विष्णु में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है।।

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६

श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७

श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८


श्रीमद्भागवद्पूराण अध्याय ५ [स्कंध २]


दो०- जिस प्रकार सृष्टि रची पूर्ण वृम्ह करतार ।सो पंचम अध्याय में, कहते कथा उचार ।।

ब्रह्मा नारद संवाद





श्री शुकदेव जी बोले हे-राजा परीक्षित! एक बार प्राचीन काल में नारद जी अपने पिता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, परन्तु तिसकाल में वे नारायण के भजन में समाधिस्थ हुये बैठे थे। तब अपने पिता को इस प्रकार ध्यान मग्न हुए देख कर नारद जी अपने हृदय में विचार ने लगे ----











कि संपूर्ण सृष्टि के रचयिता तो वृह्मा जी है फिर यह इस प्रकार किसका ध्यान कर रहे है। क्या इनसे परे भी कोई और शक्ति है!


 इस प्रकार विचार कर नारद सोच में पड़ गये, कुछ समय पश्चात जब वृह्मा जी ने ध्यान छोड़ा तो नारद जी ने उन्हें दंडवत् करके पूछा ---

-हे पितामह ! आपको ध्यानस्थ देख कर मुझे बड़ी चिन्ता हुई क्यों कि आप ही तो संपूर्ण सृष्टि को रचकर इस प्रकार संहार करते हो जिस प्रकार मकड़ी अपने मुख से स्वयं जाला बनाकर फिर स्वयं ही खा जाती है। अत: इस समय अपको ध्यानस्त देख कर मुझे प्रतीत हुआ कि आपसे भी अधिक शक्ति वाला कोई और है जिसके आदेश पर ही आप सृष्टि का निर्माण एवं विनाश आदि कर्म करते हो।

 अन्यथा आपको ध्यान करने की क्या आवश्कता थी। यदि मेरा कथन सत्य है तो उस आदि पुरुष का नाम तथा गुण बताने की आप कृपा करें।

नारद जी के कहने पर वृह्मा जी ने कहा----

 हे वत्स ! तुम धन्य हो जो तुमने आज मुझसे ईश्वर की लीला वर्णन करने को कहा है। तुम अभी तक मुझको ही ईश्वर जानता रहा क्योंकि प्रत्यक्ष में तुमने मुझे ही सृष्टि का निर्माण और संहार कारक जाना है। यह वचन तुम्हारा मिथ्या नहीं है क्यों कि मेरे इस कर्म प्रभाव के कारण ही तुम उस मुझसे परे ईश्वर को न जान कर मुझे ही परमात्मा कहता है ।

 हे पुत्र! परन्तु एसा नहीं है संसार के प्रभु नारायण ही हैं जिनकी कृपा से मैं सृष्टि का निर्माण करता हूँ। अन्यथा उन्हीं के द्वारा अनेक वृहा तथा वृह्मन्ड उत्पन्न होते हैं। और उन्हीं को माया से यह सारा जगत प्रकट होता है।

 हे पुत्र! यह सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, गृह, नक्षत्र, तारागण सभी चैतन्य स्वरुप
आत्मा के तेज से ही प्रकाशित हैं इसी प्रकार मैं भी भगवान के प्रकाशित प्रकाश से विश्व को प्रकाशित करता हूँ। सो मैं उन्हीं भगवान नारायण हरि का नमस्कार पूर्वक ध्यान करता हूँ। कि जिसकी दुर्गम माया से सब जीव मुझे जगत का गुण कहते है।
हे नारद ! द्रव्य, कर्म, काल, स्वभाव, परिणाम, कारण, जीव, भोक्ता यस सभी विचार के देखो तो भगवान के पृथक नहीं हैं।

वेद, देवता, लोक, यज्ञ ये सब नारायण का ही रूप है । योग, तप, ज्ञान ये सब नारायण को प्राप्त करने के साधन हैं। इनका फल भी उन्हीं के आश्रित है। परमात्मा के रचे पदार्थों को ही मैं रचता हूँ, मुझे भी उसी ने रचा है उसी के कटाक्ष से मैं भी प्रेरित हूँ। 

वे निर्गुण प्रभु सत्त, रज,तम, यह तीनों गुण जगत की उत्पत्ति पालन संहार के निमित्त माया करके अंगीकार किये है। यही पंचभूत, देवता तथा इंद्रियों के कारण रूप गुण, अध्यात्म, अधिभूत, अधिदेव इन में ममता उत्पन्न करा कर आत्मा को नित्य जन्म मरण के बन्धन में फँसाते हैं। जब ईश्वर को विस्तार की इच्छा होती है तब अपनी इच्छा से प्राप्त काल, कर्म, स्वभाव, को अपनी माया से आत्मा में गृहण करते हैं। काल के द्वारा गुणों का उत्तर प्रगट होता है और रूप स्वभाव से बदलता है तथा वह पुरुष
जिसका स्वामी ऐसे कर्म से महत्व होता है। 

