श्रीमद भागवद पूराण सोलहवां अध्याय [स्कंध५]इलावृत खंड

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पूराण सोलहवां अध्याय [स्कंध५](भुवन कोष वर्णन) इलावृत खंड

दोहा०-भुवन कोस वर्णन कियो, श्री शुकदेव सुनाय।

सुनत परीक्षित भूप जिम सोलहवें अध्याय॥


श्रीमद भागवद पूराण सोलहवां अध्याय [स्कंध५] (भुवन कोष वर्णन) इलावृत खंड दोहा०-भुवन कोस वर्णन कियो, श्री शुकदेव सुनाय।  सुनत परीक्षित भूप जिम सोलहवें अध्याय॥   श्री शुकदेवजी द्वारा इतनी कथा सुनकर राजा परीक्षत ने कहा-हे मुने ! आपने सूक्ष्म रूप में यह बात कही कि राजा प्रियव्रत के रथ चक्र से पृथ्वी के अलग-अलग द्वीप बने तथा समुद्रों की रचना हुई।   सो कृपा करके इन सबका वर्णन बिस्तार पूर्वक सुनाइये।    तब श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत ! यदि कोई मनुष्य देवताओं के समान आयु वाला हो तो भी वह नारायण के इस अगम भेद को जानने में समर्थ नहीं हो सकता है । अतः हम तुम्हारे सामने नाम, रूप, लक्षण, के द्वारा पृथ्वी के भूगोल का वर्णन करेंगे। यह भूमण्डल कमल कोष के समान एक- लाख १००००० योजना वाले विस्तार का है।  इस जम्बू द्वीप में नौ खण्ड हैं, जो प्रत्येक नौ-नौ हजार योजन विस्तार वाले हैं। जिनका विभाग आठ पर्वतों के द्वारा किया हुआ है ।   इन नौ खण्डों के बीचों बीच में इलावृत नाम का खण्ड है। जिसके बीचों बीच में सुमेरु नाम का पर्वत जो कि १००००० एक लाख योजन ऊँचा है, जो कि शिखर में विस्तार रूप से ३२००० बत्तीस हजार योजन वाला तथा मूल में १६००० सोलह हजार योजन वाला है। इस इलावृत खण्ड के उत्तर में क्रम से नीलगिरि, श्वेतगिर, और श्रृंगवान  नाम के तीन मर्यादाचल है । ये तीनों पर्वत रम्यक, हिरणामय, तथा कुरु नाम के तीन खण्डों में मर्यादा पर्वत हैं। जो कि पूर्व-पच्छिम दिशा की ओर लम्बे हैं, जिनके दोनों ओर के भाग क्षीर समुद्र में पहुँच रहे हैं। इन पर्वतों की चौड़ाई दो-दो हजार योजन की है, और यह पहला, विचला, पिछला पर्वत एक से एक अपनी दशांश भाग लम्बाई में ही कम हैं। पर्वतों की ऊँचाई दस-दस हजार योजन की है।   इसी प्रकार इलावृत खंड से दक्षिण की ओर निषद, हेमकूट, हिमालय यह तीन पर्वत पूर्व की और लंबे हैं। ये पर्वत हरिवर्ष, किम्पुरुष, तथा भरत खंड के मर्यादा पर्वत हैं। जिनकी ऊंचाई दस-दस हजार योजन की है, तथा मोटाई दो-दो हजार योजन की है ।   इलावृत से पच्छिम की और माल्यवान नाम का पर्वत है और पूर्व की ओर गंध मादन के पर्वत हैं, जो कि नील और निषज पर्वत पर्यंत लंबे हैं, और दो-दो हजार योजन चौड़े हैं। इनकी भी ऊंचाई दस-दस हजार योजन की है। यह दोनों पर्वत केतुमाल, भद्राश्व इन दोनों खंडों के मर्यादा पर्वत है। इसी प्रकार मंदर, मेरुमंदर, सुपार्शव, कुमुद,  यह चार पर्वत दस-दस हजार योजन विस्तार वाले तथा इतनी ही ऊचाई(१०-१० हजार योजन) वाले हैं।   मंदर पर्वत के शिखर से अरुणोदा नाम की नदी निकल कर इलावृत खंड के पूर्व दिशा में बहती है। तथा जम्बू नाम वाली नदी दक्षिण दिशा की ओर संपूर्ण इलावृत खंड में बह रही है। सुपार्शव के शिखर से मधु नाम की पांच नदियाँ पच्छिम की ओर इलावृत में बहती हैं। कुमुद नाम पर्वत से निकलने वाली कई नदियां इलावृत के उत्तर की ओर बहती है। पर्वत के पूर्व दिशा में जठर, देवकूट ये दो पर्वत हैं, वो उत्तर दक्षिण की ओर अठारह हजार १८००० योजन लंबे हें। जिनकी चौड़ाई और उंचाई दो-दो योजन की है। पश्चिम की ओर पवन, और पौरियात्र नाम वाले दो पर्वत हैं । दक्षिण की ओर कैलाश और करबी नाम वाले यह दो पर्वत हैं, जोकि पश्चिम की ओर लंबे हैं। त्रश्रृंग, मकर नाम के दो पर्वत हैं। इन आठ पर्वतों से घिरा हुआ सुमेरु नाम का यह पर्वत अत्यन्त सदर है। जिस सुमेरु गिरि के मध्य भाग में सबसे ऊपर वृह्मा जी की नगरी बसी हुई है, जिसके चारों ओर आठ लोकपालों की आठ पुरियाँ बसी हुई है।

