रूप में वर्णित किया गया है, जो आसक्ति को नष्ट करती है और फलस्वरूप दुःख और भय को दूर करती है।  श्रीमद्भागवत कथा सुनने से हमारे हृदय और मन में भक्ति व्याप्त हो जाती है।  यह भक्ति हमारे मन से मोह, दु:ख और भय का नाश करती है।  यह भक्ति या 'भक्ति' क्या है?  यह कुछ और नहीं बल्कि प्यार है!

प्यार एक शानदार अनुभव है।  यह सभी दिशाओं में गति करता और फैलता है और सार्वभौमिक हो जाता है।  जब प्रेम अनंत हो जाता है, तो मनुष्य संतत्व प्राप्त कर लेता है।  शरीर मंदिर बन जाता है - और हृदय पुजारी हो जाता है!  धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से श्रीमद भागवत उस अवस्था तक पहुँचने में सक्षम बनाता है।  जब सार्वभौमिक प्रेम और भक्ति प्राप्त हो जाती है, तो दु: ख, मोह और भय गायब हो जाते हैं।  दुख या शोक का संबंध अतीत से है;  आसक्ति का संबंध वर्तमान से और भय का भविष्य से संबंध है।  ये तीन कारक हैं जो सभी को परेशान करते हैं।  अतीत का शोक, वर्तमान के प्रति आसक्ति, और भविष्य के लिए भय या चिंता।  और शांति की लालसा कौन नहीं करता?  इंसान चाहे आस्तिक हो या नास्तिक, हर कोई शांति चाहता है।  हर कोई आनंद चाहता है।  जब ये तीन प्रमुख प्रभाव गायब हो जाते हैं, तो व्यक्ति शांत और स्पष्ट हो जाता है।

ऐसा नहीं है कि भागवत कथा केवल दिवंगत आत्मा को ही मुक्त करती है।  यह जीवित सदस्यों को दुःख, मोह और भय से भी मुक्त करता है।  इस प्रकार मुक्ति एक व्यापक अवधारणा में है।  ऐसा नहीं है कि मरने के बाद ही मुक्ति मिलती है।  इसका अनुभव व्यक्ति के जीवन काल में भी, अभी और यहाँ भी किया जा सकता है।  यही श्रीमद्भागवत कथा की शिक्षा है।


सूत जी द्वारा भागवत महात्त्मय


 
भागवत स्वाद लेने वालों में कुशल शौनकजी ने यह बचन कहा है अज्ञा्न रूपी अन्धकार को दूर करने के अर्थ करोड़ो सूर्य के समान कान्ति वाले सूतजी! हमारे कानो को रसायन रूपी कथाओं का सार आप वर्णन कीजिये । भक्ति, और वैराग्य की प्राप्ति किस रोति से होती है, और ज्ञान किस प्रकार बुद्धि को प्राप्त होता है, और विष्णु भक्त किस प्रकार से माया मोह का त्याग करते हैं। इस घोर कलियुग के आने से संसारी जीव असुर भाव को प्राप्त हो गये हैं, अतएव हम आप से यह पूछते हैं, कि क्लेशों से दुःखित जीवों को पवित्र करने के श्रथ क्या कर्म करना योग है। जो कल्याणों का भी परम कल्याण रूप है, तथा जो पवित्र करने वालों को पवित्र करने वाला है, और निरन्तर श्रीकृष्ण प्राप्ति कराने वाला है, ऐसा साधन आप हमारे आगे कहिये।

 यह वचन सुनकर श्रीसूतजी बोले-हे शौनकजी ! आपके मन में बहुत प्रीति है, इस कारण विचार कर संसार के भय को दूर करने वाला सम्पूर्ण सिद्धान्तों का सार भूत तत्व, जो भक्ति प्रभाव को बढ़ाने वाला, श्रीकृष्ण भगवान को प्रसन्न करने का कारण है सो मैं आपके आगे वर्णन करता हूँ सावधान होकर सुनो। कालरूपी सर्प से ग्रसित होने के मात्रका नाश करने वाला श्रीभागवत शास्त्र कलियुग में श्रीशुकदेवजी ने वर्णन किया है, मनको शुद्ध करनेकेनिमित्त इससे बढ़कर दूसरा कोई भी साधन नहीं है, जन्मान्तर के पुण्य के प्रभाव से भागवत की प्राप्ति होती है।

