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महाभारत समाप्ति के उपरान्त श्रीकृष्ण का द्वारिका गमन।।

श्रीमदभागवदपुराण महात्मय अध्याय ११ [सकन्ध २] निजजनों से स्तुति किये हुये श्रीकृष्ण भगवान द्वारका पहुचे और अत्यन्त प्रसन्न भये दोहा-द्वारावति जस आयकर, सुखी भये यदुराय।। सो ग्यारह वें अध्यायमें कथा कही हर्षाय॥११॥ सूतजी कहने लगे-हे ऋषिश्वर! वे श्रीकृष्ण भगवान ने अच्छी तरह समृद्धि से बढ़े हुए अपने द्वारका के देशों को प्राप्त होकर अपने पाँच जन्य शंख को बजाया माना इन्हें की सब पीड़ा को हरते हैं। प्रजा का श्रीकृष्ण के प्रती समर्पण  श्रीकृष्ण स्तुति फिर जगत के भयको दूर करने वाले उस शंख के शब्द को सुनकर अपने स्वामी के दर्शन की लालसा वाली सम्पूर्ण प्रजा सन्मुख आई। प्रसन्न मुख वाली होकर हर्ष से गद्ग गद वाणी सहित ऐसे बोलने लगी कि जैसे बालक अपने पिता से बोलते हैं। प्रजा के लोग स्तुति करने लगे कि- हे नाथ ! ब्रह्म और सनकादि ऋषियों से वंदित आपके चरणार विन्दों को हम सदा प्रणाम करते हैं। हे विश्वके पालक! तुम हमारा पालन करो तुम्ही माता सुहृद तथा तुम ही पिता हो, तुमही परम गुरु और परम देव हो, हम बड़े सनाथ होगये। हे कमल नयन! जिस समय आप हम को त्याग हस्तिनापुर व मथुरा को पधारते हो तब हमको एक क्षण तुम्हारे बिन

देवऋषि नारद का जीवन सार।। (नारद अवतार)

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का छटवाँ आध्यय [स्कंध १] दोहा-कहयो व्यास सों जन्म को नारद जैसो हाल ।। सोई षट अध्याय में वर्णी कथा रसाल।। श्री नारद मुनि द्वारा मोक्ष लक्षण वर्णन।। श्रीमद भागवद पुराण चौदहवाँ अध्याय  [स्कंध७] नारद जी द्वारा विशेष धर्म कथन (गृहस्थाश्रम धर्म)  नारद जी द्वारा सिद्धि अवस्था तथा सन्यास आश्रम धर्म वर्णन।।  श्रीमद भागवद पुराण* बारहवां अध्याय * [स्कंध७] ( चारों आश्रमों के धर्म का वर्णन )  नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।। देवऋषि नारद का जीवन सार।।देवर्षि नारद मुनि अपने पूर्व जन्म जी कथा वेद व्यास जी को कहना।। सूत जी बोले कि ऋषीश्वर! वेदव्यास भगवान इस प्रकार मुनि के जन्म व कर्मो को सुनकर बोले,

धुन्धकरी के मृत्यु और मोक्ष की कथा।।

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श्रीमद भागवद पुराण* बारहवां अध्याय * [स्कंध७] ( चारों आश्रमों के धर्म का वर्णन )  नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।। सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान ।। महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १ प्रहलाद द्वारा बालकों को उपदेश।। भक्त प्रह्लाद की कथा भाग २।। प्रह्लाद को आत्म ज्ञान।।नारद के कहे उपदेश का वृतान्त।। प्रह्लाद कथा भाग ३। हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग  ४ श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का पांचवा आध्यय [मंगला चरण] (वैश्याओं द्वारा धुन्धकारी को मारना और श्री मदभागवत सुनने से मोक्ष पाना) श्री सूतजी बोले कि पिता के मर जाने पर धुन्धकारी ने अपनी माता को दुःख दिया और कहा कि या तो धन बता दे कि कहाँ रक्खा है, नहीं तो लात से मार डालूंगा। धुन्धकारी के इस वचन को सुनकर पुत्र के दुःख से दुखित होकर धुन्धली कुए में गिर कर मर गई । गोकर्ण तीर्थ यात्रा को चल दिया, क्योंकि गोकर्ण के न तो कोई सुख है न दुःख है, न बैरी है, न बन्धु है। धुन्धकारी उस घर में पाँच वेश्याओं के साथ रहने लगा और उनका पालन पोषण, महाकुत्सित कर

धुन्दकरी और गौकर्ण के जनम की कथा [मंगला चरण]

