सुख सागर अध्याय 20 [स्कंध ८] ( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना) विश्व-रूप दर्शन।। वामन अवतार  भाग 4

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]



नवीन सुख सागर 

श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय स्कंध [८]( विश्व-रूप दर्शन )सुख सागर अध्याय 20 [स्कंध ८]  ( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना) विश्व-रूप दर्शन।। वामन अवतार  भाग 4


दोहा-वामन छलहू जानिकै दान हर्षि नृप दीन। 

सो बिसहें वर्णन कियो बाढ़े विष्णु प्रवीन।। 


नवीन सुख सागर  श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय स्कंध [८] ( विश्व-रूप दर्शन ) दोहा-वामन छलहू जानिकै दान हर्षि नृप दीन।  सो बिसहें वर्णन कियो बाढ़े विष्णु प्रवीन।।   वामन अवतार, राजा बलि के वंशज कौन थे, भगवान विष्णु का वामन अवतार, वामन अवतार कब हुआ था, राजा बलि वामन अवतार, राजा बलि का जीवन परिचय, वामन अवतार स्तुति, राजा बलि   श्रीशुकदेवजी बोले-हे राजन् ! गुरु शुक्राचार्य की बात सुनकर बलि कहने लगा--   "हे गुरो ! आपका कथन ठीक है, गृहस्थियों का यही कथन है, गृहस्थी पुरुष उस काम को न करे जिससे अर्थ, काम, यश और जीविका में विघ्न पड़े। परन्तु प्रहलाद वंश में होकर धन के लोभ में अपनी की हुई प्रतिज्ञा को कैसे मिटा सकता हूँ। मैं तो ब्राह्मण को वचन दे चुका हूँ।   हे गुरुजी! असत्य से परे और दूसरा कोई अधर्म नहीं है क्योंकि पृथ्वी भी कहती है कि मैं सबका बोझ सह सकती हूँ पर मिथ्या भाषी का बोझ नहीं सह सकती हूँ। मै दुःखार्नव से, नरक से, स्थान भ्रष्टता से या मृत्यु से भी इतना नहीं डरती हूँ जितना ब्राह्मण से झूठ बोलने में डरता हूँ। दुस्त्यज प्राणों को देकर भी साधु परोपकार करने प्रवृत्त हो जाते हैं, देखिये दधीचि और शिव इस बात के प्रमाण है। इसलिये अर्थों की कामना पूर्ण करने में दुर्गति हो जावे तो बड़ी अच्छी बात है, और जो आप सरीखे ब्रह्मवेत्ताओं की मनोकामना पूर्ण करने में दुर्गति हो तो क्या कहना है। मैं तो इस ब्रहमचारी की इच्छा पूर्ण करूंगा ही! यदि ये विष्णु हैं तो क्या डर है ? वेदवेदांग पारगामी आप सरीखे महात्मा भी आदर पूर्वक यज्ञों द्वारा जिसका पूजन करते हैं सो यह विष्णु जब मेरे यहाँ मांगने को आया है, तब चाहे वरदायक हो या शत्रु हो मैं इसको वाँछित भूमि का अवश्य दान दूगां। इस पर भी यदि मुझ निष्पापी को यह बांधेगा तो भी मैं इसको न मारूंगा क्योंकि इसने शत्रु होकर भी डर के मारे ब्राहमण का शरीर धारण किया है।"   जब बलि ने अपने गुरु का कहना ना माना तब गुरु ने बलि को कुपित होकर ये श्राप दिया।   "अरे यज्ञ ! मेरी बात का अनादर कर मेरी उपेक्षा करता है, इससे अब तेरी ये सम्पत्ति शीघ्र ही नष्ट हो जायगी।"   इस तरह गुरु का श्राप लेकर भी वह अपनी सत्य प्रतिज्ञा से चलायमान न हुआ। वामनजी का पूजन कर हाथ में जल लेकर पृथ्वी का सङ्कल्प छोड़ दिया।   उसी समय बलि की विन्ध्यावली नाम्नि रानी सोने के कलश में जल भरकर चरण धोने के लिये आई। यजमान ने स्वयं अपने हाथों से बामनजी के चरण धो अत्यन्त प्रसन्नता के साथ विश्वम्भर को पवित्र करने वाले उस चरणोदक को अपने सिर पर छिड़क लिया। उस समय देवराज पर स्वर्ग से देवगणों ने फूलों की वर्षा की। तब वामनजी ने अपना त्रिगुणत्मक अद्भुत रूप ऐसा बढ़ाया कि उसी विराट देह में बलि को पृथ्वी, आकाश दिशा, स्वर्ग, समुद्र, पक्षी, नर, देवता, ऋषि ऋत्विक आचार्य सभासदों सहित विश्वगतप्राणी, इन्द्रिय अर्थ तथा उनकी पग थली में रसातल, चरणों में पृथ्वी, जंघाओं में पर्वत, घुटनों में पक्षी और उरुओं में पवन के गुण, नेत्र में सन्ध्या, गुह्यस्थान में प्रजापति, जंघा में स्वयं आप, नाभि में आकाश, कुक्षि में सातों समुद्र, वक्षस्थल में नक्षत्र मण्डल, हृदय में धर्म, स्तनों में ऋतु-सत्य, मन में चन्द्रमा, वक्षस्थल में कमलहस्त लक्ष्मी और कण्ठ में सामदेव, भुजाओं में इन्द्रादि देवता, कानों में दिशा, मूर्धा में स्वर्ग, केशों में मेघ, नासिका में पवन, आखों में सूर्य, मुख में अग्नि, बाणी में वेद, जिहवा में वरुण, भृकुटियों में निषेध और विधि, पलकों में दिन रात, ललाट में क्रोध, आष्ठ में लोभ, स्पर्श में काम, वीर्य में जल, पीठ में अधर्म, पादधिक्षेप में यज्ञ, छाया में मृत्यु, हास्य में माया, रोमों में औषधि, नाड़ियों में नदी, नखों में शिला, बुद्धि में ब्रह्मा, प्राणों में देवगण और ऋषी श्वर तथा गोत्र सब स्थावर जंगम दिखाई दिये।   हे राजन् सर्वात्मा भगवान के सम्पूर्ण लोक को देखकर असुरगण अत्यन्त! खेद को प्राप्त हुए।   तदनन्तर वामनजी बोले-हे राजन् ! मैं नापता हूँ, राजा ने कहा नापो, सोही उन्होने एक पांव से पृथ्वी, शरीर से आकाश और भुजाओं से दिशा, तथा दूसरे पाँव से स्वर्ग नाप लिया, तीसरे पाँव के रखने के लिये कुछ भी कहीं बाकी न रहा ।