सूतजी कहते हैं कि हे ऋषीश्वरो ! सत्वनिधि विष्णु भगवान के अवतार इस प्रकार अनन्त है कि जैसे क्षोण न होने व ले महान सरोवर में सैकड़ों, हजारों छोटी छोटी जल धारायें निकलती हैं। ऋषि, मुनि, देवता तथा महान पराक्रम वाले मनुष्यों के पिता प्रजापति हरि भगवान की ही कला हैं । भागवत जिसका नाम है ऐसा वेद के तुल्य अथवा ब्रह्म को लक्ष कराने वाले इस भागवत पुराण में श्रीवेदव्यास ने केवल विष्ण भगवान के चरित्रों का वर्णन किया है यह पुराण वेदव्यास मुनिने आत्म ज्ञानयों में श्रेष्ठ अपने पुत्र शुकदेवजी को पढ़ाय फिर शुकदेव मुनि ने मृत्यु का निश्चय करके गङ्गाजी के तट पर सब ऋषिश्वरों में सम्मिलित होकर बैठे हुए परीक्षित महाराज को भली प्रकार से सुनाया है ऐसा जो यह परम उत्तम सूर्य रूप पुराण यानी सूर्य की तरह अन्तः करण में ज्ञानरूपी चांदनी करने वाला है सो जब श्रीकृष्णचन्द्र अपने परमधाम को चले गये, पीछे अब कलियुग में प्रज्ञान से अन्धे हुए पुरुषों के वास्ते धर्म, ज्ञान आदि के सहित अच्छे प्रकार से उदय होरहा है। सूतजी कहते हैं, हे ऋषिश्वरों ! ऐसे इस पुराण को महातेजस्वी शुकदेव मुनि तब गङ्गा तट पर कीर्तन कर रहे थे तब वहां बैठा हुआ मैं भो उन शुकदेवजी के इस अनुग्रह से इस भागवत को पढ़ता था सो मैं अपनी बुद्धि के अनुसार जैसा कि पढ़ा, सुना हँतैसा ही आप लोगों को सुनाऊँगा।

The Shrimad Bhagwat is one of the most sacred books of the Hindus.

It gives a tremendous insight, a profound vision, and an entirely new perspective to the person who hears the narrative. On hearing, a person is never the same. There is a complete metamorphosis, a complete transformation, literally a new birth. Atman (soul) by it’s own nature is sovereign – it cannot by nature be bound – whatever bondages felt are sheer illusions of the mind. Shrimad Bhagwat provides that light which enables Jeeva (human being) to experience the wonderful freedom of liberation. One feels, "Yes, I am free!" Shrimad Bhagwat expresses this philosophy through the narration of the life stories of 24 incarnations of Lord Vishnu. Amongst these, the tenth volume of the Shrimad Bhagwat narrates in infinite detail, the story of Lord Krishna. Since all 24 incarnations are of Lord Vishnu, it is a vitally important scripture for the Vaishnavites.

Written by Sage Ved Vyasa the Bhagwat leaves no topic untouched – social, political, and economic systems – all these have been covered and commented upon by him. Not just issues relating to self-liberation but even our day-to-day problems have been effectively resolved in Shrimad Bhagwat. Hence it can be emphatically stated that Shrimad Bhagwat is an exposition, which explains human life very clearly, it is a direction leading to the ultimate liberation of the soul. It is therefore an important guide for the conduct of human beings in all their affairs.

Ordinarily, reading and listening to Shrimad Bhagwat is a week long Anushthan (a religious commitment), but even an entire lifetime may not be enough to understand it in depth and explain it to others. It is such a wonderful, sublime scripture but King Parikshit had only seven days to live and it is said that by listening to such a seven-day narration of Bhagwat Katha King Parikshit attained liberation! Not by death but by emancipation from ignorance and fear. Thus Shrimad Bhagwat liberates us from fear, problems, and ignorance. In essence, this is the crux of Shrimad Bhagwat. Content wise, it comprises three main dialogues or principal conversations – one that of Shukadevji and King Parikshit, second between Sutji and Shaunak and other Rishis at Naimisharanya and the third between Vidurji and Maitreya on the banks of the river Ganga. These three principal conversations convey the voluminous Bhagwat beginning and ending with the dialogue between Sutji and Shaunak and other Rishis.

This four quatrain (8 verses) of Bhagwat was voiced by Shri Narayan Bhagwan and heard by Brahmaji as narrated in the second volume. Brahmaji then narrated the same four verses (shlokas) to Narada who in turn conveyed to Sage Ved Vyasa but told him that this was only formularized, now expand it’s (Vyasa) purview. The seat from where such knowledge is expounded and explained in detail is called ‘Vyas Peetham’. For this very reason we call the narrator of Shrimad Bhagwat ‘Vyas’. It is more a qualitative noun than a personal noun. Thus Vyasa elaborated the four shlokas (verses) in 9000 verses spread over 335 chapters and 12 volumes. Then Bhagwan Ved Vyasa taught it to Shukhdeva, who then narrated it to King Parikshit. Sutjii in Namisharanya to Shaunaka and other Rishis conveys the same conversation. All the different periods of these separate conversations are mentioned in Shrimad Bhagwat.

