अश्वत्थामा का ब्रह्म अस्त्र छोड़ना।परीक्षित राजा के जन्म कर्म और मुक्ति की कथा।।

श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का आठवाँ आध्यय [स्कंध १]

दोहा-कहयो व्यास सों जन्म को नारद जी से हाल।।

सोई षट् अध्याय में वर्णी कथा रासल।।

अश्वत्थामा का बृह्माआस्तृ छोड़ना और श्रीकृष्ण द्वारा पंड़वो की रक्षा





सूतजी कहने लगे-इसके अनन्तर वे पांडव मरे हुए पुत्रों को तिलांजलि देने के वास्ते, द्रोपदी आदि स्त्रियों को आगे करके गङ्गाजी के तट पर गये तथा बारम्बार नहाये। फिर वहाँ छोटे भीमादिकों के सहित बैठे हुये राजा युधिष्ठिर, धृतराष्ट्र और पुत्रों के शोक से दुखी हुई गान्धारी, कुन्ती, द्रोपदी, इन सबों को मुनि जनों सहित श्रीकृष्ण सान्त्वना देने लगे, और जिन धूर्त दुर्योधन आदिकों ने युधिष्ठिर का राज्य हर लिया था, जो दुर्योधन आदि दुष्ट द्रोपदी के केश पकड़ने से नष्ट आयु वाले हो रहे थे, उन सबों को मरवा कर और जिसके कोई शत्रु न रहा ऐसे युधिष्ठिर का राज्य स्थापित करके फिर बहुत विस्तार वाले तीन अश्वमेध यज्ञों को करवा के श्रीकृष्ण भगवान ने उस युधिष्ठिर के पवित्र यश को इन्द्र के यश की तरह सब दिशाओं में फैलाया। फिर पाण्डवों से विदा माँग कर सात्यकी और उद्धव सहित श्रीकृष्ण रथ में बैठकर द्वारका को जाने की तैयारी करने लगे।


 हे ब्रह्मन्? उसी समय भय से विह्वल हुई उत्तरा, (परीक्षित को माता) भगवान के सम्मुख भागती हुई आयी।

 वह उत्तरा आकर बोली----


----- हे देवों के देव! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो! हे ईश! तप्त लोहे के समान वाण मेरे सन्मुख चला आता है सो हे विभो! वह मुझे बेशक जलावे, परन्तु मेरा गर्भ नहीं गिरे, उसे इससे बचाओ।







नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।



सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।


महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १


 सूतजी कहते हैं भक्तों पर स्नेह करने वाले श्री कृष्ण भगवान इस प्रकार उस भय भीत हुई उत्तरा के वचन को सुन विचार करने लगे कि----

----- पाण्डवों का वंश नष्ट करने के वास्ते यह अश्वत्थामा का अस्त्र है। 


हे मुनि श्रेष्ठो! उसी समय पाँचों पाण्डव भी अपने सम्मुख जलते हुए वाणों को आते हुये देखकर अपने अस्त्र शस्त्र उठाने लगे फिर निज भक्त पाण्डवों को दुख प्राप्त हुआ जानकर श्रीकृष्ण भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से पांडवों की रक्षा की।


 अन्तर्यामी योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दीन उत्तरा के उदर प्रवेश कर पांडवों के कुलकी वृद्धि के वास्ते उसके गर्भ को बचाया। 


हे शौनक? यद्यपि वह ब्रह्मास्त्र अमोघ था, उसका कोई भी उपाय नहीं था, परन्तु कृष्ण भगवान के तेज को प्राप्त होकर अच्छे प्रकार से शान्त हो गया, इस बात का तुम आश्चर्य मत मानो क्योंकि वह भगवान से सम्पूर्ण आश्चर्य की बातें बन सकती हैं, क्योंकि वह भगवान अपनी बलवंत माया करके इस जगत् को रचता, पालक व संहार करता है ।

कुन्ती द्वारा कृष्णा स्तुति

फिर सती कुंती द्वारका जाते हुए श्रीकृष्ण भगवान से बोली----

यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।। 


सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।


सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !

