गज और ग्राह की कथा - भाग ३ (सुख सागर कथा)गजेन्द्र का स्वर्ग जाना।।


नवीन सुख सागर कथा श्रीमद्भागवद पुराण चौथा अध्याय स्कंध ८ (गजेन्द्र का स्वर्ग जाना)   दो० अब चतुर्थ में कहयौ ग्राह भयो गंधर्व। गज हर पार्षद जस भयो सो भाष्यों है सब ||   गज और ग्राह की कथा, गज और ग्राह की कथा सुनाई ,गज और ग्राह की कथा सुनाइए, गज ग्राह की कथा, गज और ग्राह की कहानी, गज और ग्राह की कहानी सुनाइए, गज और ग्राह की लड़ाई की कथा, गज ग्राह कथा   श्री शुकदेव जी बोले- हे राजन ! जब भगवान ने गज का उद्धार किया उस समय देवता, ऋषि, गन्धर्व, ब्रह्मा महादेवादि भगवान की स्तुति करके फूलों की वर्षा करने लगे, उस ग्राह ने उसी समय देवल ऋषि के शाप से छूटकर परम आश्चर्य युक्त रूप धारण किया।   यह पहिले हुहू नाम गन्धर्व था। ईश्वर की कृपा से वह लोगों के देखते-देखते पाप से छूटकर गन्धर्व लोक को चला गया, और ये हाथी भी भगवान के स्पर्श से अज्ञात बन्धन से छूटकर पीताम्बर और चार भुजा धारण करके भगवत्स्वरूप को प्राप्त हो गया।   यह गजराज पूर्वजन्म में द्रविड़ प्रान्तस्थ पांडय देश का इन्द्रद्युम्न नाम राजा था और निरन्तर विष्णु भगवान के व्रत में परायण था। सो एक समय यह राजा मलयाचल में आश्रम बनाकर तप कर रहा था। एक दिन वहां शिष्यों को सङ्ग लिये हुए ऋषि अगस्त्य जो अकस्मात् चले आये। राजा का नियम था कि जब तक पूजा करे तब तक बोले नहीं इस नियम से राजा ने अगस्त्यजी को प्रणामादिक कुछ न किया। यह देखकर ऋषि ने क्रोधित होकर राजा को यह शाप दिया----   ----तू ब्राह्मण की अवज्ञा करता है मुझे आया देखकर भी मत्तगज की तरह बैठा रहा, उठा नहीं इससे तू हाथी होकर अन्धतामित्र में प्रविष्ट हो जावेगा ।   हे राजन् ! इस तरह अगस्त्यजी शाप देकर शिष्यों को साथ ले चले गये और दैववश इन्द्रद्युम्न ने भी आत्मा की स्मृति को नाश करने वाली हाथी की योनी पाई।   भगवान इसी गजेन्द्र को विपद से छुड़ाकर उसे पार्षद बनाय अपने साथ ले गरुड़ पर सवार हो वैकुण्ठ धाम चले गये।   हे राजन ! कल्याण चाहने वाले जो द्विजादिक प्रातःकाल उठकर इस गजेन्द्र मोक्ष को पाठ करेंगे उनके दुःस्वप्न नष्ट हो जांयगे। सब देवताओं के समान हरि भगवान ने प्रसन्न होकर गजराज से यह कहा था हे भक्तराज ! जो जन मुझको, इस सरोवर को, इस पर्वत की कन्दरा को, बन को, वेत वांस वेणु, गुल्म, कल्पवृक्ष इन पर्वत के शिखरों को, श्वेतद्वीप को प्रिय धाम क्षीर सागर को, श्रीवत्स, कौस्तुभ माला, कामोद की गदा, सुदर्शन चक्र, पाँचजन्य शंख, पक्षिराज गरुड़, लक्ष्मी, ब्रह्मा नारद ऋषि, महादेव, प्रह्लाद, मत्स्य, कर्म, बाराह आदि अवतार, सूर्य, सोम, अग्नि ओंकार सत्य, अव्यक्त, गौ. ब्राम्हण, श्राव्यय, धर्म, दाक्षायणी, धर्मपत्नी कश्यपजी की कन्यायें, गंगा सरस्वती, नन्दा, कालिन्दी नदी, ऐरावत हाथी, ध्रुव सप्तऋषि और नल युधिष्ठिरादि पुण्यलोक मनुष्य आदि इन सबको रात्रि के पिछले पहर में उठकर यत्न पूर्वक एकाग्रचित्त से स्मरण करेंगे वे सब पापों से छूट जायँगे।   भगवान ऋषीकेश यह कहकर अपने शंख को बजाय गरुड़ पर चढ़ देवताओं को प्रसन्न करते हुए निज लोक को चले गये ।   ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।   ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_

