पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?


पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है? श्रीमद भागवद पुराण  चौबीसवां अध्याय [स्कंध५] (अतलादि सप्त अधोलोक वर्णन)  दो०- राहू आदि स्थान का निर्णय कहा सुनाय।  चौबीसवें अध्याय में, भाषा करी बनाय ||  श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! सूर्य से नीचे दस हजार योजन दूरी पर राहू घूमते है। सूर्य का विस्तार मंडल दस हजार योजन का है, और चन्द्रमा का विस्तार मंडल बारह हजार योजन का है। राहू का विस्तार मंडल तेरह हजार योजन का है। अमावस्या तथा पूर्णिमा को सूर्य या चंद्रमा राहू की गति के सम सूत्र पर आ जाते हैं, जिस कारण राहू की छाँह इन पर जितने समय तक पड़ती है उस समय को गृहण कहते हैं। अर्थात् यों कहिये कि सूर्य या चन्द्रमा के तेज से जब राहू गृह दिखाई देता है तो वह ग्रहण होता है।   क्योंकि वह इन के सामने पर रहता है । राहू के स्थान से नीचे सिद्ध चारण विद्याधर के स्थान है। उनसे भी नीचे यक्ष, राक्षस, पिशाच, भूत प्रेत इनके बिहार का स्थान है। उन यक्षादिकों के स्थान के नीचे सौ योजन पर यह पृथ्वी है। इस भूलोक की सीमा जहाँ तक पक्षी आदि उड़ते हैं वहां तक है। पृथ्वी के नीचे सात पाताल हैं। यह सब पृथ्वी से एवं सब लोक एक दूसरे से दश हजार योजन के अंतर पर हैं अर्थात् भूमि से दस हजार योजन नीचे सुतल, उससे दस हजार योजन दूर नीचे वितल, उससे दस हजार योजन नीचे दूर सुतल है और उससे दस हजार नीचे योजन नीचे तलातल, इस दस हजार योजन नीचे महातल, इससे दस हजार योजन दूर रसातल, इससे दस हजार योजन नीचे पाताल लोक है । यह सातौ लोक स्वर्ग कहलाते हैं। अतल लोक में मय दानव का पुत्र बलि नाम असुर रहता है। उस बलासुर के जंभाई लेने से मुख से स्वैरिणी, कामनी, और पुश्चली नाम की तीन स्त्रियाँ उत्पन्न हुई थीं। जो कि अतल लोक में गये पुरुष को हाटक नाम के रस को पिला कर अपने साथ रमण करती हैं। क्योंकि उस हाटक रस के पीने से पुरुष में दस हजार हाथियों का बल आ जाता है। वितल लोक भूत गणों सहित हटकेश्वर महादेव पार्वती सहित मिथुन भाव से विराज मान हैं। सुतल लोक में विरोचन का पुत्र राजा बलि वास करता है। सुतल लोक में त्रिपुर का अधिपति मय नाम दानव निवास करता है। महातल में लोक अनेक शिर वाला कूद्र के पुत्र सर्प लोगों का महा विषधर गण रहता है। इनमें कुहुक, तक्षक, कालिया, सुषेण, आदि सर्प मुख्य माने जाते हैं। रसातल लोक में निवात कवच, कलिय, हिरण्य के रासी ये तीन यूथ वाले परि नाम देव दानव रहते हैं। ये सब इन्द्र की भेजी परमा नाम की कुत्ती की कही हुई मंत्र मयी वाणी को सुन इन्द्र से भय करते रहते हैं । पाताल लोक में नाग लोक के पति आदि नाग रहते हैं। शंख, कलिक, महाशंख, श्वेत, धनंजय, धृतराष्ट्र, शंखचूड, देवदत्त इत्यादि नाम के हैं। इनके शरीर बड़े और भारी है। जिनके फणों में महाक्रान्ति वाली बड़ी-बड़ी मणियाँ है। जो कि अपनी-अपनी ज्योति से प्रगाढ़ अंधकार को नष्ट करके प्रकाश फैलाती है । ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम चौबीसवां अध्याय समाप्तम🥀।।  ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_


पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?श्रीमद भागवद पुराण चौबीसवां अध्याय [स्कंध५]

(अतलादि सप्त अधोलोक वर्णन)

दो०- राहू आदि स्थान का निर्णय कहा सुनाय।

चौबीसवें अध्याय में, भाषा करी बनाय ||

श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! सूर्य से नीचे दस हजार योजन दूरी पर राहू घूमते है। सूर्य का विस्तार मंडल दस हजार योजन का है, और चन्द्रमा का विस्तार मंडल बारह हजार योजन का है। राहू का विस्तार मंडल तेरह हजार योजन का है। अमावस्या तथा पूर्णिमा को सूर्य या चंद्रमा राहू की गति के सम सूत्र पर आ जाते हैं, जिस कारण राहू की छाँह इन पर जितने समय तक पड़ती है उस समय को गृहण कहते हैं। अर्थात् यों कहिये कि सूर्य या चन्द्रमा के तेज से जब राहू गृह दिखाई देता है तो वह ग्रहण होता है।

क्योंकि वह इन के सामने पर रहता है । राहू के स्थान से नीचे सिद्ध चारण विद्याधर के स्थान है। उनसे भी नीचे यक्ष, राक्षस, पिशाच, भूत प्रेत इनके बिहार का स्थान है। उन यक्षादिकों के स्थान के नीचे सौ योजन पर यह पृथ्वी है। इस भूलोक की सीमा जहाँ तक पक्षी आदि उड़ते हैं वहां तक है। पृथ्वी के नीचे सात पाताल हैं। यह सब पृथ्वी से एवं सब लोक एक दूसरे से दश हजार योजन के अंतर पर हैं अर्थात् भूमि से दस हजार योजन नीचे सुतल, उससे दस हजार योजन दूर नीचे वितल, उससे दस हजार योजन नीचे दूर सुतल है और उससे दस हजार नीचे योजन नीचे तलातल, इस दस हजार योजन नीचे महातल, इससे दस हजार योजन दूर रसातल, इससे दस हजार योजन नीचे पाताल लोक है । यह सातौ लोक स्वर्ग कहलाते हैं। अतल लोक में मय दानव का पुत्र बलि नाम असुर रहता है। उस बलासुर के जंभाई लेने से मुख से स्वैरिणी, कामनी, और पुश्चली नाम की तीन स्त्रियाँ उत्पन्न हुई थीं। जो कि अतल लोक में गये पुरुष को हाटक नाम के रस को पिला कर अपने साथ रमण करती हैं। क्योंकि उस हाटक रस के पीने से पुरुष में दस हजार हाथियों का बल आ जाता है। वितल लोक भूत गणों सहित हटकेश्वर महादेव पार्वती सहित मिथुन भाव से विराज मान हैं। सुतल लोक में विरोचन का पुत्र राजा बलि वास करता है। सुतल लोक में त्रिपुर का अधिपति मय नाम दानव निवास करता है। महातल में लोक अनेक शिर वाला कूद्र के पुत्र सर्प लोगों का महा विषधर गण रहता है। इनमें कुहुक, तक्षक, कालिया, सुषेण, आदि सर्प मुख्य माने जाते हैं। रसातल लोक में निवात कवच, कलिय, हिरण्य के रासी ये तीन यूथ वाले परि नाम देव दानव रहते हैं। ये सब इन्द्र की भेजी परमा नाम की कुत्ती की कही हुई मंत्र मयी वाणी को सुन इन्द्र से भय करते रहते हैं । पाताल लोक में नाग लोक के पति आदि नाग रहते हैं। शंख, कलिक, महाशंख, श्वेत, धनंजय, धृतराष्ट्र, शंखचूड, देवदत्त इत्यादि नाम के हैं। इनके शरीर बड़े और भारी है। जिनके फणों में महाक्रान्ति वाली बड़ी-बड़ी मणियाँ है। जो कि अपनी-अपनी ज्योति से प्रगाढ़ अंधकार को नष्ट करके प्रकाश फैलाती है ।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम चौबीसवां अध्याय समाप्तम🥀।।

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