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महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १

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मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है। तांत्रिक यानी शरीर विज्ञान आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान। यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।।  विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ नवीन सुख सागर  श्रीमद भागवद पुराण पाँचवां अध्याय [स्कंध७] ( प्रहलाद को मारने की हिरण्यकश्यपु की चेष्टा)  दो॰ हरि में लखि सुत लीन, निज कियो देत्य विचार|  मारन चाहयौ तात को, कौनी नहीं अवार॥  युधिष्ठर जी ने पूछा- हे देवर्षि ! ऐसे साधु पुत्र से हिरण्यकश्यपु ने द्रोह क्यों किया, अपने अनुकुल पुत्र न होने पर भी पिता तो पुत्र पर ही स्नेह रखता है। यदि कुपति भी होवे तो भी शत्रु के समान दंड नहीं देता है। फिर अपने उस सत्पुत्र उसने वैर क्यों किया। इसका कारण से कहिये । नारद जी बोले- हे राजन! हि

श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [स्कंध७] (हिरण्यकश्यपु का लोक पालों पर उत्पीड़न)

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मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है। तांत्रिक यानी शरीर विज्ञान आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान। विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ नवीन सुख सागर  श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [स्कंध७] (हिरण्यकश्यपु का लोक पालों पर उत्पीड़न)  दो०- हिरण्यकश्यपु ने लियो ब्रम्हा से बरदान।  सो चोथे अध्याय में, कीनी कथा बयान |   नारद जी बोले-हे राजन् ! इस प्रकार हिरण्यकश्यपु ने जब वर माँगा तो वृह्मा जी वरदान प्रदान कर दैत्येन्द्र से पूजित हो अपने लोक को चले गये । इधर दैत्यराज हिरण्यकश्यपु अपने भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु का बदला विष्णु से लेने का स्मरण कर के वैरभाव करने लगा। दैत्य ने तप के प्रभाव से तीनों लोकों को जीत कर अपने वश में कर लिया । इन्द्र के स्वर्ण के मणिमय सिंहासन

तप की शक्ति।।हिरणयकश्यपु का वर प्राप्त करना।।

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नवीन सुख सागर  श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय [स्कंध ७] (हिरणयकश्यपु का वर प्राप्त करना) तप की शक्ति  दो० - हिरण्यकश्यपु ने कियो, सब विधि तप मन लाय। बृम्हा बरदान तब, दियो तृतीय अध्याय।।  #krishna #krishnaconsciousness #krishnadevotee #krishnaholic #radhakrishna #radharani #wisdomquotes #wisdom #knowledge #spiritual #spirituality #dailydevotional #harekrishna #harekeishnaharerama #haribol #quotes #quote #quotgram #quotesgram #dailymotivation #motivation #motivationquotes #lifequotes #vedicwisdom #gita #givegita #vrindavanchandradas #give #harerama #lordkrishna तप की शक्ति।।हिरणयकश्यपु का वर प्राप्त करना।। मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं? क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य?  तंत्र- एक विज्ञान।। नवीन सुख सागर श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय [स्कंध ७] (हिरणयकश्यपु का वर प्राप्त करना) तप की शक्ति दो० - हिरण्यकश्यपु ने कियो, सब विधि तप मन लाय। बृम्हा बरदान तब, दियो तृतीय अध्याय।। श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित! नारद जी ने धर्मराज युधिष्ठर से कहा

श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध ७] (हिरण्यकश्यपु द्वारा भ्रातृ एवं पुत्रगण का शोकापनोदन)

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नवीन सुख सागर श्रीमद भागवद पुराण  दूसरा अध्याय [स्कंध ७] (हिरण्यकश्यपु द्वारा भ्रातृ एवं पुत्रगण का शोकापनोदन) दो०-निजजन के कारण भयो, हिरण्यकश्यपु मलीन। सो दूजे अध्याय में, विष्णु हन्यो मतहीन |   नारद जी बोले- हे राजन! बाराह रूप भगवान ने जब हिरण्याक्ष को मार दिया तो हिरण्यकश्यपु ने रोष में प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं विष्णु के गले को काट कर सके रुधिर से अपने प्रिय भाई को तर्पण ना कर लूंगा तब तक मेरे मन की व्यथा दूर न होगी। उसने अपने अनुचरों को आज्ञा दी जब तक मैं विष्णु के नाश करने का यत्न करुं तब तक तुम पृथ्वी पर जाकर जप, तप, यज्ञ, वेदाध्यन, ब्रत, दान, करने वाले ब्राम्हण और क्षत्रियों का नाश करो। हे राजन् ! इस प्रकार अपने स्वामी की आज्ञा से दैत्यगण प्रजा का विनाश करने लगे । जब हिरण्यकश्यपु के अनु चरों ने जब संसार में उपद्रव मचाया तो देवता लोग यज्ञ का भाग न मिलने से स्वर्ग को त्याग छिपकर पृथ्वी पर विचरने लगे। इधर अपने भाई हिरण्याक्ष का प्रेत कर्म कर हिरण्यकश्यपु घर आया तो कुटम्बोजनों को विलाप करते देख उन्हें अनेक प्रकार से समझाने लगा। हे भौजाई तथा पुत्रो

