बृह्मा द्वारा कर्मों के अनुसार भगवान नारायण के २४ अवतारों का वर्णन।।

बृह्मा द्वारा कर्मों के अनुसार भगवान नारायण के २४ अवतारों का वर्णन।।श्रीमद्भागवद्पूराण [स्कन्ध २] सातवां अध्याय*

(भगवान का लीला अवतार वर्णन)

दो-धारण होय अवतार जो जिन कर्म रूप आधार ।

सो सप्तम अध्याय में वरणू भेद विचार ।।

Inside the Hindu mall.


गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।


महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम


क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.


श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।


वृह्मा जी बोले-हे नारद ! अब प्रथम हम तुम्हारे सामने बाराह अवतार का सारांश में वर्णन करते हैं। भगवान की आज्ञानुसार जब मैंने पृथ्वी का निर्माण किया तो वह कमल के पत्ते पर किया था जिसे हिरणाक्ष्य नाम का राक्षस उसे पाताल में उठा कर ले गया। तब मैंने नारायण जी से प्रार्थना
की कि पृथ्वी को हिरणाक्ष्य ले गया है अब मनुष्य आदि प्राणी कहाँ रहेंगे।। 


तो भगवान श्री नारायण ने पृथ्वी का उद्धार करने के लिये बाराह अवतार धारण कर अपनी दाड़ों से हिरणाक्ष्य का पेट फाड़ कर मार डाला और अपनी दाड़ों पर पृथ्वी को रख कर लाये तब यथा स्थान पर रखा था ।



अब यज्ञावतार कहते है कि रुचिनाम प्रजापति की अकुती नाम स्त्री से सुरज्ञ नाम पुत्र हुआ जिसने इन्द्र होकर त्रिलोकी का संकट दूर किया तब स्वायम्भुव मनु ने स्वयज्ञ का नाम हरि रखा वही यज्ञ भगवान नाम से अवतार हुये।





अब कपिल अवतार कहते हैं-कदम नाम ऋषि को स्त्री देवहूती से नौ कन्या तथा एक पुत्र हुआ पुत्र का नाम कपिल हुआ। जिसने अपनी माता को वृह्म विद्या, साँख्य सास्त्र का उपदेश दिया जिससे देवहूती मोक्ष को प्राप्त हुई यही कपिल श्री कपिलदेवजी के नाम से भगवान के अवतार हुये।






अब दत्तात्रेयअवतार कहते हैं अत्रिमुनि की पत्नी अनुसुया द्वारा पुत्र कामना करने पर भगवान ने स्वयं पुत्र बन अवतार लेने का वर दिया सो वह दत्तात्रेय भगवान के नाम से अवतारित हुये।


अब सनकादिक अवतार कहते हैं। यह अवतार मेरी नासिका द्वारा सनक, सनन्दन, सनातन तथा सनत कुमार के नाम से हुआ जो महा तपस्वी हुए जिस तपस्या के प्रभाव से वे कल्प बीतने पर भी पांच साल की अवस्था वाले बने रहते हैं।।






अब नर नारायण अवतार कहते हैं -धर्म की सभी मूर्ति से भगवान ने नर नारायण अवतार लिया जो उत्तराखण्ड में तप करने चले गये। इनका तप भङ्ग करने को काम सेना नाम की अप्सरा गई। तब भगवान नर नारायण के तप से अपने स्वरूप के समान विशी नाम अप्सरा हुई जिसे देख काम सेना ने नर नारायण का तप भङ्ग करने की सामर्थ न हुई ।




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अब नारायण अवतार कहते हैं इस अवतार में जब उत्तानपाद के पुत्र धुरव पिता की गोद में बैठे तो उनकी सौतेली माता सुरुचि ने दुर्वचन कहे। जिसके कारण ध्रुव जी वन में तप करने को वाल्य वस्था में ही चले गये।

तब उनके तप के प्रभाव से प्रसन्न हो भगवान ने साक्षात नारायण रूप धारण कर धुरवजी को दर्शन दिया था।




