श्रीमद्भागवद पुराण बारहवाँ अध्याय स्कंध 8 (मोहनी रूप देख महादेव की मोह प्राप्ति)

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। 

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

-  ॐ विष्णवे नम:

 - ॐ हूं विष्णवे नम:

- ॐ आं संकर्षणाय नम:

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:

- ॐ नारायणाय नम:

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥


नवीन सुख सागर कथा 

श्रीमद्भागवद पुराण  बारहवाँ अध्याय स्कंध 8
(मोहनी रूप देख महादेव की मोह प्राप्ति)

दोहा-रूप मोहनी दर्शहि इच्छा धारि महेश।
बारह में वर्णन कियो विष्णु दीन्ह उपदेश।।


श्रीमद्भागवद पुराण  बारहवाँ अध्याय स्कंध 8 (मोहनी रूप देख महादेव की मोह प्राप्ति) दोहा-रूप मोहनी दर्शहि इच्छा धारि महेश। बारह में वर्णन कियो विष्णु दीन्ह उपदेश।।   श्री शुकदेव जी बोले-जब महादेव जी ने यह सुना कि भगवान ने मोहनी रूप धारण कर दानवों को मोह कराकर देवताओं को अमृत पान कराया है। तब वे अपने बैल पर चढ़ दर्शन के लिए भगवान के समीप पहुँचे, तब भगवान ने उमा सहित महादेव का बहुत आदर सत्कार किया।। महादेव जी भगवान का पूजन कर हंसते हुए कहने लगे----   -यहे देव ! आपही सम्पूर्ण भावी के तत्वज्ञ, आत्मा तथा सबके हेतु और ईश्वर है। मुनिजन उभय लोक के संसर्ग को त्यागकर अपने कल्याण के लिये आपही के चरणों की उपासना करते हैं और अपने रचे हुए जगत की स्थिति, जन्म और प्रलय तथा प्राणियों की चेष्टा के बन्धन और मोश्र इन सबको अपनी सर्वज्ञता से जानते हैं।   जैसे वायु सम्पूर्ण आकाश और चराचरों में प्रविष्ट है। इसी तरह आप भी सर्वत्र अन्तर्यामी रूप से प्रविष्ट है।   गुणों से रमण करने वाले आपके मैंने अनेक अवतार देखे परन्तु अब आपने जो स्त्री रूप धारण किया है उसको देखना चाहता हूँ।   हे राजन् ! जब महादेवजी ने भगवान से इस तरह प्रार्थना की तब भगवान गम्भीर भाव से हँसकर महादेवजी से बोले-   -हे शिवजी ! अमृत के घड़े को छीन कर दैत्यों के छलने के लिये मैंने स्त्री वेष धारण किया था, यदि आपको उस रूप के देखने की इच्छा है तो मैं आपको दिखलाऊंगा, वह कामियों को बहुत अभीष्ट और कामोत्पत्ति करने वाला है।   यह कहकर भगवान तो अन्तर्ध्यान हो गये और महादेव पार्वती चारों ओर आँख फाड़ फाड़ कर देखते वहां खड़े रह गये, तदनन्तर थोड़ी देर में एक बड़े ही रमणीक उपवन में एक अनुपम स्त्री देखी, वह गेंद से क्रीड़ा कर रही थी उसकी कमर पर अति सूक्ष्म पीला रेशमी दामन अपूर्व शौभा रहा दे था। उसके ऊपर नीचे तक लटकती रत्नमय कौंधनी अपूर्व शोभा दे रही थी । गेंद को पृथ्वी से उठाने में बारम्बार नीचे को नवने में और ऊपर को उठने में स्तनों के ऊपर विद्यमान हारों के भार से पद-पद ऐसा मालूम होता था, मानों कुचों के बोझ से उस कृशोदरी की क्षीण कटि लचक कर दो टुकड़े हो जायगी । दशों शाओं में लुढ़कती हुई उस गेंद को देखने के लिये अत्यन्त सफलता से उद्विग्न होकर जब अपने चंचल नेत्रों को घुमाती थी तो ऐसा दीखता था कि मानों चारो ओर तारे छिटकर हैं, अपने मनोहर बांये हाथ से खिसलते हुए दामन को और खुली हुई वेणी को संभालती और दाहिने हाथ से गेंद को उछालती हुई अद्भुत शेभा से संसार को मोहित कर रही थी।   उस स्त्री के कटाक्षों से विद्ध होकर टकटकी लगाकर देखते महादेवजी को अपने तन मन की सुध न रही। हाथ के धक्के से जब गेंद कुछ दूर चली गई तब उसके लेने के लिए वह स्त्री उसके पीछे-पीछे दौड़ी।   उस समय दौड़ने के वेग से पवन ने महादेवजी के देखते-देखते कांची सहित उसको अति सूक्ष्म साड़ी उड़ादी इस प्रकार से अति मनोहर दर्शनीय और चंचल कटाक्ष वाली स्त्री को देखकर महादेवजी का मन सब छोड़ उसी में जा लगा। तब काम से विव्हल होकर लज्जा को त्याग पार्वती के देखते महादेवजी उसके पीछे दौड़े। वह भी उनको आता देख वस्त्र के गिर जाने से बड़ी लज्जित हुई और कांपती हुई वृक्षों की आड में छिपती और मन्द-मन्द हँसती हुई एक क्षण भी वहां खडी नहीं हुई किन्तु आगे को चलदी। तब महादेवजी भी अपने आप को विसार उसी के पीछे हो लिए जैसे स्मरविहवल हाथी हथिनी के पीछे दौड़ता है। और बड़े वेग से दौडकर उसे पकड़ ली, स्त्री उनके इस काम को निवारण करती थी तब तो महादेवजी ने उसकी वेणी को पकड़ दोनों हाथों से खींच उसे अपनी छाती से लगा लिया। तब पृथु नितम्ब वाली वह भगवद्रचित माया महादेव के आलिङ्गन से जैसे तैसे अपने को छुड़ा कर भागी।   महादेव भी विष्णु भगवान के उसी रूप के पीछे-पीछे दौड़ उस समय ऐसा मालुम होता था मानो बेरी कामदेव ने आज अपना बदला ही लिया है। हे राजन् ! जहां-जहां महादेवजी का वीर्य गिरा वही चाँदी पारा और सोने की खानें हो गई। वीर्य स्खलित होने पर महादेव जी ने अपने आपको जड़ हुआ देखा, तब वे उस खेद से निवृत्त होकर तदनन्तर भगवान अपने उसी पूर्व शरीर को धारण कर प्रसन्न हो बोले ।   हे महादेव ! यह बड़े सौभाग्य को बात है कि यद्यपि मेरे स्त्री रूप ने आपको छल लिया था तथापि आप फिर आत्मनिष्ठ हो गये । आपको सिवाय ऐसा कौन है जो मेरी माया के फन्दे से निकल सके।   हे राजन! भगवान से इस तरह सत्कार किये जाने पर शिवजी अपने गण सहित उनसे आज्ञा माँग अपने स्थान को चले गये, महादेव जी प्रसन्न होकर यह बात पार्वती जी से बोले- हे भवानी ! आपने भगवान की प्रबलमाया को देखा कि मैं भी उनको माया में मुग्ध होगया फिर जो उस माया पराधीन वशीभूत हैं वे मोहित हो जाय तो उसमें वया आश्चर्य है ।



