श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [स्कंध७] (हिरण्यकश्यपु का लोक पालों पर उत्पीड़न)
मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
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श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [स्कंध७]
(हिरण्यकश्यपु का लोक पालों पर उत्पीड़न)
दो०- हिरण्यकश्यपु ने लियो ब्रम्हा से बरदान।
सो चोथे अध्याय में, कीनी कथा बयान |
नारद जी बोले-हे राजन् ! इस प्रकार हिरण्यकश्यपु ने जब वर माँगा तो वृह्मा जी वरदान प्रदान कर दैत्येन्द्र से पूजित हो अपने लोक को चले गये । इधर दैत्यराज हिरण्यकश्यपु अपने भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु का बदला विष्णु से लेने का स्मरण कर के वैरभाव करने लगा। दैत्य ने तप के प्रभाव से तीनों लोकों को जीत कर अपने वश में कर लिया । इन्द्र के स्वर्ण के मणिमय सिंहासन पर स्थिति हो वह सारे जगत के संपूर्ण आनंदों को भोगने लगा। वह इकत्तर युग से भी अधिक समय तक राज्य करता रहा।
दैत्य राज के प्रचंड दंड से पीड़ित होकर लोकपालों सहित संपूर्ण देवता भयभीत हो विष्णु भगवान की शरण में जाकर उनका ध्यान करने लगे। उस काल यह आकाश वाणी हुई हे देवताओ ! तुम भय मत करो, इस दुष्ट दैत्य की कुटिलता मैंने जान ली है। कुछ समय तक तुम लोग धर्म धारण करो, जब यह दुष्ट अपने महात्मा पुत्र प्रहलाद से द्रोह धारण करेगा मैं इसे मारुंगा। भगवान की यह आकाश वाणी सुनकर निसंदेह होकर सब देवता अपने-अपने स्थान को लौट आये।
हे राजन ! हिरण्यकश्यपु के चार पुत्र थे जिसमें सबसे छोटा प्रहलाद था। जो गुणों में सबसे बड़ा था, वह भगवान का परम भक्त था।
प्रहलाद ने बालक पन से ही बैठते, चलते, खाते, पोते, सोते, और बोलते में केवल भगवान विष्णु का ही ध्यान करके एक रूप हुआ था। सो हे राजन ! ऐसे महात्मा पुत्र प्रहलाद से उसका पिता हिरण्यकश्यपु अकारण ही वैरभाव करने लगा।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम चतुर्थ अध्याय समाप्तम🥀।।
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