विराट अवतार की सृष्टि का वर्णन।।
।। श्री गणेशाय नमः।।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
Bhagwad puran
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
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श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ६ [स्कंध ३]
दो० महातत्व सव लाय के, जिमि विराट की सृष्टि ।
सो छटवें अध्याय में कही कथा करि हष्ठि ।।
श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को समझाते हुये कहा---
पिछले अध्याय में आपने पढ़ा
"हे परीक्षत! तब मैत्रेय जी ने विदुर जी से इस प्रकार कहना आरम्भ किया कि इस प्रकार पृथक रूप से भूल रही अपनी शक्तियों को समूह में अन्तर्यामी रूप से एक साथ प्रवेश किया। तब ईश्वर ने जान कर ईश्वर ने काल संज्ञा देवी को धारण कर तेईस तत्वों के उस चेष्टा रूप तत्वात्मक गुण में प्रवेश कर गुप्त कर्म की बोधक
कर, भिन्न-भिन्न तत्वों का जो गुण था उसको भगवान ने मिला दिया। अर्थात जो तत्व पृथक पृथक थे उन सबको उस आदि शक्ति में अपनी शक्ति से एकत्र कर दिया।
तो वह मांस पिन्ड के रूप में बदल गया।
उसी माँस पिन्ड का नाम आदि पुरुष हुआ और इसी आदि पुरुष को विराट रूप भी कहा गया है।
यह विराट शरीर सम्पूर्ण आत्मा का अंश है और परमात्मा का अंश यह ईश्वर का वह आदि अवतार है कि जिसमें प्राणियों का समूह भान होता है।
यह विराट देह पुरुष अर्थात वह आदि पुरुष जो अध्यात्म, अधिदेव, अधिभूत, भेदो से तीन प्रकार का और प्राण भेद से दस प्रकार का तथा हृदय स्थिति जीव भेद से एक प्रकार का है। तब अधोक्षत्र ईश्नर ने अपने तेज से महत्वादिकों को ताप युक्त किया।
प्रथम उस विराट पुरुष का मुख उत्पन्न हुप्रा उसमें लोक पालक अग्नि ने प्रवेश किया। फिर तालु उत्पन्न हुआ जिस में जिभ्या इन्द्रिय समित वरुण ने प्रवेश किया।
तदनन्तर सुन्दर नासिका उत्पन्न हुई उसमें प्राणा इंद्रिय सहित अश्वनी कुमार ने प्रवेश किया। फिर नेत्र उत्पन्न हुये उनमें चक्षु इन्द्रिय सहित लोकपाल सूर्य प्रविष्ट हुये। फिर उसके शरीर में चर्म उत्पन्न हुआ उसमें प्राण इन्द्रिय सहित पवन ने प्रवेश किया। फिर त्वचा उत्पन्न हुई, उसमें रोम इन्द्रियों के साथ औषधि देवता ने प्रवेश किया अनन्तर, फिर लिंग उत्पन्न हुआ, तहाँ वीर्य इन्दिय
सहित प्रजापति ने प्रवेश किया।
फिर गुदा प्रगट हुई उसमें वायु इन्द्रिय सहित लोकपाल मित्र ने प्रवेस किया। फिर हाथ पैदा
हुये उनमें इन्द्र' ने क्रिय विक्रिय आदि इन्द्रियों के साथ प्रवेश किया।
अनन्तर उसके चरण उत्पन्न हुये उनमें गति इन्द्रिय सहित सब लोकों के ईश्वर विष्णु ने प्रवेश किया। फिर बुद्धि पैदा हुई उसमें बोध सहित वीणां धारिणी सरस्वती ने प्रवेश किया। फिर हृदय उत्पन्न हुआ जिसमें मन इन्द्रिय सहित चंद्रमा प्रविष्ट हुआ। फिर अहंकार उत्पन्न हुआ उसमें अहवृत्ति इंद्रियों सहित शिव रूप अभिमान ने प्रवेश किया। फिर उसका सत्व उत्पन्न हुआ जिसमें चित्त इन्द्रिय सहित वृह्मा ने प्रवेश किया।
फिर शिर से स्वर्ग, चरणों से पृथ्वी और नाभि से आकाश उत्पन्न हुआ।
सत्व गुण अधिक होने से देवताओं ने स्वर्ग में निवास किया।
रजोगुण के प्रभाव से जो बृह्मादिक व्यवहार करने लगे वे मनुष्य और गौ आदि पशु पृथ्वी पर रहने लगे।
तीसरे तमो गुण स्वभाव वाले रुद्र के पार्षद भूत प्रेतादि गण हैं वह नाभिरूप अन्तरिक्ष में निवास करने लगे।
तथा उस विराट रूप भगवान के मुख से वेद वृह्म उत्पन्न हुआ और भुजाओं से क्षत्रिय उत्पन्न
हुये जंघा से वैश्य तथा चरणों से सेवा कार्य के हितार्थ शूद्र हुये।
अगला अध्याय
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।
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_人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_
त्रुटियों के लिए श्रमापार्थी 🙏
The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA.
Jai shree Krishna.🙏ॐ
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श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।
Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!
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