श्रीमद भगवद पुराण सोलहवाँ अध्याय [स्कंध ८] पयोव्रत कथन : सब यज्ञ, सब ब्रतों और सब तपों का सार।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
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नवीन सुख सागर
श्रीमद भगवद पुराण सोलहवाँ अध्याय [स्कंध ८]
( कश्यप द्वारा पयोव्रत कथन )पयोव्रत कथन : सब यज्ञ, सब ब्रतों और सब तपों का सार।
दो०-सोलह में निज सुतन लखि अदिति महा दुख पाय।
जैसे कश्यप कह गये निज समाधि विसराय।।
पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?
(पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations?
श्री शुकदेवजी बोले- हे राजन् ! इस तरह जब दैत्य ने स्वर्ग छीन लिया तब देवगण बड़े दुःखी हुए और उनकी माता अदिति को घोर क्लेश हुआ। समाधि त्यागकर एक दिन कश्यपजी अदिति के आश्रम में पधारे, यथान्याय स्वागत होने पर आसन पर बैठकर दीनवदना अपनी पत्नी से बोले- हे भद्रे! संसार में ब्राह्मणों का कोई अमंगल तो नहीं हुआ है ? मृत्युलोकों में कुछ विपदा तो उपस्थित नहीं हुई है ? घर में तो कुशल है ? धर्म अर्थ, काम में तो कुछ न्यूनता नहीं है ? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि तू कुटुम्ब के कामों में लगी रहो हो और अतिथि बिना पूजा व अयुत्थान बिना चला गया हो क्योंकि जिन घरों में अतिथियों का जल से भी सत्कार नहीं होता है, वे घर श्रृंगाल के भिटों के समान होते हैं। हे प्रिय ! तेरे पुत्रादिक तो कुशल से हैं ? क्योंकि तेरे लक्षणों से मुझको तेरा मन स्वस्थ नहीं दीखता है।
अदिति बोली-हे ब्राम्हण, धर्म और सब जनों में मङ्गल है। सदैव आपके चरणों में ध्यान रखकर अग्नि, अतिथि, भृत्य, भिक्षुक आदि जो जिस कामना से आते हैं सबकी इच्छा को पूर्ण करती रहती हूँ। सत्व, रज, तम, इन तीनों गुणों की सेवा करने वाली यह प्रजा आप ही के मन और शरीर से उत्पन्न हुई है।
सो हे प्रभो ! आप इस सब असुरादि प्रजा में समान दृष्टि रखते हो तथापि भगवान भी अपने भक्तका विशेष कर पक्षपात करते हैं। मैं आपकी सदा अनुचरी रही हूँ इससे मेरे क्लेश को दूर कीजिये। सौतेले पुत्र असुरों ने मेरे पुत्रों की राजलक्ष्मी और घर बार सब छीन लिया है आप उनकी रक्षा कीजिये । शत्रुओं ने मुझको निकाल दिया है उससे मैं दुःख के महासागर में डूब रही हूँ।
नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।
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कश्यपजी हँसकर कहने लगे प्रिये, तुम जनार्दन परम पुरुष भगवान का ध्यान करो, वे तेरे मनोरथों को पूर्ण करेंगे ।अदिति बोली- हे ब्रह्मन् ! मैं परमेश्वर की उपासना किस रीति से करू, आप मुझे भगवान के स्तवन करने की वह विधि बतलाइये जिससे वे शीघ्र ही पुत्रों सहित मुझ दुःखिया पर प्रसन्न हो जाय।
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तब कश्यपजी बोले कि एक समय पुत्र की चाहना से यही प्रश्न मैंने ब्रह्माजी से किया था तब जो भगवान के प्रसन्न करने वाला ब्रत उन्होंने मुझे बतलाया था वही मैं बतलाता हूँ---
"फागुन सुदी में प्रतिपदा से द्वादशी पर्यन्त बारह दिवस तक ये ब्रत होता है, इस व्रत का पयोव्रत नाम है इसमें अत्यन्त भक्तिपूर्वक भगवान का पूजन करे। शूकर की खोदी हुई मिट्टी मिल सके तो मावस के दिन लाकर सब शरीर पर मलकर नदी में स्नान करे और इस मन्त्र को उच्चारण कर सब शरीर में उस मृत्तिका से लगाकर स्नान करे।
हे धरणी! रसातल में जाकर जल के ऊपर स्थापना की इच्छा से आदि बाराहजी ने तुमको रसातल से निकाला है तुम मेरे पापों को दूर कीजिये मैं आपको नमस्कार करती हूँ।"
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इस तरह आन्हिक कर्म से निवृत्त हो एकाग्रचित्त से मूर्ति, सूर्य, जल, अग्नि, व गुरु इन अधिष्ठानों में से कहीं भगवान का पूजन करने को प्रवृत्त होवे। पूजा करते समय निम्नलिखिति मन्त्रों का उच्चारण करे। हे महा पुरुष भगवान ! आप सर्व घट घट निवासी बासुदेव सर्वद्रष्टा हैं, आप अव्यक्त सूक्ष्म और प्रधान पुरुष हैं और चौबीस तत्वों के ज्ञाता और सांख्यवेत्ता हो। आपको नमस्कार है।
हे शिवरूप, हे शक्ति धर ! आपको नमस्कार है आप सम्पूर्ण विद्या और समस्त प्राणियों के पति हैं। इन मन्त्रों से भगवान का आवाहन करके गन्ध माला चढ़ाकर दूध से स्नान करने फिर (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः) मन्त्र से पूजन करे, और जो वैभव विद्यमान हो तो दूध में पके हुए चावलों में मिष्ठान्न मिलाकर खीर का भोग घर और द्वादशाक्षर मन्त्र से गुड़ और घृत मिलाकर हवन करे। इस प्रसाद को किसी भक्तजन को देवे स्वयं लेवे फिर आचमन कराय रोली अक्षत से पूजन कर साम्बूल निवेदन करे । उक्त मन्त्र को एक सौ आठ बार जपै अनेक प्रकार से प्रभु की स्तुति कर फिर प्रदक्षिणा करके अत्यन्त प्रसन्नता से साष्टाम दण्डवत् प्रणाम करे तदनन्तर प्रसाद को मस्तक पर चढ़ाकर देव को विसर्जन कर और दो से अधिक ब्राह्मणों को यथेच्छ खीर का भोजन करावे, तब शेष प्रसाद को कुटुम्ब सहित भोजन करै, रात्रि में ब्रम्हचर्य से रहें फिर प्रातःकाल स्नान कर पवित्र हो भगवान को दूध से स्नान कराकर पूजन करे। इसी तरह प्रतिदिन इस पयोव्रत को बारह दिन करें, शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से त्रयोदशी पर्यन्त का यह ब्रत सब यज्ञ, सब ब्रतों और सब तपों का सार है, इसी से ईश्वर प्रसन्न होता है । इसी से तू यत्न पूर्वक श्रद्धाभक्ति से इस व्रत को कर भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर तेरी मनोभिलाषा पूर्ण करेंगे ।"
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।
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_人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_
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