जानिए भागवद पुराण में ब्रह्मांड से जुड़े रहस्य जिन्हें, विज्ञान को खोजने में वर्षों लग गये।
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६
विज्ञान आज भी कितने यत्न करके इस ब्रह्मांड की दूरियाँ को जानने का प्रयत्न कर रहा है। किन्तु जब आप किसी धरम ग्रंथ में, पूरे ब्रह्माण्ड का, एवं जो अभी तक आपने जाना भी नही, उनका पूर्ण विस्तार, पूरी शुद्धि के साथ लिखा पाते हैं, तो आश्रयाचकित हो जाते है।
श्रीमद भगवद पुराण के इस अध्याय में भी आप ब्रह्मांड का विस्तृत व्यखयान पाते है।
आपके प्रेम के लिये धन्यवाद।
ॐ॥अध्याय आरंभ॥ॐ
नवीन सुख सागर
श्रीमद भागवद पुराण बाईसवां अध्याय [स्कंध ५](चंद्र तथा शुक्र आदि नक्षत्रों एवं ग्रहों का वर्णन)
जानिए भागवद पुराण में ब्रह्मांड से जुड़े रहस्य जिन्हें, विज्ञान को खोजने में वर्षों लग गये।
दो०चन्द्र शुक्रइत्यादि के कहते गति स्थान।
बाईसवें अध्याय में, कियो सकल बखान॥
श्री शुकदेव जी के यह बचन सुनकर श्री परीक्षत राजा बोले हे वृह्मन्! आपने कहा कि सूर्य सुमेरु और ध्रुव की परिक्रमा करके सब राशियों के सामने बिना प्रदक्षिणा किये सुमेरु को वाम करके चलते हैं। सो यह बात कुछ विरुद्ध प्रतीत जान पड़ती है, सो आप इसका निरूपण कीजिये।
तब श्री शुकदेव मुनि बोले-हे परीक्षित! यदि सूर्य सीधी गति से चलते हों तो, सब समय एक राशि पर ही एक नक्षत्र पर ही, सूर्य का रहना हो सकता है, राश्यन्त नक्षात्रांतर नहीं हो सकता है। सो जब मेष से वृष से मिथुन पर सूर्य आते हैं, सो यही सूर्य के विपरीति चलने का प्रमाण है। मेषादिक राशियों के नाम ही महीनों के नाम हैं, यह सब मास संवत्सर के अंग हैं। सब महीने अलग-अलग प्रकार के होते हैं। जैसे चंद्रमा की गति से दो पक्ष का महीना होता है, सूर्य की गति के हिसाब से सूर्य के सिवा दो नक्षत्र भोग करने के समय को एक मास कहते हैं। यह एक महिना पितरों का एक दिन के बराबर होता है । जितने समय में सूर्य दो राशियों को भोग लेवे वह समय ऋतु संवत्सर का अवयव रूप है। जितने समय में सूर्य आकाश के अर्ध भाग का परिभ्रमण करता है, उतने समय को अयन कहते हैं। जितने समय में संपूर्ण आकाश मंडल में सूर्य परिभ्रमण करे उतने समय को संवत्सर कहते है । वर्ष में सूर्य को तीन प्रकार की गति के भेद से संवत्सर के भेद से परिवत्स के इडावत्सर, अनुवत्सर, वत्सर, ये सब भेद होते हैं। प्रति पदा की संक्रांति होवे, तो वहाँ से सौरमास और चंद्रमास के साथ ही दोनों का प्रारंभ जानना चाहिये।
इससे सौर मास गणना से छः दिन बढ़ता है तथा चन्द्रमा गणना में छ: दिन घट जाते है । इस प्रकार बारह दिन का अन्तर पड़ जाता है। जिसके कारण सौरमास और चन्द मास आगे पीछे हो जाते हैं। पाँच वर्ष में दो अधिक मास पड़ जाने से छटे वर्ष बराबर हो जाता है। पुनः प्रतिपदा के दिन संक्राति होने से छटा वर्ष सवत्सर संज्ञक होता है। एवं पहला वर्ष संवत्सर, दूसरा परिवर, तीसरा इडावत्सर, चौथा अनुवत्सर, पाँचवा वत्सर कहा जाता है।
इन्हीं वर्षों के नाम क्रम से १-सौर, २ चंद्र, ३ नक्षत्र, ४-बार्हस्पत्य, ५-सावन, कहे जाते हैं। सौर वर्ष के दिन ३६५ तथा चान्द वर्ष के दिन ३४५ और नक्षत्र के दिन ३२४ व बार्हस्पत्य वर्ष के दिन ३८० और सावन वर्ष के दिन ३६० होते हैं । इसी प्रकार सूर्य की किरणों से लाख योजन ऊपर चंद्रमा प्रतीत होता है । एक वर्ष में सूर्य बारह राशियों को भोगता है, उनको चन्द्रमा दो पक्ष में ही भोग लेता है। जितना सूर्य एक माह में भोगता है चन्द्रमा उतने को सवा दो दिन में ही भोग लेता है। अतः कभी-कभी चन्द्रमा अति शीघ्रगामी होने से सूर्य से आगे हो जाता है। चन्द्रमा की बढ़ती कला की राशियों को शुक्ल पक्ष एवं घटती कलाओं की रात्री को कृष्ण पक्ष कहते हैं। इन दोनों पक्षों में चन्द्रमा साढ साढ घड़ी में एक एक नक्षत्र को भोगता है। चन्द्रमा से तीन लाख योजन ऊपर अशिवन्यादि नक्षत्र है। वे अभित्रित अट्ठाई सौ नक्षत्र मेरू की दाहिनी प्रदक्षिणा किया करते हैं। इन नक्षत्रों से दो लाख योजन उपर शुक्र गृह है, यह शुक्र गृह सूर्य के आगे पीछे व साथ में अपनी शीघ्र, मंद, समान गति से विशेष करके सूर्य के समान वेगवान है, यह सब को सदैव शुभ फल देने वाला है। विशेष करके यह वर्षा को रोकने वाले ग्रह को शाँन्त कर देता है शुक्र गृह से सौ लाख योजन ऊपर बुध ग्रह है।
जब यह सूर्य से अलग दूसरी राशि पर हो जाता है तब उसका अतिचार हो जाने से अनावृष्टि आदि भय होने की सूचना होती है। बुध से दो लाख योजन ऊपर मंगल गृह हैं, जो वक्री न हो तो डेढ़-डेढ़ माह में एक-एक राशि को जिस भोगता हुआ बारह राशियों को भोगता है। यह गृह अशुभ कहा है जो प्रायः प्राणियों को दुखः देता है। मंगल गृह से दो लाख योजन दूर बृहस्पति गृह है यदि यह वक्री न हो तो एक राशि को एक वर्ष तक भोगते हैं। वृहस्पति गृह से दो लाख योजन पर शनि गृह है, यह तीस माह में एक राशि को भोगते है अतः सब राशियों को तीस वर्ष में भोगते हैं। शनि गृह से ग्यारह लाख योजन दूर सप्त ऋषि हैं। जो ध्रुव स्थान की परिक्रमा करते है ।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम बाईसवां अध्याय समाप्तम🥀।।
༺═──────────────═༻
༺═──────────────═༻
_人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_
Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com
Comments
Post a Comment