श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ८ ] (ब्रम्हाजी द्वारा स्तवन)
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
नवीन सुखसागर
श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ८ ]
(ब्रम्हाजी द्वारा स्तवन)
Shree ram ki kavita, kahani (chaand ko hai ram se shikayat)
The questions of narada and their answers.
गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।
क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.
श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।
Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.
हम किसी भी व्यक्ति का नाम विभीषण क्यों नहीं रखते ?
How do I balance between life and bhakti?
यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।।
सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।
सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !
Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)
सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।
Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.
-----हे देवों ! मैं और महादेव, तुम सब सुर और अपुर, जिस भगवान की अंश कलाओं से सृजे गये हैं। हमको उन्हीं भगवान की शरण में चलना चाहिये, वह अवश्य ही हमारा कल्याण करेंगे क्योंकि देवता उनको बहुत प्यारे हैं।
यह कहकर देवताओं के साथ ब्रह्माजी लोक लोक के अन्धकार से परे अजित भगवान के रहने के स्थान पर गये । वहाँ जाकर सावधान हो दैवी वाणी से उस परमात्मा स्तुति करने लगे ।
तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।
क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य? तंत्र- एक विज्ञान।।
आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।
तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।
मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।
जो विकार रहित सत्य स्वरूप, अनन्त, आद्य, सर्वान्तर्यामी, उपाधि रहित अतर्क्य मनवाणी से अगम्य और वरेण्य² है, उसी परमात्मा को हम सब प्रणाम करते हैं।जिसकी माया का कोई पार नहीं पा सकता है तथा जिसकी माया से मोहित होकर आत्मस्वरूप को नहीं जान सकता है, और जिसने यह माया और उसके गुण अपने वशीभूत कर रक्खे हैं सब प्राणियों में समान भाव से विचरने वाले उस परेश परमेश्वर को हम नमस्कार करते हैं।हे विभो ! समय-समय पर अपनी इच्छा पूर्वक अनेक अवतारों को धारण कर; आप वे वे कर्म करते हैं जो हम से कदापि नहीं हो सकते हैं । विषयी मनुष्यों के कर्म बड़े क्लेशकारक और अल्पसार युक्त हैं, इससे वे निष्फल हुआ करते हैं। परन्तु आपमें अर्पण किये हुए कर्म निष्फल नहीं होते हैं। जैसे वृक्ष की जड़ में सींचने से उसके पत्ते, डाली, पींड़ आदि सबअपने आप सिंच जाते हैं।उसी तरह विष्णु भगवान का आराधन करने से स्वयं ही सब देवादिकों का अराधन हो जाता है। हे नाथ ! आप अनन्त हैं अतर्क्य हैं, निर्गुण हैं, गुणेश हैं, और सदा सत्वगुण में स्थित हैं आपनो हम सब देवता लोग प्रणाम करते हैं ।
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