सुख सागर अध्याय १५ स्कंध ८ ( बलि द्वारा स्वर्ग विजय )

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
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नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पुराण  पन्द्रहवां अध्याय स्कंध ८ 
( बलि द्वारा स्वर्ग विजय )

दो०-अब बलि को वर्णन कथा भाखी नो अध्याय |

यज्ञ विश्वजित एक में बलि को बैभव लाय ||१५| 








नवीनसुखसागर श्रीमद भागवद पुराण  पन्द्रहवां अध्याय स्कंध ८  ( बलि द्वारा स्वर्ग विजय ) दो०-अब बलि को वर्णन कथा भाखी नो अध्याय | यज्ञ विश्वजित एक में बलि को बैभव लाय ||१५|   परीक्षित पूछने लगे- महाराज! भगवान ने बलि से संसार के स्वामी होकर भी कृपण की तरह तीन पेंड़ पृथ्वो क्यों मांगी और मिल जाने पर भी क्यों बांध लिया?   शुकदेवजी बोले- देवासुर संग्राम में जब इन्द्र ने राजा बलि की स्त्री और प्राण दोनों हर लिये ये तब शुक्राचार्य ने प्रसन्न होकर बलि से विधि पूर्वक विश्वजित यज्ञ कराय और उसका अभिषेक कराया तदनन्तर अग्नि से सुवर्ण से मढ़ा एक रथ निकला। जिसमें इन्द्र के घोड़ों के समान घोड़े जुते हुए थे, और सिंह के चिन्ह से अङ्कित ध्वजा थी तथा दिव्य धनुष, तरकस और कवच निकले, प्रहलाद ने एक माला दी जिसके फूल कभी कुम्हलाते न थे और शुक्राचार्य ने एक शंख दिया।   इस तरह ब्राह्मणों ने युद्ध की सामग्री तैयार करदी और फिर स्वस्तिवाचन किया। तब बलि उन ब्राह्मणों को नमस्कार कर प्रहलाद की आज्ञा लेकर भृगु के दिये हुए दिव्य रथ पर चढ़ा, माला पहरली, कवच धारणकर लिया खङ्ग, धनुष और तरकस बांध लिया । तदनन्तर राक्षसों की सेना को साथ ले बलि ने इन्द्रपुरी पर चढ़ाई की। देवपुरी को चारों ओर से घेरकर बलि शुक्राचार्य के दिये हुए शंख को जोर से बजाकर इन्द्र के महल में रहने वाली स्त्रियों को भय उत्पन्न करने लगा।   तब इन्द्र सब देवताओं को साथ ले गुरु वृहस्पतिजी के पास जा यह बोला-   "हे भगवन् ! हमारे पुराने बैरी बलि ने बड़ा उद्योग किया है। इस तरह से तो ये मुख से सब जगत को पान कर जांयगे और जिव्हा से दशों दिशाओं को चाट जांयगे।   बृहस्पतिजी बोले- "हे इन्द्र ! मैं तेरे इस बैरी की उन्नति के कारण को जानता हूँ। भृगु ने अपने शिष्य का ये तेज बढ़ाया है। भगवान के सिवाय अन्य योद्धा कोई भी आज इसके सामने खड़ा न हो सकेगा। स्वर्ग को छोड़ छोड़ गुप्त स्थानों में जा छिपो और काल की प्रतीक्षा कर। ब्राह्मणों ही के बल से इसका यह बल, और पराक्रम बढ़ा है जब यह ब्राह्मणों का अपमान करेगा तब बान्धवों सहित नष्ट हो जायगा।   गुरु की इन बातों को सुनकर सब देवगण स्वर्ग को छोड़कर भाग गये। देवताओं के भाग जाने पर बलि ने इन्द्रपुरी में अपना राज्य कर लिया और त्रिलोकी पर शासन करने लगे । भृगुओं ने विश्व विजयी अपने शिष्य से सौ अश्वमेध यज्ञ कराये। तब यज्ञों के प्रभाव से भुवन विख्यात बलि अपनी कीर्ति को दिशाओं में विस्तार करता ऐसा शोभित हुआ जैसे चन्द्रमा प्रकाश करता है।   ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अष्टम अध्याय समाप्तम🥀।।   ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_



परीक्षित पूछने लगे- महाराज! भगवान ने बलि से संसार के स्वामी होकर भी कृपण की तरह तीन पेंड़ पृथ्वो क्यों मांगी और मिल जाने पर भी क्यों बांध लिया? 