वामन अवतार, राजा बलि के वंशज कौन थे, भगवान विष्णु का वामन अवतार, वामन अवतार कब हुआ था, राजा बलि वामन अवतार, राजा बलि का जीवन परिचय, वामन अवतार स्तुति, राजा बलि


श्रीशुकदेवजी बोले-हे राजन् ! गुरु शुक्राचार्य की बात सुनकर बलि कहने लगा--


"हे गुरो ! आपका कथन ठीक है, गृहस्थियों का यही कथन है, गृहस्थी पुरुष उस काम को न करे जिससे अर्थ, काम, यश और जीविका में विघ्न पड़े। परन्तु प्रहलाद वंश में होकर धन के लोभ में अपनी की हुई प्रतिज्ञा को कैसे मिटा सकता हूँ। मैं तो ब्राह्मण को वचन दे चुका हूँ।









हे गुरुजी! असत्य से परे और दूसरा कोई अधर्म नहीं है क्योंकि पृथ्वी भी कहती है कि मैं सबका बोझ सह सकती हूँ पर मिथ्या भाषी का बोझ नहीं सह सकती हूँ। मै दुःखार्नव से, नरक से, स्थान भ्रष्टता से या मृत्यु से भी इतना नहीं डरती हूँ जितना ब्राह्मण से झूठ बोलने में डरता हूँ। दुस्त्यज प्राणों को देकर भी साधु परोपकार करने प्रवृत्त हो जाते हैं, देखिये दधीचि और शिव इस बात के प्रमाण है। इसलिये अर्थों की कामना पूर्ण करने में दुर्गति हो जावे तो बड़ी अच्छी बात है, और जो आप सरीखे ब्रह्मवेत्ताओं की मनोकामना पूर्ण करने में दुर्गति हो तो क्या कहना है। मैं तो इस ब्रहमचारी की इच्छा पूर्ण करूंगा ही! यदि ये विष्णु हैं तो क्या डर है ? वेदवेदांग पारगामी आप सरीखे महात्मा भी आदर पूर्वक यज्ञों द्वारा जिसका पूजन करते हैं सो यह विष्णु जब मेरे यहाँ मांगने को आया है, तब चाहे वरदायक हो या शत्रु हो मैं इसको वाँछित भूमि का अवश्य दान दूगां। इस पर भी यदि मुझ निष्पापी को यह बांधेगा तो भी मैं इसको न मारूंगा क्योंकि इसने शत्रु होकर भी डर के मारे ब्राहमण का शरीर धारण किया है।"