श्री शुकदेवजी द्वारा इतनी कथा सुनकर राजा परीक्षत ने कहा-हे मुने ! आपने सूक्ष्म रूप में यह बात कही कि राजा प्रियव्रत के रथ चक्र से पृथ्वी के अलग-अलग द्वीप बने तथा समुद्रों की रचना हुई।

सो कृपा करके इन सबका वर्णन बिस्तार पूर्वक सुनाइये।



तब श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत ! यदि कोई मनुष्य देवताओं के समान आयु वाला हो तो भी वह नारायण के इस अगम भेद को जानने में समर्थ नहीं हो सकता है । अतः हम तुम्हारे सामने नाम, रूप, लक्षण, के द्वारा पृथ्वी के भूगोल का वर्णन करेंगे। यह भूमण्डल कमल कोष के समान एक- लाख १००००० योजना वाले विस्तार का है। इस जम्बू द्वीप में नौ खण्ड हैं, जो प्रत्येक नौ-नौ हजार योजन विस्तार वाले हैं। जिनका विभाग आठ पर्वतों के द्वारा किया हुआ है ।

इन नौ खण्डों के बीचों बीच में इलावृत नाम का खण्ड है। जिसके बीचों बीच में सुमेरु नाम का पर्वत जो कि १००००० एक लाख योजन ऊँचा है, जो कि शिखर में विस्तार रूप से ३२००० बत्तीस हजार योजन वाला तथा मूल में १६००० सोलह हजार योजन वाला है। इस इलावृत खण्ड के उत्तर में क्रम से नीलगिरि, श्वेतगिर, और श्रृंगवान नाम के तीन मर्यादाचल है । ये तीनों पर्वत रम्यक, हिरणामय, तथा कुरु नाम के तीन खण्डों में मर्यादा पर्वत हैं। जो कि पूर्व-पच्छिम दिशा की ओर लम्बे हैं, जिनके दोनों ओर के भाग क्षीर समुद्र में पहुँच रहे हैं। इन पर्वतों की चौड़ाई दो-दो हजार योजन की है, और यह पहला, विचला, पिछला पर्वत एक से एक अपनी दशांश भाग लम्बाई में ही कम हैं। पर्वतों की ऊँचाई दस-दस हजार योजन की है।

इसी प्रकार इलावृत खंड से दक्षिण की ओर निषद, हेमकूट, हिमालय यह तीन पर्वत पूर्व की और लंबे हैं। ये पर्वत हरिवर्ष, किम्पुरुष, तथा भरत खंड के मर्यादा पर्वत हैं। जिनकी ऊंचाई दस-दस हजार योजन की है, तथा मोटाई दो-दो हजार योजन की है ।

