श्रीमद भागवद पुराण -आठवां स्कन्ध प्रारम्भ प्रथम अध्याय ( मन्वन्तर वर्णन ) वर्तमान मन्वंतर।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
महाप्रलय के समय वैवस्वत मनु एवं सात ऋषियों की रक्षा करती मत्स्य
मनुओं की संख्या
नाम
चौदह मनुओं के नाम इस प्रकार से हैं:
• स्वयंभुव मनु
• स्वरोचिष मनु
• उत्तम मनु
• तामस मनु या तापस मनु
• रैवत मनु
• चाक्षुषी मनु
• वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु (वर्तमान मनु)
• सावर्णि मनु
• दक्ष सावर्णि मनु
• ब्रह्म सावर्णि मनु
• धर्म सावर्णि मनु
• रुद्र सावर्णि मनु
• देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु
• इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु
सन्तानें
कन्याएं
पुत्र
कामायनी के मनु
मनुस्मृति
मुख्य लेख: मनुस्मृति
नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।
सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।
महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १
नवीन सुख सागर (श्रीमद भागवद पुराण)
-आठवां स्कन्ध प्रारम्भ।। वर्तमान मन्वंतर।।
* मङ्गला चरण *
छन्द-जय-जय यदुनायक जनः सुखदायक, कंप विनाशन अगहारी।
जयजयनंदनन्दन जग दुःख निकन्दन मेटन भय प्रभु तरतनुधारी || दीनदयाला अमृत कृपाला जगपाला भक्तन हितकारी|
कर शक्ति प्रदाना हे भगवाना पाहि पाहि प्रभु पाहि मुरारी ॥
दोहा- अष्टम में अध्याय हैं, प्रभो बीस अरू चार।
करहु कृपा जो सहज ही, जाहुं कथा के पार ||
* प्रथम अध्याय *
( मन्वन्तर वर्णन )
दोहा- यहि प्रथमो अध्याय में वर्णन हैं मनु चारि।
स्वायंभुव स्वारोचिष उत्तम तामस धारि ||
शुकदेवजी बोले- इस कल्प में स्वायम्भुव से लेकर छः मनु व्यतीत हो गये हैं। इनमें से पहिले मनु का वर्णन तो मैंने तुमको सुना दिया। उसी स्वायम्भुव मनु की आकूती और देवहूति पुत्रियों में धर्म और ज्ञान के उपदेश के लिये भगवान ने उनके घर में यज्ञ तथा कपिल नाम पुत्र रूप धारण किया था।
भगवान कपिलदेवजी का चरित्र हम पहिले वर्णन कर चुके हैं, अब यज्ञ भगवान का चरित्र आपसे वर्णन करेंगे।
"----जो विश्व को चेतना करता हैं और विश्व जिसे चेतन्य नहीं कर सकता, इस विश्व के सोने पर जो जानता है और जिसको यह विश्व नहीं जानता। परन्तु जो चेतन्य स्वरूप इस विश्व को जानता है में उसे प्रणाम करता हूँ।"" यह सम्पूर्ण विश्व ईश्वर से व्याप्त है । इसलिये जो कुछ उसने दिया है उसी को भोगो और अन्य किसी के धन का लालसा मत करो।"
How do I balance between life and bhakti?
मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?
यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।।
सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।
सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !
Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)
सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।
अब दूसरे मनु को कहते हैं।
परीक्षित बोले-हे बादरायण ! किस प्रकार भगवान ने ग्राह से पकड़े हुए हाथी को छुड़ाया था कृपया वह कथा कहिये ।
तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।
क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य? तंत्र- एक विज्ञान।।
आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।
तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।
मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।
Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?
तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।
सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।
![श्रीमद भागवद पुराण -आठवां स्कन्ध प्रारम्भ प्रथम अध्याय ( मन्वन्तर वर्णन ) सनातन धर्म के अनुसार मनु संसार के प्रथम पुरुष थे। मनु का जन्म आज से लगभग 19700 साल पूर्व हुआ था प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये 'स्वयं भू' (अर्थात स्वयं उत्पन्न ; बिना माता-पिता के उत्पन्न) होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। महाप्रलय के समय वैवस्वत मनु एवं सात ऋषियों की रक्षा करती मत्स्य सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव (=मनु से उत्पन्न) भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं। मनुओं की संख्या हिंदू धर्म में स्वायंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित कुल मिलाकर क्रमश: १४ मनु हुए। महाभारत में ८ मनुओं का उल्लेख मिलता है व श्वेतवराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है। जैन ग्रन्थों में १४ कुलकरों का वर्णन मिलता है।[1] नाम चौदह मनुओं के नाम इस प्रकार से हैं: • स्वयंभुव मनु • स्वरोचिष मनु • उत्तम मनु • तामस मनु या तापस मनु • रैवत मनु • चाक्षुषी मनु • वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु (वर्तमान मनु) • सावर्णि मनु • दक्ष सावर्णि मनु • ब्रह्म सावर्णि मनु • धर्म सावर्णि मनु • रुद्र सावर्णि मनु • देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु • इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु वर्तमान काल तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से ५६३० वर्ष पूर्व हुआ था। सन्तानें स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें हुईं थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। कन्याएं आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई। पुत्र मनु के दो पुत्रों प्रियव्रत और उत्तानपाद में से बड़े पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या कर ब्रह्माण्ड में ऊंचा स्थान पाया। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिससे उनको दस पुत्र हुए थे। कामायनी के मनु मनु कवि जयशंकर प्रसाद की कामायनी के भी मुख्य पात्र हैं। महाभारत में उल्लेखित वैवस्वत मनु का संबंध कामायनी के नायक से जोड़ा जा सकता है। कामायनी में मनु का चित्रण देवताओं से इतर मानवीय सृष्टि के व्यवस्थापक के रूप में विशेषतः किया गया है। देव सृष्टि के संहार के बाद वे चिंता मग्न बैठे हुए हैं। श्रद्धा की प्रेरणा से वे जीवन में फिर से रुचि लेने लगते हैं पर कुछ काल के बाद श्रद्धा से असंतुष्ट होकर उसे छोड़कर वे चले जाते हैं। अपने भ्रमण में वे सारस्वत प्रदेश जा पहुँचते हैं, जहाँ की अधिष्ठात्री इड़ा थी। इड़ा के साथ वे एक नई वैज्ञानिक सभ्यता का नियोजन करते हैं। पर उनके मन की मूल अधिकर की लिपसा अभी गई नहीं है। वे इड़ा पर अपना अधिकार चाहते हैं। फलस्वरूप प्रजा विद्रोह करती है, जिसमें मनु घायल होकर मूर्छित हो जाते हैं। श्रद्धा अपने पुत्र मानव के लिए हुए मनु की खोज में सारस्वत प्रदेश तक आ जाती है, जहाँ दोने का मिलन होता है। मनु अपनी पिछली भूलों के लिए पश्चात्ताप करते हैं। श्रद्धा मानव को इड़ा के संरक्षण में छोड़कर मनु को लेकर हिमालय की उपत्यका में चली जाती है, जहाँ श्रद्धा की सहायता से मनु आनंद की स्थिति को प्राप्त होते हैं। मनुस्मृति मुख्य लेख: मनुस्मृति महाभारत में ८ मनुओं का उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण में मनु को श्रद्धादेव कहकर संबोधित किया गया है। श्रीमद्भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। श्वेत वराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है। महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने मनुस्मृति नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ वरण होता था(वरण करना का अर्थ है धारण करना स्वीकार करना। अर्थात जिस व्यक्ति ने जो कार्य करना स्वीकार या धारण किया वह उसका वर्ण कहलाया) और आज जाति। प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकान्त में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए लेकिन उत्तानपाद की अपेक्षा उनके दूसरे पुत्र राजा प्रियव्रत की प्रसिद्धि ही अधिक रही। स्वायम्भु मनु के काल के ऋषि मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया। नवीन सुख सागर (श्रीमद भागवद पुराण) -आठवां स्कन्ध प्रारम्भ * मङ्गला चरण * छन्द-जय-जय यदुनायक जनः सुखदायक, कंप विनाशन अगहारी। जयजयनंदनन्दन जग दुःख निकन्दन मेटन भय प्रभु तरतनुधारी || दीनदयाला अमृत कृपाला जगपाला भक्तन हितकारी| कर शक्ति प्रदाना हे भगवाना पाहि पाहि प्रभु पाहि मुरारी ॥ दोहा- अष्टम में अध्याय हैं, प्रभो बीस अरू चार। करहु कृपा जो सहज ही, जाहुं कथा के पार || * प्रथम अध्याय * ( मन्वन्तर वर्णन ) दोहा- यहि प्रथमो अध्याय में वर्णन हैं मनु चारि। स्वायंभुव स्वारोचिष उत्तम तामस धारि || परीक्षित ने कहा- हे गुरो ! जिस-जिस मन्वतंर में हरि- भगवान के जन्म और कर्मों का वर्णन कवि लोग करते हैं। उनका वर्णन हमारे सामने कीजिये, इसके सुनने की हमारी बड़ी लालसा है। शुकदेवजी बोले- इस कल्प में स्वायम्भुव से लेकर छः मनु व्यतीत हो गये हैं। इनमें से पहिले मनु का वर्णन तो मैंने तुमको सुना दिया। उसी स्वायम्भुव मनु की आकूती और देवहूति पुत्रियों में धर्म और ज्ञान के उपदेश के लिये भगवान ने उनके घर में यज्ञ तथा कपिल नाम पुत्र रूप धारण किया था। भगवान कपिलदेवजी का चरित्र हम पहिले वर्णन कर चुके हैं, अब यज्ञ भगवान का चरित्र आपसे वर्णन करेंगे। शतरूपा के पति स्वायंभुव मनु साँसारिक काम भोगों से विरक्त हो तप करने के लिये स्त्री सहित वन को चले गये। वहाँ उन्हों ने सुनन्दा नदी के किनारे पर एक पाँव से पृथ्वी पर सौ वर्ष तक खड़े रहकर घोर तप किया। प्रेम में गद्गद हो वे कहने लगते थे --- "----जो विश्व को चेतना करता हैं और विश्व जिसे चेतन्य नहीं कर सकता, इस विश्व के सोने पर जो जानता है और जिसको यह विश्व नहीं जानता। परन्तु जो चेतन्य स्वरूप इस विश्व को जानता है में उसे प्रणाम करता हूँ।" " यह सम्पूर्ण विश्व ईश्वर से व्याप्त है । इसलिये जो कुछ उसने दिया है उसी को भोगो और अन्य किसी के धन का लालसा मत करो।" हे राजन! इस तरह स्वांयम्भुवमनु मन्त्र रूप उपनिषद को जब चित्त से कह रहे थे उस समय प्रसुर और यातुधान उनके भक्षण करने को दौड़े। यह देखकर हरि यज्ञ भगवान याम नामक देवताओं को साथ लेकर उन राक्षसों को मारकर स्वर्ग का राज्य करने लगे। अब दूसरे मनु को कहते हैं। स्वारोचिष नामक मनु अग्नि का पुत्र हुआ, इसके द्युमान्, सुषेण तथा रोचिष्मान् आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए। उस