श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ८[स्कंध४]पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना।।
श्रीमद भागवद पुराण*आठवां अध्याय* [स्कंध४]
(पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना)
दो.-पार्वती कहै सती ने ली जिमि अवतार।
सो अष्टम अध्याय में वर्णित कथा उचार ।।
श्री शुकदेव मुनि बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार दक्ष के यज्ञ की कथा कह कर मेत्रैय बोले-हे विदुर ! दक्ष प्रजापति की कन्या सती जी अपने शरीर को छोड़ कर हिमालय की स्त्री मेंना के उदर से प्रगट हुई। फिर भी वह पार्वती निरंतर भजन करके महादेव पति को पुनः इस प्रकार से प्राप्त हुई कि जिस प्रकार प्रलय काल से सोई हुई मायादि शक्ति ईश्वर को प्राप्त होती है। विदुर जी बोले-हे मैत्रेय जी ! आप उन जगदंबा पार्वती जी के जन्म का वृतांत पूर्ण रूप से सुनाईये कि फिर किस प्रकार से वे महादेव जी को पति रूप में प्राप्त कर सकीं। तब श्री मैत्रेय जी ! बोले हे विदुर जी ! जिस प्रकार पार्वती जी का हिमाचल की स्त्री मैनावती से जन्म हुआ जिस प्रकार तप करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया, सो वह सब कथा आपको सुनाता हूँ, आप इसे चित्त लगा कर सुनो। जिस समय दक्ष के यज्ञ में सती जी ने अपनी देह का त्याग किया था, उस समय सती जी ने अपने हृदय में महादेव जी के चरणारविन्दो का स्मरण करते हुये यह प्रण किया था कि यद्यपि मेरा कहीं दूसरा जन्म भी होगा तो मैं उस जन्म में भी भगवान शिव की सेवा करूंगी और एक पल के लिये भी उन से अलग न हूँगी। अर्थात् उनको एक पल के लिये भी न विसारुंगी तब सती देह त्यागने के पश्चात सती जी ने पर्वत राज हिमाचल की स्त्री मायावती के उदर से पार्वती के रूप में जन्म लिया। जब पार्वती जी विवाह के योग्य हुई तो राजा हिमाचल ने उनसे पूछा हे पुत्री ! मैं तेरा विवाह कहाँ और किस के साथ करू। तब हे विदूर जी! पार्वती जी को अपने पूर्व जन्म का सब वृतांत याद था, इसलिये उन्होंने अपने पिता हिमाचल राजा से इस प्रकार कहा हे पिता जी ! आप मेरा विवाह महादेव जो के साथ कर दीजिये यह बात पार्वती जी की सुन कर राजा हिमाचल ने कहा- पुत्री भगवान शंकर जी तो सब देवताओं के स्वामी हैं। वे भला मेरी पुत्री को क्यों कर स्वीकार करेंगे। तब पार्वती जी ने अपने पिता को समझाते हुये उत्तर दिया-हे पिता जो ! अगर उनने मुझे स्वीकार न किया तो मैं स्वयं बन में जाकर घोर तप करके इस देह को त्याग कर दूंगी। इतनी बात कह कर अपने पिता को अनेक बार समझा कर पार्वती जी ने बन में जाकर तपस्या करना आरंभ कर दिया ।
नारद मुनी द्वारा पार्वती के शिव के प्रति प्रेम की परीक्षा।।
जब तपस्या करते हुए पार्वती जी को बहुत दिन व्यतीत हो गये, तब एक दिन नारद मुनी ने पार्वती को शिव के प्रति प्रेम की परीक्षा करने के लिये पार्वती जी के निकट आये। नारद जी ने पूछा है पुत्री ! तुम इस बन में किस प्रयोजन से तपस्या कर रही हो। पार्वती जी ने उत्तर देते हुये कहा- हे भगवद्भक्त नारद जी ! मैं आपको प्रणाम करती हूँ, यह तप करने का मेरा प्रयोजन केवल यही है कि मैं अपना विवाह भगवान भूतनाथ त्रिलोचन धारी शिव भगवान के साथ करना चाहती हूँ तब पार्वती जी की भगवान शिव के साथ विवाह करने की इच्छा जान कर कहा-हे पार्वती जी ! तुम बड़ी मूर्ख हो, वे भगवान महादेव जिनके साथ तुम विवाह करने की इच्छा रखती हो, वे शिव तो सदैव देह में श्मसान की भस्म लगाये तथा गले