भगवान शेषनाग की महिमा का गुणगान॥संकर्षण देव (शेष नाग)का निवारण॥

भगवान शेषनाग की महिमा का गुणगान श्रीमद भागवद पुराण   पच्चीसवां अध्याय [स्कंध ५] ॥  संकर्षण देव (शेष नाग)का निवारण॥ दो॰  शेष नाम भगवान हैं, शंकर्षण सुख धाम ।  पच्चीसवें अध्याय में वर्ण कियौ सुकाम ||   श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! शेष जी पाताल से तीस हजार योजन दूर पर विराज मान हैं। जो कि विराट स्वरूप भगवान की तमोगुणी कला कहलाते हैं। यह अनंत भगवान शेष जी अहंकार के अधिष्ठाता हैं, और ये दृष्टा और दृश्य को खींच कर मिला देते हैं, इसी कारण इन्हें संकर्षण कहते हैं।   शेष जो के एक ही शिरपर यह समस्त पृथ्वी मंडल इस प्रकार रखा हुआ कि, जिस प्रकार किसी बड़ी पगड़ी पर एक दाना सरसों का रखा होता है। जब प्रलय काल होता है तब इनको अति क्रोध होता है, तब इनकी घूमती हुई भृकुटियों के मध्य से तीन तीन नेत्रों वाले संकर्षण नाम वाले ग्यारह रुद्र हाथ में त्रिशूल धारण किये प्रगट होते हैं।   अनंत वीर्य वाले जिनके गुणानुभाव को कोई नहीं जान पाता हैं, सो इस पृथ्वी के नीचे विराजमान हैं, वे लोगों के हितार्थ केवल लीला मात्र इस पृथ्वी को धारण किये हुये हैं उनका कोई भी आधार नहीं हैं, जो कि स्वयं ही अपने आप ही अपने आधार पर ठहरे हुये हैं। सो हे राजा परीक्षत ! उन्हीं भगवान शेष जी का स्मरण करना ही उचित है।  ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम पच्चीसवां अध्याय समाप्तम🥀।।  ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_

भगवान शेषनाग की महिमा का गुणगान
श्रीमद भागवद पुराण पच्चीसवां अध्याय [स्कंध ५] ॥
संकर्षण देव (शेष नाग)का निवारण॥

दो॰ शेष नाम भगवान हैं, शंकर्षण सुख धाम ।

पच्चीसवें अध्याय में वर्ण कियौ सुकाम ||


श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! शेष जी पाताल से तीस हजार योजन दूर पर विराज मान हैं। जो कि विराट स्वरूप भगवान की तमोगुणी कला कहलाते हैं। यह अनंत भगवान शेष जी अहंकार के अधिष्ठाता हैं, और ये दृष्टा और दृश्य को खींच कर मिला देते हैं, इसी कारण इन्हें संकर्षण कहते हैं।

शेष जो के एक ही शिरपर यह समस्त पृथ्वी मंडल इस प्रकार रखा हुआ कि, जिस प्रकार किसी बड़ी पगड़ी पर एक दाना सरसों का रखा होता है। जब प्रलय काल होता है तब इनको अति क्रोध होता है, तब इनकी घूमती हुई भृकुटियों के मध्य से तीन तीन नेत्रों वाले संकर्षण नाम वाले ग्यारह रुद्र हाथ में त्रिशूल धारण किये प्रगट होते हैं।

अनंत वीर्य वाले जिनके गुणानुभाव को कोई नहीं जान पाता हैं, सो इस पृथ्वी के नीचे विराजमान हैं, वे लोगों के हितार्थ केवल लीला मात्र इस पृथ्वी को धारण किये हुये हैं उनका कोई भी आधार नहीं हैं, जो कि स्वयं ही अपने आप ही अपने आधार पर ठहरे हुये हैं। सो हे राजा परीक्षत ! उन्हीं भगवान शेष जी का स्मरण करना ही उचित है।

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम पच्चीसवां अध्याय समाप्तम🥀।।

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How blindfoldedly we kept trusting western culture that led us vanished.


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