----- हे श्री कृष्ण ! वासुदेव ! देवकी पुत्र! गोविन्द ! आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है। हे ऋषिकेश! दुष्ट कंस से रोकी हुई और पुत्र के शोक से बहुत दुःखी अपनी माता देवकी को जैसे आपने एक बार छुड़ाया उसी प्रकार मुझे पुत्रों सहित बारम्बार विपत्ति से छुड़ाया है। हे प्रभो! मेरी रक्षा करने वाले तुम एक ही नाथ हो । हे हरे! जिस वक्त भीमसेन को विष के मोदक खिला दिये थे, तब भी और लाक्षा भवन के दाह से, हिडिम्ब आदि राक्षसों के भयङ्कर दर्शन से, जूऐ की सभा से, बनवास के कष्ट से, और युद्ध में अनेक योद्धाओं के शस्त्रों से और अश्वत्थामा के शस्त्र से भी हमारी आपने ही बारम्बार रक्षा की है । हे भगवान ! जो तुम्हारे मित्रों को सुनते हैं, गाते हैं अथवा बारम्बार कीर्तन करते हैं, स्मरण करते हैं अथवा सराहते हैं, वही मनुष्य संसार प्रवाह के मिटाने वाले आपके चरण कमल को देखते हैं। अन्य राजा लोगों को दुःख पैदा करके साथ बैर बांधने वाले ऐसे जो हम हैं उन सब सुहृद अनुजीवियों को क्या निस्चय ही अब तुम त्यागना चाहते हो ? हे गदाधर! वज्र अंकुश आदि काव्य लक्षणों वाले आप के चरणों से चिन्हित हुई यह भूमि जैसे अब शोभित न रहेगी,और सुन्दर समृद्धिवाला यह देश उजाड़ सा हो जायगा। 



हे श्रीकृष्ण भगवान, हे अर्जुन के सखा, हे यादवों में श्रेष्ठ, हे अचल प्रभाव वाले, गोविन्द, हे गौ- ब्राह्मण, देवताओं का पीड़ा हरने वाले, हे योगेश्वर, हे संपूर्ण जगत के गुरु, हे अवतार धारने वाले भगवान! आपको नमस्कार है। 


सूतजी कहते हैं कि कुन्ती ने जब इस प्रकार सुन्दर वचनों से भगवान की सम्पूर्ण महिमा कीर्तन की, तब वे श्री कृष्ण भगवान मन्द मन्द मुस्कान ऐसे करते भये कि मानो इसे अपनी माया करके मोहित करते हों। फिर भगवान बोले कि तमने जो कहा है सो अङ्गीकार है । ऐसे उस कुन्ती को दृढ़ विश्वास देकर, रथके स्थान से हस्तिनापुर में आकर, फिर अन्य सब स्त्रीयों से विदा मांग अपनी द्वारकापुरी में जाने में लगे।

राजा युधिष्ठिर का कृष्णा प्रेम।। श्री कृष्णा का राजा युधिष्ठिर को मोह।।

तब राजा युधिष्ठिर ने प्रेम से तीसरी बार रोक लिये और कहा कि लाला, एक बार बहू ने आपको रोका, दूसरी बार बुआ ने रोका, तो अबकी बार मैं नहीं जाने दूँगा। 

तब धर्म पुत्र युधिष्ठिर राज स्नेह और मोह के वश में होकर सुहृद (मित्र) जनों के वध को चिन्तवन करके अज्ञान-व्याप्त वित्त से कहने लगे-हो? मुझ दुष्टात्मा ने अज्ञान से देखो कि पारक्य है यानी जो कुत्ता गीदड़ आदिको का आहार यह शरीर है इसके वास्ते मैंने बहुत सी अक्षौहिणी सेना नष्ट कर दी है (अक्षौहिणी सेना का प्रमाण २१८७० रथ, २१८७० हाथी १०९, ३५० मनुष्य ६५६१० अश्व, यह अक्षौहिणी सेना की संख्या कही हैं)। बालक, ब्राह्मण, मित्रलोग, सुह्रदयजन पिता के समान चाचा, ताऊ आदि भाई, गुरु का द्रोह करने वाला जो मैं हूँ तिसका नरक में से निकलना कई करोड़ वर्षों में भी नहीं होगा। प्रजा का पालन करने वाला जो राजा है, वह तो धर्म युद्ध में शत्रुओं को मारता है तो उस राजा को पाप नहीं लगता है। यह दुर्योधन तो प्रजा की रक्षा करता था।मैंने तो केवल राज्य के लोभ से इन्हें मारे हैं। 

देखो! जिनके पति बांधव आदि मैंने मार दिये हैं ऐसी स्त्रियों को जो द्रोह उत्पन्न हुआ है। उस द्रोह पाप को मैं गृहस्थाश्रम विहित यज्ञादि कर्मों को करके दूर करने में समर्थ नहीं हूं। हे कृष्ण ! पितामह के पास चलकर मेरा दुःख शान्त कीजिये।

श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।


Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.



हम किसी भी व्यक्ति का नाम विभीषण क्यों नहीं रखते ?


How do I balance between life and bhakti? 


 मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?


यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।। 


सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।


सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !


Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।

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।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अष्टम अध्याय समाप्तम🥀।।༺═──────────────═༻

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