वेद व्यास जी द्वारा भगवद गुण वर्णन।।
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का दूसरा आध्यय [स्कंध १](भगवत गुण वर्णन )
नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।
सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।
महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १
हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ४
प्रह्लाद द्वारा भगवान का स्तवन। महाभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ५।।
सूतजी कहते हैं कि हे मुनीश्वरो ! आपने बहुत अच्छा पूछा, यह सब लोगों का मङ्गलरूप है कि जो आनन्दकन्द श्रीकृष्ण महाराज की कथाओं का प्रश्न किया, क्योंकि जिस श्रीकृष्णचन्द्र भगवान की कथा सुनने से मन प्रसन्न होता है और मनुष्यों का यही परम कल्याण है कि जिस धर्म के करने से परमेश्वर में जो ज्ञान को उत्पन्न करता है। जिन मनुष्यों के अधिष्ठान किये धर्म से यदि विष्णु भगवान की कथाओं में प्रीति नहीं उपजे तो वह धर्म निष्फल है। वहाँ ऐसा विचार करना चाहिये कि जिस धर्म से भगद्भक्ति द्वारा मोक्ष हो सकती है उस धर्म से धनादि द्वारा प्राप्त होना फल नहीं है, और जिस द्रव्य से निरन्तर धर्म हो सकता है उस धन से केवल इन्द्रियों की प्रीति मात्र अनेक विषय सुख प्राप्त होना फल नहीं है। क्योंकि वे विषय जब तक प्राणी जीता है, तभी तक फिर नहीं, और जीवन का यही फल है कि निष्काम कर्म करके भक्ति द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्ति हो जाये, और अनेक कर्मों के करने को प्राणी ने अपने जीने का फल मान रक्खा है सो जीने का फल नहीं है ।
इसलिये पण्डितजन परम प्रीति करके प्रतिदिन वासुदेव भगवान के विशेष मनकी शुद्धि करने वाली भक्ति करते हैं।
अब यह कहते हैं कि मोक्षदायी होने से केवल विष्णु भगवान का ही भजन कहना श्रेष्ठ क्यूँ है?
क्योंकि विष्णु भगवान प्रधान हैं जिनमें ऐसे वेद हैं और यज्ञों में भी विष्णु भगवान प्रधान हैं,क्रिया यानी कर्म-काण्ड, जप, तप, पूजा, पाठ इन सबों में भी विष्णु भगवान प्रधान है, ज्ञान में भी भगवान मुख्य हैं, तपस्या में श्री विष्णु भगवान ही प्रधानता से माने जाते हैं दान ब्रतादि विषय के धर्म शास्त्र और स्वर्ग आदि की गति में भी विष्णुभगवान प्रधान हैं। वे ही भगवान आप निर्गुण हैं, तो भी; अर्थात सत्वादि गुणों करके लिप्त नहीं हैं परन्तु कार्य कारण रूप अपनी त्रिगुणमयी माया करके पहले इस विश्व को रचते हैं, फिर उसी माया करके उत्पन्न हुए आकाश आदि गुणों में भीतर प्रवेश हुए की तरह जानने में आते हैं ।
सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।
Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.
तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।
क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य? तंत्र- एक विज्ञान।।
आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।
तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।
मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।
मानों गुणवान हैं ऐसे दीखते हैं, परन्तु, वास्तव में गुण सम्बन्ध मात्र से रहते हैं क्योंकि स्वात्मप्रकाश पूर्ण ज्ञान से भरपूर हैं यानी माया से रहित हैं। जिस प्रकार एक ही अग्नि अलग-अलग काष्ठोँ में जल्दी-जल्दी मालूम होती है जैसे जितना लम्बा चौड़ा काष्ठ हो वैसे ही अग्निदिखती है, परन्तु सिद्धान्त में अग्नि एक ही हैं। इसी प्रकार भूतात्मा, परमात्मा, भगवान, मनुष्य, पशु आदि यह सब परमेश्वर के सत्व आदि गुणों के प्रभाव से उत्पन्न हुए पंचतंत्र, इन्द्रिय,मन, तथा इन्हों में अपने रचे हुए चार प्रकार के जीवों में प्रविष्ट होकर, तिस-तिस शरीर के अनुसार विषय भोगों को अपनी इच्छा से भोगते हैं। यानी वही परमात्मा सबके अन्तःकरण में विराजमान हैं, और उन्हीं की सत्ता से सब इन्द्रियां अपने अपने विषय को ग्रहण करती हैं, और वह परमात्मा देवता कच्छप, मलावाराह आदि तथा मनुष्य देह भी श्रीकृष्ण आदि इन्ही सब लीला से अपनीअवतारों में प्रवेश होकर सरबगुण करके लोको का पालन करते हैं, क्योंकि वे लोक भावन है, अर्थात वही परमेश्वर सब लोकों के कर्ता है।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम द्वितीय अध्याय समाप्तम🥀।।
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