मन्वन्तर में रोचन नाम से तो इन्द्र था, तुबितादिक देवता थे और ऊर्जा स्तम्भादिक ब्रम्हवेत्ता सप्तॠषि हुए थे। वेद शिराऋषि की तुषिता नाम स्त्री के गर्भ में विभु नाम से प्रसिद्ध भगवान ने जन्म लिया था। इस बालब्रम्हचारी विभु से अट्ठासी हजार मुनियों ने व्रत धारण करना सीखा था। प्रियव्रत को पुत्र उत्तम नाम तीसरा मनु हुआ । इसके पवन, सृञ्जय और यज्ञ होत्रादिक पुत्र उत्पन्न हुए। इस मन्वन्तर में प्रमदादिक वशिष्ठ के पुत्र सप्तऋषि तथा सत्यवेदश्रुता और भद्रा देवता हुए और इंद्र सत्यजित् के नाम से हुआ। धर्म की सुनृता वाली स्त्री से भगवान ने सत्यव्रतों के साथ सत्य सेन का अवतार धारण किया। सत्य जित के मित्र सत्य सेन ने दुष्ट राक्षसों का नाश किया। उत्तम भ्राता तामस नाप चौथा मनु हुआ इसके पृथु, ख्याति, नर और केतु आदि दस पुत्र हुए। इस मन्वन्तर में सत्यक, हरि, वीर देवता हुए, विशिख इन्द्र हुआ और ज्योतिर्धामादिक सात ऋषि हुए । विधुति के पुत्र वैधृति नाम देवता हुए इन्होंने समय के फेर से नष्ट हुए वेदों का अपने तेज से उद्धार किया था। इस मन्वन्तर में हरिमेधा की हिरणी नाम रानी से भगवान ने हरि रूप धारण करके अवतार लिया और ग्राह से गज को छुड़ाया। परीक्षत बोले-हे बादरायण ! किस प्रकार भगवान ने ग्राह से पकड़े हुए हाथी को छुड़ाया था कृपया वह कथा कहिये । ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।। ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGaK-mwvc7F8IoVeNZqWVeQwp4l3-Yf_nkektXKmjRdBuascUkvM8DWfi-_18VzNfYik12UQKzoaIsbTbxkRA9axaQcEt5SsDefQ0Ryap8CTsCA7y79YoiQcT-xnGf1DXSyzUR-N3RVH3N/w228-h320/IMG_20210819_190727.jpg)
![श्रीमद भागवद पुराण -आठवां स्कन्ध प्रारम्भ प्रथम अध्याय ( मन्वन्तर वर्णन ) सनातन धर्म के अनुसार मनु संसार के प्रथम पुरुष थे। मनु का जन्म आज से लगभग 19700 साल पूर्व हुआ था प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये 'स्वयं भू' (अर्थात स्वयं उत्पन्न ; बिना माता-पिता के उत्पन्न) होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। महाप्रलय के समय वैवस्वत मनु एवं सात ऋषियों की रक्षा करती मत्स्य सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव (=मनु से उत्पन्न) भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं। मनुओं की संख्या हिंदू धर्म में स्वायंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित कुल मिलाकर क्रमश: १४ मनु हुए। महाभारत में ८ मनुओं का उल्लेख मिलता है व श्वेतवराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है। जैन ग्रन्थों में १४ कुलकरों का वर्णन मिलता है।[1] नाम चौदह मनुओं के नाम इस प्रकार से हैं: • स्वयंभुव मनु • स्वरोचिष मनु • उत्तम मनु • तामस मनु या तापस मनु • रैवत मनु • चाक्षुषी मनु • वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु (वर्तमान मनु) • सावर्णि मनु • दक्ष सावर्णि मनु • ब्रह्म सावर्णि मनु • धर्म सावर्णि मनु • रुद्र सावर्णि मनु • देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु • इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु वर्तमान काल तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से ५६३० वर्ष पूर्व हुआ था। सन्तानें स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें हुईं थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। कन्याएं आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई। पुत्र मनु के दो पुत्रों प्रियव्रत और उत्तानपाद में से बड़े पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या कर ब्रह्माण्ड में ऊंचा स्थान पाया। