कपिल मुनी का जनम [भाग १]श्रीमद भागवद पुराण तेईसवाँ अध्याय [सकंध ३]

 श्रीमद भागवद पुराण तेईसवाँ अध्याय [सकंध ३]

कर्दम की देवहूति के साथ विमान में रति लीला


दो- कर्दम ने तप शक्ति से, दिव्य विमान बनाय।
रति लीला जा विधि वही, कथा कही मन लाय ।।


मैत्रेयजी बोले-हे विदुर ! अपने माता पिता के जाने के पश्चात् पतिब्रता देवहुति नित्यप्रति प्रीति पूर्वक अपने पति सेवा करने लगी। उसने अपनी सेवा से अपने पति कर्दम जी को प्रसन्न कर लिया था । इसी कारण से श्रेष्ठ कर्दम जी ने अपनी पत्नी की सेवा से प्रसन्न होकर एक समय कृपा पूर्वक कहा-हे प्रिये ! में तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, जो तुम्हारा यह शरीर सुख भोगने के योग्य था सो वह तुमने मेरी सेवा में दुर्बल कर दिया। सो हे प्रिये ! यह मत सोचो कि मेरे पास तुम्हें देने को कुछ भी नहीं है तुम नहीं जानती हो कि मैंने अपने धर्म में रत होकर तप, समाधि और उपासना तथा आत्म योग के भगवत के दिव्य प्रसाद जोकि भय लोक से रहित हैं उन ऐश्वर्यो को प्राप्त किया है अतः तुम जो चाहो सो मुझसे मांग। तब देवहुति अपने पति की इन बातों को सुनकर अति प्रसन्न हुई और कुछ लज्जा वक्त हँसती हुई गद गद वाणी से बोली-हे पति ! आप अमोघ शक्तियों के स्वामी हो यह मैं भली भाँति जानती हूं, आपका यह कथन सत्य है । परन्तु आपने जो बचन दिया था वह अवश्य हो जाना चाहिए। क्योंकि पतिव्रता स्त्रियों को गुणबान पति विषय एक बार भी जो अंग-संग हो जाता है, उससे अत्यन्त गुणवान सन्तान उत्पन्न होती है। वह पुत्र प्राप्त हो वही पतिब्रताओं का सबसे बड़ा लाभ होता है । देवहूति द्वारा इस प्रकार कहने पर कर्दम जी ने यह अपनी योग विद्या से जाना कि वह उनकी स्त्री पति का संसर्ग चाहती है। तब अपनी स्त्री की इच्छा को जान कर कर्दम जी ने अपने योग बल से उसी समय सम्पूर्ण भूमण्डल पर इच्छानुसार चलने वाला एक परमोत्तम विमान बना कर प्रगट किया। जो कि सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला, अलौकिक हर प्रकार से सुन्दर, सब तरह के रत्नों से जड़ा हुआ, तथा सब सिद्धियों के समूहों से बंचित, प्रत्येक ऋतुओं में सुखदायक,अनेक प्रकार के वस्त्रो से परिपूर्ण, पाँच मंजिल वाला अनेक कमरों से युक्त प्रत्येक कमरे में चंबर, पंखे, शैया, आसन लगे हुये तथा चित्रसारी मणियों से जटित थी। द्वारों पर मूंगों की देहलियों का प्रकाश था जिसके किवाड़ हीरों से जड़े हुये थे और भीतों पर माणिक मोती पुखराज आदि अनेक रत्न जड़े हुये थे। बिहार, मन्दिर, भवन, उपभोग स्थान, तथा आँगन अत्यन्त सुखदायक थे। इस प्रकार का एक सुन्दर तथा अद्भुत विमान मुनि कर्दम ने अपने योगबल से प्रगट कर दिया। ऐसे सुन्दर विमान को देख कर भी देवहूति को प्रसन्नता न हुई क्योंकि वह सोचने लगी कि ऐसे ऐश्वर्यबान विमान में भ्रमण करने के लिये अब मेरी यह क्षीण काया धूल से सनी हुई तथा वस्त्र और आभूषण भी नहीं हैं सो किसी प्रकार भी योग्य नहीं है। जब देवहुति इस प्रकार अपने मन ही मन सोच रही थी तब कर्दम जी ने अपने अतः करण की बात अपने योगबल से जान ली तभी उन्होंने अपने योगबल से वहाँ पर एक सुन्दर सरोवर बना दिया जिसका सुन्दर निर्मल जल अत्यंत ही सुहावना दीख पड़ता था। इस प्रकार अपने योगबल से सुन्दर सरोवर को प्रगट करके कर्दम जी ने अपनी स्त्री से कहा--हे प्रिये ! अब तुम शीघ्र ही इस सरोवर में स्नान करो, फिर इस विमान पर चढ़ना। अपने पति की आज्ञा मान मलीन वस्त्र धारण किये दुर्बल देह वाली, जटिल केशों को धारण किये हुये और मिट्टी धूल से सनी हुई देह से पवित्र जल वाले उस विन्दु सरोवर के अन्दर स्नान करने के लिये गई। वहाँ सरोवर के अन्दर देवहूति को किशोर अवस्था वाली एक हजार कन्यायें दिखाई पड़ी। देवहूति को वहाँ देख वे सब की सब हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई और बोली - हम सब आपकी दासी हैं, आप जो आज्ञा देगी हम वह करेंगी इतनी बात कह उन दासियों ने देवहूति को उबटन लगाकर अच्छे प्रकार से स्नान कराकर उत्तम रेशमी बस्त्र धारण कराये तथा भाँति भाँति के उत्तमोत्तम स्वर्ण के रत्न जटित आभूषण धारण कराये। तब अत्यन्त स्वादिष्ट भोजन कराकर अमृत समान मधुर मादक पदार्थ पीने को दिया। पश्चात देवहूति ने फूलों की माला पहिनी और तब अपनी भूषा को देखने के निमित्त पानी आरसी में जब देखा तो वह आश्चर्य में रह गई। क्यों कि वह अपने विवाह काल जिस सुन्दरता को प्राप्त थी उससे भी अधिक सुन्दर हो गई थी,उसकी काया पलट चुकी थी वह सुन्दर दांत, मनोहर भौहें, स्नेह भरे कटीले नयन, तरुण अवस्था वाली एक अत्यन्त सुन्दर युवती बन गई थी। तब इस काया के पलटने को देखकर उसे अपने
पति के योग पर अत्यन्त आश्चर्य और संसय हुआ कि उसके पति में इतनी सामर्थ्य है। सत्य वह अपने पति के योग को संस युक्त आश्चर्य विचारने लगी तो तभी यह उन हजार दासियों सहित अपने पति कर्दम के पास आ गई। पति की आज्ञा से देवहूति ने जब स्नान किया तो उसकी देह देव कन्या के सदृश्य बन गई और उसकी आयु भी सोलह साल की कन्या के सदृश्य हो गई थी। जब कर्दम जी ने अपनी चन्द्रमुखी पत्नी की ओर देखा तो उन्होंने अपने हृदय में विचार किया कि मुझे भी अपना शरीर ऐसा सुन्दर बना लेना चाहिये। तब उनने अपने योगबल से अपने शरीर को भी पलट कर अत्यन्त सुन्दर बना लिया वे साक्षात अश्विनी कुमार के समान दिव्य स्वरूप युवा अवस्था वाले हो गये थे।

