सुख सागर 21 अध्याय [स्कंध८] ( विष्णु द्वारा बलि का बन्धन )वामन अवतार भाग 5
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
नवीन सुख सागर
श्रीमद भागवद पुराण इक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध८]
( विष्णु द्वारा बलि का बन्धन )वामन अवतार भाग 5
दोहा- इक इस में पग तृतीय हित हरि बांधे बलिराज।
बलि को महिमा देन हित वामन कोन्हें काज ।।
वामन अवतार, राजा बलि के वंशज कौन थे, भगवान विष्णु का वामन अवतार, वामन अवतार कब हुआ था, राजा बलि वामन अवतार, राजा बलि का जीवन परिचय, वामन अवतार स्तुति, राजा बलि
हरि पूजन
श्री शुकदेव-हे राजन् ! जब वामन जी का चरण सत्यलोक में पहुँचा तब ब्रह्माजी और मारीच्यदि तथा सनन्दादि योगिगण, वेद, यम नियम, इतिहास, शिक्षा और वेदाङ्ग, पुराण, संहिता आदि उस चरण का पूजन करने लगे। तदुपरान्त ब्रह्मा उस उम्मत चरण को जल से धोकर स्तुति करने लगे।
हे नरेन्द्र ! ब्रह्माजी के उस कमण्डलु का जल वामनजी के चरण धोने से पवित्र होकर पापनाशनी गंगा बन गई जो उस भगवान की स्वच्छ कीर्तिरूप नदी की तरह आकाश से गिरकर तीनों लोकों की पवित्र करती हैं। तब भगवान ने अपने उस वृहद्विराट रूप को छिपा लिया और वामनरूप हो गए तदनन्तर रीछों के राजा जामवन्त ने तीनों लोकों में ये डौंड़ी फेरदी कि आजसे बलि राजा का हुक्म गया और वामनजी का हुक्म प्रवृत्त हुआ । जब असुरों ने देखा कि सभी भूमि हर ली तब क्रोध कर कहने लगे----
"अरे ! यह तो मायावी विष्णु है। देवताओं का कार्य सिद्ध करने निमित्त ब्राम्हणों का वेष धरकर आया है। इस ब्रम्हचारीरूप शत्रु ने माँगकर हमारे स्वामी का सर्वस्व हर लिया है। हमारे स्वामी की प्रतिज्ञा झूठी नहीं हो सकती। इससे इसको वध करना हमारा धर्म है, इस हेतु से वे सब हाथों में त्रिशूल, परसु आदि शस्त्रों को लेकर क्रोध कर-कर राजा बलि की बिना इच्छा वामनजी को मारने के लिये उद्यत हुए।
तब भगवान के पार्षदों ने अपने शस्त्र उठाकर उन्हें रोक लिया शुक्राचार्य के शाप को यादकर राजा बलि ने भी रोक दिया और अपने सेना नायकों से बोला-हे विप्रचित्त ! हे राहो ! निमे ! मेरी बात को सुन हट जाओ युद्ध मत करो, जो काल पहिले तुम्हारे अनुकूल और देवताओं के प्रतिकूल था, वही अब तुम्हारे लिये विपरीत है। हरि के इन अनुचरों को तुमने कितनी बार जीता है परन्तु आज दैवगति से बढ़े हुए ये तुमको जीतकर गरज रहे हैं। जब हम पर देव प्रसन्न होगा तो हम इनको जीतेंगे, इससे जब तक हमारे अनुकूल काल न आवै तब तक लड़ना छोड़ दो।"
अपने स्वामी की बात सुन दैत्य लोग विष्णु के पार्षदों से पिटकर रसातल को चले गये।
आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।
तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।
मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।
Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?
तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।
सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा।।
Shree ram ki kavita, kahani (chaand ko hai ram se shikayat)
तदनन्तर भगवान की इच्छा देख कर गरुड़ ने यज्ञ में सोमाभिषेक के दिन बलि को वरुणपाश से बाँध लिया तब तो सर्वत्र बड़ा हाहाकार होने लगा | वामन भगवान बलि से बोले----
" अरे असुर! तेने मुझे तीन पेंड़ पृथ्वी देने की प्रतिज्ञा की थी, दो से तो मैंने सब पृथ्वी आदि नाप लिए अब बता तीसरी पेंड़ में कहाँ नापू, और क्या नापू ? जहां तक सूर्य की किरणें पड़ती हैं, जहाँ तक तारागण सहित चन्द्रमा चमकता है और जहां तक मेघ जल बरसाते हैं, वहां तक यह सब तुम्हारी पृथ्वी मैंने एक पाँव से नाप ली ओर शरीर से दिशा और आकाश नाप लिए, दूसरे चरण से लोक नाप लिया है यदि तू तीसरा पेंड न देगा तो नरक में पड़ेगा। इससे तू उसी नरक में थोड़े वर्ष निवास कर जिसका तेरे गुरु ने अनुमोदन किया था ।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।
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_人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_
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श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।
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