सुख सागर अध्याय १९ [स्कंध ८] ( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना।।वामन अवतार भाग 3

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
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नवीन सुख सागर 

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १९ [स्कंध ८]
( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना ) 

दो० तीन पैर की याचना वामन बलि से कीन।

सो उन्नीसव है कही धलि की कथा नवीन ॥ 


नवीन सुख सागर  श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १९ [स्कंध ८] ( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना )  दो० तीन पैर की याचना वामन बलि से कीन। सो उन्नीसव है कही धलि की कथा नवीन ॥   शुकदेवजी बोले-हे राजन् ! बलि के धर्मयुक्त विनीत वचनों को सुनकर वामनजी बहुत प्रसन्न हो यह कहने लगे----   "--हे राजा बलि ! तुम्हारे वाक्य सत्य और तुम्हारे कुल के योग हैं, धर्मवक्त और यश के बढ़ाने वाले हैं, सो तुमको ऐसा होना उचित ही है, क्योंकि लौकिक धर्मों के उपदेश शुक्राचार्य और पारि लौकिक धर्म के उपदेश पितामह प्रहलादजी करने वाले हैं। तुम्हारे कुल में कोई भी ऐसा नहीं हुआ है कि जिसने दान के समय अथवा युद्ध के समय याचक सेवा वीर पुरुष से पीठ फेर ली हो। इस बात का यही एक स्पष्ट प्रमाण है कि आपके पितामह प्रहलादजी का निर्मल यश ऐसा प्रकाशित हो रहा है जैसे आकाश में चन्द्रमा सुशोभित हैं ।   तुम्हारे कुल में हिरण्याक्ष साक्षात वीर रस का अवतार हो प्रगट हुआ। प्रहलाद का पुत्र तेरा पिता विरोचन ऐसा विप्रभक्त था कि जब देवता ब्राह्मणों का वेश धारण करके आये और उसको मालूम भी हो गया तब भी उन देवों ने मांगने से उसे अपनी आयु दे दी। इसलिये हे वर देने वालों में श्रेष्ठ! मैं तीन पेंड़ पृथ्वी मांगता हूँ मैं ही स्वयं उसको अपने पांवों से नापूंगा।"   बलि बोले--- "-- हे ब्राह्मण कुमार, आपका वचन वृद्धों के समान है, परन्तु बुद्धि मूर्ख बालकों के समान है लोकों के मुझ ईश्वर को रिझाकर आप तीन हो पेंड़ पृथ्वी मांगते हो । यदि ब्राहमण चाहें तो एक द्वीप दे सकता हूँ। मुझसे याचना करके फिर वो अन्य से याचना करने योग्य नहीं रहता है इसलिये इतनी पृथ्वी मांगिये जिससे जीविका को निर्वाह हो सके।"   वामनजी बोले कि----   "--- हे नृप ! त्रिलोकी के यावन्मात्र विषय भी मिल जांय तो भी अजितेन्द्रिय मनुष्य की वासना पूर्ण नहीं हो सकती है, और जो तीन पेंड़ पृथ्वी से सन्तुष्ट नहीं हुआ है वह नव खण्ड मिलने से भी सन्तुष्ट नहीं हो सकता उस समय उसको सातद्वीप की चाहना होती है । सात सात द्वीपों के पति वैन और गयादिक राजा अर्थ और कामनाओं से तृप्त नहीं हुए और तृष्णा के पार न लगे। अर्थ और काम में असन्तुष्टता का होना ही पुरुष को संसार का बन्धहेतु होता है। और यहच्छा से जो कुछ मिल जाय उसी पर सन्तोष कर लेना मुक्ति का हेतु होता है। इसलिये हे दरदर्षभ ! मैं तुझसे तीन ही पेड़ पृथ्वी मांगता हूँ क्योंकि प्रयोजनमात्र वित्त ही लाभदायक होता है।    हे राजन् ! तब तो राजा बलि वामनजी के उन वचनों को सुनकर हँसकर बोला----   "--अच्छा आप ऐसा कहते हैं तो जितनी आपकी इच्छा है उतनी ही भूमि ले लीजिये।"   यह कहकर वामन जी को पृथ्वी का दान करने के लिये जल का पात्र हाथ में ले लिया। तुलने ही में विष्णु का अभिप्राय जानकर अपने शिष्य बलि से शुक्राचार्य ने यह कहा।   "--- हे असुराधीश ! ये साक्षात् विष्णु भगवान हैं, कश्यप के घर में अदिति से देवताओं का कार्य सिद्ध करने के निमित्त उत्पन्न हुए हैं। इनका अभिप्राय बिना समझे तैंने इनको पृथ्वी देने की प्रतिज्ञा करली यह अच्छा नहीं किया । इसमें दैत्यों का बड़ा अनर्थ होगा। यह मायावी हरि वामनरूप धरकर आया है। इस तेरे स्थान, ऐश्वर्य, लक्ष्मी, तेज और यश को तुमसे छुड़ाकर इन्द्र के लिये देगा। यह विश्वकाय तीन ही पेंड़ में तीनों लोकों को नाप लेगा। मूढ़ ! तू सब ही विष्णु को दे देगा तो कैसे निर्वाह करेगा। यह एक पांव से पृथ्वी को नाप लेगा, दूसरे से स्वर्ग को नापेगा और बढ़े हुए शरीर से आकाश को घेर लेगा फिर तीसरे की गति कहाँ होगी। जिस दान से जीविका नष्ट हो जाती है वह दान प्रशंसा के योग्य नहीं होता है। हे देत्येन्द्र ! आत्मा रूपी वृक्ष का फल और फूल सत्य है जो यह देह ही नष्ट हो जायगी तो सत्य रूप फल फूल कहां से लगेंगे। क्योंकि इस शरीर वृक्ष की मिथ्या भाषण ही जड़ है ! सो जिस तरह जड़ के न होने से वृक्ष सूखकर गिर पडता है उसी तरह झूठ के न होने से शरीर का नाश हो जाता है। उससे ॐ अक्षर (यानी मैं ढूंगा) धन को नाश करने वाला और कोष को शून्य करने वाला है। जिस पदार्थ के देने के लिये हां कर ली जाती है देने वाला उस पदार्थ से शून्य हो जाता है। भिक्षुक के माँगने पर 'हाँ' कर लेना दाता को धनहीन निष्काम और दुःखी कर देता है और जो मिथ्या भाषण 'ना' कर देता है वह सुखी रहता है । परन्तु सब जगह झूठ भी ठीक नहीं क्योंकि झूठ की कीर्ति बिगड़ जाती है और जिसकी कीर्ति बिगड़ जाती है वह जीता भी मरा हुआ है। इससे इतनी जगह झूठ बोलना दूषित नहीं है, स्त्रियों से, हास्य में, विवाह में, जीविका में, प्राण सङ्कट में तथा गो ब्राह्मण के लिये व किसी के प्राण बचाने के लिये झूठ बोला जाय तो निन्दित नहीं है।   वामन अवतार, राजा बलि के वंशज कौन थे, भगवान विष्णु का वामन अवतार, वामन अवतार कब हुआ था, राजा बलि वामन अवतार, राजा बलि का जीवन परिचय, वामन अवतार स्तुति, राजा बलि

