इन्द्र-वृत्तासुर युध्द।। वृत्तासुर वध ।।वृत्तासुर का प्राकरम।।

नवीन सुख सागर अध्याय १२ स्कंध ६

श्रीमद भगवद महापुराण बारहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
इन्द्र-वृत्तासुर युध्द।। वृत्तासुर वध ।।वृत्तासुर का प्राकरम।।

दो० युद्ध रीति सो इन्द्र ने, वृत्तासुर दिया मार।

बारहवें अध्याय में, वरणी कथा विचार ।।


नवीन सुख सागर अध्याय १२ स्कंध ६ श्रीमद भगवद महापुराण बारहवाँ अध्याय [स्कंध ६] ( वृत्तासुर वध )  दो० युद्ध रीति सो इन्द्र ने, वृत्तासुर दिया मार।  बारहवें अध्याय में, वरणी कथा विचार ।।  श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत ! इस प्रकार ज्ञान रखने वाले वृत्तासुर ने हरि भगवान की अनेक प्रकार स्तुति की, और फिर अपना त्रिशूल उठाय इन्द्र पर झपटा। बड़े वेग से दैत्य ने इन्द्र पर अपना त्रिशुल चलाया। परन्तु इन्द्र ने उसका भय न मानकर अपने बज्र से त्रिशूल को काटकर टुकड़े कर दिये। साथ ही इन्द्र ने वृत्तासुर की एक भुजा को भी काट डाला । भुजा के कटने पर वृत्तासुर ने महा क्रोध कर परिध अस्त्र को इन्द्र को ठोड़ी पर और ऐरावत हाथी पर कठिन प्रहार किया। जिससे इंदर के हाथ से वज्र छूटकर गिर पड़ा। तब तो इंद्र को निहत्था देखकर देवताओं में हाहाकार मच गया । इधर इन्द्र ने भी लज्जा के वश वज्र को नहीं उठाया।    इंद्र की यह दशा देखकर वृत्तासुर ने कहा- हे इंद्र ! तू वज्र को उठा और मेरे ऊपर प्रहार कर यह अवसर चित्त को खिन्न करने का नहीं है। जीत हार तो ईश्वर के आधीन हैं। देखो मेरी भुजा कट गई है तथा अस्त्र भी टूट गया है फिर भी मैं तुम्हारे प्राण लेने की यथाशक्ति चेष्टा कर रहा हूँ ।   युद्ध भी एक प्रकार का जुआ है। इस जुये में मेरे और तुम्हारे प्राणों का दाव लगा हुआ है।   सो हे इन्द्र ! तुम अपना वज्र हाथ में ले मेरे ऊपर प्रहार करो। वृत्तासुर की इन निष्कपट बातों को सुन इंद्र बहुत प्रभावित हुआ, और मन ही मन भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगा।  तब इन्द्र ने अपना बज्र हाथ में उठाया और वृत्तासुर से हंसकर बोला--  हे दैत्य ! तुम सिद्ध हो, जो असुर भाव को छोड़कर भगवान के भक्त हो महा पुरुष भाव को प्राप्त हो गये हो।   हे परीक्षत इस प्रकार वे दोनों बातें करते हुये भयानक युद्ध करने लगे। वृत्तासुर ने लोहे का परिध अस्त्र बायें हाथ में उठाय बड़े वेग से इंन्द्र पर प्रहार किया। तब इन्द्र ने एक ही बार में अपने सौधार वाले वज्र से उस परिध और वृत्तासुर की भुजा को काट गिराया तब तो वृत्तासुर ने क्रोधकर अपनी ठोड़ी को पृथ्वी पर लगाय मुख को आकाश में फैलाय कर ऐरावत हाथी सहित इन्द्र को निगल लिया। वह इन्द्र योगमाया एवं नारायण कवच के प्रभाव से वृत्तासुर के पेट में जीवित रहा। तब इन्द्र ने वृत्तासुर की कोख को वज्र से फाड़ और हाथी सहित बाहर निकल अपने वज्र से वृत्तासुर के शिर को काटने के लिये प्रहार करने लगा।   हे परीक्षत ! पूरे वर्ष तक वज्र काटते रहने पर वृत्तासुर का शिर कट कर अलग हुआ। तब वृत्तासुर के प्राण (आत्मा रूपी ज्योति) निकल कर सबके देखते-देखते विष्णुलोक में जाय भगवान हरि नारायण में लीन हो गये।  ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम बारहवॉं अध्याय समाप्तम🥀।।  ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_