श्री शुकदेव जी बोले-जब महादेव जी ने यह सुना कि भगवान ने मोहनी रूप धारण कर दानवों को मोह कराकर देवताओं को अमृत पान कराया है। तब वे अपने बैल पर चढ़ दर्शन के लिए भगवान के समीप पहुँचे, तब भगवान ने उमा सहित महादेव का बहुत आदर सत्कार किया।। महादेव जी भगवान का पूजन कर हंसते हुए कहने लगे---- 
---हे देव ! आपही सम्पूर्ण भावी के तत्वज्ञ, आत्मा तथा सबके हेतु और ईश्वर है। मुनिजन उभय लोक के संसर्ग को त्यागकर अपने कल्याण के लिये आपही के चरणों की उपासना करते हैं और अपने रचे हुए जगत की स्थिति, जन्म और प्रलय तथा प्राणियों की चेष्टा के बन्धन और मोश्र इन सबको अपनी सर्वज्ञता से जानते हैं। जैसे वायु सम्पूर्ण आकाश और चराचरों में प्रविष्ट है। इसी तरह आप भी सर्वत्र अन्तर्यामी रूप से प्रविष्ट है। 
गुणों से रमण करने वाले आपके मैंने अनेक अवतार देखे परन्तु अब आपने जो स्त्री रूप धारण किया है उसको देखना चाहता हूँ। 

हे राजन् ! जब महादेवजी ने भगवान से इस तरह प्रार्थना की तब भगवान गम्भीर भाव से हँसकर महादेवजी से बोले- 

-हे शिवजी ! अमृत के घड़े को छीन कर दैत्यों के छलने के लिये मैंने स्त्री वेष धारण किया था, यदि आपको उस रूप के देखने की इच्छा है तो मैं आपको दिखलाऊंगा, वह कामियों को बहुत अभीष्ट और कामोत्पत्ति करने वाला है। 

