४९ मारूत की उत्पत्ति कैसे हुई तथा देवगण वंश वर्णन॥ श्रीमद भागवद पुराण १८ सकंध ६

४९ मारूत की उत्पत्ति कैसे हुई तथा देवगण वंश वर्णन॥ श्रीमद भागवद पुराण १८ सकंध ६

नवीन सुख सागर 

श्रीमद भागवद पुराण अठारहवाँ अध्याय [स्कंध ६]


दो०-देवगण के वंश कौ, हाल कहयौ विस्तार। 

अष्टम दस अध्य में दिती गर्भ सौ सर॥॥ 


४९ मारूत की उत्पत्ति कैसे हुई तथा देवगण वंश वर्णन॥ श्रीमद भागवद पुराण  १८ सकंध ६ नवीन सुख सागर  श्रीमद भागवद पुराण  अठारहवाँ अध्याय [स्कंध ६] (देवगण वंश वर्णन)  दो०-देवगण के वंश कौ, हाल कहयौ विस्तार।  अष्टम दस अध्य में दिती गर्भ सौ सर॥॥   श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित! अदित के पाँचवे पुत्र सविता ने अपनी भार्या पृश्नि में सावित्री, व्याहृति, वेदत्रयी, नाम की तीन, कन्या और अग्निहोत्र, पशुयाग, सोमयाग, चातुर्मास्य, महामख यह पाँच पुत्र उत्पन्न किये।  अदिति के भग नाम पुत्र ने सिद्धि नाम वाली स्त्री से महिमा, विभु, प्रभु, नाम के तीन पुत्र और आशिष नाम की एक पुत्री को उत्पन्न किया।   अदित पुत्र धाता ने कुहू नामा स्त्री में सायं नाम और सिनी वाली स्त्री में दस नामा पुत्र उत्पन्न किया,  और राका नाम वाली स्त्री में प्रायः और अनुमति नामा स्त्री में पूर्णमास नाम पुत्र प्रकट किया,   समनन्तर की क्रिया नामा स्त्री में पुरीष्या नाम पाँच अग्नि पैदा किये।   वरुण जी ने वर्षणी नामा भार्या में भृगु जी को उत्पन्न किया जो पहिले वृह्मा जी के पुत्र हुये थे तथा दूसरे महायोगी बाल्मीक जी को प्रकट किया जो सर्पों की बाँबी से उत्पन्न किये कहाते हैं।  अगस्त्य और वसिष्ठ यह दोनों वरुण जी और मित्र जी के साधारण पुत्र कहलाते हैं। क्योंकि उर्वसी को देखकर वरुण और मित्र जी ने अपना वीर्य स्खलित कर घड़े में डाल दिया था। इसी से इन दोनों की उत्पत्ति हुई थी।   अदित के दशवें पुत्र मित्र जी ने अपनी रेवती नाम स्त्री में उत्सर्ग, अरिष्ठ पिप्पल, यह तीन पुत्र उत्पन्न किये।    अदिति के ग्यारहवें पुत्र इन्द्र ने पौलौमी नामा भार्या में जयंत, ॠषभ, मोढुव, नाम के तीन पुत्र उत्पन्न किये।  माया से प्रकट वामन जी ने अपनी कीर्ति नामा भार्या से वृहतश्लोक नाम पुत्र उत्पन्न किया जिसके सौभाग्य आदि पुत्र उत्पन्न हुए।   यह अदित का वंश हे परीक्षत सुना, आगे दिति का वंश सुनो।   कश्यप के ही अंश से दिति के हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नाम के दो पुत्र हुए। हिरण्यकश्यपु ने कयाधु नामा स्त्री से संहलाद, अनुहलाइ हलाद, और प्रहलाद नाम के चार पुत्र उत्पन्न किये । सिंहिका नाम की एक बहिन थी जो विप्रचित्ति नाम दैत्य को व्याही गई, जिसका राहु नाम पुत्र हुआ। संहलाद ने कृति नामा भार्या से पंचजन नाम दैत्य हुआ। हलाद के धमनि नामा भार्या से वातापी और इल्वल ये दो पत्र हुए। अनुहलाद की सूमर्या वाष्कल और महिष नाम के दो पुत्र हुये। प्रहलाद की भार्या देवी से विरोचन हुआ। जिसका पुत्र वलि हुआ। वलि की आशना नाम भार्या से सौ पुत्र जिनमें वाणासुर सबसे बड़ा था । इसी दिति से उनचास पवन हुए जो मारुति नाम से प्रसिद्ध हुए।   शुकदेव जी की इतनी कथा सुन परीक्षत ने पूछा- हे मुनि ! यह सब दैत्य थे फिर देवता कैसे हुए सो कथा कहो।   शुकदेव जी बोले हे परीक्षत ! जब इन्द्र द्वारा प्रार्थना पर भगवान ने दैत्यों का संहार कर दिया तथा अनेक दैत्य इन्द्र द्वारा मारे गये तो दिति ने कश्यप से एक ऐसा पुत्र होने को वर माँगा कि वह इन्द्र को मार सके।  तब कश्यप ने दिति को एक कठिन ब्रत १ वर्ष तक रखने को बताया। दिति ने गर्भ धारण कर व्रत का पालन किया । इन्द्र भी इन दिति की इच्छा को जान गया था सो, यह भी दिति की सेवा करके अवसर की खोज में था कि कब दिति का व्रत भंग हो और वह अपने उत्पन्न होने वाले शत्रु का विनाश करे। एक दिन दिति झूठे मुख ही सो गई सो ब्रत का भंग हुआ देख इंद्र दिति के पेट में घुस गया और उसने दिति के गर्भ के सात खंड, वज्र से कर दिया।   परन्तु वे फिर भी जीवित रहे तो फिर इंद्र ने उनको भी सात-सात खंड कर दिया। इस प्रकार ४९ उनन्चास खंड होने पर भी वह न मरे और इन्द्र से प्रार्थना की कि वे तो उसके भाई तथा पार्षद है । फिर क्यों मारता है । तब इंद्र ने उन्हें अपना पार्षद बनाया जब दिति ने इन उन्नचास पुत्रों को जन्म दिया तो उसने इद्र से पूछा कि हे इंद्र क्या कारण है कि मैंने एक पुत्र का वर माँगा था और यह उन्नचास पुत्र हुए हैं। इंद्र ने तब सारी कथा कही सो हे परीक्षत वे सब मारुति के नाम से प्रसिद्ध हुए और इंद्र के पार्षद बने ।  ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अठारहवां अध्याय समाप्तम🥀।।  ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_

