शुकदेव जी द्वारा श्रीमद भागवत आरंभ एवं विराट रूप का वर्णन।।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६
श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७
श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८
श्रीमद भागवद पुराण द्वतीय स्कंध प्रारंभ प्रथम अध्याय
॥ मंगलाचरण ॥
दोहा-गिरजा सुत शंकर सुवन, आदि पूज्य प्रिय देव ।
विद्या दायक ज्ञान देउ, शरण चरण में लेव ॥ १ ॥
आदि अनादि अनंत में, व्यापक रहत हमेश ।
एक रदन करिवर बदन, दीजै ज्ञान गणेश ॥२॥
नरतन दुरलभ प्राप्त होय,पाहि न याहि गमाय ।
नारायण वित धारिये, पाष क्षार हवै जाय ॥ ३ ॥
जग नायक को ध्यान धरि, टरै पाप को भार ।
भव सागर के भंवर से, होय अकेला पार ॥ ४ ॥
।।प्रथम अध्याय ।।
(शुकदेव जी द्वारा श्रीमद भागवत आरंभ एवं विराट रूप का वर्णन)
दोहा-जिस प्रकार हरि रूप का, होय हृदय में ध्यान ।
वर्णन करू प्रसंग वह, देउ सरस्वती ज्ञान ।।
श्री शुकदेवजी बोले-हे राजन् ! जो संसारी मनुष्य आत्म ज्ञान से निन्तात अनभिज्ञ रहते हैं, उन्हें अनेक विषय सुनने चाहिए क्योंकि यदि वे दिन रात इन्हीं सांसारिक विषयों के झंझट में पड़े रहेंगे तो वे कुछ भी नहीं जान पायेंगे।
ऐसे पुरुषों की आयु के दिवस कुछ तो निन्द्रा में व्यतीत हो जाते हैं और शेष स्री, पुत्र तथा धन की तृष्णा में व्यतीत हो जाते हैं। ऐसे मनुष्य लोक पर लोक में पितृ पुरुषों के उदाहरण को प्रत्यक्ष देखते हैं कि देह, स्री, पुत्र इत्यादि सभी नाश को प्राप्त होते हैं, तथापि विषयों में फंसे रहने के कारण वे सब कुछ देख करके भी न देखने के समान रहते हैं। हे महाराज! जो मनुष्य मुक्ति को कामना रखते हैं उन्हें भगवान वासुदेव श्री हरि का स्मरण तथा उनके नाम का कीर्तन करना चाहिये।
हे भारत ! जो पुरुष (ऋषि जैन) शास्त्र विधि अथवा नियम को ग्रहण नहीं करते और जो ब्रह्म में लय को प्राप्त हुये हैं, वे ही भगवान श्री हरि के गुणानुवादों को श्रवण कर प्रसन्न हुआ करते हैं।हे भारत ! इस समय जिस पुराण का वर्णन मैं करता हूँ, वह वेदों के समान है और इस लोक में श्रीमद भागवत पुराण के नाम से जाना जाता है।
जो मनुष्य इस महापुराण का श्रद्धा से श्रवण करते हैं उन्हें भगवान वासुदेव श्री हरि नारायण के चरणारविन्दों में निष्काम भक्ति प्राप्त होती है। कामी क्या, योगी क्या, निष्काम सभी को मोक्ष दाता भगवान वासुदेव के नाम का कीर्तन करने पर अभिष्ट कामना लाभ प्राप्त करते हैं।
जब कि अनेक प्रकार के विषयों में फंसे मनुष्य दीर्घ काल पर्यन्त जीने पर भी उसे जानने में समर्थ नहीं होते हैं। तब ऐसे दीर्घ जीवन को निष्फल हो जानना चाहिए। यदि यही जीवन मुहूर्त मात्र धारण कर ज्ञान लाभ प्राप्त करे तो यह मुहूर्त मात्र जीवन ही उत्तम कहा जाता है।
हे महाभाग! देवासुर संग्राम में राजा खट्वांग ने देवताओं की सहायता की, तो देवताओं ने उसे वरदान देना चाहा तो, चतुर नृप ने प्रश्न किया कि जीवन कितना शेष है। तब देवताओं ने चार घड़ी जीवन शेष बताया तब वह राजा शीघ्रगामी विमान द्वारा तुरंत ही दो घड़ी में वैकुण्ठ से अयोध्या आया तिस समय समस्त कामनाओं को त्याग भगवान वासुदेव का स्मरण कर सूक्त हो गया ।
एक महत्वपूर्ण उपकरण थी नारायणी सेना।
हिन्दु एकता में सोशल नेटवर्क भी सहायक।
गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।
महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम
क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.