The narration of Shrimad Bhagwat Katha is arranged for many reasons; raising funds to help medical institutions or provide medical relief to people affected by natural calamities, to fund and raise school/colleges and help rural development. But it is mainly arranged for the upliftment and welfare of the people and society, who, by listening to the katha would understand God and learn the way to reach him, helping inducing spiritual growth within themselves and most importantly becoming righteous and virtuous human beings. In the olden days it was primarily arranged when there was a death in the family. Amidst the encircling gloom of sadness and acute depression, the katha narration created a major transformation, bringing to a grief ridden family solace, comfort, equanimity and a philosophic vision. The Bhagwat Katha drew them out of their sorrow and removed them from their mourning. Therefore the Bhagwat Katha is described as "Shoka Moha Bhayapaha", that which destroys attachment and consequently removes sorrow and fear. By listening to ‘Shrimad Bhagwat Katha’, devotion (Bhakti) pervades our heart and minds. This devotion destroys attachment, sorrow and fear from our minds. What is this devotion or ‘Bhakti’? It is nothing but love!

Love is a sublime experience. It moves and spreads in all directions and becomes universal. When love becomes unending, human beings attain sainthood. The body becomes a temple – and the heart a priest! Slowly, but surely Shrimad Bhagwat enables one to reach that stage. When universal love and devotion is attained, the sorrow, attachments and fear vanish. Sorrow or mourning is connected with the past; attachment is connected with the present and fear with the future. These are the three factors that disturb everyone. Mourning the past, attachment for the present, and fear or worry for the future. And who does not long for peace? Whether a person is a theist or an atheist, everyone longs for peace. Everyone wants joy. When these three dominant influences vanish, one becomes quiet and lucid.

It is not that Bhagwat Katha liberates the departed soul alone. It even frees surviving members from sorrow, attachment and fear. Thus liberation is in a wider concept. It is not as if one is liberated only after one dies. It can be experienced even during a person’s lifetime, now and here also. That is the teaching of Shrimad Bhagwat Katha
मैं एक धार्मिक परिवार से हूं। बचपन से ही आपनी माता को धर्म ग्रंथ पढ़ते देखा था।
भागवद पुराण भी उन्हीं में से एक है। पढ़ने की इष्छा होती तो पढती भी थी। लेकिन समझ कम ही आता था। वक़्त निकलता गया। मेरी शादी हो गई। ससुराल में कुछ भी ठीक नहीं था। कुछ अच्छा नही लगता था। पुरा दिन रोने में ही जाता था।
फिर जब में प्रेग्नेंट हुई, तब माँ ने मुझे वही भागवद पुराण दे दी। और बोला जब तू होने वाली थी, तेरे नानू ने दी थी मुझे, अब तुझे दे रही हूँ।
मैनें पढ़ना शुरु कर दिया। और इसकी महिमा समझती गई। और अब ये मेरी जिंदगी बन गया है।
इसी लिय इसे web पर डालने का सोचा कि जो भी दुख से पीड़ित है, या कोई भी तकलीफ हो जिन्हें, वोह इसे पढ सके और, सुख प्राप्त कर सकें। अभी भी काम चल रहा है और पता नही कितना वक़्त लगेगा, लेकिन कुछ देर तक ये पुरा पुराण web पर अवश्य होगा। और सब लोग इसका लाभ उठा सकेंगे।।
जय श्री कृष्णा।।
जय श्री हरि।।

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]

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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]


शौनकादि ऋषियों का सूत जी से भागवत के विषय में सम्वाद। [अध्याय १]

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• वेद व्यास जी द्वारा भगवद गुण वर्णन।।[अध्याय २]
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• भगवान विष्णु के २४ अवतार।। [अध्याय ३]
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• व्यास मुनि का नारद में सन्तोष होना और भागवत बनाना आरम्भ करना।। [अध्याय ४]
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• नारद द्वारा हरि कीर्तन को श्रेस्ठ बतलाकार वेद व्यास के शोक को दूर करना।।[अध्याय ५]
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• देवर्षि नारद मुनि अपने पूर्व जन्म जी कथा वेद व्यास जी को कहना।। [अध्याय ६]
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• परीक्षित राजा के जन्म कर्म और मुक्ति की कथा।। [अध्याय ७]
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• अश्वत्थामा का ब्रह्म अस्त्र छोड़ना।।परीक्षित राजा के जन्म कर्म और मुक्ति की कथा।। [अध्याय ८]
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• युधिष्ठिर का भीष्म पितामह से सब धर्मों का सुनना।।[अध्याय ९]

