युधिष्ठिर को कलयुग के लक्षण का आभास होना।।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का चौदहवॉं आध्यय [स्कंध १]युधिष्ठिर को कलयुग के लक्षण का आभास होना।।
(युधिष्ठिर को अपशकुन होना अर्जुन का द्वारका से लौटकर आया)
दो-सुन्यो युधिष्ठिर कृष्ण को श्री गोलोक निवास ।
चौदहवें अध्याय सोइ कौन्हों कथा प्रकाश ॥ १४ ।
हे भाई द्वारका को गये अर्जुन अब तक नहीं आया इस बात को मैं कुछ भी नहीं समझता हूँ। हे भीमसेन ! मेरी बाई जाँघ, बाई आँख, बाई भुजा फड़कती है और बारम्बार मेरा हृदय काँपता है, इससे शीघ्र अशुभ फल होवेगा।
गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।
महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम
क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.
श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।
Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.
यह गीदड़ी उदय होते हुए सूर्य के सम्मुख अपना मुख कर रोती है और मुख से अग्नि उगलती है। हे भीम! यह कुत्ते मुझे सन्मुख देख निशंक होकर रोते हैं। गौ, आदि श्रेष्ठ प्राणी, मेरे बाई ओर होकर निकल जाते हैं, और गन्धर्व आदि अधर्मजीव, मेरे दाहिनी ओर आते हैं।अपने घोड़े बाहनों को रोते हुए देखता हूँ। यह उल्लू पक्षी बोलकर मेरे मन को काँपता है। धूसर वर्ण दिशा हो गई हैं,आकाश में अग्नि सी लगी दिखती है, पहाड़ों सहित भूमि काँपती है, बिन बादल ही मेघ गर्जता है और बिजली पड़ती है।सो ये उत्पात हमको क्या दुःख दिखावे । मैं ऐसा मानता हूँ कि इन महान उत्पातों से निश्चय ही अन्य शोभा वाले ऐसे भगवान के चरणों से इस पृथ्वी का वियोग हो गया है, सो पृथ्वी का सब सौभाग्य नष्ट होगया।
हे ब्रह्मन् ! इस प्रकार चिन्तवन करते हुए और अपने वित्त से अरिष्टदायी उत्पातों को देख के कष्ट देते हुए युधिष्ठिर राजा के पास उसी समय द्वारकापुरी से अर्जुन भी आ पहुँचा। फिर आतुर नेत्र कमलों से आंसू की धारा बहते हुए, अर्जुन ने सब हाल बताया।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम चौदहवाँ अध्याय समाप्तम🥀।।
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