जब बलि ने अपने गुरु का कहना ना माना तब गुरु ने बलि को कुपित होकर ये श्राप दिया।

"अरे यज्ञ ! मेरी बात का अनादर कर मेरी उपेक्षा करता है, इससे अब तेरी ये सम्पत्ति शीघ्र ही नष्ट हो जायगी।"

इस तरह गुरु का श्राप लेकर भी वह अपनी सत्य प्रतिज्ञा से चलायमान न हुआ। वामनजी का पूजन कर हाथ में जल लेकर पृथ्वी का सङ्कल्प छोड़ दिया।

उसी समय बलि की विन्ध्यावली नाम्नि रानी सोने के कलश में जल भरकर चरण धोने के लिये आई। यजमान ने स्वयं अपने हाथों से बामनजी के चरण धो अत्यन्त प्रसन्नता के साथ विश्वम्भर को पवित्र करने वाले उस चरणोदक को अपने सिर पर छिड़क लिया। उस समय देवराज पर स्वर्ग से देवगणों ने फूलों की वर्षा की। तब वामनजी ने अपना त्रिगुणत्मक अद्भुत रूप ऐसा बढ़ाया कि उसी विराट देह में बलि को पृथ्वी, आकाश दिशा, स्वर्ग, समुद्र, पक्षी, नर, देवता, ऋषि ऋत्विक आचार्य सभासदों सहित विश्वगतप्राणी, इन्द्रिय अर्थ तथा उनकी पग थली में रसातल, चरणों में पृथ्वी, जंघाओं में पर्वत, घुटनों में पक्षी और उरुओं में पवन के गुण, नेत्र में सन्ध्या, गुह्यस्थान मेंप्रजापति, जंघा में स्वयं आप, नाभि में आकाश, कुक्षि में सातों समुद्र, वक्षस्थल में नक्षत्र मण्डल, हृदय में धर्म, स्तनों में ऋतु-सत्य, मन में चन्द्रमा, वक्षस्थल में कमलहस्त लक्ष्मी और कण्ठ में सामदेव, भुजाओं में इन्द्रादि देवता, कानों में दिशा, मूर्धा में स्वर्ग, केशों में मेघ, नासिका में पवन, आखों में सूर्य, मुख में अग्नि, बाणी में वेद, जिहवा में वरुण, भृकुटियों में निषेध और विधि, पलकों में दिन रात, ललाट में क्रोध, आष्ठ में लोभ, स्पर्श में काम, वीर्य में जल, पीठ में अधर्म, पादधिक्षेप में यज्ञ, छाया में मृत्यु, हास्य में माया, रोमों में औषधि, नाड़ियों में नदी, नखों में शिला, बुद्धि में ब्रह्मा, प्राणों में देवगण और ऋषी श्वर तथा गोत्र सब स्थावर जंगम दिखाई दिये।



हे राजन् सर्वात्मा भगवान के सम्पूर्ण लोक को देखकर असुरगण अत्यन्त! खेद को प्राप्त हुए।

तदनन्तर वामनजी बोले-हे राजन् ! मैं नापता हूँ, राजा ने कहा नापो, सोही उन्होने एक पांव से पृथ्वी, शरीर से आकाश और भुजाओं से दिशा, तथा दूसरे पाँव से स्वर्ग नाप लिया, तीसरे पाँव के रखने के लिये कुछ भी कहीं बाकी न रहा ।

आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।


तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।

मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।


Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?


तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।

Sukh ka arth

सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।


सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा।।


Shree ram ki kavita, kahani (chaand ko hai ram se shikayat)



The questions of narada and their answers.


The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. Jai shree Krishna.🙏ॐ 


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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।



 Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!

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