श्रीमद भागवद पुराण * छटवां अध्याय * [स्कंध ५] (श्री ऋषभदेव जी का देह त्याग करना)



श्रीमद भागवद पुराण * छटवां अध्याय * [स्कंध ५] श्री ऋपमदेव जी का देह त्याग करना)  दो०-देह त्याग कियो ऋषभ, जिमि अंतिम भये छार। सो छटवें अध्याय में, बरनी कथा उचार ।।   श्री शुकदेवजी बोले-हे अर्जुन पौत्र! इस प्रकार अनेक सिद्धियों को प्राप्त होने पर भी ऋषभ देव जी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। कहने का तात्पर्य है कि सिद्धियों का अपने निमित्त कभी प्रयोग नहीं किया था । इतनी कथा सुनकर राजा परिक्षत ने श्री शुकदेव जी से मधुर वचनों में पूछा हे मुनि! ऋषभ देव जी ने प्राप्त हुई सिद्धियो को अंगीकार क्यों नहीं किया था, सो यह सब भेद आप मुझ पर प्रकट करिये, आपकी अति कृपा होगी। तब श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित! विद्वान पुरुषों ने कहा है कि इस चंचल मन का विश्वास बहुत से लोग नहीं करते हैं । क्योंकि मन का विश्वास करने से महादेवजी का बहुत काल का संचित किया हुआ तप मोहिनी रूप के दर्शन से क्षण मात्र में क्षीण हो गया था । अतः मन पर योगी जन को विश्वास न करना ही हितकर है, क्योंकि जिस प्रकार व्यभिचारिणी स्त्री अपने मित्रों को अवकाश देकर अपने पति को मरबा डालती है उसी प्रकार योगी यदि मन पर विश्वास कर लेता है तो वह अपने मित्र-क्रोध, काम, अादि को अवकाश देकर योगी पुरुष को भ्रष्ट कर देता है। काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, शोक, भय आदि और कर्म बन्धन ये सब मन के कारण से ही होते हैं। यही कारण था कि श्री ऋषभ देव जी ने शरीर को त्याग करने की इच्छा की और अपनी आत्मा में विराजमान साक्षात परमात्मा को ही अपने साथ भेद सहित रूप में देख कर देह के अभिमान को त्याग दिया था।    एक समय श्री ऋषभ देव जी करनाटक देश के कुटुक नाम वाले पर्वत के उद्यान में पत्थर को मुख में डाले वाँसो के वन में नंगी देह जटा विखेरे इधर उधर बावलों के समान घूमने लगे । वहाँ वन में वाँसो को आपस में टकराने के कारण भयानक आग लग गई तब उसी वन के साथ ही श्री ऋषभ देव जी की देह भी भस्म हो गई।   ऋषभ देव जी के चरित्रों का कलयुगि रूपांतरण।।  श्री शुकदेव जी कहते हैं कि हे परीक्षित ! कलिकाल में अर्हन नाम का मूर्खराजा होगा कोंक, वैक, कुटुक आदि देशों का शासक होगा। सो वह श्री ऋषभ देव जी के इस परमहंस पन के चरित्र को सुन अपना धर्म छोड़ अपनी बुद्धि से अन्य अनेक पाखंड रूप मार्गों को चला कर अपने को धर्म का प्रवृत्तक कहलायेगा। इसी के द्वारा आगे जैन धर्म की स्थापना होगी। अर्थात् इस पाखंड रूप जैन धर्म के चलने से कलि काल में दुष्ट लोग देव की माया से मोहित होकर स्वकर्म विधि को त्याग कर केश आदि मुडाने का नियम धारण करेंगे। वे कलि के प्रभाव से जैन लोग वेद, विद्वान, विप्र, और सज्जन पुरुष एवं विष्णु भगवान की निंदा करने लगेंगे ।    यद्यपि यह ऋषभ देव अवतार रजो गुणियों के मोक्ष के मार्ग के लिये हुआ था । जो लोग भगवान ऋषभ देव जी के उस चरित्र को सुने अथवा सुनावे तो उसे वासुदेव भगवान की भक्ति प्राप्त होती है। इन्ही ऋषभ देव जी के परमहंस पन को देख पाखंडियों ने शराबगी तथा ओस वाल धर्म का प्रचार किया था ।


श्रीमद भागवद पुराण * छटवां अध्याय * [स्कंध ५] (श्री ऋषभदेव जी का देह त्याग करना)