ऊपर कहा गया है कि सत्य, रज, तम यह तीनों गुण ही जगत की उत्पत्ति संहार निमित्त माया से पूर्ण हैं। इन्हीं में से जब रजोगुण सतोगुण के
महतत्व विकार को प्राप्त हुआ तो तीन प्रकार का तत्व हुआ जो सात्विक, राजस, और तामस कहे गये हैं। 


तामस अहंकार से पंचमहा भूत उत्पन्न करने वाली शक्ति हुई, और सात्विक अहंकार से देवता उत्पन्न करने की शक्ति हुई, तथा राजस अहंकार से इन्द्रिय उत्पन्न करने की शक्ति उत्पन्न हुई। जब सब भूतों का
आदि तामस अहंकार विकार को प्राप्त हुआ तो उससे आकाश हुआ। जब आकाश विकार को प्राप्त हुआ तो उससे स्पर्श गुण वाला वायु उत्पन्न हुआ। जब काल कर्म स्वभाव से वायु विकार को प्राप्त हुआ तो उससे स्पर्श रूप शब्द गुण वाला तेज प्रकट हुआ। जब तेज विकार को प्राप्त हुआ तो उसमें जल की उत्पत्ति हुई। फिर विकार को प्राप्त हुए जल से पृथ्वी उत्पन्न हुई।


जब सात्विक अहकार विकार को प्राप्त हुआ तो उससे मन, चन्द्रमा, दिशा, वायु, वरुण, अश्वनी कुमार, अग्नि, उपेन्द्र, मित्र, वृह्म, यह दस वैकारिक देवता उत्पन्न हुये । इसी प्रकार जब राजस अहंकार विकार को प्राप्त हुआ तो उससे कण , त्वचा, नासिका, नेत्र जिव्हा, ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और वाणी, हाथ, चरण, लिङ्ग, गुदा ये पाँच कर्मेन्द्रियां पैदा हुई इस प्रकार यह दस इन्द्रियाँ उत्पन्न हुई। जब ये सब को देह रचना करने में समर्थ न
हुये तो सबने ईश्वरीय शक्ति से प्रेरित हो मिलकर सत असत को ले दोनों तरह स्थूल देह की रचना की। वह स्थूल जैसा अंड जब १००० एक हजार वर्ष तक जल में पड़ा रहा तो ईश्वर (काल कर्म स्वभाव में जो स्थिति है) ने उस अचेतन को चेतन्य किया । जिससे उस अण्ड को भेदन कर जो पुरुष निकला वह असंख्य अरु, चरण, भुजा , नेत्र, मुख, तथा शिर वाला हुआ।


बुद्धिमानों की कल्पना के अनुसार ईश्वर के अङ्गों से लोकों को रचना इस प्रकार कही गई है। नीचे के सात अङ्गों से सात लोक और उपर के सात अंगों से सात लोकों की कल्पना करते हैं।

विराट स्वरूप 


विराट स्वरूप परमेश्वर के मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्री, जंघा से वैश्य, चरणों से शूद्र की उत्पत्ति कही है। भूलोक चरणों से, भुव लोक नाभि से, स्वर्ग लोक हृदय से, यह लोक को कल्पना उस महात्मा के उर से की गई है। जनलोक ग्रीवा से, तप-लोक दोनों स्तनों से और सत्य लोक की कल्पना शिर से की है।

 बृह्म लोक बैकुण्ठ सनातन है इस गणना सृष्टि में नहीं जाननी चाहिये। अतल लोक कटि में, वितल लोक विभु के उरू में, जानु में शुद्ध शुतल लोक, तलातल लोक जंघा में कहा है। महातल लोक गुल्फों में, रसातल लोक एड़ियों में, पाताल लोक पद के तल में।।

इस प्रकार उस परमेश्वर पुरुष को लोक मय कहा गया है। भूलोक की रचना चरणों में भुव लोक नाभि में, स्वर्ग लोक मस्तक में है इस प्रकार इस महात्मा पुरुष के शरीर के ही लोकों की रचना का वर्णन किया है।










।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अष्टम अध्याय समाप्तम🥀।।༺═──────────────═༻


त्रुटियों के लिए श्रमापार्थी 🙏


The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. 
Jai shree Krishna.🙏ॐ

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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। 


Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!
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