इलावृत से पच्छिम की और माल्यवान नाम का पर्वत है और पूर्व की ओर गंध मादन के पर्वत हैं, जो कि नील और निषज पर्वत पर्यंत लंबे हैं, और दो-दो हजार योजन चौड़े हैं। इनकी भी ऊंचाई दस-दस हजार योजन की है। यह दोनों पर्वत केतुमाल, भद्राश्व इन दोनों खंडों के मर्यादा पर्वत है। इसी प्रकार मंदर, मेरुमंदर, सुपार्शव, कुमुद, यह चार पर्वत दस-दस हजार योजन विस्तार वाले तथा इतनी ही ऊचाई(१०-१० हजार योजन) वाले हैं।

मंदर पर्वत के शिखर से अरुणोदा नाम की नदी निकल कर इलावृत खंड के पूर्व दिशा में बहती है। तथा जम्बू नाम वाली नदी दक्षिण दिशा की ओर संपूर्ण इलावृत खंड में बह रही है। सुपार्शव के शिखर से मधु नाम की पांच नदियाँ पच्छिम की ओर इलावृत में बहती हैं। कुमुद नाम पर्वत से निकलने वाली कई नदियां इलावृत के उत्तर की ओर बहती है। पर्वत के पूर्व दिशा में जठर, देवकूट ये दो पर्वत हैं, वो उत्तर दक्षिण की ओर अठारह हजार १८००० योजन लंबे हें। जिनकी चौड़ाई और उंचाई दो-दो योजन की है। पश्चिम की ओर पवन, और पौरियात्र नाम वाले दो पर्वत हैं । दक्षिण की ओर कैलाश और करबी नाम वाले यह दो पर्वत हैं, जोकि पश्चिम की ओर लंबे हैं। त्रश्रृंग, मकर नाम के दो पर्वत हैं।