में मुन्ड़ों की माला पहिने भूत प्रेतों के साथ सर्प बिच्छू धारण किये भ्रमण करते रहते हैं। सो तुम इस प्रकार विचित्र वेशभूषा में रहने वाले शिव के साथ किस लिये विवाह करना चाहती हो । नारद जी के इस प्रकार बचनों को सुन कर पार्वती जी ने उत्तर दिया-हे देवर्षि ! वे महादेव जी चाहें समस्त अवगुणों की खान ही क्यों न हों, परन्तु मेरा मन तो उन्हीं से विवाह करने में प्रसन्न है । तब नारद जी ने पुनः समझाते हुये पार्वती जी से इस प्रकार कहा-हे देवि ! आप इन्द्र, कुवेर, वरुण, गंधर्व आदि देवताओं के साथ अपना विवाह क्यों न करलो तब पार्वती जी ने हँस कर उत्तर दिया-हे मुनि ! मन एक ही है यह कोई संख्या में दो चार नहीं है। अतः मन महादेव जी को अपना सर्वेश्वर मान कर उन्हीं के चरणारविन्दों में लगा हुआ है। सो मैं तो उन्हीं के साथ विवाह करुंगी। वे भगवान ही मेरे मन की अभिलाषा को पूर्ण करेंगे। तब नारद मुनि पार्वती जी के ऐसे निश्चय को देख कर अत्यंत प्रसन्न हुये और उन्होंने पार्वती जी से इस प्रकार कहा-हेपुत्री ! तुम्हें शिव जी अवश्य प्राप्त होंगे आप उन्हीं का ध्यान करो। इस प्रकार पार्वती जी से कहकर नारद मुनि भगवान शिव के पास आये । वहाँ आकर भगवान शकर जो को पार्वती जी के सच्चे स्नेह का सारा वृतांत कह सुनाया। सब भगवान शिव ने अपने ध्यान योग द्वारा यह जाना कि सती जी ने राजा हिमाचल की कन्या पार्वती के रूप में जन्म लिया है। और वे मुझे प्राप्त करने के लिये ही कठिन तप कर रही है । तब इसी कारण से भगवान शिव ने हृदय में भी पार्वती जो के प्रति प्रेम का अंकुर उत्पन्न हो गया। तब कुछ दिनों पश्चात भगवान महादेव जी ने एक दिन हिमराज के समीप जाकर कहा हे पर्वत राज! आप अपनी कन्या पार्वती का विवाह हमारे साथ कर दीजिये महादेव जी के इस प्रस्ताव को सुन कर हिमाचल राजा अति प्रसन्न हुये। उन्होंने अपनी पुत्री पार्वती के पास यह संदेश भेज दिया जो उन्हें शिव जी से मिला था। इस समाचार को सुनकर पार्वती जी अत्यंत प्रसन्न हुई। तत्पश्चात राजा हिम पार्वती जी को बन में से लिवा कर राज प्रसाद में आ गये। तब वेद विधि--पार्वती जी, का विवाह भगवान शिव के साथ कर दिया। राजा हिमाचल अनेकों रत्न धन आदि विवाह करते समय दहेज में दिया । तब से पार्वती जो भगवान शंकर से एक पल क्षण के लिये भी कभी अलग नहीं होती हैं ।
सो हे विदुर जी ! इस प्रकार हमने यह शिव पार्वती के विवाह की कथा आपके सामने कही है। इस कथा को कहने व सुनने से मनुष्य के पाप दूर होते हैं।
WAY TO MOKSH🙏. Find the truthfulness in you, get the real you, power up yourself with divine blessings, dump all your sins...via... Shrimad Bhagwad Mahapuran🕉
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
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श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
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• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
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• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
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• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
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• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
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