(देवगण वंश वर्णन)


इन्द्र को ब्रम्ह हत्या लगना।। बृह्मा हत्या का स्वरूप।।श्रीमद भागवद पुराण तेरहवां अध्याय [स्कंध ६]

इन्द्र-वृत्तासुर युध्द।। वृत्तासुर वध ।।वृत्तासुर का प्राकरम।।
वृत्रासुर का अंत॥ वृत्रासुर का वध




श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित! अदित के पाँचवे पुत्र सविता ने अपनी भार्या पृश्नि में सावित्री, व्याहृति, वेदत्रयी, नाम की तीन, कन्या और अग्निहोत्र, पशुयाग, सोमयाग, चातुर्मास्य, महामख यह पाँच पुत्र उत्पन्न किये।
अदिति के भग नाम पुत्र ने सिद्धि नाम वाली स्त्री से महिमा, विभु, प्रभु, नाम के तीन पुत्र और आशिष नाम की एक पुत्री को उत्पन्न किया।

अदित पुत्र धाता ने कुहू नामा स्त्री में सायं नाम और सिनी वाली स्त्री में दस नामा पुत्र उत्पन्न किया,
और राका नाम वाली स्त्री में प्रायः और अनुमति नामा स्त्री में पूर्णमास नाम पुत्र प्रकट किया,

समनन्तर की क्रिया नामा स्त्री में पुरीष्या नाम पाँच अग्नि पैदा किये।

वरुण जी ने वर्षणी नामा भार्या में भृगु जी को उत्पन्न किया जो पहिले वृह्मा जी के पुत्र हुये थे तथा दूसरे महायोगी बाल्मीक जी को प्रकट किया जो सर्पों की बाँबी से उत्पन्न किये कहाते हैं।
अगस्त्य और वसिष्ठ यह दोनों वरुण जी और मित्र जी के साधारण पुत्र कहलाते हैं। क्योंकि उर्वसी को देखकर वरुण और मित्र जी ने अपना वीर्य स्खलित कर घड़े में डाल दिया था। इसी से इन दोनों की उत्पत्ति हुई थी।