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 श्री कृष्ण भगवान का सब कार्य करके हस्तिनापुर से चलना।।[अध्याय १०]༺═──────────────═༻
• परीक्षित के जन्म की कथा।। [अध्याय १२]
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• विदुर, धृतराष्ट्र, गान्धारी का हिमालय गमन से मोक्ष प्राप्ति की कथा।।[अध्याय १३]
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• युधिष्ठिर को कलयुग के लक्षण का आभास होना।।[अध्याय १४]

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• अर्जुन कृष्णा प्रेम।। श्रीकृष्ण स्तुति।।[अध्याय १५]
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• राजा परीक्षित का वंश वर्णन।। [अध्याय १६]
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• राजा परीक्षित का कलयुग को अभय देना।। कलयुग के निवास स्थान।। [अध्याय १७]
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• परीक्षित के श्राप की कथा ।।[अध्याय १८]

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 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]


शुकदेव जी द्वारा श्रीमद भागवत आरंभ एवं विराट रूप का वर्णन।। अध्याय १[स्कंध २]

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कैसे करते हैं ज्ञानीजन प्राणों का त्याग।। श्रीमद भगवद पुराण महात्मय अध्याय २[स्कंध २]
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शुकदेव जी द्वारा विभिन्न कामनाओं अर्थ देवो का पूजन का ज्ञान।। श्रीमद भागवद पुराण महात्मय अध्याय ३ [स्कंध २]
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ꕥश्रीमदभगवाद्पुराण किसने कब और किसे सुनायी।। अध्याय ४[स्कंध २]
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विष्णु में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है।। अध्याय ५ [स्कंध २]
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ꕥ श्रीमद भागवद पुराण * छठवां अध्याय * [स्कंध२]
(पुरुष की विभूति वर्णन)
दोहा-जिमि विराट हरि रूप का, अगम रूप कहलाय।
सो छठवें अध्याय में दीये भेद बताय।।

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बृह्मा द्वारा कर्मों के अनुसार भगवान नारायण के २४ अवतारों का वर्णन।। श्रीमद भागवद पुराण महात्मय अध्याय ७ [स्कंध २]

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श्रीमद भागवद पुराण महात्मय।। राजा परीक्षित-शुकदेव संवाद।। अध्याय ८ [स्कंध २]
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किन चार श्लोकों द्वारा हुई सम्पूर्ण भागवद पुराण की रचना।। अध्याय ९ [स्कंध २]
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ꕥश्री हरि नारायण का अस्तित्व।। देह का निरमाण।। अध्याय १० [स्कंध २]
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• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]

श्रीमद भागवद पुराण *प्रथम अध्याय* [स्कंध३]
( उद्धवजी और विदुरजी का सम्बाद)

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• उद्धव जी द्वारा भगवान श्री कृष्ण का बल चरित्र वर्णन।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २ स्कंध ३
विदुर उध्यव संवाद 

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• यादव कुल का नाश का कैसे हुआ?
तृतीय स्कंध श्रीमद भागवद पुराण * तीसरा अध्याय *
श्री कृष्ण द्वारा कंस वध तथा माता पिता का उद्धार।।  

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• श्रीकृष्ण जी का उध्यव जी को आत्मज्ञान।।
श्रीमद भागवद पुराण* * चौथा अध्याय*स्कंध ३
विदुरजी का मैत्रेयजी के पास आना

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• कृष्णा की लीलाओं का वर्णन।।
श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ३]
मैत्रैय जी द्वारा भगवान लीलाओं का वर्णन


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• विराट अवतार की सृष्टि का वर्णन।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ६ [स्कंध ३]

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• मैत्रैय जी द्वारा विद्वान् विदुर जी को आत्मज्ञान देना।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ७ [स्कंध ३]

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 ब्रह्मा की उत्पत्ति। श्री हरि विष्णु द्वारा दर्शन देना।।
श्रीमद भगवद पुराण अध्याय ८ [स्कंध ३]

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• बृम्हा जी द्वारा भगवान विष्णु का हृदय मर्म स्तवन।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ९ [स्कंध३]
(बृम्हा जी द्वारा भगवान का स्तवन)

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• सर्ग-विसर्ग द्वारा सृष्टि निर्माण एवं व्याख्या।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १० [स्कंध३]
सर्ग की व्याख्या

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 युग, काल एवं घड़ी, मुहूर्त, आदि की व्याख्या।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ११ [स्कंध ३]
(मनवन्तर आदि के समय का परमाण वर्णन)