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिससे उनको दस पुत्र हुए थे। कामायनी के मनु मनु कवि जयशंकर प्रसाद की कामायनी के भी मुख्य पात्र हैं। महाभारत में उल्लेखित वैवस्वत मनु का संबंध कामायनी के नायक से जोड़ा जा सकता है। कामायनी में मनु का चित्रण देवताओं से इतर मानवीय सृष्टि के व्यवस्थापक के रूप में विशेषतः किया गया है। देव सृष्टि के संहार के बाद वे चिंता मग्न बैठे हुए हैं। श्रद्धा की प्रेरणा से वे जीवन में फिर से रुचि लेने लगते हैं पर कुछ काल के बाद श्रद्धा से असंतुष्ट होकर उसे छोड़कर वे चले जाते हैं। अपने भ्रमण में वे सारस्वत प्रदेश जा पहुँचते हैं, जहाँ की अधिष्ठात्री इड़ा थी। इड़ा के साथ वे एक नई वैज्ञानिक सभ्यता का नियोजन करते हैं। पर उनके मन की मूल अधिकर की लिपसा अभी गई नहीं है। वे इड़ा पर अपना अधिकार चाहते हैं। फलस्वरूप प्रजा विद्रोह करती है, जिसमें मनु घायल होकर मूर्छित हो जाते हैं। श्रद्धा अपने पुत्र मानव के लिए हुए मनु की खोज में सारस्वत प्रदेश तक आ जाती है, जहाँ दोने का मिलन होता है। मनु अपनी पिछली भूलों के लिए पश्चात्ताप करते हैं। श्रद्धा मानव को इड़ा के संरक्षण में छोड़कर मनु को लेकर हिमालय की उपत्यका में चली जाती है, जहाँ श्रद्धा की सहायता से मनु आनंद की स्थिति को प्राप्त होते हैं। मनुस्मृति मुख्य लेख: मनुस्मृति महाभारत में ८ मनुओं का उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण में मनु को श्रद्धादेव कहकर संबोधित किया गया है। श्रीमद्भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। श्वेत वराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है। महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने मनुस्मृति नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ वरण होता था(वरण करना का अर्थ है धारण करना स्वीकार करना। अर्थात जिस व्यक्ति ने जो कार्य करना स्वीकार या धारण किया वह उसका वर्ण कहलाया) और आज जाति। प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकान्त में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए लेकिन उत्तानपाद की अपेक्षा उनके दूसरे पुत्र राजा प्रियव्रत की प्रसिद्धि ही अधिक रही। स्वायम्भु मनु के काल के ऋषि मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया। नवीन सुख सागर (श्रीमद भागवद पुराण) -आठवां स्कन्ध प्रारम्भ * मङ्गला चरण * छन्द-जय-जय यदुनायक जनः सुखदायक, कंप विनाशन अगहारी। जयजयनंदनन्दन जग दुःख निकन्दन मेटन भय प्रभु तरतनुधारी || दीनदयाला अमृत कृपाला जगपाला भक्तन हितकारी| कर शक्ति प्रदाना हे भगवाना पाहि पाहि प्रभु पाहि मुरारी ॥ दोहा- अष्टम में अध्याय हैं, प्रभो बीस अरू चार। करहु कृपा जो सहज ही, जाहुं कथा के पार || * प्रथम अध्याय * ( मन्वन्तर वर्णन ) दोहा- यहि प्रथमो अध्याय में वर्णन हैं मनु चारि। स्वायंभुव स्वारोचिष उत्तम तामस धारि || परीक्षित ने कहा- हे गुरो ! जिस-जिस मन्वतंर में हरि- भगवान के जन्म और कर्मों का वर्णन कवि लोग करते हैं। उनका वर्णन हमारे सामने कीजिये, इसके सुनने की हमारी बड़ी लालसा है। शुकदेवजी बोले- इस कल्प में स्वायम्भुव से लेकर छः मनु व्यतीत हो गये हैं। इनमें से पहिले मनु का वर्णन तो मैंने तुमको सुना दिया। उसी स्वायम्भुव मनु की आकूती और देवहूति पुत्रियों में धर्म और ज्ञान के उपदेश के लिये भगवान ने उनके घर में यज्ञ तथा कपिल नाम पुत्र रूप धारण किया था। भगवान कपिलदेवजी का चरित्र हम पहिले वर्णन कर चुके हैं, अब यज्ञ भगवान का चरित्र आपसे वर्णन करेंगे। शतरूपा के पति स्वायंभुव मनु साँसारिक काम भोगों से विरक्त हो तप करने के लिये स्त्री सहित वन को चले गये। वहाँ उन्हों ने सुनन्दा नदी के किनारे पर एक पाँव से पृथ्वी पर सौ वर्ष तक खड़े रहकर घोर तप किया। प्रेम में गद्गद हो वे कहने लगते थे --- "----जो विश्व को चेतना करता हैं और विश्व जिसे चेतन्य नहीं कर सकता, इस विश्व के सोने पर जो जानता है और जिसको यह विश्व नहीं जानता। परन्तु जो चेतन्य स्वरूप इस विश्व को जानता है में उसे प्रणाम करता हूँ।" " यह सम्पूर्ण विश्व ईश्वर से व्याप्त है । इसलिये जो कुछ उसने दिया है उसी को भोगो और अन्य किसी के धन का लालसा मत करो।" हे राजन! इस तरह स्वांयम्भुवमनु मन्त्र रूप उपनिषद को जब चित्त से कह रहे थे उस समय प्रसुर और यातुधान उनके भक्षण करने को दौड़े। यह देखकर हरि यज्ञ भगवान याम नामक देवताओं को साथ लेकर उन राक्षसों को मारकर स्वर्ग का राज्य करने लगे। अब दूसरे मनु को कहते हैं। स्वारोचिष नामक मनु अग्नि का पुत्र हुआ, इसके द्युमान्, सुषेण तथा रोचिष्मान् आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए। उस मन्वन्तर में रोचन नाम से तो इन्द्र था, तुबितादिक देवता थे और ऊर्जा स्तम्भादिक ब्रम्हवेत्ता सप्तॠषि हुए थे। वेद शिराऋषि की तुषिता नाम स्त्री के गर्भ में विभु नाम से प्रसिद्ध भगवान ने जन्म लिया था। इस बालब्रम्हचारी विभु से अट्ठासी हजार मुनियों ने व्रत धारण करना सीखा था। प्रियव्रत को पुत्र उत्तम नाम तीसरा मनु हुआ । इसके पवन, सृञ्जय और यज्ञ होत्रादिक पुत्र उत्पन्न हुए। इस मन्वन्तर में प्रमदादिक वशिष्ठ के पुत्र सप्तऋषि तथा सत्यवेदश्रुता और भद्रा देवता हुए और इंद्र सत्यजित् के नाम से हुआ। धर्म की सुनृता वाली स्त्री से भगवान ने सत्यव्रतों के साथ सत्य सेन का अवतार धारण किया। सत्य जित के मित्र सत्य सेन ने दुष्ट राक्षसों का नाश किया। उत्तम भ्राता तामस नाप चौथा मनु हुआ इसके पृथु, ख्याति, नर और केतु आदि दस पुत्र हुए। इस मन्वन्तर में सत्यक, हरि, वीर देवता हुए, विशिख इन्द्र हुआ और ज्योतिर्धामादिक सात ऋषि हुए । विधुति के पुत्र वैधृति नाम देवता हुए इन्होंने समय के फेर से नष्ट हुए वेदों का अपने तेज से उद्धार किया था। इस मन्वन्तर में हरिमेधा की हिरणी नाम रानी से भगवान ने हरि रूप धारण करके अवतार लिया और ग्राह से गज को छुड़ाया। परीक्षत बोले-हे बादरायण ! किस प्रकार भगवान ने ग्राह से पकड़े हुए हाथी को छुड़ाया था कृपया वह कथा कहिये । ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।। ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_dl_IHfKefhZ0Bd95Oij_kNOknzTzL8k56kpAYlZqbnqYU7baHETNgHrjEq6rMbiroRPNBxfr2KvIhaq6koLlCd_MLVtGNVWVCv2ubP5PZz4gecDiwejC1FbaT2exaWmcQCwA5s_VNDDu/w320-h240/rajamanu_31_05_2017.jpg)
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