कैसे हुई गायत्री मंत्र की उत्त्पत्ति।।

श्रीमद भगवदपुराण अध्याय१२ [स्कंध ३]

ब्रह्मा द्वारा सृष्टि, शिव, इन्द्रियों, ऋषियों, सरस्वती, दिन, रात, वेद, यज्ञ, आश्रम, अक्षर, मंत्र, प्रजा की उत्त्पत्ति अर्थ मैथुन 





श्री शुकदेव जी बोले हे राजा परीक्षित ! मैत्रेय जी विदुर जी से इस प्रकार कहने लगे। वृह्मा जी ने सर्व प्रथम सृष्टि को रचते समय तामिस्त्र, महा, मोह, तम इन पाँच को प्रकट किया। यह सृष्टि पापी हुई इस से संतुष्ट न होकर वृह्मा जी ने फिर दूसरी सृष्टि की रचना की। जिसमें सनक, सनन्दन, स्नातन और सन्तकुमार इन चारों को मन से उत्पन्न किया जो नैष्टिक वृह्मचारी होकर रहने का निश्चय किया। तव वृह्मा जी ने इन चारों से सृष्टि रचने के लिये कहा, परन्तु वह इस काम को न कर भगवान की भक्ति में लीन होने चले तो वृम्हा जी को क्रोध आया, जिसे रोकन का प्रयत्न करने पर भी वृह्मा जी न रोक सके और उस क्रोध से वृह्मा जी को भृकुटियों के मध्य से नील लोहितवर्ण वाला एक वाल स्वरूप उत्पन्न हुआ। 
ब्रह्मा द्वारा सृष्टि, शिव, इन्द्रियों, ऋषियों, सरस्वती, दिन, रात, वेद, यज्ञ, आश्रम, अक्षर, मंत्र, प्रजा की उत्त्पत्ति अर्थ मैथुन  श्री शुकदेव जी बोले हे राजा परीक्षत ! मैत्रेय जी विदुर जी से इस प्रकार कहने लगे। वृह्मा जी ने सर्व प्रथम सृष्टि को रचते समय तामिस्त्र, महा, मोह, तम इन पाँच को प्रकट किया। यह सृष्टि पापी हुई इस से संतुष्ट न होकर वृह्मा जी ने फिर दूसरी सृष्टि की रचना की। जिसमें सनक, सनन्दन, स्नातन और सन्त कुमार इन चारों को मन से उत्पन्न किया जो नैष्टिक वृह्मचारी होकर रहने का निश्चय किया। तव वृह्मा जी ने इन चारों से सृष्टि रचने के लिये कहा, परन्तु वह इस काम को न कर भगवान की भक्ति में लीन होने चले तो वृम्हा जी को क्रोध  आया, जिसे रोकन का प्रयत्न करने पर भी वृह्मा जी न रोक सके और उस क्रोध से वृह्मा जी को भृकुटियों के मध्य से नील लोहितवर्ण वाला एक वाल स्वरूप उत्पन्न हुआ।

शिव

तब उस बालक ने वृम्हा जी से रुदन करते हुये कहा हे विधाता! आप मेरा नाम करण करो और मेरे लिये निवास स्थान बताओ। उस बालक का यह बचन सुन वृम्हा जी ने कल्याणमयी वाणी से कहा-हेबालक ! तुम रोना बंद करो मैं शीघ्र ही तुम्हारे लिये सब प्रबंध करता हूँ। 

प्रकट होते ही तुम बालक के समान रोये थे इस कारण प्रजा तुम्हें रुद्र के नाम से पुकारेगी।  तुम्हारे निवास के लिये ग्यारह स्थिान हमने पहले से ही नियत कर रखे हैं जो इस प्रकार हैं, हृदय, इन्द्रियों प्राण, आकाश, पवन, अग्नि, जल, पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा, में निवास करो। इसके अतिरिक्त तुम्हारे यह ग्यारह नाम कहे जायेंगे। जो उस प्रकार हैं -घृतब्रत, वामदेव, काल, भव, उग्रेता, ऋतुध्वज, शिव, महान्, मुनिमहिनस, और मन्यु यह सब तुम्हारे नाम होंगे इन्ही नामों से प्रजा जन तुम्हारी पूजा करेंगे। तुम्हारी स्त्रियाँ घी, वृत्ति, उशना, उमा, नियुत, सपि, इला, अम्बिका, इरावती, सुधा, दीक्षा, और रुद्राणी नाम की होंगी। तत्पचात वृम्हा जी ने रुद्र से कहा कि अब तुम लोक निर्माण के लिये प्रजा को रचना करो! 

हे विदुर जी! वृम्हा जी को आज्ञा मान कर रुद्र ने अपनी आकृति और स्वभाव के अनुसार भयंकर प्रजा की रचना की शिव जी द्वारा रची हुई प्रजा को देख कर बृम्हा जी अति शंकित हुये उन्होंने तुरन्त ही शिव को आज्ञा दी कि प्रजा न रचें और तप करें जिससे फिर पहले जैसी प्रजा को सृष्टि कर सकेंगे। तब वृम्हा जी की आज्ञा मानकर भगवान शंकर (शिव) तपस्या करने बन को चले गये।