श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत ! इस प्रकार ज्ञान रखने वाले वृत्तासुर ने हरि भगवान की अनेक प्रकार स्तुति की, और फिर अपना त्रिशूल उठाय इन्द्र पर झपटा। बड़े वेग से दैत्य ने इन्द्र पर अपना त्रिशुल चलाया। परन्तु इन्द्र ने उसका भय न मानकर अपने बज्र से त्रिशूल को काटकर टुकड़े कर दिये। साथ ही इन्द्र ने वृत्तासुर की एक भुजा को भी काट डाला । भुजा के कटने पर वृत्तासुर ने महा क्रोध कर परिध अस्त्र को इन्द्र को ठोड़ी पर और ऐरावत हाथी पर कठिन प्रहार किया। जिससे इंदर के हाथ से वज्र छूटकर गिर पड़ा। तब तो इंद्र को निहत्था देखकर देवताओं में हाहाकार मच गया। इधर इन्द्र ने भी लज्जा के वश वज्र को नहीं उठाया।


इंद्र की यह दशा देखकर वृत्तासुर ने कहा- हे इंद्र ! तू वज्र को उठा और मेरे ऊपर प्रहार कर यह अवसर चित्त को खिन्न करने का नहीं है। जीत हार तो ईश्वर के आधीन हैं। देखो मेरी भुजा कट गई है तथा अस्त्र भी टूट गया है फिर भी मैं तुम्हारे प्राण लेने की यथाशक्ति चेष्टा कर रहा हूँ ।

युद्ध भी एक प्रकार का जुआ है। इस जुये में मेरे और तुम्हारे प्राणों का दाव लगा हुआ है।


सो हे इन्द्र ! तुम अपना वज्र हाथ में ले मेरे ऊपर प्रहार करो। वृत्तासुर की इन निष्कपट बातों को सुन इंद्र बहुत प्रभावित हुआ, और मन ही मन भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगा।

तब इन्द्र ने अपना बज्र हाथ में उठाया और वृत्तासुर से हंसकर बोला--

हे दैत्य ! तुम सिद्ध हो, जो असुर भाव को छोड़कर भगवान के भक्त हो महा पुरुष भाव को प्राप्त हो गये हो।


हे परीक्षत इस प्रकार वे दोनों बातें करते हुये भयानक युद्ध करने लगे। वृत्तासुर ने लोहे का परिध अस्त्र बायें हाथ में उठाय बड़े वेग से इंन्द्र पर प्रहार किया। तब इन्द्र ने एक ही बार में अपने सौधार वाले वज्र से उस परिध और वृत्तासुर की भुजा को काट गिराया तब तो वृत्तासुर ने क्रोधकर अपनी ठोड़ी को पृथ्वी पर लगाय मुख को आकाश में फैलाय कर ऐरावत हाथी सहित इन्द्र को निगल लिया। वह इन्द्र योगमाया एवं नारायण कवच के प्रभाव से वृत्तासुर के पेट में जीवित रहा। तब इन्द्र ने वृत्तासुर की कोख को वज्र से फाड़ और हाथी सहित बाहर निकल अपने वज्र से वृत्तासुर के शिर को काटने के लिये प्रहार करने लगा।

हे परीक्षत ! पूरे वर्ष तक वज्र काटते रहने पर वृत्तासुर का शिर कट कर अलग हुआ। तब वृत्तासुर के प्राण (आत्मा रूपी ज्योति) निकल कर सबके देखते-देखते विष्णुलोक में जाय भगवान हरि नारायण में लीन हो गये।




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