कपिल मुनि जनम कथा [भाग २]

 श्रीमद भागवद पुराण चौबीसवाँ अध्याय[स्कंध ३]


कपिल देव जी का देवहूति के गर्भ से जन्म लेना


दो-देवहूति के गर्भ से लिया कपिल अवतार।

चौबीसवे अध्याय में काण कथा उचार ।।


श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी जब पति सेवा करते और भगवान का स्मरण करते देवहूति को बहुत काल व्यतीत हो गया तो भगवान कर्दम जी के वीर्य से देवहूति के गर्भ से मधु दैत्य का विनाश करने वाले भगवान ने कपिल देव के रूप में अवतार लिया उस समय आकाश में सघन बाजे बजने लगे और गंधर्व गान करने लगे तथा अप्सरायें नाच करने लगीं देवता लोग आकाश में अपने अपने विमान पर बैठ कर फूल बरसाने लगे। उस समय वृह्मा जी के साथ मारीच आदि मुनि कर्दम जी के आश्रम पर आये । तब बृह्मा जी ने कर्दम जी से इस प्रकार बचन कहे। हे मान प्रदान करने वाले प्रिय पुत्र! तुमने मेरी निष्कपट हृदय से पूजा की है, पुत्र! यह तुम्हारी नौ कन्याये सृष्टि को अनेक प्रकार से बढ़ायेंगी अतः कन्याओं को इनके रूप और गुणों के अनुसार ही आज मरीच आदि मुनियों को समर्पण करो। अर्थात् अपनी कन्याओं का विवाह करके संसार में यश को प्राप्त करो। तदंतर देवहूति से कहा हे देवहूति ! यह तुम्हारे गर्भ से विष्णु भगवान ने जन्म लिया है जो कि संसार में मुख्य शास्त्र आचार्यों में कपिल देव के नाम से विख्यात होकर तुम्हारी कीर्ति को बढ़ावेंगे। इस प्रकार कर्दम जी और देवहूति को अनेक प्रकार से उपदेश करके नारद जी सनकादिक कुमारों सहित सत्य लोक को चले गये । तत्पश्चात कर्दम जी ने ब्रह्मा जी की आज्ञानुसार का, नाम कन्या मरीच को, अनुसुइया नाम कन्या अत्रि मुनि को, श्रद्धा नाम की कन्या अंगिरा ऋषि को, विभु नाम वाली कन्या पुलस्त्य मुनि को, मति नाम वाली कन्या पुलह ऋषि को, क्रिया नाम वाली कन्या क्रतु मुनि को, ख्याति नाम वाली कन्या भृगु ऋषि को, अरुन्धती नाम वाली कन्या वशिष्ठ मुनि को, और शान्ती नाम की कन्या अथर्व ऋषि को विधिवत वेदरीति से दान करती। हे विदुर जी ! इस प्रकार कर्दम ऋषि ने अपनी उन नौ कन्याओं को इन उत्तम ऋषियों के साथ व्याह दिया अर्थात् विवाह कर दिया । पश्चात सभी ऋषि कर्दम मुनि से आज्ञा लेकर प्रसन्नता पूर्वक अपने- अपने आश्रमों को चले गये तत्पश्चात भगवान का अवतार हुआ जान कर एकांत में कपिल मुनि के पास कर्दम मुनि ने आकर प्रणाम किया और इस प्रकार बचन कहा हे भगवान ! आप अपना बचन सत्य करने को हमारे घर में अवतरे हो । आपका अवतार होने से मैं पितृ ऋण से उऋण हो गया, जिससे मेरे मनोरथ सफल हो गये । हे प्रजापतियों के पति मैं आपकी शरण हूँ और आपसे सन्यास धारण करने की आज्ञा माँगता हूँ। कर्दम जी के यह बचन सुनकर कपिल देव जी बोले है मुने ! हमने जो आपके यहाँ अवतार लेने का बचन दिया था, सो हमने अपने उसी को बचन पूरा किया। इस लोक में जो पुरुष दुष्ट बासनाओं से मुक्त होने की कामना रखते हैं, उन मुनि जनों को आत्म तत्व और संख्य जानने के हित हो हमारा यह अवतार हुआ है। सो हे मुनि ! आपकी जहाँ जाने की इच्छा हो वहाँ विचरण किजिये। अब मैं अपनी माता देवहूती को सब कर्मो को शांत करने वाली आत्मा-विद्या का उपदेश करूंगा। जिससे यह भी इस संसार सागर से मोक्ष को प्राप्त होगी। इस प्रकार कपिल देव जी द्वारा बचन कहने पर कर्दम ऋषि कपिल देव भगवान की प्रतिक्षिणा कर सन्यास धारण कर बन को चले गये। वे एक आत्मा को रक्षक मानकर फलाहार पर निभर रह कर मौन व्रत धारण करके पृथ्वी पर विचरण करने लगे। इस प्रकार अपने चित्त को कर्दम जी ने भगवान परम भक्ति योग में लगा कर संसार के बंधन से छुटकारा पाया। वे भगवान को सर्व व्यापी देखने लगे जिससे वे मोक्ष को प्राप्त हो गये।



श्रीमद भागवद पुराण [introduction]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]༺═──────────────═༻

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