अब पृथुअवतार कहते हैं अपने पिता राजा वेणु को नर्क में जाने से पृथु ने बचाया और इन्ही ने गौरूपिणी पृथ्वी से समस्त बनस्पतियो को दुहा।।



अब ऋषभ देव का अवतार कहते हैं-आग्नीव नाम नृप की स्त्री सुदेवी से जन्म ले ऋषभ देव हुये। जिनने समदर्शी जड़ की तरह योगक्रिया और जैन मत को प्रगट किया।



अब हयग्रीव अवतार कहते हैं। इन्होंने वेद शास्त्र चुरा ले जाने वाले मधुकैटभ नामक दैत्य को पाताल में जाकर मारा और वेद शास्त्रों को लाकर मुझे दिया।


अब मत्स्यावतार वर्णन करते है भयंकर प्रलय के जल में मेरे मुख से गिरे वेदों को मत्स्य भगवान ने प्रलय के जल में विहार किया और वेदों को
लाकर मुझे दिया।



अब कच्छप अवतार कहते हैं-इस अवतार में भगवान ने समुद्र मर्थन के समय जब मंदराचल समुद्र में डूबने लगा। तब कच्छप रूप धारण कर पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था। तब देव दनुजों ने समुद्र का मंथन किया।





अब नरसिंह अवतार कहते है- प्रहलाद भक्त की रक्षा के निमित्त भगवान ने विक्राल नृसिंह रूप धारण किया और दुष्ट हिरणाकश्यपु के हृदय को साथलों पर डाल कर अपने नखों से उसके उदर को बिदारण कर दिया था।

महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १






हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग 


प्रह्लाद द्वारा भगवान का स्तवन। महाभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ५।।


अब हरि अवतार कहते हैं- जब गजेन्द्र का पाँव त्रिकूट पर्वत के सरोवर में बैठे वलिष्ठ ग्राह ने पकड़ लिया तो गजराज व्याकुल हुआ उसने आदि पुरुष भगवान नारायण हरि से प्रार्थना की तिस कारण वह हरि भगवान महावली चक्रायुध ले गजेन्द्र की रक्षा को आये और ग्राह को मारा तथा गजेन्द्र का उद्वार किया।






अब वामन अवतार को कहते हैंजिन्होंने राजा बलि से बामन अगुलात द्वारा तीन पांव धरती दान में ले संम्पूर्ण पृथ्वी को नाप लिया।



अब हंसावतार का वर्णन करते हैं- भगवान ने हंस अवतार ले भक्ति, ज्ञान, योग, साधन, तथा आत्मतत्व प्रकाश श्री भागवत का वर्णन किया जिसे भक्त जन बिना ही परिश्रम के जान सकते हैं।



मनु अवतार सुनाते हैं सो हे नारद ध्यान से सुनो मनवन्तरों में मनु वेषधारी भगवान ने दशौ दिशाओं में सुदर्शन चक्र के समान अखण्डित प्रभाव वाले तेज को धारण किया और अपने चरित्र को त्रिलोकी के ऊपर सत्यलोक पर्यन्त विस्तार कर दुष्ट राजाओं को दण्डित किया।




नोट- यहां यह बात नोट करने योग्य है कि कुछ ग्रन्थों मे मनु को अवतार न मानकर मोहिनी का अवतार माना है। यह मोहिनी अवतार वही कहा गया है, जब देव और दानवों ने समुद्र का मंथन किया तो अमृत प्राप्त होने पर देव दानवों में इस बात का झगड़ा हुआ कि पहले अमृत कौन पान करे तब भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिलाया।







अब धनवन्तरी अवतार कहते हैं । जब समुद्र मंथन हुआ तब ही यह भी प्रगट हुये और इनने अपनी कीर्ति और नाम से ही महा रोगी मनुष्यों के रोग दूर किया। लोक में बैद्यक शास्र आयुर्वेद को प्रवृत किया।

अब परशुराम अवतार वर्णन करते हैं। इन्होंने क्षत्रियों का इक्कीसवार अपने फरसे से दमन किया था।