तब वस्त्र से सुन्दर स्तनों को छिपाये हजार विद्या धारियों से सेवित उस मनोरम देवहूति को कर्दम जी ने कोमल हाथ पकड़ कर उस अद्भुत विमान पर प्रेम पूर्वक चढ़ा लिया। तब श्री कर्दमजी उस रत्न जटित अद्भुत विमान में इस तरह शोभित होता है। जिस प्रकार आकाश में समस्त तारागणों के मध्य पूर्ण चन्द्रमा होता है। उस विमान में बैठकर कर्दम जहाँ आठों लोकपाल क्रीड़ा करते हैं संसार के सुखमयी रमणीक सभी स्थानों पर तथा इन्द्रलोक इत्यादि स्थानों पर रमणी के साथ रमण करने लगे। इस प्रकार कर्दम जी उस प्रकाशवान विमान में जो इच्छानुसार चलने वाला था जो पवन की भांति चलने वाला था उसमें बैठ अपनी पत्नी के साथ विचरते हुये सब विमानों में बैठने वालों को उलंघन करते हुये कर्दम मुनि सबके शिरोमणि हुए। फिर महायोगी कर्दम जी अनेक आश्चर्य से भरे हुये समस्त भूगोल को अपने विमान पर से अपनी प्यारी भार्या को दिखाते हुये अपने स्थान को लौट आये यद्यपि कर्दम जी ने अपनी स्त्री के साथ इस प्रकार अनेक वर्षों तक रमण किया परन्तु वह सब समय दो घड़ी मुहूर्त के समान व्यतीत हो गया।

देवहूति अपने पति के साथ ऐसी मोहित हुई कि उसे सौ वर्ष का समय उस रमण क्रिया के करते हुए कुछ भी प्रतीत न हुआ और उसकी काम लालसा फिर भी पूर्ण न हुई। तब देवहूति के मन के संकल्प जानकर कर्दम जी ने अपने स्वरूप को नव प्रकार के विभाग करके उससे वीर्य धारण किया । जिसके करण देवहुति ने एक ही साथ सुन्दर संपूर्ण अंगों वाली और रक्त कम्ल के समान सुगन्धि वाली नौ कन्याओं को जन्म दिया। तदनन्तर कर्दम जी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वन को जाने की इच्छा प्रकट की तो ऊपर से हँसती हुई पतिव्रता देवहूति व्याकुल हृदय से मधुर बचन बोली हे स्वामिन्! आपने हमारा सब प्रकार से मनोरथ पूर्ण किया है, परन्तु अब आप मुझे अभयदान देकर चिन्ता मुक्त कीजिए। प्रथम तो इन कन्याओं के विवाह करो और पश्चात मुझे भी ऐसा पुत्र प्रदान करो जो मुझे ज्ञान प्रदान करे। तत्पश्चात आप बन को जाना मैं भी आपकी सेवा आपके साथ ही रह कर करूंगी। देवहूति के वचन सुनकर कर्दम जी ने कहा-हे राज कन्ये ! तुम इस प्रकार अपने मन में चिन्ता मतकरो शीघ्र ही अविनाशी भगवान थोड़े ही दिनों में तेरे गर्भ में आकर प्राप्त होगें। तुम्हारा कल्याण होगा, तुम ईश्वर को भजो । कर्दम जी के बचनो का पालन करते हुये देवहुति भगवान का श्रद्धा से स्मरण करती हुई अपने पति की सेवा करने लगीं।


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