हे राजन् ! अभी आपकी आयु में तो सात दिवस शेष हैं अतः इस समय आपको तो परलोक के हितकर कर्मों को करना चाहिये। क्योंकि प्रत्येक बुद्धिजीवी को यही उचित है कि अंत समय में विषय वासना को त्याग कर वैराग्य का अवलंबन करे। पाण्डित्य प्राप्त मनुष्य को तीर्थ के जल में स्नान कर एकान्त में शुद्ध आसन पर विराजमान हो ऊँ कार का अभ्यास करे, तथा तिसकाल श्वांस को स्तम्भन कर मन का दमन करना उचित है।
अपनी बुद्धि के द्वारा मन को वश करके परब्रह्म में लीन करे, मन के शान्त भावको ही भगवान श्री विष्णु का परम पद कहा गया है। यदि मन सतोगुण से विचलित हो और तमोगुण में मोहित होवे उसका दमन, धारणा के द्वारा, करना चाहिये। क्यों कि धारणा के सिद्ध होने पर ही तत्काल योग की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
महाराज परीक्षित ने प्रश्न किया कि ब्राह्मण ! उस धारणा को किस प्रकार किया जाता है? तथा वह किसके द्वारा प्रतिष्ठित है? और उसे करने की क्या विधि है? कि जिससे चित्त की मलीनता नष्ट हो जाती है!
सो कृपाकर! आप विधि का वर्णन कीजिये।
श्री शुकदेव जी ने कहा-हे भारत! मैं आपके समक्ष भगवान वासुदेव के महान विराट स्वरूप का वर्णन करता हूँ आप एकाग्र चित्त हो श्रवण करें। प्रथम दृढ़ आसन हो स्वांस को जो जीते, सत्संग करे, समस्त इन्द्रियों को जीते, और मन एवं बुद्धि को भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन करे।
भगवान विष्णु का विराट स्वरूप इस प्रकार है।
कि भूत भविष्य, वर्तमान ये सब विश्वरूप भगवान में दिखाई पड़ता है। भूमि, जल अग्नि, पवन, आकाश, अहंकार, महत्व, यह आवरण युक्त सातौं ब्रह्माण्ड, अथवा शरीर में जो विराट पुरुष विद्यमान हैं, वे इस धारणा का आश्रय भगवान विष्णु से ही है। इस विराट रूप में सर्वव्यापी विष्णु भगवान के चरण मूल में पाताल, एड़ी में रसातल, समझना चाहिए और संसार रचियता की एडी के ऊपर गाँठों के भाग में महातल, व उस विराट पुरुष की जाँघ में तलातल है। उस विश्वमूर्ति की दोनों भुजाओं से सुतल लोक, और उसमें वितल व अतल लोक हैं और महातल जंघाओं में विद्यमान तथा नाभि में नाभि स्थल है और ज्योतियों का समूह ईश्वर के हृदय में स्थित है। जहां पर चन्द्रमा और सूर्य निवास करते हैं वही स्वर्ग है। ग्रीवा में महालोक, बदन में जन लोक, ललाट में तप लोक विद्यमान । उन हजार मस्तक वाले विराट पुरुष मस्तक में सत्यलोक अवस्थित है। वाहु में तेजोमय इन्द्र इत्यादि सारी दिशायें कानों में, और शब्द श्रोत में, अश्विनी कुमार नासिका में, गन्ध प्राणेंद्रिय में, और अग्नि मुख में अवस्थिमान है। नेत्र- गौलोक अन्तरिक्ष, आंख में सूर्य, दोनों पलकों में दिन -रात और वृह्यपद भौंओं (भृकुटियों) का चलना है। तालु इनका जल है, जीभ रस हैं, शिर ही अनन्त वेद है, दाढ़ यमराज दंत स्नेह सब किसी की उन्माद किरणी माया हँसी, असली विस्तृत उत्पत्ति अर्थात उनका कटाक्ष विश्व रचना है। उनके ऊपर का होठ लज्जा, धर्म हृदय अधर्म पीठ और प्रजापति