भगवान शेषनाग की महिमा का गुणगान॥संकर्षण देव (शेष नाग)का निवारण॥
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] • श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] • श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ भगवान शेषनाग की महिमा का गुणगान श्रीमद भागवद पुराण पच्चीसवां अध्याय [स्कंध ५] ॥ संकर्षण देव (शेष नाग)का निवारण॥ दो॰ शेष नाम भगवान हैं, शंकर्षण सुख धाम । पच्चीसवें अध्याय में वर्ण कियौ सुकाम || श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! शेष जी पाताल से तीस हजार योजन दूर पर विराज मान हैं। जो कि विराट स्वरूप भगवान की तमोगुणी कला कहलाते हैं। यह अनंत भगवान शेष जी अहंकार के अधिष्ठाता हैं, और ये दृष्टा और दृश्य को खींच कर मिला देते हैं, इसी कारण इन्हें संकर्षण कहते हैं। शेष जो के एक ही शिरपर यह समस्त पृथ्वी मंडल इस प्रकार रखा हुआ कि, जिस प्रकार किसी बड़ी पगड़ी पर एक दाना सरसों का रखा होता है। जब प्रलय काल होता है तब इनको अति क्रोध होता है, तब इनकी घूमती हुई भृकुटियों के मध्य से तीन तीन नेत्रों वाले संकर्षण नाम वाल