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• कैसे हुई गायत्री मंत्र की उत्त्पत्ति।।
श्रीमद भगवदपुराण अध्याय१२ [स्कंध ३]

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• श्रीमद भागवदपुराण* तेरहवाँ अध्याय * [स्कंध३]
(भगवान का बाराह अवतार वर्णन)

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• किस कारण हुआ भक्त प्रह्लाद का असुर कुल में जनम?
श्रीमद भागवद पुराण चौदहवाँ अध्याय [स्कंध ३]
(दिति के गर्भ की उत्पत्ति का वर्णन)

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• सनकादिक मुनियों द्वारा जय विजय के श्राप की कथा एवं उधार।
श्रीमद भागवद पुराण पंद्रहवाँ अध्याय [स्कंध ३]
(भगवान विष्णु के दो पार्षदों को ब्राम्हण द्वारा श्राप देना)


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• हिरण्यकशिपु हिरनक्ष्य की जनम कथा [भाग २]
श्रीमद भागवद पुराण सोलहवां अध्याय [स्कंध ३]
(जय विजय का वेकुँठ से अधः पतन) 
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• हिरण्याक्ष को युध्द दान देना।
श्रीमद भागवद पुराण * सत्रहवाँ अध्याय * [स्कंध३]
हिरण्यकश्यप असुर द्वारा दिग्विजय करना।


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• भगवान विष्णु का हिरण्यक्ष को युध्ददान।
श्रीमद भागवद पुराण *अठारहवाँ अध्याय* [स्कंध३]


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• सृष्टि विस्तर अर्थ ब्रह्मा जी द्वारा किये गये कर्म एवं देह त्याग।
श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय[स्कंध ३]

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• श्रीमद भगवद पुराण ईक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध ३]। विष्णुसार तीर्थ।
शतरुपा और स्वयंभुव मनु द्वारा सृष्टि उत्पत्ति
 कर्दम ऋषि का देवहूति के साथ विवाह

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• राजा मनु का पुर्ण चरित्र व वंश वर्णन। मनु पुत्री का कदर्म ऋषि संग विवाह।।
श्रीमद भागवद पुराण बाईसवां अध्याय [स्कंध३]
देवहूति का कदमजी के साथ विवाह होना

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• श्रीमद भागवद पुराण तेईसवाँ अध्याय [सकंध ३]
• कर्दम की देवहूति के साथ विमान में रति लीला


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• श्रीमद भागवद पुराण चौबीसवाँ अध्याय[स्कंध ३]
कपिल देव जी का देवहूति के गर्भ से जन्म लेना


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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

ॐ卐श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १[स्कंध ४] प्रजा की उत्त्पत्ति।।
दो-मनु कन्याओं से हुआ, जैसे जग विस्तार।
सो पहले अध्याय में वरणों चरित अपार ॥
प्रियव्रत की जनम कथा।।
यज्ञ भगवान और माता लक्ष्मी का वंश वर्णन।।
सप्त ऋषि के नाम।।
कौन है सूत जी? सूत जी का जन्म। 

ॐ卐श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४]
दोहा-जैसे शिव से दक्ष की, भयो भयानक द्वेष।
सो द्वितीय अध्याय में वर्णन करें विशेष ।। 
क्यू लगते है शिव के भक्त भस्म।। शिवभक्तो को श्राप।।
क्यूँ दक्ष प्रजापति ने देवों के देव महादेव को यज्ञ में नही बुलाया।।









ॐ卐श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]
(दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन)
दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई।
सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।।

ॐ卐श्रीमद भागवद पुराण*आठवां अध्याय* [स्कंध४ (पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना) दो.-पार्वती कहै सती ने ली जिमि अवतार।
सो अष्टम अध्याय में वर्णित कथा उचार ।।















































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_人人人人人人स्कंध समाप्त_人人人人人人_

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

श्रीमद भागवद पुराण * प्रथम अध्याय* [स्कंध५]
(प्रियव्रत चरित्र वर्णन)

दो ०- नूपति भये प्रियवृत जिमि, ज्ञान लियी जिमि पाय। 

सो वृतांत वर्णन कियौ, या पहिले अध्याय ।श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध ५]
( अग्नीध्र चरित्र)
दोहा-सव अग्नीध का, भाषा करदू गाय।
या द्वितीय अध्याय में, श्रवण करी मन लाय।।

श्रीमद भागवद पुराण * तीसरा अध्याय *[स्कंध ५] ऋषभ देव अवतार
( नाभि का चरित्र वर्णन )
दोहा-ऋषभ यज्ञ प्रकटित भये, यज्ञरूप अवार।
सो तीसरे अध्याय में, कही कथा सुख सार ।।