दो०-देह त्याग कियो ऋषभ, जिमि अंतिम भये छार।

सो छटवें अध्याय में, बरनी कथा उचार ।। 




श्री शुकदेवजी बोले-हे अर्जुन पौत्र! इस प्रकार अनेक सिद्धियों को प्राप्त होने पर भी ऋषभ देव जी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। कहने का तात्पर्य है कि सिद्धियों का अपने निमित्त कभी प्रयोग नहीं किया था । इतनी कथा सुनकर राजा परिक्षत ने श्री शुकदेव जी से मधुर वचनों में पूछा हे मुनि! ऋषभ देव जी ने प्राप्त हुई सिद्धियो को अंगीकार क्यों नहीं किया था, सो यह सब भेद आप मुझ पर प्रकट करिये, आपकी अति कृपा होगी। तब श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित! विद्वान पुरुषों ने कहा है कि इस चंचल मन का विश्वास बहुत से लोग नहीं करते हैं । क्योंकि मन का विश्वास करने से महादेवजी का बहुत काल का संचित किया हुआ तप मोहिनी रूप के दर्शन से क्षण मात्र में क्षीण हो गया था । अतः मन पर योगी जन को विश्वास न करना ही हितकर है, क्योंकि जिस प्रकार व्यभिचारिणी स्त्री अपने मित्रों को अवकाश देकर अपने पति को मरबा डालती है उसी प्रकार योगी यदि मन पर विश्वास कर लेता है तो वह अपने मित्र-क्रोध, काम, अादि को अवकाश देकर योगी पुरुष को भ्रष्ट कर देता है। काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, शोक, भय आदि और कर्म बन्धन ये सब मन के कारण से ही होते हैं। यही कारण था कि श्री ऋषभ देव जी ने शरीर को त्याग करने की इच्छा की और अपनी आत्मा में विराजमान साक्षात परमात्मा को ही अपने साथ भेद सहित रूप में देख कर देह के अभिमान को त्याग दिया था। 


एक समय श्री ऋषभ देव जी करनाटक देश के कुटुक नाम वाले पर्वत के उद्यान में पत्थर को मुख में डाले वाँसो के वन में नंगी देह जटा विखेरे इधर उधर बावलों के समान घूमने लगे । वहाँ वन में वाँसो को आपस में टकराने के कारण भयानक आग लग गई तब उसी वन के साथ ही श्री ऋषभ देव जी की देह भी भस्म हो गई। 

ऋषभ देव जी के चरित्रों का कलयुगि रूपांतरण।।


श्री शुकदेव जी कहते हैं कि हे परीक्षित ! कलिकाल में अर्हन नाम का मूर्खराजा होगा कोंक, वैक, कुटुक आदि देशों का शासक होगा। सो वह श्री ऋषभ देव जी के इस परमहंस पन के चरित्र को सुन अपना धर्म छोड़ अपनी बुद्धि से अन्य अनेक पाखंड रूप मार्गों को चला कर अपने को धर्म का प्रवृत्तक कहलायेगा। इसी के द्वारा आगे जैन धर्म की स्थापना होगी। अर्थात् इस पाखंड रूप जैन धर्म के चलने से कलि काल में दुष्ट लोग देव की माया से मोहित होकर स्वकर्म विधि को त्याग कर केश आदि मुडाने का नियम धारण करेंगे। वे कलि के प्रभाव से जैन लोग वेद, विद्वान, विप्र, और सज्जन पुरुष एवं विष्णु भगवान की निंदा करने लगेंगे । 


यद्यपि यह ऋषभ देव अवतार रजो गुणियों के मोक्ष के मार्ग के लिये हुआ था । जो लोग भगवान ऋषभ देव जी के उस चरित्र को सुने अथवा सुनावे तो उसे वासुदेव भगवान की भक्ति प्राप्त होती है। इन्ही ऋषभ देव जी के परमहंस पन को देख पाखंडियों ने शराबगी तथा ओस वाल धर्म का प्रचार किया था ।










Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com

Comments

Popular posts from this blog

सुख सागर अध्याय ३ [स्कंध९] बलराम और माता रेवती का विवाह प्रसंग ( तनय शर्याति का वंशकीर्तन)

जानिए भागवद पुराण में ब्रह्मांड से जुड़े रहस्य जिन्हें, विज्ञान को खोजने में वर्षों लग गये।

चारों आश्रमों के धर्म का वर्णन।।