भगवान विष्णु के २४ अवतारों का संक्षिप्त विवरण।।

नवीन सुख सागर कथा

श्रीमदभागवद पुराण तीसरा अध्याय [स्कंध१] भगवान के सम्पूर्ण चौबीसों अवतारों का वर्णन॥









नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।



सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।


महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १





दोहा-कृत्य विष्णु भवतार धरि कीन्हें जोने अपार। 
सो तीजे अध्याय में कहीं कथा सुखसार ॥ ३ ॥ 

सूतजी कहते हैं कि हे ऋषीश्वरो ! सत्वनिधि विष्णु भगवान के अवतार इस प्रकार अनन्त है कि जैसे क्षीण न होने वाले महान सरोवर में सैकड़ों, हजारों छोटी छोटी जल धारायें निकलती हैं। ऋषि, मुनि, देवता तथा महान पराक्रम वाले मनुष्यों के पिता प्रजापति हरि भगवान की ही कला हैं । भागवत जिसका नाम है ऐसा वेद के तुल्य अथवा ब्रह्म को लक्ष कराने वाले इस भागवत पुराण में श्रीवेदव्यास ने केवल विष्णु भगवान के चरित्रों का वर्णन किया है यह पुराण वेदव्यास मुनि ने आत्म ज्ञानियों में श्रेष्ठ अपने पुत्र शुकदेवजी को पढ़ाय फिर शुकदेव मुनि ने मृत्यु का निश्चय करके गङ्गाजी के तट पर सब ऋषिश्वरों में सम्मिलित होकर बैठे हुए परीक्षित महाराज को भली प्रकार से सुनाया है ऐसा जो यह परम उत्तम सूर्य रूप पुराण यानी सूर्य की तरह अन्तः करण में ज्ञान रूपी चांदनी करने वाला है सो जब श्रीकृष्णचन्द्र अपने परमधाम को चले गये, पीछे अब कलियुग में अज्ञान से अन्धे हुए पुरुषों के वास्ते धर्म, ज्ञान आदि के सहित अच्छे प्रकार से उदय हो रहा है। 


सूतजी कहते हैं, हे ऋषिश्वरों ! ऐसे इस पुराण को महातेजस्वी शुकदेव मुनि तब गड़ा तट पर कीर्तन कर रहे थे तब वहां बैठा हुआ मैं भी उन शुकदेवजी के इस अनुग्रह से इस भागवत को पढ़ता था सो मैं अपनी बुद्धि के अनुसार जैसा कि पढ़ा, सुना है तैसा ही आप लोगों को सुनाऊँगा ।

भगवान विष्णु के २४ अवतार।।1- श्री सनकादि मुनि  2- वराह अवतार  3- नारद अवतार  4- नर-नारायण  5- कपिल मुनि  6- दत्तात्रेय अवतार  7- यज्ञ  8- भगवान ऋषभदेव  9- आदिराज पृथु  10- मत्स्य अवतार  11- कूर्म अवतार  12- भगवान धन्वन्तरि  13- मोहिनी अवतार  14- भगवान नृसिंह  15- वामन अवतार  16- हयग्रीव अवतार  17- श्रीहरि अवतार  18- परशुराम अवतार  19- महर्षि वेदव्यास  20- हंस अवतार  21- श्रीराम अवतार  22- श्रीकृष्ण अवतार  23- बुद्ध अवतार  24- कल्कि अवतार



श्री सूतजी महाराज कहने लगे---
--परब्रह्म परमात्मा ने पहिले सृष्टि के आदि में सृष्टि रचने की इच्छा करके महत्व अहंकार पाँच तन्मात्रा इन्हों से उत्पन्न हुई जो शोडष कला अर्थात् पंच (५) महाभूत और ग्यारह (११) इन्द्रिय इन्हों से युक्त हुए पुरुष के रूप को धारण किया। 

वही भगवान प्रलयकाल में जब सब जगह एकार्ण व जल ही जल फैल जाता है, तब उस समय अपनी योग निद्रा से शेषशैया पर सोते हैं। 

योगनिद्रा यानी अपनी समाधि में स्थिर रहते हैं। तब उनकी नाभि में कमल का फूल उपन्न होता है। उसी कमल में प्रजापत्तियों का पति ब्रह्मा उपन्न होता है जो जल में सोते हैं। उन्ही परमेश्वर के स्वरूप कहते हैं कि जिसके अलग-अलग अड्डों की जगह सब लोक कल्पित किये जाते हैं । हजारों पैर जाँघ, भुजा, मस्तक नेत्र, कान, नाक, और हजारों मुकुट तथा चमकते हुए उत्तम हजारों कुण्डलों से शोभित ऐसा अद्भुत उनका रूप है। इस रूप को दिव्य दृष्टि वाले ज्ञानीपुरुष ही देखते हैं ! सभी अवतार उस परमेश्वर के रूप से होते हैं । 