श्रीमद भागवद पुराण * चौथा अध्याय *[स्कंध ५] ( ऋषभ देव का चरित्र वर्णन ) 
दोहा-ऋषभ देव अवतार भये, कहूँ कथा समझाय।
या चौथे अध्याय में, कहें शुकदेव सुनाय ।।



श्रीमद भागवद पुराण * पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध५]
( ऋषभ देवजी का उपदेश करना )
दोहा-ऋषभ देव निज जात जिमि, दई सीख सुख दाय।
मोक्ष मार्ग वर्णन कियो, या पंचम अध्याय ।।

श्रीमद भागवद पुराण * छटवां अध्याय * [स्कंध ५]
श्री ऋपमदेव जी का देह त्याग करना)
दो०-देह त्याग कियो ऋषभ, जिमि अंतिम भये छार।
सो छटवें अध्याय में, बरनी कथा उचार ।। 


श्रीमद भागवद पुराण* सातवां अध्याय *[स्कंध ५]
(भरत जी का चरित्र वर्णन )
दो० भरत राज्य जा विधि कियो। हरि सौं प्रेम बड़ाय। 
सो सप्तम अध्याय में, कही कथा दर्शाय ।।


श्रीमद भागवद पुराण *आठवां अध्याय *[स्कंध५]
(भरत को मृगत्व) 
दोहा-मृग शिशु पाल प्रेम मय प्रभुहि भक्ति विसराय॥ 
सो आठवें अध्याय में भरत मये मृग आय।।



श्रीमद भागवद पुराण * नौवां अध्याय *[स्कंध ५]
(भरत का विप्र जन्म लेना)
दोहा-या नवमे अध्याय में, भये भरत जड़ रूप।
सो उनकी सारी कथा, वर्णन करी अनूप ॥


श्रीमद भागवद पुराण * दसवां अध्याय *[स्कंध ५]
(जड़ भरत और रहूगण का संवाद)
दोहा-सेवक पकड़े जड़ भरत, दिये सुख पाल लगाय ।
सो दसवें अध्याय में, कहयौ संवाद सुनाय ।।

श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवां अध्याय [स्कंध ५]
(जड़ भरत का निर्मल उपदेश)
दोहा-दियो रहूगण को भरत, जिस प्रकार उपदेस।
सो ग्यारह अध्याय में, वर्णन कियौ विशेष ॥

श्रीमद भागवद पुराण बारहवां अध्याय [स्कंध ५]
(राजा रहूगण का संदेह भंजन )
दोहा - शंसय कियो अनेक विधि, रहुगण भूप अनेक।
बारहवें अध्याय में, मैंटे सहित विवेक ।।

श्रीमद भागवद पुराण ॥तेरहवां अध्याय॥ स्कंध५
(भयावटो वर्णन)
हो०-आत्म ज्ञान उपदेश जिमि' कहयो भरत समझाय।
तेरहवें अध्याय में, कथा कही दर्शाय ।।

श्रीमद भागवद पुराण चौदहवां अध्याय [स्कंध ५]
(भवावटी की प्रकृति अर्थ वर्णन)
दो०-रूपक धरि कहि जड़ भरत, राजा दियौ समझाय।
भिन्न भिन्न कर सब कहयौ, चौदहवें अध्याय ।।


श्रीमद भागवद पूराण सोलहवां अध्याय [स्कंध५]
(भुवन कोष वर्णन) इलावृत खंड
दोहा०-भुवन कोस वर्णन कियो, श्री शुकदेव सुनाय।
सुनत परीक्षित भूप जिम सोलहवें अध्याय॥


गंगा जी का विस्तार वर्णन।। भगवाद्पदी- श्री गंगा जी।
श्रीमद भगवद पुराण *सत्रहवां अध्याय*[स्कंध ५]
दोहा: कहयो गंग विस्तार सब, विधि पूर्वक दर्शाय।
संकर्षण का स्तबन कियो रुद्र हर्षाय।।


अष्टम दस अध्याय में, कीरति कही बनाय।।

श्रीमद भागवद पुराण उन्नीसवाँ अध्याय * स्कंध५
भारत वर्ष का श्रेष्टत्व वर्णन
दो: हो भारत देश महान है, कहुँ सकल प्रस्तार।
या उन्नाव अध्याय में, वर्णित कियौ विचार।।

