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श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध ७] (हिरण्यकश्यपु द्वारा भ्रातृ एवं पुत्रगण का शोकापनोदन)

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नवीन सुख सागर श्रीमद भागवद पुराण  दूसरा अध्याय [स्कंध ७] (हिरण्यकश्यपु द्वारा भ्रातृ एवं पुत्रगण का शोकापनोदन) दो०-निजजन के कारण भयो, हिरण्यकश्यपु मलीन। सो दूजे अध्याय में, विष्णु हन्यो मतहीन |   नारद जी बोले- हे राजन! बाराह रूप भगवान ने जब हिरण्याक्ष को मार दिया तो हिरण्यकश्यपु ने रोष में प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं विष्णु के गले को काट कर सके रुधिर से अपने प्रिय भाई को तर्पण ना कर लूंगा तब तक मेरे मन की व्यथा दूर न होगी। उसने अपने अनुचरों को आज्ञा दी जब तक मैं विष्णु के नाश करने का यत्न करुं तब तक तुम पृथ्वी पर जाकर जप, तप, यज्ञ, वेदाध्यन, ब्रत, दान, करने वाले ब्राम्हण और क्षत्रियों का नाश करो। हे राजन् ! इस प्रकार अपने स्वामी की आज्ञा से दैत्यगण प्रजा का विनाश करने लगे । जब हिरण्यकश्यपु के अनु चरों ने जब संसार में उपद्रव मचाया तो देवता लोग यज्ञ का भाग न मिलने से स्वर्ग को त्याग छिपकर पृथ्वी पर विचरने लगे। इधर अपने भाई हिरण्याक्ष का प्रेत कर्म कर हिरण्यकश्यपु घर आया तो कुटम्बोजनों को विलाप करते देख उन्हें अनेक प्रकार से समझाने लगा। हे भौजाई तथा पुत्रो