अब श्रीरामचन्द्र अवतार वर्णन करते है। यह राजा इक्ष्वाकु के श्रेष्ठ वंश में हुये जिन्होंने पिता की आज्ञा को शिरो धार्य कर छोटे भ्राता लक्ष्मण व अपनी पत्नी सहित बन गवन किया। तब लंका पति ने सीता जी का हरण किया तो उन्होंने रावण सहित अनेक राक्षसों को मार कर पृथ्वी का भार उतारा ।



अब श्रीकृष्णाबलराम अवतार का वर्णन करते हैं । इन्होंने पृथ्वी का भार हरने को जेल में जन्म ले नंदघर पालन कराय कश आदि दुष्टों को मार कर भक्तों का उद्धार किया इसके अतिरिक्त अन्य बहुत से दुष्टों का संहार किया।



अब व्यासावतार का वर्णन करते हैं-वेद मार्ग को दुस्तर जान कर उन मनुष्य के लिये जो संकुचित बुद्धि व कम अयु वाले हैं उनके अर्थ सत्यवती के गर्भ से जन्म ले वेद रूप वृक्ष की शाखा भेद कर वेदों का विस्तार किया।







नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।


अब बौद्धावतार का वर्णन करते हैं।नारायण ने बुद्ध अवतार लेकर राक्षसों का मन यज्ञ करने से हटाया।।



कलियुग के अंत में चौबीसवाँ अवतार कल्कि नाम से होगा वे हाथ में तलवार लिये नीले घोड़े पर बैठ कर अत्याचारी और पापी लोगों को मारते हुये संसार में सतयुग के कर्मों की स्थापना कर धर्म को बढ़ायेंगे ।



यह अवतारों की कथा हमने संक्षेप में कही है वरना ऐसा कौन है जो भगवान हरि नारायण के पराक्रम चरित्र गिन सके। जिन पर भगवान की कृपा हो जाती है वही निष्कपट होकर सर्वोत्म भाव से भगवान के चरणाविन्दों का आश्रय लेते हैं। वे मनुष्य दुस्तर देवमाया से तर जाते हैं।


हे नारद ! मेरे सद्दश्य वृह्मा और तुम्हारे सद्दश्य नारद अनेकों बार उत्पन्न हुये हैं परन्तु उनका वृतान्त उस आदि शक्ति परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं जानता है। 

समस्त प्राणी अपने कर्मों के अनुसार प्रत्येक कल्प में जन्म लेते है। भगवान नारायण की देवी माया को मैं जानता हूँ और तुम जानते हो और महादेव जी, प्रहलाद ,मनु की पत्नी सतरूपा, स्वायम्भुमनु, मनु के पुत्र प्राचीन वहि, ऋभु, अंग, वेनु, धुव्र, इक्ष्वाकु, पुरुरुवा, मुचकुद, जनक, गाधि, रघु, अम्बरीष, सगर, गय, नहषु, मानधाता,अलक, शतधन्वा रन्ति देव, भीष्म, वलि अमूर्तारय, दिलीप, सौभरि उतक शिव, देवल, पिप्पलादि, सारस्वत उद्धव, पाराशर, भूरिषेण, विभीषण, हनुमान, शुकदेव, अर्जुन, आष्टिषेण, विदुर, श्रतदेववर्य, यह सब परमेश्वर की माया को थोड़ा बहुत जानते है। 

इसी कारण यह भव सागर से तर गये। क्योंकि जो लोग भगवद भक्त होते हैं उन पर माया का कोई प्रभाव नहीं होता है । हे नारद ! जिन भगवान की संपूर्ण जगत में भावना है उन्ही के यह सब चरित्र संक्षेप में वर्णन किये हैं। 

यह भागवत नाम पुराण जो नारायण ने मुझ से कहा है वह मैंने तुमसे कहा है आप इसे संपूर्ण जगत में इस सम्पूर्ण विभूतियों के संग्रह को विस्तार से प्रकट करो। 

इस प्रकार वृह्मा जी के मुख से श्री नारायण भगवान की महिमा सुन नारद जी बीणा बजाते हरि गुण गान करते हुये प्रसन्न चित्त वहां से चले गये।



।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम सप्तम अष्ध्याय समाप्तम🥀।।

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