उपस्थ हैं अंडकोष मित्रावरुण और उस विराट पुरुष की कांख में सातौ समुद्र हैं। उनके समस्त हाड़ पहाड़ हैं और देह की सारी नाड़ी नदियाँ हैं और शरीर के समस्त रोम वृक्ष हैं। हे भारत ! यह भगवान श्री हरि विश्वरूप है पवन को ही उनका श्वाँस जानना चाहिए। गति अवस्था गुण प्रवाह और संसार को उस परम शक्ति ईश्वर का कर्म समझना चाहिये। मेघ की घटा उनके मस्तक के कश हैं उन व्यापक विष्णु, के वस्त्र सन्ध्या है, प्रातःकाल छाती है, और समस्त विकारों का कोष चन्द्रमा, उन भगवान विष्णु का मन कहा गया है।
नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।
सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।
विज्ञान शक्ति महत्व है। उस सर्वात्मा ईश्वर का अन्तःकरण भगवान शंकर (महादेव) जानना चाहिए। उन भगवान परमेश्वर के नख, हाथी, घोड़े, खच्चर, हैं, सारे मृग व पशु उनके नितंब हैं। उनका विचित्र व्याकरण शब्द शास्त्र यह सारे पक्षी हैं, और उस परमेश्वर की बुद्धि समस्त मनुष्यों का निवास मन है। गन्धर्व, विद्याधर एवं चारण इत्यादि यह षडत्र ऋषि आदि सप्तश्वर हैं, तथा उर्विसी आदि अप्सरायें भगवान की स्मृति हैं, तथा समस्त असुरों की सेना का पराक्रम है । मुख ब्राह्मण, भुजा क्षत्री ऊरू (जंघा) वैश्य, तथा पग (पैर) शूद्र हैं।
भांति भांति जिन नाम, साम्यक पूजा करने योग्य, देवताओं सहित जिसमें अनेकानेक पदार्थों द्वारा प्रयोग विस्तार जो यज्ञ हुआ करता है, उसी यज्ञ को विराट स्वरूप पुरुष का वीर्य जानना चाहिये।
हे राजन ये जो वर्णन मैंने आपसे यथावत किया है वही भगवान श्री हरि के विग्रह के अंगों की स्थिति है। जो पुरुष मोक्ष की कामना रखते हैं वे इसी स्थूल देह में अपनी बुद्धि से मन को भली भांति धारण किया करते हैं। इसके परे कुछ भी विद्यमान नहीं है। जो पुरुष केवल मात्र आत्मा का ही सब बुद्धि की वृत्ति द्वारा अनुभव करके स्वप्न काल में दर्शन किया करते हैं, और सत्व स्वरूप आनन्द समुद्र ईश्वर को चित्त लगाये अन्यान्य पदार्थों में आसक्ति छोड़ भजते है उनको मुक्ति प्राप्त होती है क्योंकि आसक्त होने पर संसारिक फांसी गले में पड़ जाती है। वे परमेश्वर विद्या शक्ति के आश्रय हैं, अतः वह पंडित नहीं हो सकता किन्तु जीवात्मा जो शरीर धारी है वह अविद्या शक्ति का सहारा लेता है।
यही कारण हैं कि उसका छुटकारा इस सांसारिक फांसी से नहीं हो पाता है।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम प्रथम अध्याय समाप्तम🥀।।༺═──────────────═༻
The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA.
Jai shree Krishna.🙏ॐ
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श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।
Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!
Bahut khoobsurat aevam vistrit varnan
ReplyDeleteIs khoobsurat puran ko prakashit krne k liye dhanyawaad
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