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शुकदेवजी बोले-हे राजन् ! बलि के धर्मयुक्त विनीत वचनों को सुनकर वामनजी बहुत प्रसन्न हो यह कहने लगे---- 


"--हे राजा बलि ! तुम्हारे वाक्य सत्य और तुम्हारे कुल के योग हैं, धर्मवक्त और यश के बढ़ाने वाले हैं, सो तुमको ऐसा होना उचित ही है, क्योंकि लौकिक धर्मों के उपदेश शुक्राचार्य और पारि लौकिक धर्म के उपदेश पितामह प्रहलादजी करने वाले हैं। तुम्हारे कुल में कोई भी ऐसा नहीं हुआ है कि जिसने दान के समय अथवा युद्ध के समय याचक सेवा वीर पुरुष से पीठ फेर ली हो। इस बात का यही एक स्पष्ट प्रमाण है कि आपके पितामह प्रहलादजी का निर्मल यश ऐसा प्रकाशित हो रहा है जैसे आकाश में चन्द्रमा सुशोभित हैं । 

तुम्हारे कुल में हिरण्याक्ष साक्षात वीर रस का अवतार हो प्रगट हुआ। प्रहलाद का पुत्र तेरा पिता विरोचन ऐसा विप्रभक्त था कि जब देवता ब्राह्मणों का वेश धारण करके आये और उसको मालूम भी हो गया तब भी उन देवों ने मांगने से उसे अपनी आयु दे दी। इसलिये हे वर देने वालों में श्रेष्ठ! मैं तीन पेंड़ पृथ्वी मांगता हूँ मैं ही स्वयं उसको अपने पांवों से नापूंगा।"






बलि बोले---
"-- हे ब्राह्मण कुमार, आपका वचन वृद्धों के समान है, परन्तु बुद्धि मूर्ख बालकों के समान है लोकों के मुझ ईश्वर को रिझाकर आप तीन हो पेंड़ पृथ्वी मांगते हो । यदि ब्राहमण चाहें तो एक द्वीप दे सकता हूँ। मुझसे याचना करके फिर वो अन्य से याचना करने योग्य नहीं रहता है इसलिये इतनी पृथ्वी मांगिये जिससे जीविका को निर्वाह हो सके।" 