ऋषि उत्त्पत्ति

इधर वृह्मा जी फिर प्रजा की रचना करने की सोचने लगे। तब उनने लोक में संतान के हेतु कारण रूप अपने दस पुत्र उत्पन्न किये! जो इस प्रकार थे मन से मरीच, नेत्रों से अत्रि, मुख से अंगिरा, कानों से पुलत्स्य, नाभि से पुलह, हाथ से क्रतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगूठे से दक्ष और गोद से दसवें पुत्र नारद जी को उत्पन्न किया। फिर दाहिने स्तन से धर्मऔर वायें स्तन से अधर्म को उत्पन्न किया। हृदय से कामदेव, भृकुटी से क्रोध, को नीचे वाले ओंठ से लोभ, मुख से वाणी लिंग से समुद्र, गुदा से मृत्यु, उत्पन्न किया । वृम्हा जी को छाया से कर्दम ऋषि।

सरस्वती की उत्त्पति एवं ब्रह्मा जी का कामतुर होना।

 मुख से वीणा धारणी सरस्वती जी को प्रकट किया। इस प्रकार वृम्हा जी ने अपने शरीर तथा अंगों से इस सृष्टि को उत्पन्न किया । यद्यपि सरस्वती जी अकामी थी।

परन्तु उसे देखकर ब्रम्हा जी कामातुर हो गये। तब वृम्हा को अधर्म की ओर प्रवृत्ति होते देख उनके पुत्रों ने उन्हें बहुत समझाया और कहा हे पिता ! ऐसा अधर्म कमी किसी पूर्वज वृम्हा ने नहीं किया है जो आप अपनी ही पुत्री के साथ समागम करना चाहते हो।
जब उनके पुत्रों ने उन्हें इस प्रकार समझाया तो वृम्हाजी अति लज्जित हुये और उनने अपने उस शरीर का त्याग कर दूसरा शरीर धारण कर लिया सो हे विदुरजी ! उस छोड़े हुये शरीर को दिशाओं ने गृहण किया जिससे अन्धकारमय कुहरा उत्पन्न हुआ। जब दूसरा शरीर धारण कर लिया।।

चार वेद और उनके होता की उत्त्पत्ति

 तो वे फिर बैठकर सृष्टि रचने का विचार करने लगे तब उनके चारों मुखों में से चार वेद और उनके कर्म होता इस प्रकार उत्पन्न हुये।
पूर्व वाले मुख से ऋगवेद और होता का कर्म उत्पन्न हुये, तथा दक्षिण मुख से यजुर्वेद और देवताओं के कर्म उत्पन्न हुये पश्चात पशचिम मुख से साम वेद और स्तुतियों का समूह उत्पन्न हुआ,
फिर उत्तर मुख से अथर्वेद और आयुर्वेद, धनुर्वेद, गाँधर्ववेद, स्थापत्यवेद उत्पन्न हुये। तत्पश्चात इतिहास पुराण नाम वाले पंचवेद को सब मुखों से उत्पन्न किया। फिर षोडशी तथा उक्त को पूर्व वाले मुख से प्रकट किया, पुरीप्य तथा अग्निष्टोम यज्ञ गृह दक्षिण मुख से और आपतोमि तथा अत्रि रात्रि दोनों पश्चिम मुख से और बाजपेय यज्ञ व गोमेध उत्तर वाले मुख से उत्पन्न किये। 

धर्म, अक्षर, मंत्र, मैथुन धर्म

फिर विद्या दान तप सत्य धर्म के चारों चरण
तथा वृम्हचर्य गृहस्थ वानप्रस्थ सन्यास यह चारों आश्रम और इन चारों की वृत्तियाँ पूर्वादि मुखों से रची। वेदविद्या, धर्मविद्या, दन्डविद्या, और नीतिविद्या यह चारौ और भूः भुवः स्वः तथा महः ये चारौ व्य हृतियाँ क्रम यूकि मुखों से उत्पन्न हुई। हृदय से ओंकार प्रकट हुआ। रोमावली से उष्णिक छद, त्वचा से गायत्री छन्द, मास से त्रिष्टुप छन्द, स्नायु से अनुष्टुप छन्द, हड्डियों से जगती छन्द, मज्जा से पंक्ति छन्द, प्राणों से बृहतीछन्द, और जीभ से स्पर्श, क, से, त, पर्यन्त अक्षर प्रकट हुये अ इ उ आदि स्पष्ट देह से उत्पन्न हुआ। श ष स ह इन्द्रियों से य र ल व बल से निषाद ऋषभ, गन्धार, षडज, मध्यम, धैवत, पंचम और सा रे ग म प ध नि यह सप्त स्वर विहार में उत्पन्न हुये।
इस प्रकार अनेक भाँति रचना करने पर कुल वल वाले ऋषियों की सन्तान को प्राप्त नहीं हुये । तव ब्रम्हाजी अपने हृदय में चिन्ता करने लगे कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि नित्य अनेक
उद्यम करने पर भी प्रजा की वृद्धि नहीं पाती है। वह सोचने लगे कि निश्चय ही इसमें देव प्रतिबन्धक हैं जो प्रजा को वृद्धि नहीं होने देता है। इस प्रकार सोच रहे थे कि तभी उनके शरीर
के दायेंअंग से स्वयंभुव मनु नाम का एक पुरुष और बाँये अंग से शतरूपा नामक एक स्त्री की उत्पत्ति हुई। तब वृम्हाजी ने उन दोनों का विवाह कर दिया और आज्ञा दी कि तुम मैथुन क्रिया द्वारा प्रजा उत्पन्न करो। विदुरजी ! तभी से ये मैथुन धर्म प्रगट हुआ।

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