राजा परीक्षित का कलयुग को अभय देना।। कलयुग के निवास स्थान।।

 

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

परीक्षित का भूमि और धर्म को आश्वासन और कलियुग के वास-स्थान का निरूपण।।भागवत (सुखसागर) की कथाएँ -- कलियुग का आगमन

श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का सत्रहवां आध्यय [स्कंध १]

दो० क्यो परीक्षित नृपति जस निग्रह कलियुग राज । 

सोइ सत्रहवे अध्याय में कथा वर्णी सुख लाज ।। १७।।





Kalyug and raja parikshit conversation

पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?

(पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations?



 सूतजी कहने लगे कि, वहाँ उस सरस्वती के तट पर राजा परीक्षित ने गौ और बैल को अनाथ की तरह पिटते हुये देखा और उसके पास खड़े हुए हाथ में लठ लिये एक शूद्र को देखा जो राजाओं का सा वेष किरीट मुकुट आदि धारण किये था। वह बैल कमलनाथ के समान श्वेत वर्ण था और डर के मारे बार-बार गोबर और मूत्र करता था और शूद्र की ताड़ना के भय से कांपता हुआ एक पाँव से चलने को घिसटता था। 
सम्पूर्ण धर्म कार्यों को संपादन करने वाली गौ को, शूद्र के पाँवों की ताड़ना से बड़ी व्यथित देखी। बछड़े से हीन उस गौ के मुख पर आँसुओं की धारा बह रही थी और वह घास चरने की इच्छा करती थी। यह दशा देखकर राजा ने बाण चढ़ा कर मेघ की सी गम्भीर वाणी से ललकार कर कहा


--हे अधर्मी तू कौन है जो मेरे होते हुए, अन्याय से इन निर्बलों को मारता है, तूने बहरूपियों की तरह राजाओं का सा स्वांग बना रखा है। तेरे कर्म तो ब्राह्मण क्षत्रियों के से नहीं हैं, तू तो नीच जाति का कोई शूद्र मालुम होता ।

तूने अपने जी में यह समझ लिय है कि गाण्डीव धनुषधारी अर्जुन और कृष्ण तो हैं ही नहीं मेरा अब कोई क्या कर सकता है ? 


इसी से तू स्वछन्द होकर गौ और बैल को मारता है । रे अधर्म ! सोच करने योग्य तू बड़ा अधर्मी है और इसी से तू वध के योग्य है।


 यह कह राजा ने बैल से पूछा कि तुम कौन हो? तुम्हारी तीन टांग कैसे टूट गई? जिस कारण से अब एक ही पाँव से चलते हो? क्या तुम कोई देवता हो, जो बैल का रूप रखकर आये हो? इन सब बातों से बड़ा असमञ्जस है। हे वृष ! पाण्डवों के भुजदण्डों से रहित इस भूतल में तू ही एक ऐसा है जिस के शोक से आंसू टपकते हैं । 

हे सुरभि नन्दन! अब तुमको इस शूद्र से डरने का कोई कारण नहीं है, अब मत डरो। हे गौ माता ! अब तो भी रूदन मत कर,जब दुष्टों का दंड देने वाला मैं मौजूद हूँ तब तुमको कुछ भय नही है, में तुम्हारा हित साधन करूंगा। हे साध्वी! जिस राजा के राज्य में प्रजा को दुष्टजन सताते हैं उस मन्दान्ध राजा को कान्ति आयु, वैभव सब शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं इसलिये इस नीच दुरा चारी और जीव हिंसा को मैं इसी समय यमालय को पहुंचाउंगा। 

हे साध्वी! तुम्हारे तो चार पांव किसने काट डाले हैं। तू अपने को निरूप करने वाले को बतला मैं उसको यथार्थ दण्ड दूंगा।

 धर्म बोला-हे श्रेष्ठ पुरुष! हम उस मनुष्य को नहीं जानते जिससे क्लेश उत्पन्न हुआ है, क्योंकि अनेक शास्त्रों के अनेक मत हैं, इससे मेरी बुद्धि मुग्ध हो रही है। कोई योगीजन तो यह कहते हैं कि आत्मा को सुख देने वाला आत्मा ही है, तथा नास्तिक लोग यह कहते हैं कि अपने ही अपने को सुख देता है, कोई सुख दुख होने का कारण देव को मानते हैं, कोई कर्म को समझते हैं और कोई स्वभाव को ही दुःख सुख का कारण मानते हैं। हे राजॠषि! कितने ही यह कहते हैं कि जो मन और वाणी से अगोचर है, जो तर्क करने में नहीं आता और जो कहने में नहीं आता है वही परमेश्वर सुख दुःख का हेतु है। इसलिये आपही अपनी बुद्धि से विचार लीजिये कि सुख दुःख का देने वाला कौन है। 


धर्म के इस प्रकार वचन को सुनकर, हे शौनक! राजा का विषाद जाता रहा और सावधान होकर कहने लगा

विष्णु भगवान का सर्वदेवमय स्वरूप।। श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २३ [स्कंध ५]