जय विजय के तीन जनम एवं मोक्ष प्राप्ति।

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छटवाँ स्कंध समाप्त एवं सातवाँ स्कंध प्रारंभ।। जय विजय के तीन जनम एवं मोक्ष प्राप्ति। श्रीमद भगवद पुराण प्रथम अध्याय-सातवां स्कन्ध प्रारम्भ दो०-कुल पन्द्रह अध्याय हैं, या सप्तम स्कंध ।  वर्णन श्री शुकदेवजी उत्तम सकल निबन्ध ।। हिरण्यकश्यप के वंश की, हाल कहूँ समय ।  या पहले अध्याय में, दीयो बन्श बताय।॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! भगवान अजन्मा है, सब प्रपंच महाभूतों से रहित है। परंतु समय के अनुसार (रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण,) यह घटते बढ़ते रहते हैं । सत्वगुण के समय में देवता और ऋषियों की वृद्धि होती है।  रजोगुण के समय में असुरों की वृद्धि होती है।  तमोगुण के समय में यक्ष राक्षसों की वृद्धि होती है।  अतः जैसी परिस्थिति होती है उसी के अनुरूप भगवान हो जाता है।  यही प्रश्न एक बार पहिले राजा युधिष्ठिर ने नारद जी से किया था। सो उन्होंने एक इतिहास सुनाया था वही मैं तुम्हें सुनाता हूँ।  अपने राजसूय यज्ञ में शिशु पाल की मूर्ति देखकर युधिष्ठिर ने आश्चर्य से पूछा था। नारद ने सुनाथा था कि ---हे युधिष्ठिर ! शिशुपाल और दंतवक्र दोनों ही विष्णु भगवान के श्रेष्ठ पार्षदों में से थे, जो कि सन

दिति के व्रत का वर्णन। श्रीमद भागवद पुराण उन्नीसवां अध्याय [स्कंध ६] अन्तिम अध्याय।

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ नवीन सुख सागर  स्कंध ६ का अंतिम अध्याय श्रीमद भागवद पुराण उन्नीसवां अध्याय [स्कंध ६] (दिति के व्रत का वर्णन ) दो०-उन्नीसवें अध्याय में, व्रत रीति नीति समझाय।  विधिवत वर्णन है कियो, सुने परीक्षित राय॥  राजा परीक्षत ने पूछा-हे मुनि ! कश्यपजी ने दिति से जो व्रत वर्णन किया था सो वह सुनने की मुझे बड़ी इच्छा है। श्री शुकदेवजी बोले-हे राजन! मार्गशीर्ष की शुक्लपक्ष की पड़वा के दिन पति की आज्ञा से स्त्री व्रत का आरम्भ करे। ब्राह्मणों से मरुत देवताओं के जन्म की कथा को सुने। ब्राह्मणों की आज्ञा से दातुन कर स्नान करे स्वच्छ वस्त्र धारण करे आभूषण पहिन कर प्रातः काल भोजन करने के पहिले लक्ष्मी सहित नारायण की पूजा करे पूजन समय प्रार्थना करे कि हे विष्णु पत्नि मुझ पर प्रसन्न हो जाओ मैं तुमको प्रणाम करती हूँ। हे महापुरु

४९ मारूत की उत्पत्ति कैसे हुई तथा देवगण वंश वर्णन॥ श्रीमद भागवद पुराण १८ सकंध ६

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [परिचय] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध 1] •   श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध 2] •   श्रीमद भागवद पुराण [स्कंद 3] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] ] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंद ६ ४९ मारूत की उत्पत्ति कैसे हुई तथा देवगण वंश वर्णन॥ श्रीमद भागवद पुराण १८ सकंध ६ नवीन सुख सागर   श्रीमद भागवद पुराण अठारहवाँ अध्याय [स्कंध ६] दो०-देवगण के वंश कौ, हाल कहयौ विस्तार।  अष्टम दस अध्य में दिती गर्भ सौ सर॥॥  (देवगण वंश वर्णन) इन्द्र को ब्रम्ह हत्या लगना।। बृह्मा हत्या का स्वरूप।।श्रीमद भागवद पुराण तेरहवां अध्याय [स्कंध ६] इन्द्र-वृत्तासुर युध्द।। वृत्तासुर वध ।।वृत्तासुर का प्राकरम।। वृत्रासुर का अंत॥ वृत्रासुर का वध कैसे किया असुर वृत्तासुर ने भगवान विष्णु का गुणगान।श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ६] दधीची ऋषि की अस्थियों द्वारा वज्र निर्माण (वृत्तासुर और इन्द्र का युद्ध श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित! अदित के पाँचवे पुत्र सविता ने अपनी भार्या पृश्नि में सावित्री, व्याहृति, वेदत्

वृत्रासुर कौन था॥वृत्रासुर कथा भागवत कथा॥

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वृत्रासुर कौन था॥वृत्रासुर कथा भागवत कथा॥ नवीन सुख सागर श्रीमद भगवद महापुराण सत्रहवाँ अध्याय [स्कंध ६] (चित्रकेतु को उमा का श्राप) दा०-कही ब्रतृ ने भक्तिमय, सुन्दर कथा सुनाय।  सो सत्रह अध्याय में, कही सकल समझाय॥ विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ इन्द्र को ब्रम्ह हत्या लगना।। बृह्मा हत्या का स्वरूप।।श्रीमद भागवद पुराण तेरहवां अध्याय [स्कंध ६] इन्द्र-वृत्तासुर युध्द।। वृत्तासुर वध ।।वृत्तासुर का प्राकरम।। वृत्रासुर का अंत॥ वृत्रासुर का वध कैसे किया असुर वृत्तासुर ने भगवान विष्णु का गुणगान।श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ६] दधीची ऋषि की अस्थियों द्वारा वज्र निर्माण (वृत्तासुर और इन्द्र का युद्ध ) श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! जब शेष भगवान चित्रकेतु को दर्शन देकर अंतर्ध्यान हो गये तो वह भी शेष के साथ अंतर्ध्यान होने वाली