वामनजी बोले कि---- 

"--- हे नृप ! त्रिलोकी के यावन्मात्र विषय भी मिल जायं तो भी अजितेन्द्रिय मनुष्य की वासना पूर्ण नहीं हो सकती है, और जो तीन पेंड़ पृथ्वी से सन्तुष्ट नहीं हुआ है वह नव खण्ड मिलने से भी सन्तुष्ट नहीं हो सकता उस समय उसको सातद्वीप की चाहना होती है । सात सात द्वीपों के पति वैन और गयादिक राजा अर्थ और कामनाओं से तृप्त नहीं हुए और तृष्णा के पार न लगे। अर्थ और काम में असन्तुष्टता का होना ही पुरुष को संसार का बन्धहेतु होता है। और यहच्छा से जो कुछ मिल जाय उसी पर सन्तोष कर लेना मुक्ति का हेतु होता है। इसलिये हे दरदर्षभ ! मैं तुझसे तीन ही पेड़ पृथ्वी मांगता हूँ क्योंकि प्रयोजनमात्र वित्त ही लाभदायक होता है। "


हे राजन् ! तब तो राजा बलि वामनजी के उन वचनों को सुनकर हँसकर बोला---- 

"--अच्छा आप ऐसा कहते हैं तो जितनी आपकी इच्छा है उतनी ही भूमि ले लीजिये।" 









यह कहकर वामन जी को पृथ्वी का दान करने के लिये जल का पात्र हाथ में ले लिया। तुलने ही में विष्णु का अभिप्राय जानकर अपने शिष्य बलि से शुक्राचार्य ने यह कहा।


"--- हे असुराधीश ! ये साक्षात् विष्णु भगवान हैं, कश्यप के घर में अदिति से देवताओं का कार्य सिद्ध करने के निमित्त उत्पन्न हुए हैं। इनका अभिप्राय बिना समझे तैंने इनको पृथ्वी देने की प्रतिज्ञा करली यह अच्छा नहीं किया । इसमें दैत्यों का बड़ा अनर्थ होगा। यह मायावी हरि वामनरूप धरकर आया है। इस तेरे स्थान, ऐश्वर्य, लक्ष्मी, तेज और यश को तुमसे छुड़ाकर इन्द्र के लिये देगा। यह विश्वकाय तीन ही पेंड़ में तीनों लोकों को नाप लेगा। मूढ़ ! तू सब ही विष्णु को दे देगा तो कैसे निर्वाह करेगा। यह एक पांव से पृथ्वी को नाप लेगा, दूसरे से स्वर्ग को नापेगा और बढ़े हुए शरीर से आकाश को घेर लेगा फिर तीसरे की गति कहाँ होगी। जिस दान से जीविका नष्ट हो जाती है वह दान प्रशंसा के योग्य नहीं होता है। हे देत्येन्द्र ! आत्मा रूपी वृक्ष का फल और फूल सत्य है जो यह देह ही नष्ट हो जायगी तो सत्य रूप फल फूल कहां से लगेंगे। क्योंकि इस शरीर वृक्ष की मिथ्या भाषण ही जड़ है ! सो जिस तरह जड़ के न होने से वृक्ष सूखकर गिर पडता है उसी तरह झूठ के न होने से शरीर का नाश हो जाता है। उससे ॐ अक्षर (यानी मैं दूंगा) धन को नाश करने वाला और कोष को शून्य करने वाला है। जिस पदार्थ के देने के लिये हां कर ली जाती है देने वाला उस पदार्थ से शून्य हो जाता है। भिक्षुक के माँगने पर 'हाँ' कर लेना दाता को धनहीन निष्काम और दुःखी कर देता है और जो मिथ्या भाषण 'ना' कर देता है वह सुखी रहता है । परन्तु सब जगह झूठ भी ठीक नहीं क्योंकि झूठ की कीर्ति बिगड़ जाती है और जिसकी कीर्ति बिगड़ जाती है वह जीता भी मरा हुआ है। इससे इतनी जगह झूठ बोलना दूषित नहीं है, स्त्रियों से, हास्य में, विवाह में, जीविका में, प्राण सङ्कट में तथा गो ब्राह्मण के लिये व किसी के प्राण बचाने के लिये झूठ बोला जाय तो निन्दित नहीं है। 



108 मनके की माला से ही क्यों करना चाहिए??


विश्व बैंक के अनुसार २०१८ ई⋅ में विश्व की  “कुल सेना”  थी २७६.४२.२९५ की ।  

हमारी मीडिया नहीं बताती कि संसार में सबसे बड़ी सेना भारत की है!“कुल सेना”  में वे सारे सैनिक हैं जो यु़द्धकाल में मोर्चे पर बुलाये जा सकते ह


एक महत्वपूर्ण उपकरण थी नारायणी सेना।


पितृपक्ष


हिन्दु एकता में सोशल नेटवर्क भी सहायक।


गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।


महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम


क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.


श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।



The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. Jai shree Krishna.🙏ॐ 

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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।


  Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!
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