सुख सागर कथा।। समुद्र मंथन भाग ४।।मोहिनी अवतार।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
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नवीन सुख सागर कथा
श्रीमद भागवद पुराण नवां अध्याय स्कंध ८
भगवान का मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों से अमृत कलश लेना।।
नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।
सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।
महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १
हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ४
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यह सोचकर वह दैत्य उस मोहिनी रूप धारी प्रभु के पास जाकर नम्रतापूर्वक प्रार्थना भरे स्वरों में बोले- हे सुंदरी! हम दैत्यों और देवों का अमृत के लिए आपस में झगड़ा हो रहा है, हम आपको अपना पंच नियुक्त कर रहे हैं, आप जिस प्रकार भी फैसला लेगी हमें मजूर होगा। आप अपने हिसाब से यह अमृत बांटकर हमारा झगड़ा खत्म कर दें।
मोहिनी रूपधारी परमेश्वर दैत्यों की यह बात सुनकर चुपचाप आगे चले दिए, तो समस्त दैत्य हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए बोले--हे सुन्दरी! हम सदैव आपका गुणगान करते रहेंगे, अतएव आप हमारी विनती मान लो हमें निराश मत करो।दैत्यों की इस प्रकार याचना भरी विनती मोहिनी रूपधारी प्रभु बोले----मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?
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सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।
सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !
Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)
--- हे दैत्यों! मुझ पर इतना विश्वास प्रदर्शन कर अपना पंच बनाना उचित नहीं है। क्योंकि आप अपनी भलाई सोचने की अपने मन में अच्छी तरह विचाकर ही मुझे अपना पंच बनाइए। क्योंकि यदि तुम मुझे अपना पंच बनाओगे तो मैं तो तुम्हें ही नहीं देवताओं को भी अमृत पिलाऊंगी क्योंकि अमृत पाने में तुम दोनों ने बराबर मेहनत की है। इस कारण इस अमृत पर केवल तुम्हारा ही नहीं देवताओं का भी पूर्ण अधिकार है।मोहिनी रूपधारी प्रभु के मुख से यह वचन सुनकर समस्त दैत्य एक स्वर में बोले ----– हे सुंदरी! हमने आपको अपना पंच बनाया है. इसलिए आपको जो भी उचित लगे वह करें, हमें आपकी हर बात मंजूर है।दैत्यों की यह बात सुनकर मोहिनी रूप प्रभु बोले----
--- यह अमृत पवित्र है। अतएव आप सब स्नान करने के पश्चात् इसका पान करें।मोहिनी रूप प्रभु के मुख से यह सब सुनते ही देवता व दैत्य तुरंत स्नान करने चले गए और फिर स्नान करने के पश्चात् सब सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनकर पवित्र बनकर कुशा के आसन पर बैठ गए। फिर मोहिनी रूपधारी प्रभु अपने हाथ में उस पवित्र अमृत का कलश लेकर बोले------हे असुरों! मैं सर्वप्रथम यह अमृत देवताओं को पिलाऊंगी फिर के पश्चात् तुमको पिलाऊंगी।
मोहिनी रूप प्रभु की बात सुनकर दैत्य एक ही स्वर में बोले - हे सुंदरी! हमने आपको अपना पंच किया है आप जो भी करेंगी, हमें मंजूर है। हे राजन! इसके बाद मोहिनी रूपधारी प्रभु ने देवताओं को अमृत पिलाना शुरू कर दिया। समस्त देव अमृत पी चुके और केवल सूर्य एवं चंद्रमा बाकी रह गए। तब दैत्य राहु देवता का रूप धारण कर उनके बीच में चुपचाप बैठ गया।सूर्य को अमृत पिलाकर भगवान् जैसे ही राहु को अमृत पिलाने लगे; तो सूर्य एवं चंद्रमा एकदम चिल्लाकर बोले- हे प्रभु! इस दैत्य राहु को यह अमृत मत पिलाइए।"
हे राजन्! प्रभु ने जैसे ही सूर्य एवं चंद्रमा बात सुनी तो उन्होंने राहु का अमृत पिलाना बंद कर शेष जो अमृत था वह सारा अमृत चंद्रमा को पिला दिया तथा तुरंत ही अपने सुदर्शन चक्र से राहु के सिर को धड़ से अलग कर दिया।
लेकिन अमृत की वजह से उस राक्षस के दो राक्षस हो गए अर्थात् सिर का राहु धड़ का केतु हो गया।तब प्रभु बोले- तुमने देवों में बैठकर अमृतपान किया है, इसलिए तुम्हारी गिनती आज से राक्षसों में नहीं नवग्रहों में होगी है। उस दिन से राहु और केतु की गणना नवग्रहों में होती है तथा तभी से राहु और केतु सूर्य एवं चंद्रमा से शत्रुता रखते हैं। लेकिन सदैव सुदर्शन चक्र उनकी सहायता करता है।
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