-कि हे धर्मज्ञ! तुम तो बैल का रूप धारण किये धर्म मालूम होते हो, क्योंकि तुम धर्म की चर्चा करते हो कि अधर्मी जिस स्थान को जाता है उस स्थान को अधर्म की सूचना करने वाला भी जाता है। तुमने इसलिये अधर्मी कलियुग का नाम नहीं लिया है क्योंकि उसका नाम लेने से तुम्हें पाप होता है। 

हे धर्म ! तप, शौच, दया और सत्य, ये आपके चार पाँव हैं, इनमें से तप, शौच और दया इन तीनों पाँवों को अधर्म के अंश गर्व, स्त्री-संगम और मद इन तीनों ने तोड़ डाला है, अब केवल तुम्हारा एक सत्य नाम वाला पाँव ही शेष रह गया है, इसी से तुम अपना निर्वाह करते हो सो इसको भी झूठ बोलने से बढ़ा हुआ कलियुग तोड़ना ही चाहता है । भगवान ने जिसका समग्र बोझ उतार दिया है वो यह गौरूप धारण किये हुए पृथ्वी, त्यागी हुई अभागिनी स्त्री की तरह भगवान के वियोग से आंखों में आँसू भरकर रोती है और इस बात से शोक संतप्त है कि ब्राह्मण राज-वेषधारी शूद्र मुझको भोगेंगे।


 महा रथी राजा परीक्षित ने धर्म और पृथ्वी को इस तरह समझा कर अधर्म के मूलकारण कलियुग के मारने के लिये तीब्र खड्ग उठाया। तब कलियुग राजा को मारने के लिये आता हुआ देखकर डर के मारे राजचिन्हों को त्याग कर शिर झुकाकर उसके चरण कमलों में गिर पड़ा। शरणागत वत्सल राजा परीक्षित ने कलियुग को शरण आया और चरणों पर पड़ा हुआ देख प्राणादान दे दिया और हंसकर कहा-तू शरण आया है इस लिये तुझको कुछ भय नहीं है परन्तु तू अधर्म का मित्र है इस लिये मेरे राज्य से अभी निकल जा। जिस राजा के देश में तू वास करता है उसमें लोभ, झूठ, दुरजनता, स्वधर्म, त्याग, पाप, माया, अलक्ष्मी, कलह और दम्भ यह सब तेरे अनुयायी वर्ग रहते हैं । तो यहाँ तेरा कुछ काम नहीं है यह तो ब्रह्मावतं देश है। इसमें तो धर्म और सत्य ही रहते हैं और बड़े बडे ऋषि, मुनि यहां यज्ञेश्वर भगवान की पूजा करते हैं। 

ऐसे कठोर वचनों को सुनकर कलियुग थर थर कांपने लगा और मारने के लिये हाथ में खड्ग उठाये राजा को ऐसे देखने लगा जैसे सक्षात यम् राज हाथ में दण्ड लिये खड़ा है।

 इस प्रकार परीक्षित को देखकर ये बचन बोला कि सार्वभौम ! आप समस्त भूमंडल के राजा हो, फिर आप कैसे कहते हैं कि हमारे राज्य से निकल जाओ, वह स्थान कौन सा है जहाँ कि आपका राज्य न हो? आप मुझे स्थान बता दो, मैं वहाँ रहकर अपना समय बिताऊँगा और आपकी आज्ञा पालन करूँगा। 

कलियुग की ऐसी प्रार्थना सुनकर राजा को दया आई और आज्ञा दी कि तुम जुआ, मदिरा की दुकान, वेश्या के घर, और कसाई के घर जाकर इन चार स्थानों वास करो।

 कलियुग ने फिर प्रार्थना की- कि महाराज मेरा कुटुम्ब बहुत है और यह स्थान थोड़े हैं इसमें मेरा निर्वाह न हो सकेगा तब राजा ने कहा कि अच्छा मैंने तुम्हारे को सुवर्ण भी पंचम स्थान दिया। उस सुवर्ण के साथ मिथ्या, मद, काम, रजोगुण और बैर ये पाँच स्थान भी दिए। 

अधर्म का मित्र कलियुग राजा परीक्षित की आज्ञा का पालन करता हुआ उनके बताये हुये उत्त स्थान में वास करने लगा। इसी हेतु से जो मनुष्य इस संसार में अपना वैभव बढ़ाना चाहे तो इन अधर्म रूप पाँचों स्थानों को कदापि सेवन न करें, और एक तो धर्मानुरागी, दूसरा राजा, तीसरा गुरु इन तीनों को तो कदापि इनका सेवन न करना चाहिए, क्योंकि इन गुरु राजा आदि का तो द्युतादि सेवन करने से नाश ही है। 

इस प्रकार कलियुग को दण्ड देकर परीक्षित ने बैल के जो तप, शौच और दया के तीन पांव टूट गये थे इनको बढ़ाया और पृथ्वी को भी सन्तोष दिया यानी उस समय अपने राज्य भर में राजा ने तप, दया तथा शौच की प्रवृत्ति द्वारा सर्वत्र पुर्ण उन्नति की ओर एक छत्र राज्य करने लगे।

Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.


तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य?  तंत्र- एक विज्ञान।।

जनेऊ का महत्व।।


आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।


तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।

मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।


Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?


तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।

Sukh ka arth

सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।


सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा।।


।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम सत्रहवां अध्याय समाप्तम🥀।।

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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। 


Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!

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