श्रीमद भागवद पुराण इक्कीसवां अध्याय [स्कंध ५]
राशि संचार द्वारा लोक यात्रा निरूपण
दोहा-सूर्य चन्द्र की चाल से, होवे दिन और रात।
सो इक्कीस अध्याय विच, लिखी लोक की बात ।।

श्रीमद भागवद पुराण बाईसवां अध्याय [स्कंध ५](चंद्र तथा शुक्र आदि नक्षत्रों एवं ग्रहों का वर्णन)



स्कन्ध ६

प्रथम अध्याय
(अजामिल की मोक्ष वर्णन विषय)
दो०- विष्णु पार्षद आयट, लिये यम दूत दबाय | 
दुष्ट अजामिल को लियौ, प्रथम अध्याय छुड़ाय || 


श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध६]
(विष्णु पार्षद कथन)
दोहा० या दूजे अध्याय में, कहीं कथा सुख सार।
नारायण को नाम ले, भयौ अनामिल पार॥



श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय [स्कंध ६]
(वैष्णव धर्म का वर्णन)
दो. विष्णु महातम सारयम, निज दूतों को समझाय।
सो वर्णन कीनी सकल, या तृतीय अध्याय ॥

नवीन सुख सागर 
श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [स्कंध ६]
( दक्ष द्वारा हंस गुहा के स्तवन द्वारा हरि की आराधना )
दो०-दक्ष तपस्या अति करी, करन प्रजा उत्पन्न।
सो चौथे अध्याय में कही कथा सम्पन्न॥













नवीन सुख सागर 
श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
(वृतासुर का चरित्र वर्णन)
दो००वृतासुर ने भक्तिमय, सुन्दर वरणों ज्ञान।
ग्यारहवें अध्याय में, ताकौ कियो बखान।।






असुर वृत्तासुर का देव भाव को प्राप्त होना।।
नवीन सुख सागर 
श्रीमद भागवद पुराण चौदहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
(चित्रकेतु चरित्र वर्णन)
दो०- चिरकेतु के चरित्र को वर्णन कियौ सुनाये।
भाख्यो शुक संपूर्ण यश चौदहवे अध्यायः॥



नवीन सुख सागर
श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
(चित्रकेतु को नारद तथा अंगिरा ऋषि द्वारा शोक मुक्त करना)
दो० नारद और ऋषि अंगिरा, चित्रकेतु ढ़िग आय।
शौक दूर कीयो सकल कहयौ ज्ञान दरसाय॥








श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८



जय विजय के तीन जनम एवं मोक्ष प्राप्ति। श्रीमद भगवद पुराण प्रथम अध्याय-सातवां स्कन्ध प्रारम्भ
दो०-कुल पन्द्रह अध्याय हैं, या सप्तम स्कंध ।
वर्णन श्री शुकदेवजी उत्तम सकल निबन्ध ।।
हिरण्यकश्यप के वंश की, हाल कहूँ समय ।




































स्कंध समाप्त 🙏🙏🙏



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नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध८]

गजेन्द्र का उपाख्यान

दोहा- अध्याय में कही कथा गजेन्द्र उचार।

तामें प्रथम द्वितीय में जल क्रीड़ा को सार ।

गज और ग्राह की कथा।। भाग १ (सुख सागर कथा)


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नवीन सुख सागर कथा

श्रीमद भागवद पुराण  तीसरा अध्याय [स्कंध८]

(गजेन्द्र मोक्ष) 

गज और ग्राह की कथा - भाग २ (सुख सागर कथा)गजेन्द्र मोक्ष।। 


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नवीन सुख सागर कथा

श्रीमद्भागवद पुराण चौथा अध्याय स्कंध ८

(गजेन्द्र का स्वर्ग जाना) 

दो० अब चतुर्थ में कहयौ ग्राह भयो गंधर्व।

गज हर पार्षद जस भयो सो भाष्यों है सब || 

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श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ८ ] (ब्रम्हाजी द्वारा स्तवन)


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नवीन सुख सागर कथा।।

श्रीमद भागवद पुराण छठवाँ अध्याय [ स्कंध ८]

(अमृतोत्पादन के लिये देवासुर का उद्योग) समुद्र मंथन भाग १।।


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श्रीमद भागवद पुराण सातवाँ अध्याय स्कंध ८

समुद्र मंथन से कालकूट की उत्पत्ति 


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सुख सागर कथा।। समुद्र मंथन भाग ४।।मोहिनी अवतार।।

श्रीमद भागवद पुराण नवां अध्याय स्कंध ८

भवगान का मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों से अमृत कलश लेना।।

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सुख सागर कथा।। समुद्र मंथन भाग ५ (देवासुर संग्राम)

श्रीमद् भागवद पुराण * दसवां अध्याय * स्कंध ८( देवासुर संग्राम)

