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विदुर, धृतराष्ट्र, गान्धारी का हिमालय गमन से मोक्ष प्राप्ति की कथा।।

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-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का तेरहवॉं आध्यय [स्कंध १] विदुर, धृतराष्ट्र, गान्धारी का हिमालय गमन से मोक्ष प्राप्ति की कथा।।विदुर कौन थे? सूतजी कहने लगे-विदुर जी तीर्थ यात्रा में विचरते हुए मैत्रैय जी से मिल कर श्री कृष्ण चन्द्र की गति को जान के हस्तिनापुर में आये।  धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स

सनकादिक मुनियों द्वारा भागवद ज्ञान एवं आरम्भ।।

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  नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।। सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान ।। महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १ प्रहलाद द्वारा बालकों को उपदेश।। भक्त प्रह्लाद की कथा भाग २।। प्रह्लाद को आत्म ज्ञान।।नारद के कहे उपदेश का वृतान्त।। प्रह्लाद कथा भाग ३। हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग  ४ प्रह्लाद द्वारा भगवान का स्तवन। महाभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ५।। श्रीमद भागवद पुराण  सातवां अध्याय [स्कंध ७] ( नारद के कहे उपदेश का वृतान्त )  सनकादिक मुनियों द्वारा भागवद ज्ञान एवं आरम्भ।। श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय मंगला चरण ( भक्ति का कष्ठ दूर होना) भागवद यज्ञ का स्थान,ऋषियों मुनियों का आगमन नारदजी बोले-हे ऋषियों! आप कृपा करके उस स्थान को बताइये जहाँ यज्ञ किया जाय। यह सुनकर सनत्कुमार बोले-कि हे नारद जी ! हरिद्वार के पास जो आनंद नाम का गङ्गाजी का तट है, उस स्थान में आपको ज्ञानयज्ञ करना उचित है और भक्ति से भी कहदो कि वह भी अपने ज्ञान, वैराग्य नामक दोनों पुत्रों को संग लेकर वहाँ आजावे। सूतजी बोले कि, ऐसा

सनकादिक मुनियों द्वारा भगवद कथा का महात्मय

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श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [मंगला चरण] (सनत्कुमार नारद संवाद)   दोहा- गीता जान विराग सुन नारद चेत न आय।। ता मुनि ने कहि भागवत चेत हेत समाय ।।१।। श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का द्वितीय आध्यय [मंगला चरण] वेद - वेदांत से भी ज्ञान भक्ति को चेत ना आया, तब सनत्कुमार जी द्वारा बतलाया ग्या श्रीमद भगवद जी का भेद।। नारदजी बोले-हे बाले। तुम वृथा खेद करती हो, श्री कृष्ण भगवान के चरण कमल का स्मरण करो, तुम्हारा दुःख जाता रहेगा। जिन श्रीकृष्णचन्द्रजी ने कौरवों के महा संकट से द्रोपदी की रक्षा की और शंखचूड़ आदि दुष्टों से गोपियों को बचाया, वह श्रीकृष्ण कहीं चले नहीं गये। हे भक्ति । तुम तो भगवान को प्राणों से भी अधिक प्यारी हो, तुम्हारे बुलाये हुये भगवान तो नीचजनों के घरों में भी जाते हैं । सतयुग आदि तीनों युगों में तो ज्ञान और वैराग्य मुक्ति के साधन थे। इन्हीं (२) दोनों से महात्माओं का उद्धार होता था, परन्तु कलियुग में केवल भक्ति हो ब्रह्मासायुज्य को देने वाली है। एक समय अवसर पाय तुमने हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की थी कि मुझको क्या आज्ञा है? तब कृष्ण भगवान ने

कलियुग में भक्ति ही केवल एकमात्र साधन। मंगला चरण

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ मंगला चरण कस्तूरी तिलकं ललाट पटले।   वक्षस्थले कौस्तुभं, नासाग्रेवरमौक्तिकं करतले वेणुकरेकंकणम्।  सर्वागे हरिचन्दनं सुललितं कंठेच मुक्तावली।  गोपस्त्री परिवेष्टितो बिजयते गोपाल चूडामणिः।  फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बह्तावतंसंप्रियं,  श्रीवत्सांक मुदारकौस्तुभं पीताम्बरं सुन्दरम् ।  गोपीनांनयनोत्पलाचित तनु गोगो पसंघावृतं, गोविन्द कलवेणुवादनपरं दिव्यांग भूषं भजे ।। दो: भाखयो पद्मपुराण जस नारद भक्ति मिलाप ।  पट अध्यायन सो कह्यो, श्रीदेवऋषि नारद आप। एक समय नैमिष क्षेत्र में सुख पूर्वक बैठे बुद्धिमान श्री सूत जी को प्रणामकर के भगवदकथा रुपी अमृत रस लेने में कुशल शौनक जी  ने यह वचन कहा-  --अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करने के अर्थ करोड़ों सूर्य के समान कान्ति वाले सूत