यह कहकर भगवान तो अन्तर्ध्यान हो गये और महादेव पार्वती चारों ओर आँख फाड़ फाड़ कर देखते वहां खड़े रह गये, तदनन्तर थोड़ी देर में एक बड़े ही रमणीक उपवन में एक अनुपम स्त्री देखी, वह गेंद से क्रीड़ा कर रही थी उसकी कमर पर अति सूक्ष्म पीला रेशमी दामन अपूर्व शौभा रहा दे था। उसके ऊपर नीचे तक लटकती रत्नमय कौंधनी अपूर्व शोभा दे रही थी । गेंद को पृथ्वी से उठाने में बारम्बार नीचे को नवने में और ऊपर को उठने में स्तनों के ऊपर विद्यमान हारों के भार से पद-पद ऐसा मालूम होता था, मानों कुचों के बोझ से उस कृशोदरी की क्षीण कटि लचक कर दो टुकड़े हो जायगी । दशों शाओं में लुढ़कती हुई उस गेंद को देखने के लिये अत्यन्त सफलता से उद्विग्न होकर जब अपने चंचल नेत्रों को घुमाती थी तो ऐसा दीखता था कि मानों चारो ओर तारे छिटकर हैं, अपने मनोहर बांये हाथ से खिसलते हुए दामन को और खुली हुई वेणी को संभालती और दाहिने हाथ से गेंद को उछालती हुई अद्भुत शेभा से संसार को मोहित कर रही थी। 
उस स्त्री के कटाक्षों से विद्ध होकर टकटकी लगाकर देखते महादेवजी को अपने तन मन की सुध न रही। हाथ के धक्के से जब गेंद कुछ दूर चली गई तब उसके लेने के लिए वह स्त्री उसके पीछे-पीछे दौड़ी। 

उस समय दौड़ने के वेग से पवन ने महादेवजी के देखते-देखते कांची सहित उसको अति सूक्ष्म साड़ी उड़ादी इस प्रकार से अति मनोहर दर्शनीय और चंचल कटाक्ष वाली स्त्री को देखकर महादेवजी का मन सब छोड़ उसी में जा लगा।

तब काम से विव्हल होकर लज्जा को त्याग पार्वती के देखते महादेवजी उसके पीछे दौड़े। वह भी उनको आता देख वस्त्र के गिर जाने से बड़ी लज्जित हुई और कांपती हुई वृक्षों की आड में छिपती और मन्द-मन्द हँसती हुई एक क्षण भी वहां खडी नहीं हुई किन्तु आगे को चलदी। तब महादेवजी भी अपने आप को विसार उसी के पीछे हो लिए जैसे स्मरविहवल हाथी हथिनी के पीछे दौड़ता है। और बड़े वेग से दौडकर उसे पकड़ ली, स्त्री उनके इस काम को निवारण करती थी तब तो महादेवजी ने उसकी वेणी को पकड़ दोनों हाथों से खींच उसे अपनी छाती से लगा लिया। तब पृथु नितम्ब वाली वह भगवद्रचित माया महादेव के आलिङ्गन से जैसे तैसे अपने को छुड़ा कर भागी।


महादेव भी विष्णु भगवान के उसी रूप के पीछे-पीछे दौड़ उस समय ऐसा मालुम होता था मानो बेरी कामदेव ने आज अपना बदला ही लिया है। हे राजन् ! जहां-जहां महादेवजी का वीर्य गिरा वही चाँदी पारा और सोने की खानें हो गई। वीर्य स्खलित होने पर महादेव जी ने अपने आपको जड़ हुआ देखा, तब वे उस खेद से निवृत्त होकर तदनन्तर भगवान अपने उसी पूर्व शरीर को धारण कर प्रसन्न हो बोले । 

हे महादेव ! यह बड़े सौभाग्य को बात है कि यद्यपि मेरे स्त्री रूप ने आपको छल लिया था तथापि आप फिर आत्मनिष्ठ हो गये । आपको सिवाय ऐसा कौन है जो मेरी माया के फन्दे से निकल सके। 






हे राजन! भगवान से इस तरह सत्कार किये जाने पर शिवजी अपने गण सहित उनसे आज्ञा माँग अपने स्थान को चले गये, महादेव जी प्रसन्न होकर यह बात पार्वती जी से बोले- हे भवानी ! आपने भगवान की प्रबलमाया को देखा कि मैं भी उनको माया में मुग्ध होगया फिर जो उस माया पराधीन वशीभूत हैं वे मोहित हो जाय तो उसमें वया आश्चर्य है । 

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।

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_人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_

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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।


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