दोहा ॰ दैत्य सुरन सौ जब भयो भीषण युद्ध अपार।

सो दसवें में है कथा जस प्रकटे करतार || 


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श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ग्यारहवाँ स्कंध ८ ( देवासुर की समर-समप्ति) देवासुर संग्राम 

दोहा- अब ग्यारह में कही, दैत्यों का संहार। 

भृगु नारद मेक्यो तभी कीन जीब संचार।।

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श्रीमद्भागवद पुराण  बारहवाँ अध्याय स्कंध 8

(मोहनी रूप देख महादेव की मोह प्राप्ति)

दोहा-रूप मोहनी दर्शहि इच्छा धारि महेश।

बारह में वर्णन कियो विष्णु दीन्ह उपदेश।।


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नवीन सुख सागर

श्रीमद्भागवद पुराण  तेरहवाँ अध्याय स्कंध ८।।वैबस्वतादि मन्वन्तर वर्णन।।

दोहा-तेरहवें में वैवस्वत मनु सप्तम राजत जोय।

भाषे जौन भविष्य जो कथा कही सब सोय।।


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श्रीमद्भागवद पुराण चौदहवां अध्याय स्कंध ८

(मन्वादि का पृथक पृथक कर्मादि वर्णन)

दो० चौदह में प्रभु आज्ञा लहि मनु कीन्हे कर्म।

सो अब वर्णन उपदेशमय भांति-भांति  के मर्म || 


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नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पुराण  पन्द्रहवां अध्याय स्कंध ८ 

( बलि द्वारा स्वर्ग विजय )

दो०-अब बलि को वर्णन कथा भाखी नो अध्याय |

यज्ञ विश्वजित एक में बलि को बैभव लाय ||१५| 


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श्रीमद भगवद पुराण सोलहवाँ अध्याय  [स्कंध ८]

 कश्यप द्वारा पयोव्रत कथन )पयोव्रत कथन :  सब यज्ञ, सब ब्रतों और सब तपों का सार। 

दो०-सोलह में निज सुतन लखि अदिति महा दुख पाय। 

जैसे कश्यप कह गये निज समाधि विसराय।। 

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श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध ८]
(अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म )सुख सागर  अध्याय 17 स्कंध 8 अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म वामन अवतार  भाग 1
दोहा-पयोव्रत अदिति कीन्ह जब भये कार्य सब पूर्ण।
सत्रहवें में कथा कही विमल सम्पूर्ण |। १७। | 


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श्रीमद भागवद पुराण* अठारहवाँ अध्याय *[स्कंध ८] 

सुख सागर  अध्याय 18 स्कंध 8 अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म वामन अवतार  भाग 2(बलि के यज्ञ में भगवान का आगमन)विजया द्वादशी।।

दोहा-अठारहवें अध्याय में प्रकटे वामन आय।

दैत्य भूप बयि के यहां यांच्यो वर हर्षाये || 

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श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १९ [स्कंध ८]

( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना ) 

दो० तीन पैर की याचना वामन बलि से कीन।

सो उन्नीसव है कही धलि की कथा नवीन ॥

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श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय स्कंध [८]( विश्व-रूप दर्शन )सुख सागर अध्याय 20 [स्कंध ८]  ( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना) विश्व-रूप दर्शन।। वामन अवतार  भाग 4

दोहा-वामन छलहू जानिकै दान हर्षि नृप दीन। 

सो बिसहें वर्णन कियो बाढ़े विष्णु प्रवीन।।

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श्रीमद  भागवद  पुराण इक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध८]

( विष्णु द्वारा बलि का बन्धन )वामन अवतार  भाग 5

दोहा- इक इस में पग तृतीय हित हरि बांधे बलिराज।

बलि को महिमा देन हित वामन कोन्हें काज ।। 

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श्रीमद भागवद  पुराण अध्याय २२ स्कंध ८ [भगवान का द्वारपालना स्वीकार]

दोहा-बाईसवें अध्याय में बलि भेज्यो पाताल।

आप द्वार रक्षक भये दीनानाथ दयाल | ।


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श्रीमद  भागवद  पुराण तेईसवां अध्याय [स्कंध ८]

( बलि का सुतल गमन )

दो०- तेईस में प्रहलाद युतसुतल बसे बलि जाय। 

लहि आनन्द श्रीविष्णुयुत स्वर्ग गये सुरराय ।२। 


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We are working hard to complete Digitizing of Shrimad Bhagwad Mahapuran (sukh sagar). 


Still under process...........

  • Jai shree Krishna 


  • Jai shri Hari

  • Aumॐ