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भगवान विष्णु का हिरण्यक्ष को युध्ददान।

 अध्याय १८ श्रीमद भागवद पुराण *अठारहवाँ अध्याय* [स्कंध३] हिरण्याक्ष के साथ भगवान वाराह का युद्ध। दो-या अष्टमदश अध्याय में, वरणी कथा ललाम। वराह और हिरण्याक्ष में हुआ घोर संग्राम ॥ श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी ! जब वरुण जी ने उस महा दुख दाई दैत्य से इस प्रकार बचन कहे तो वह वरुण जी का ठठा कर हँसा और वहाँ से भगवान विष्णु को खोजने के लिये चल पड़ा। तभी मार्ग में उसे हरिगुन गाते हुये नारद मुनि आते हुये मिले । तब उस दैत्य ने नारद जी से कहा-रे नारद! तू इस तरह घूम फिर कर किस के गुण गाता फिरता है। तब नारद जी ने कहा-हे देत्यराज हिरण्याक्ष! यह सब आपही की महिमा है जो मैं इस प्रकार स्वछन्द हो भ्रमण करता हूँ। इससे दैत्य ने प्रसन्न होकर कहा-अच्छा तुमने कहीं विष्णु को भी देखा है । नारद जी ने उचित मौका जान कर कहा हे दैत्यराज ! वह तो इस सम्य बाराह का रूप धारण कर पाताल को गये हैं सो आप शीघ ही उन्हें प्राप्त कर सकते हैं । हे विदुर जी। नारद द्वारा सूचना प्राप्त कर वह देत्य युद्ध को उन्मत्त हुआ पाताल लोक में पहुँचा तो उसने वाराह रूप भगवान विष्णु को अपनी दाड़ों पर पृथ्वी को उठाये जाते हुये देखा। तब हिरण्या