विदुर, धृतराष्ट्र, गान्धारी का हिमालय गमन से मोक्ष प्राप्ति की कथा।।
श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का तेरहवॉं आध्यय [स्कंध १]
विदुर, धृतराष्ट्र, गान्धारी का हिमालय गमन से मोक्ष प्राप्ति की कथा।।विदुर कौन थे?
सूतजी कहने लगे-विदुर जी तीर्थ यात्रा में विचरते हुए मैत्रैय जी से मिल कर श्री कृष्ण चन्द्र की गति को जान के हस्तिनापुर में आये।
यह सब और अन्य भी पाण्डु जाति के लोगों की भार्या और अनेक पुत्र सहित स्त्रियां, यह सब जैसे मृतक ने प्राण पाये हों तेसे विदुरजी के सन्मुख गये यह सब यथा योग्य विधि से विदुर जी से मिले।
क्योंकि विष, अग्नि आदि अनेक विपत्तियों से आप ही माता सहित हमको छुड़ाये हैं और कैसे निर्वाह किया, आपने पृथ्वी पर विचरते हुए किसी प्रकार तथा कौन-कौन तीर्थ किये।
यह विदुर जी धर्मराज का अवतार थे। १०० वर्ष तक शूद्र योनि में जन्म बिताने का शाप एक ऋषि ने धर्मराज को दिया था।
गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।
महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम
क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.
श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।
Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.
पोता होने के बहुत समय पीछे राजकार्य में लगे हुए पाण्डवों का अचानक परम दुस्तर काल आ पहुँचा । उसको विदुर जी जान के धृतराष्ट्र से बोले कि ----
----- हे राजन् शीघ्र ही घर से निकल जाओ देखो यह भय आया अर्थात् सब का काल आया है।तुम्हारे पिता, भाई, पुत्र सब मर गये, तुम्हारी आयु क्षीण हो गई है, यह देह बुढ़ापे ने ग्रस लिया, तो भी तुम पराये घर की सेवा करते हो । अहो, इस प्राणी को जीने की बड़ी भारी आशा लगी रहती हैं, उसी से तुम भीमसेन के दिये हुये भोजन को कुत्तों की तरह खाने को अंगीकार करते हो। देखो जिन पांडवों को तुमने अग्नि में जलाया, विष दिया, चीर हरण से अपने को कलंक लगाया, रहने का घर और धन लिया, उन्हीं के दिये हुए अन्नादिक से अब तुमको अपने प्राणों के रखने से क्या प्रयोजन है? जो मनुष्य वैराग्य धारण कर अभिमान को छोड़, किसी को खबर नहीं पड़े, ऐसे तीर्थादिक पर जाकर अपने जीर्ण शरीर को त्याग देवे वह धीर कहलाता है । जो अपने से अथवा दूसरे के उपदेश से वैराग्य को प्राप्त हो, आत्मा में निष्ठा को अपने हृदय में हरि को धारण कर घर से बाहर निकल जावे वह उत्तम नर कहलाता है। अब तुम अपने घर के जनों को खबर किये बिना ही उत्तर दिशा को चले जाओ क्योंकि अब से आगे मनुष्य के धैर्यादिक गुणों को छीनने वाला कलिकाल आवेगा ।
इस प्रकार छोटे भाई विदुर ने प्रजाचक्षु अन्धे अपने भाई धृतराष्ट्र को बोध कराया तब अपने भाई के दिखाये मोक्ष मार्गको देखकर चित्त को दृढ़ता से अपने बन्धुओं की अत्यन्त दृढ़ स्नेह फाँस को दूर कर आधी रात के समय विदुर के साथ धृतराष्ट्र घर से बाहर चल पड़े फिर इनकी स्त्री सुवला राजा की बेटी जो पतिवृता स्त्री थी वह भी अपने पति के संग पीछे-पीछे चली। ये दोनों सन्यास धारण करने वालों को जहाँ आनन्द होता है ऐसे हिमालय पर्वत में इस प्रकार प्रसन्न होकर चले कि जैसे शूरवीर युद्ध में श्रेष्ठ प्रहार को अच्छा मान के जाते हैं।
नित्य दर्शन करने के नियमानुसार जब युधिष्ठिर घर में गये तब गान्धारी और धृतराष्ट्र के दर्शन न हुए। तहां बैठे हुए केवल संजय को उदास मन से देखकर युधिष्ठिर पूछने लगे-हे सञ्जय! वृद्ध और नेत्रों से हीन ऐसे हमारे ताऊ कहाँ हैं ? और जो पुत्रों के मरने से दुःखित थी सो गांधारी माता और सुहृद विदुर कहां गये!
यह आपको विदित हो तो कृपा करके हम से कहो । क्या धृतराष्ट्र जी दुखित होकर गंगा जी में नहीं हो गये। पिता पाण्डु के मरे पीछे जो हम सब बालकों को दुख से बचाया करते थे वे चाचा और चाची इस जग में कहाँ गये?