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श्रीमदभागवदपुराण चौथा अध्याय मंगला चरण ( श्रीकृष्ण का धुन्धुकारि मोक्ष वर्णन) दोहा-पीड़ित हो घुधकरि सों आत्म देह दुख पाय । गये विपिन गोकर्ण जिमि सो चतुर्थ अध्याय ॥४॥ भागवद कथा में पितम्बरधारी श्रीकृष्ण भगवान का आगमन।।  सूजी बोले कि इसके उपरान्त भगवत भक्तों के मन में अलौकिक भक्ति देख अपने लोक को छोड़कर भक्त वत्सल भगवान पीताम्बर पहिरे, कटि में श्रुध घटिका और सिर पर मोर मुकुट तथा कानों में मकराकृत कुण्डल धारण किये, कोटि कामदेव के समान शोभायमान, केशरिया चन्दनसे चित, परमानन्द और चैतन्य स्वरूप, मधुर मुरली धारण किये अपने भक्तजनों के निर्मल अन्तःकरण में प्रगट हुए। उस समय उस सभा में जितने मनुष्य और देवता बैठे थे, वे सब शरीर, घर और आत्मा को भूल गये उन लोगों को इस तन्मय अवस्था को देखकर नारद जी बोले-हे ऋषियों! आज मैंने इस सभा में सप्ताह श्रवण की यह अलौकिक महिमा देखी। अहो! जिसको सुनकर मढ, शट, पशु, पक्षी सभा पाप रहित हो गये, तब अन्य महात्मा, पुरुषों की तो बात क्या है? श्रीमद भागवद पुराण* बारहवां अध्याय * [स्कंध७] ( चारों आश्रमों के धर्म का वर्णन )  नरसिंह भगवान का अंतर्

सनकादिक मुनियों द्वारा भागवद ज्ञान एवं आरम्भ।।

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  नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।। सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान ।। महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १ प्रहलाद द्वारा बालकों को उपदेश।। भक्त प्रह्लाद की कथा भाग २।। प्रह्लाद को आत्म ज्ञान।।नारद के कहे उपदेश का वृतान्त।। प्रह्लाद कथा भाग ३। हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग  ४ प्रह्लाद द्वारा भगवान का स्तवन। महाभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ५।। श्रीमद भागवद पुराण  सातवां अध्याय [स्कंध ७] ( नारद के कहे उपदेश का वृतान्त )  सनकादिक मुनियों द्वारा भागवद ज्ञान एवं आरम्भ।। श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय मंगला चरण ( भक्ति का कष्ठ दूर होना) भागवद यज्ञ का स्थान,ऋषियों मुनियों का आगमन नारदजी बोले-हे ऋषियों! आप कृपा करके उस स्थान को बताइये जहाँ यज्ञ किया जाय। यह सुनकर सनत्कुमार बोले-कि हे नारद जी ! हरिद्वार के पास जो आनंद नाम का गङ्गाजी का तट है, उस स्थान में आपको ज्ञानयज्ञ करना उचित है और भक्ति से भी कहदो कि वह भी अपने ज्ञान, वैराग्य नामक दोनों पुत्रों को संग लेकर वहाँ आजावे। सूतजी बोले कि, ऐसा

सनकादिक मुनियों द्वारा भगवद कथा का महात्मय

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श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [मंगला चरण] (सनत्कुमार नारद संवाद)   दोहा- गीता जान विराग सुन नारद चेत न आय।। ता मुनि ने कहि भागवत चेत हेत समाय ।।१।। श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का द्वितीय आध्यय [मंगला चरण] वेद - वेदांत से भी ज्ञान भक्ति को चेत ना आया, तब सनत्कुमार जी द्वारा बतलाया ग्या श्रीमद भगवद जी का भेद।। नारदजी बोले-हे बाले। तुम वृथा खेद करती हो, श्री कृष्ण भगवान के चरण कमल का स्मरण करो, तुम्हारा दुःख जाता रहेगा। जिन श्रीकृष्णचन्द्रजी ने कौरवों के महा संकट से द्रोपदी की रक्षा की और शंखचूड़ आदि दुष्टों से गोपियों को बचाया, वह श्रीकृष्ण कहीं चले नहीं गये। हे भक्ति । तुम तो भगवान को प्राणों से भी अधिक प्यारी हो, तुम्हारे बुलाये हुये भगवान तो नीचजनों के घरों में भी जाते हैं । सतयुग आदि तीनों युगों में तो ज्ञान और वैराग्य मुक्ति के साधन थे। इन्हीं (२) दोनों से महात्माओं का उद्धार होता था, परन्तु कलियुग में केवल भक्ति हो ब्रह्मासायुज्य को देने वाली है। एक समय अवसर पाय तुमने हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की थी कि मुझको क्या आज्ञा है? तब कृष्ण भगवान ने

कलियुग में भक्ति ही केवल एकमात्र साधन। मंगला चरण

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ मंगला चरण कस्तूरी तिलकं ललाट पटले।   वक्षस्थले कौस्तुभं, नासाग्रेवरमौक्तिकं करतले वेणुकरेकंकणम्।  सर्वागे हरिचन्दनं सुललितं कंठेच मुक्तावली।  गोपस्त्री परिवेष्टितो बिजयते गोपाल चूडामणिः।  फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बह्तावतंसंप्रियं,  श्रीवत्सांक मुदारकौस्तुभं पीताम्बरं सुन्दरम् ।  गोपीनांनयनोत्पलाचित तनु गोगो पसंघावृतं, गोविन्द कलवेणुवादनपरं दिव्यांग भूषं भजे ।। दो: भाखयो पद्मपुराण जस नारद भक्ति मिलाप ।  पट अध्यायन सो कह्यो, श्रीदेवऋषि नारद आप। एक समय नैमिष क्षेत्र में सुख पूर्वक बैठे बुद्धिमान श्री सूत जी को प्रणामकर के भगवदकथा रुपी अमृत रस लेने में कुशल शौनक जी  ने यह वचन कहा-  --अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करने के अर्थ करोड़ों सूर्य के समान कान्ति वाले सूत