श्रीकृष्ण भगवान ने पाण्डवों की रक्षा।।अर्जुन कृष्णा प्रेम।। श्रीकृष्ण स्तुति।।यदुकुल का नाश।।
पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?
(पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations?
विष्णु भगवान का सर्वदेवमय स्वरूप।। श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २३ [स्कंध ५]
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का पन्द्रहवां आध्यय [स्कंध १]श्रीकृष्ण भगवान ने पाण्डवों की रक्षा।।अर्जुन कृष्णा प्रेम।। श्रीकृष्ण स्तुति।। एवं यदुकुल का नाश।।
दो:कलि आवन सुन जभ गये धर्मराज सुरधाम ।
पंचदशमी अध्याय सो भाखो कथ ललाम ||१५||
अर्जुन से श्रीकृष्ण का गोलोक गमन सुन, कलियुग का प्रवेश हुआ जान परिक्षत को राज्य भार दे राजा युधिष्ठिर स्वर्ग को प्राप्त हुए।
कैसे की श्रीकृष्ण भगवान ने पाण्डवों की रक्षा?
गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।
महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम
क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.
श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।
Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.
सूजी कहते है कि---
श्रीकृष्ण हैं सखा जिसके, ऐसा जो अर्जुन है वह कृष्ण बिरह से व्याकुल गदगद वाणी से बड़े भाई राजा युधिष्ठिर से ये बचन बोला।
हे नृपेन्द्र ! मेरा एक समय वह था कि बड़े-बड़े महापाल मेरे नाम से थरथरा उठते थे और अनेक प्रकार के मणि माणिक चरणों में रखकर अनेक भांति सत्कार करते थे, मैं वही अर्जुन हूँ और यह मेरा वही गाण्डीव है, वही घोड़े हैं, परन्तु एक केवल कृष्ण के न होने से सब ऐसे निष्फल और सार हीन हो गये हैं जैसे भस्म में किया हुआ हवन, कपट पुरुष को उपदेश किया ज्ञान, अथवा कपटी पुरुष से प्राप्त हुआ धन और ऊसर अर्थात बाजार में बोया हुआ बीज मणिहीन सपं निष्फल हो जाते हैं।यादव कुल समाप्त
हे बन्धुवर! आपने जो द्वारिका पुरी का श्रेम कुशल पूछा तो वे सब लोग, ब्राह्मण के श्राप से मूढ़ हुए, कि, सब लोग वारुणी मदिरा पी पाकर ऐसे मदोन्मत्त हो गये कि किसी को देहानुसन्धान नहीं रहा अपने पराये को भूल गये। और फिर ऐसी मुक्कामुक्की हुई कि आपस में सब लड़ मरे, केवल चार पांच यादव बच रहे हो तो बचे हों।मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?
यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।।
सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।
सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !
Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)
हे राजन्! भगवान परमेश्वर की लीला है कि कभी आपस में परस्पर नाश करा देती है और कभी आपस में पालन कराती है। हे भार्त ! जैसे लड़कर बड़े बड़े जीव, छोटे छोटे जीवों को खा लेते हैं और सबल निर्बलों को खा लेते है और जो बड़े बलवान समान होते है बे सब आप में एक को एक खा जाते हैं। तैसे इस समुद्र रूपी यदुकुल में बड़े बड़े सबल यादवों से छोटे छोटे निर्बल यादवों का विध्वंस करा के प्रभु ने भूमि का भार उतार दिया।
इस प्रकार अर्जुन के मुख से श्री कृष्ण का गोलोक गमन और यदुवंश का संहार सुनकर युधिष्ठिर ने चित्त स्थिर करके स्वर्ग को जाने का मन्सूबा ठान लिया। अर्जुन को उन बातों कुन्ती भी खड़ी खड़ी सुन रही थी और उक्त रीति से अपने भाई भतीजों के कुल का सर्वनाश और श्रीकृष्ण के परमधाम चले जाने का समाचार श्रवण करके ऐसी व्यथित हुई कि सब संसार श्री माया को छोड़ कर और भगवान के चरण कमलों में सबल चित्त से लवलीन हो कर उसने भी एक दो बार लम्बी स्वांस लेकर हा! हा ! ऐसा कह प्राणों का परित्याग कर दिया, और बुद्धि, प्रवर राजा युधिष्ठिर ने लोगों को लोभ, झूठ, कुटिलता और हिंसा आदि धर्म के चक्र में फंसा हुआ देखकर विचार लिया कि अब मेरे नगर, राज्य, घर और शरीर में कलियुग का बास होता जाता है इससे वे भीसंसार के त्यागने को उद्यत हुए। तब अपने पोते परीक्षित को ममता, बुद्धि, शक्ति ओर धैर्य आदि गुण में अपने समान समझाकर उसका राज्य तिलक कर दिया, और अनिरुद्ध के पुत्र बज्रभान को मथुरा तथा शूरसेन को देशों का राज्य देकर स्वयं ग्रह त्याग सन्यास ग्रहण कर लिया और अपने वस्त्र कंकणावि अलंकारों को त्याकर अहंकार को तिलांजलि दे सम्पूर्ण बन्धनों से रहित हो गये।। सम्पूर्ण इन्द्रियों को रोककर मन में ले गये और मनको प्राण में दिया और प्राणवायु को अपानवायु में लगाकर उत्सर्ग आदि व्यापार सहित उस अपान को अपने अधिष्ठाता मृत्यु में लगाकर यह देह मृत्यु की हैं ऐसा निश्चय किया। पंचभूत शरीर का त्रिगुण में ओर त्रिगुण को अविद्या में लीन करके अविद्या को जीव में लीन कर दी फिर जीव अर्थात आत्मा को अव्यय ब्रह्म में लगा दिया इस तरह परब्रह्म में लीन होकर, न किसी की ओर देखते, और बधिर की तरह न किसी की बात सुनते वह उत्तर दिशा की ओर चल दिये, जहाँ से कोई ब्रह्मज्ञानी फिरकर वापस नहीं आया है। इसी तरह भीम अर्जुन आदि युधिष्ठिर के छोटे भाईयों को जब यह निश्चय हो गया कि इस संसार के सब मनुष्यों को अधर्म के मित्र कलियुग ने स्पर्श कर लिया है तब वे भी अपने भाई के पीछे पीछे चले गये तो भगवान की गाढ़ी भक्ति से अपने कल्मषों को धोकर आत्मा को निर्मलकर ये युधिष्ठिर के भाई उस गतिको प्राप्त हुए जिसको पाप रहित मनुष्य पाते हैं।आत्मज्ञानी विदुर भी प्रभास क्षेत्र में इस अनित्य देहको त्याग करके श्रीकृष्ण के चरणकमलों में चित्त लगा कर अपने स्थानको चले गये अर्थात् यमराज के अधिकार को प्राप्त हो गयी।जब द्रौपदी ने देखा कि मेरे पति मेरी ओर देखते भी नहीं हैं तब उसने भी भगवान वासुदेव का एकाग्रचित्त से ध्यानकर प्राणों का परित्याग कर दिया।जो मनुष्य भगवान के प्यारे पांडवों के, अति पवित्र स्वर्ग:गमन का वृत्तान्न सुनते हैं उनके सब अमङ्गल दूर हो जाते हैं।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम पन्द्रहवां अध्याय समाप्तम🥀।।
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