नवीन सुख सागर कथा

श्रीमद्भागवद पुराण चौथा अध्याय स्कंध ८
(गजेन्द्र का स्वर्ग जाना) 


दो० अब चतुर्थ में कहयौ ग्राह भयो गंधर्व।
गज हर पार्षद जस भयो सो भाष्यों है सब || 


गज और ग्राह की कथा, गज और ग्राह की कथा सुनाई ,गज और ग्राह की कथा सुनाइए, गज ग्राह की कथा, गज और ग्राह की कहानी, गज और ग्राह की कहानी सुनाइए, गज और ग्राह की लड़ाई की कथा, गज ग्राह कथा 








नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।

श्री शुकदेव जी बोले- हे राजन ! जब भगवान ने गज का उद्धार किया उस समय देवता, ऋषि, गन्धर्व, ब्रह्मा महादेवादि भगवान की स्तुति करके फूलों की वर्षा करने लगे, उस ग्राह ने उसी समय देवल ऋषि के शाप से छूटकर परम आश्चर्य युक्त रूप धारण किया। 

यह पहिले हुहू नाम गन्धर्व था। ईश्वर की कृपा से वह लोगों के देखते-देखते पाप से छूटकर गन्धर्व लोक को चला गया, और ये हाथी भी भगवान के स्पर्श से अज्ञात बन्धन से छूटकर पीताम्बर और चार भुजा धारण करके भगवत्स्वरूप को प्राप्त हो गया। 

गजराज के पूर्वजन्म की कथा।।

यह गजराज पूर्वजन्म में द्रविड़ प्रान्तस्थ पांडय देश का इन्द्रद्युम्न नाम राजा था और निरन्तर विष्णु भगवान के व्रत में परायण था। सो एक समय यह राजा मलयाचल में आश्रम बनाकर तप कर रहा था। एक दिन वहां शिष्यों को सङ्ग लिये हुए ऋषि अगस्त्य जो अकस्मात् चले आये। राजा का नियम था कि जब तक पूजा करे तब तक बोले नहीं इस नियम से राजा ने अगस्त्यजी को प्रणामादिक कुछ न किया।
यह देखकर ऋषि ने क्रोधित होकर राजा को यह शाप दिया----


----तू ब्राह्मण की अवज्ञा करता है मुझे आया देखकर भी मत्तगज की तरह बैठा रहा, उठा नहीं इससे तू हाथी होकर अन्धतामित्र में प्रविष्ट हो जावेगा ।


हे राजन् ! इस तरह अगस्त्यजी शाप देकर शिष्यों को साथ ले चले गये और दैववश इन्द्रद्युम्न ने भी आत्मा की स्मृति को नाश करने वाली हाथी की योनी पाई। 


भगवान इसी गजेन्द्र को विपद से छुड़ाकर उसे पार्षद बनाय अपने साथ ले गरुड़ पर सवार हो वैकुण्ठ धाम चले गये। 
हे राजन ! कल्याण चाहने वाले जो द्विजादिक प्रातःकाल उठकर इस गजेन्द्र मोक्ष को पाठ करेंगे उनके दुःस्वप्न नष्ट हो जांयगे। सब देवताओं के समान हरि भगवान ने प्रसन्न होकर गजराज से यह कहा था हे भक्तराज ! जो जन मुझको, इस सरोवर को, इस पर्वत की कन्दरा को, बन को, वेत
वांस वेणु, गुल्म, कल्पवृक्ष इन पर्वत के शिखरों को, श्वेतद्वीप को प्रिय धाम क्षीर सागर को, श्रीवत्स, कौस्तुभ माला, कामोद की गदा, सुदर्शन चक्र, पाँचजन्य शंख, पक्षिराज गरुड़, लक्ष्मी, ब्रह्मा नारद ऋषि, महादेव, प्रह्लाद, मत्स्य, कर्म, बाराह आदि अवतार, सूर्य, सोम, अग्नि ओंकार सत्य, अव्यक्त, गौ. ब्राम्हण, श्राव्यय, धर्म, दाक्षायणी, धर्मपत्नी कश्यपजी की कन्यायें, गंगा सरस्वती, नन्दा, कालिन्दी नदी, ऐरावत हाथी, ध्रुव सप्तऋषि और नल युधिष्ठिरादि पुण्यलोक मनुष्य आदि इन सबको रात्रि के पिछले
पहर में उठकर यत्न पूर्वक एकाग्रचित्त से स्मरण करेंगे वे सब पापों से छूट जायँगे। 

भगवान ऋषीकेश यह कहकर अपने शंख को बजाय गरुड़ पर चढ़ देवताओं को प्रसन्न करते हुए निज लोक को चले गये । 
The questions of narada and their answers.

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।। 

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