अदित के दशवें पुत्र मित्र जी ने अपनी रेवती नाम स्त्री में उत्सर्ग, अरिष्ठ पिप्पल, यह तीन पुत्र उत्पन्न किये।



अदिति के ग्यारहवें पुत्र इन्द्र ने पौलौमी नामा भार्या में जयंत, ॠषभ, मोढुव, नाम के तीन पुत्र उत्पन्न किये।
माया से प्रकट वामन जी ने अपनी कीर्ति नामा भार्या से वृहतश्लोक नाम पुत्र उत्पन्न किया जिसके सौभाग्य आदि पुत्र उत्पन्न हुए।

यह अदित का वंश हे परीक्षत सुना, आगे दिति का वंश सुनो।


कश्यप के ही अंश से दिति के हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नाम के दो पुत्र हुए। हिरण्यकश्यपु ने कयाधु नामा स्त्री से संहलाद, अनुहलाइ हलाद, और प्रहलाद नाम के चार पुत्र उत्पन्न किये । सिंहिका नाम की एक बहिन थी जो विप्रचित्ति नाम दैत्य को व्याही गई, जिसका राहु नाम पुत्र हुआ। संहलाद ने कृति नामा भार्या से पंचजन नाम दैत्य हुआ। हलाद के धमनि नामा भार्या से वातापी और इल्वल ये दो पत्र हुए। अनुहलाद की सूमर्या वाष्कल और महिष नाम के दो पुत्र हुये। प्रहलाद की भार्या देवी से विरोचन हुआ। जिसका पुत्र वलि हुआ। वलि की आशना नाम भार्या से सौ पुत्र जिनमें वाणासुर सबसे बड़ा था । इसी दिति से उनचास पवन हुए जो मारुति नाम से प्रसिद्ध हुए।

शुकदेव जी की इतनी कथा सुन परीक्षत ने पूछा- हे मुनि ! यह सब दैत्य थे फिर देवता कैसे हुए सो कथा कहो।

४९ मारूतों की उत्पत्ति

शुकदेव जी बोले हे परीक्षत ! जब इन्द्र द्वारा प्रार्थना पर भगवान ने दैत्यों का संहार कर दिया तथा अनेक दैत्य इन्द्र द्वारा मारे गये तो दिति ने कश्यप से एक ऐसा पुत्र होने को वर माँगा कि वह इन्द्र को मार सके।
तब कश्यप ने दिति को एक कठिन ब्रत १ वर्ष तक रखने को बताया। दिति ने गर्भ धारण कर व्रत का पालन किया । इन्द्र भी इन दिति की इच्छा को जान गया था सो, यह भी दिति की सेवा करके अवसर की खोज में था कि कब दिति का व्रत भंग हो और वह अपने उत्पन्न होने वाले शत्रु का विनाश करे। एक दिन दिति झूठे मुख ही सो गई सो ब्रत का भंग हुआ देख इंद्र दिति के पेट में घुस गया और उसने दिति के गर्भ के सात खंड, वज्र से कर दिया।

परन्तु वे फिर भी जीवित रहे तो फिर इंद्र ने उनको भी सात-सात खंड कर दिया। इस प्रकार ४९ उनन्चास खंड होने पर भी वह न मरे और इन्द्र से प्रार्थना की कि वे तो उसके भाई तथा पार्षद है । फिर क्यों मारता है । तब इंद्र ने उन्हें अपना पार्षद बनाया जब दिति ने इन उन्नचास पुत्रों को जन्म दिया तो उसने इद्र से पूछा कि हे इंद्र क्या कारण है कि मैंने एक पुत्र का वर माँगा था और यह उन्नचास पुत्र हुए हैं। इंद्र ने तब सारी कथा कही सो हे परीक्षत वे सब मारुति के नाम से प्रसिद्ध हुए और इंद्र के पार्षद बने ।






इन्द्र को ब्रम्ह हत्या लगना।। बृह्मा हत्या का स्वरूप।।श्रीमद भागवद पुराण तेरहवां अध्याय [स्कंध ६]

इन्द्र-वृत्तासुर युध्द।। वृत्तासुर वध ।।वृत्तासुर का प्राकरम।।
वृत्रासुर का अंत॥ वृत्रासुर का वध



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