How do I balance between life and bhakti?
मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?
यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।।
सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।
सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !
Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)
सूतजी कहते हैं-है ऋषिश्वर! विकलता से पीड़ित हुआ सञ्जय अपने स्वामी धृतराष्ट्र को नहीं देख कर दुखित हुआ, युधिष्ठिर से ये वचन बोला---
-----हे कुरुनन्दन! आपके ताऊ और चाचा के निश्चित किये हुए विचार को मैं नहीं जानता हूँ तथा मैं गान्धारी के अभिप्राय को नहीं जानता हूँ । अहो, उन महात्माओं ने मेरे को ठग लिया। इतने ही में तुम्बक गन्धर्व सहित नारद मुनि वहां आ गए । तब छोटे भाई सहित युधिष्ठिर जी खड़े हो नारदजी को आसन पर बिठाकर, पूजा कर उनसे कहने लगे-हे भगवान मेरे ताऊ धतराष्ट्र और चाचा विदुरजी यहाँ से कहाँ गये? और वह तपस्विनी जो कि मरे हुए पुत्रों के दुःख से पीड़ित है ऐसी गान्धारी माता कहाँ है?
तब सर्वन्तर्यमी मुनि-उत्तम नारदजी बोले, हे राजन् ! कुछ सोच मत करो। अज्ञान से दी हुई अपने मन को विकलता को त्याग दो कि----अनाथ गरीब वन में गये हुए वे कैसे जीवन यापन करेंगे ऐसा विचार करना तुम्हारा बिलकुल अज्ञान है। यह सम्पूर्ण जगत एक भगवान ही है यानी भगवान से पृथक नहीं हैं, स्वयं दृष्टा है, और भोगों को भोगने वालों का आत्म रूप एक ही है सो भोगने वाले, भोग्य पदार्थ, इन सबों के स्वरूप करके अपनी माया से आप ही अनेक रूप में भान होता है ऐसे उसी परमेश्वर के तुम अनेक रूप देख। धृतराष्ट्र जी अपने भाई विदुर तथा गान्धारी भार्या सहित हिमालय पर्वत की दक्षिण दिशा में ऋषि के आश्रम में गये हुए उसी स्थान पर हैं जहाँ मीठे सोतों के विभागवाली गंगा जी है।
उसी से वहां सप्त ऋषियों की प्रीति के वास्ते सप्तसत्रे नाम तीर्थ कहाता है,
Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.
तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।
क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य? तंत्र- एक विज्ञान।।
आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।
तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।
मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।
Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?
तहां उसी तीर्थ में त्रिकाल समय स्नान कर और यथार्थ विधि अग्निहोत्र कर केवल जल का ही भोजन करके वे शान्त चित वाले हो रहे है। सम्पूर्ण इच्छा को त्यागकर वहां बैठे हैं। आसन को जीत कर यथा श्वांस को जीत कर छः इन्द्रीयों के वश में कर हरि की धारणा करके रजोगुण, सत्वगुण, तमोगुण, के मल को त्यागकर, अहंकार से युक्त मन की स्थूल देह से एकाग्र कर फिर उसको विज्ञानत्म में संयुक्त कर जैसे घटाकाश महाकाश में लीन किया जाता है तैसे ही उसी जीव को परब्रह्म में लीन कर इन्द्रियों की वृत्तियों को रोक कर, मायारूपी वासना को नष्ट कर सब प्रकार के भोजन को यानी विषयों को त्यााग कर, लकड़ी के तरह निश्चल होके बैठे हैं।उन्होंने सब वस्तुओं का त्याग कर दिया है, इसलिये तुम उनका विध्न मत करो और है राजन ! वे आज से पांचवे दिन अपने शरीर को त्यागेंगे। यदि तुम कहो कि मैं उनके शरीर को ही ले आऊँगा सो वह शरीर भी भस्म हो जावेगा, विदुरजी के दिये हुए ज्ञान से ध्रितराष्ट्र मोक्ष को प्राप्त होगा । यदि कहो कि मैं गान्धारी को ले आऊँगा सो जिस वक्त योग अग्नि से से कुटिया सहित उनके पति का शरीर दग्ध होने लगेगा तब बाहर खड़ी हुई सती पतिव्रता गान्धारी भी उसी अग्नि में प्रवेश कर जायगी। यदि कहो कि मैं विदुर को ही ले आऊंगा सो हे कुरुनन्दन ! तिस हाल को देख कर विदुर जी भाई को सुगति से हर्ष और वियोग के शोक से युक्त हो तहाँ से चलकर गंगा तट आदि तीर्थो के सेवन को चले जायेंगे।
इस प्रकार कह के तुम्बर गन्धर्व सहित नारद मुनि तो स्वर्गलोक चले गये फिर युधिष्ठिर जी ने मुनि के बचन को हृदय में रखकर शोक का त्याग कर दिया।
🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम तेरहवॉं अध्याय समाप्तम🥀।।
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