शुकदेवजी बोले- देवासुर संग्राम में जब इन्द्र ने राजा बलि की स्त्री और प्राण दोनों हर लिये ये तब शुक्राचार्य ने प्रसन्न होकर बलि से विधि पूर्वक विश्वजित यज्ञ कराय और उसका अभिषेक कराया तदनन्तर अग्नि से सुवर्ण से मढ़ा एक रथ निकला। जिसमें इन्द्र के घोड़ों के समान घोड़े जुते हुए थे, और सिंह के चिन्ह से अङ्कित ध्वजा थी तथा दिव्य धनुष, तरकस और कवच निकले, प्रहलाद ने एक माला दी जिसके फूल कभी कुम्हलाते न थे और शुक्राचार्य ने एक शंख दिया। 

इस तरह ब्राह्मणों ने युद्ध की सामग्री तैयार करदी और फिर स्वस्तिवाचन किया। तब बलि उन ब्राह्मणों को नमस्कार कर प्रहलाद की आज्ञा लेकर भृगु के दिये हुए दिव्य रथ पर चढ़ा, माला पहरली, कवच धारणकर लिया खङ्ग, धनुष और तरकस बांध लिया । तदनन्तर राक्षसों की सेना को साथ ले बलि ने इन्द्रपुरी पर चढ़ाई की। देवपुरी को चारों ओर से घेरकर बलि शुक्राचार्य के दिये हुए शंख को जोर से बजाकर इन्द्र के महल में रहने वाली स्त्रियों को भय उत्पन्न करने लगा। 












तब इन्द्र सब देवताओं को साथ ले गुरु वृहस्पतिजी के पास जा यह बोला- 


"हे भगवन् ! हमारे पुराने बैरी बलि ने बड़ा उद्योग किया है। इस तरह से तो ये मुख से सब जगत को पान कर जांयगे और जिव्हा से दशों दिशाओं को चाट जांयगे।" 

बृहस्पतिजी बोले- "हे इन्द्र ! मैं तेरे इस बैरी की उन्नति के कारण को जानता हूँ। भृगु ने अपने शिष्य का ये तेज बढ़ाया है। भगवान के सिवाय अन्य योद्धा कोई भी आज इसके सामने खड़ा न हो सकेगा। स्वर्ग को छोड़ छोड़ गुप्त स्थानों में जा छिपो और काल की प्रतीक्षा कर। ब्राह्मणों ही के बल से इसका यह बल, और पराक्रम बढ़ा है जब यह ब्राह्मणों का अपमान करेगा तब बान्धवों सहित नष्ट हो जायगा।" 
गुरु की इन बातों को सुनकर सब देवगण स्वर्ग को छोड़कर भाग गये। देवताओं के भाग जाने पर बलि ने इन्द्रपुरी में अपना राज्य कर लिया और त्रिलोकी पर शासन करने लगे । भृगुओं ने विश्व विजयी अपने शिष्य से सौ अश्वमेध यज्ञ कराये। तब यज्ञों के प्रभाव से भुवन विख्यात बलि अपनी कीर्ति को दिशाओं में विस्तार करता ऐसा शोभित हुआ जैसे चन्द्रमा प्रकाश करता है।

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अष्टम अध्याय समाप्तम🥀।। 

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The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. Jai shree Krishna.🙏

ॐ ▲───────◇◆◇───────▲ 



 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। 


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