Posts

Showing posts with the label Bhagwan

भारत के विभिन्न जगहों में भगवान का विस्तृत पूजन विधि [भाग २]

  श्रीमद भागवद पुराण उन्नीसवाँ अध्याय * स्कंध५ भारत वर्ष का श्रेष्टत्व वर्णन दो: हो भारत देश महान है, कहुँ सकल प्रस्तार। या उन्नाव अध्याय में, वर्णित कियौ विचार।। श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षित! इसी प्रकार किम्पुरुष खंड में श्री रामचंद्र जी विराजमान हैं । उनके चरणों की सेवा हनुमान जी करते हैं और अनेक प्रकार से गुणों का बखान करके पूजा किया करते हैं। इसी प्रकार भारत खंड में नर नारायण भगवान देवता स्वरूप बद्रिकाश्रम में विराजमान हैं, और नारद जी इन भगवान की उपासना करते हैं । श्री शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं-हे राजन ! कितने एक विद्वान इस जंबू द्वीप के आठ उपखंड भी कहते हैं। उनका मत है कि जब राजा सगर के साठ हजार पुत्र यज्ञ के घोड़े को ढूंढ़ने निकले तो उन्होंने इस पृथ्वी को चारों ओर से खोदा था, सो उसके कारण यह आठ उपद्वीप हुये जिनके नाम १-स्वर्णप्रस्थ, २-चन्द्रप्रस्थ, ३-आवर्तन, ४-रमणक, ५-मंद हरिण, ६-पांचजन्य, ७-सिंहल, ८-लंका ये हैं। Also read @ https://shrimadbhagwadmahapuran.blogspot.com/2020/08/blog-post_24.html

किस जगह, किस रूप में विराजमान हैं, श्री हरि व उनके पूजन के मंत्र।

श्रीमद भागवद पुराण* अट्ठारहवां अध्याय * [स्कंध ५] (वर्ष वर्णन) दोहा: शेष वर्ष वर्णन कियो, सेवक जो कहलाय। अष्टम दस अध्याय में, कीरति कही बनाय।। भद्राश्व खण्ड श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! उस भद्राश्व खंड में भद्रश्राव नाम, धर्म का पुत्र उसी खण्ड का स्वामी है। वहाँ पर उसके सेवक जन भगवान हय ग्रीव की मूर्ति की आराधना मन लगा कर इस मंत्र-ओं नमों भगबते धर्मात्याम विशोधनय नमः। का जप करते हैं। प्रलय काल में तमोगुण रूप दैत्य जब वेद को चुरा कर ले गया था, तब हयग्रीव रूप अवतार धारण कर भगवान उन वेदों को पाताल से लाये और फिर उन्होंने ब्रह्मा जो को दिये सो हम उन भगवान को बारम्बार नमस्कार करते हैं। वहाँ प्रहलाद जी उस खण्ड के पुरुषों के साथ अनन्य भक्ति से निरन्तर भगवान विष्णु के नृसिंह रूप की उपासना करते हैं। नृसिंह उपासना का मंत्र यह है-ओं नमो भगवते नरसिंहाय नमस्ते जस्तेजसे आविराविभर्व बज्रनख, बज्रदंष्ट्र, कर्माश्यान रंधय-रंधय तमो ग्रस-ग्रस ओं स्वाहा अभयम भयात्मनि भूयिष्ठा औंक्ष् रौं इसी मंत्र का जाप करते हैं । औंक्ष् रौं यह इनका बीज मंत्र है । यह इतना बड़ा नृसिंह जी का मंत्र है इसे प्रहलाद