ब्रह्मा जी की नगरी सुमेरु पर्वत

श्रीमद भागवद पूराण सोलहवां अध्याय [स्कंध५] (भुवन कोष वर्णन) इलावृत खंड दोहा०-भुवन कोस वर्णन कियो, श्री शुकदेव सुनाय।  सुनत परीक्षित भूप जिम सोलहवें अध्याय॥   श्री शुकदेवजी द्वारा इतनी कथा सुनकर राजा परीक्षत ने कहा-हे मुने ! आपने सूक्ष्म रूप में यह बात कही कि राजा प्रियव्रत के रथ चक्र से पृथ्वी के अलग-अलग द्वीप बने तथा समुद्रों की रचना हुई।   सो कृपा करके इन सबका वर्णन बिस्तार पूर्वक सुनाइये।    तब श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत ! यदि कोई मनुष्य देवताओं के समान आयु वाला हो तो भी वह नारायण के इस अगम भेद को जानने में समर्थ नहीं हो सकता है । अतः हम तुम्हारे सामने नाम, रूप, लक्षण, के द्वारा पृथ्वी के भूगोल का वर्णन करेंगे। यह भूमण्डल कमल कोष के समान एक- लाख १००००० योजना वाले विस्तार का है।  इस जम्बू द्वीप में नौ खण्ड हैं, जो प्रत्येक नौ-नौ हजार योजन विस्तार वाले हैं। जिनका विभाग आठ पर्वतों के द्वारा किया हुआ है ।   इन नौ खण्डों के बीचों बीच में इलावृत नाम का खण्ड है। जिसके बीचों बीच में सुमेरु नाम का पर्वत जो कि १००००० एक लाख योजन ऊँचा है, जो कि शिखर में विस्तार रूप से ३२००० बत्तीस हजार योजन वाला तथा मूल में १६००० सोलह हजार योजन वाला है। इस इलावृत खण्ड के उत्तर में क्रम से नीलगिरि, श्वेतगिर, और श्रृंगवान  नाम के तीन मर्यादाचल है । ये तीनों पर्वत रम्यक, हिरणामय, तथा कुरु नाम के तीन खण्डों में मर्यादा पर्वत हैं। जो कि पूर्व-पच्छिम दिशा की ओर लम्बे हैं, जिनके दोनों ओर के भाग क्षीर समुद्र में पहुँच रहे हैं। इन पर्वतों की चौड़ाई दो-दो हजार योजन की है, और यह पहला, विचला, पिछला पर्वत एक से एक अपनी दशांश भाग लम्बाई में ही कम हैं। पर्वतों की ऊँचाई दस-दस हजार योजन की है।   इसी प्रकार इलावृत खंड से दक्षिण की ओर निषद, हेमकूट, हिमालय यह तीन पर्वत पूर्व की और लंबे हैं। ये पर्वत हरिवर्ष, किम्पुरुष, तथा भरत खंड के मर्यादा पर्वत हैं। जिनकी ऊंचाई दस-दस हजार योजन की है, तथा मोटाई दो-दो हजार योजन की है ।   इलावृत से पच्छिम की और माल्यवान नाम का पर्वत है और पूर्व की ओर गंध मादन के पर्वत हैं, जो कि नील और निषज पर्वत पर्यंत लंबे हैं, और दो-दो हजार योजन चौड़े हैं। इनकी भी ऊंचाई दस-दस हजार योजन की है। यह दोनों पर्वत केतुमाल, भद्राश्व इन दोनों खंडों के मर्यादा पर्वत है। इसी प्रकार मंदर, मेरुमंदर, सुपार्शव, कुमुद,  यह चार पर्वत दस-दस हजार योजन विस्तार वाले तथा इतनी ही ऊचाई(१०-१० हजार योजन) वाले हैं।   मंदर पर्वत के शिखर से अरुणोदा नाम की नदी निकल कर इलावृत खंड के पूर्व दिशा में बहती है। तथा जम्बू नाम वाली नदी दक्षिण दिशा की ओर संपूर्ण इलावृत खंड में बह रही है। सुपार्शव के शिखर से मधु नाम की पांच नदियाँ पच्छिम की ओर इलावृत में बहती हैं। कुमुद नाम पर्वत से निकलने वाली कई नदियां इलावृत के उत्तर की ओर बहती है। पर्वत के पूर्व दिशा में जठर, देवकूट ये दो पर्वत हैं, वो उत्तर दक्षिण की ओर अठारह हजार १८००० योजन लंबे हें। जिनकी चौड़ाई और उंचाई दो-दो योजन की है। पश्चिम की ओर पवन, और पौरियात्र नाम वाले दो पर्वत हैं । दक्षिण की ओर कैलाश और करबी नाम वाले यह दो पर्वत हैं, जोकि पश्चिम की ओर लंबे हैं। त्रश्रृंग, मकर नाम के दो पर्वत हैं। इन आठ पर्वतों से घिरा हुआ सुमेरु नाम का यह पर्वत अत्यन्त सदर है। जिस सुमेरु गिरि के मध्य भाग में सबसे ऊपर वृह्मा जी की नगरी बसी हुई है, जिसके चारों ओर आठ लोकपालों की आठ पुरियाँ बसी हुई है।

इन आठ पर्वतों से घिरा हुआ सुमेरु नाम का यह पर्वत अत्यन्त सदर है। जिस सुमेरु गिरि के मध्य भाग में सबसे ऊपर वृह्मा जी की नगरी बसी हुई है, जिसके चारों ओर आठ लोकपालों की आठ पुरियाँ बसी हुई है।

रूस और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा बड़ी संख्या में किए गए अध्ययनों का मानना ​​है कि पवित्र शिखर दुनिया का केंद्र है और इसे धुरी मुंडी के रूप में जाना जाता है।  इसे दुनिया भर के कई अन्य स्मारकों से भी जुड़ा हुआ कहा जाता है, जैसे स्टोनहेंज, जो यहां से ठीक 6666 किमी दूर है, उत्तरी ध्रुव भी यहां से 6666 किमी और दक्षिणी ध्रुव चोटी से 13332 किमी दूर है।

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम सोलहवां अध्याय समाप्तम🥀।।


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