इस परम पुरुष के अंश से ब्रह्माजी के अंशसे मरीच आदि ऋषीश्वर, उनके द्वारा देवता, मनुष्य तथा पशु पक्षी आदि सब उपन्न हुए।



इन अवतारों की गिनती इस प्रकार है कि --


1- श्री सनकादि मुनि
2- वराह अवतार
3- नारद अवतार
4- नर-नारायण
5- कपिल मुनि
6- दत्तात्रेय अवतार
7- यज्ञ भगवान 
8- भगवान ऋषभदेव
9- आदिराज पृथु
10- मत्स्य अवतार
11- कूर्म अवतार
12- भगवान धन्वन्तरि
13- मोहिनी अवतार
14- भगवान नृसिंह
15- वामन अवतार
16- हयग्रीव अवतार
17- श्रीहरि अवतार
18- परशुराम अवतार
19- महर्षि वेदव्यास
20- हंस अवतार
21- श्रीराम अवतार
22- श्रीकृष्ण अवतार
23- बुद्ध अवतार
24- कल्कि अवतार


पहिला अवतार सनत्कुमारों का हुआ। सनकादिक पांच ही वर्ष की कुमार अवस्था में ब्रह्मा यानी ब्राह्मण स्वरूप होकर ब्रह्मचर्य में रहकर अखण्डित दुस्तर ( कठिन) तपस्या करने लगे। 

●दूसरा अवतार वाराह जी का हुआ, उन्होंने इस संसार की उत्पत्ति के वास्ते पाताल में गई हुई पृथ्वी का उद्धार किया है। और हिरण्याक्ष दैत्य को मारा है। यहाँ परमेश्वर को यज्ञेश इस वास्ले कहा कि पृथ्वी लाने से मुनि लोगों ने पृथ्वी पर यज्ञ किये हैं, इसलिये यह यज्ञ- बाराहा अवतार भी कहाता है।


●तीसरा अवतार नारद ऋषि का हुआ । नारद ने वैष्णव तंत्र अर्थात विष्णु भक्तों के वास्ते पंचरात्र नारद (नारद पंचरात्र) ग्रन्थ रचा है, जिसके पढ़ने से यह जीव कर्म बन्धनों से छूट जाता है। 

●चौथा अवतार धर्म की सत्री से नरनारायण का जोड़ा उत्पन्न हुआ है सो इन्होंने तपस्या का मार्ग चलाया है। ये दोनों ऋषी होकर बद्रीनारायण आश्रम में चले गये हैं, वहाँ जाकर बड़ा भारी तप किया।


●फिर पाँचवाँ अवतार सिद्धों के ईश्वर कपिलमुनिका है इन्होंने आसुरी ब्राह्मणों को बहुत दिनों से नष्ट हुआ यानी गुप्त सांख्य शास्त्र सुनाया। उन साँख्यशास्त्र में तत्व का निर्णय तथा परमात्मा का ज्ञानवर्ण किया है। 


●छठा अवतार दत्तात्रेयी हुए हैं। अत्रि ऋषि के घर अनुसुइया नाम स्त्री से दत्तात्रेयजी हुए हैं। उन्होंने राजा अलर्क, प्रहलाद इत्यादि को आत्मविद्या यानी वेदान्तशास्त्र पढ़ाया है।  

● फिर सातवाँ अवताररुचि की पत्नी आकूतिसे यज्ञ भगवान हुए। सो यज्ञ नाम देवता जोकि उन्हीं के पुत्र थे, तिन्हीं के साथ स्वायंभुव मनु की रक्षा करके पालन किया और सबको यज्ञ करने की राह बतलाकर आप इन्द्र हुए हैं । 



●आठवाँ अवतार मेरुदेवी रानी में नाभि राजा से ऋषभदेवजी हुए हैं जिन्होंने परमहंसों का मार्ग दिखाया है कि जो आश्रम सभी आश्रम वालों से वदित है।  

●नवां अवतार ॠषि लोगों की प्राथना से बड़े प्रतापी राजा पृथु का हुआ है, उसने सम्पूर्ण औषधि तथा पृथ्वी पर होने वाली सब वस्तुओं का सार निकाला है । 

         पृथ्वी का पृथु ने सुधारा इसलिये इसे पृथ्वी कहते हैं। 


●दसवाँ मत्स्य अवतार चाक्षुषमन्वन्तर में हुआ है। जब प्रलय हो गई उस वक्त भगवान की माया से पृथ्वी नौकारूप बनकर आई, उनमें इस वैवस्वत मनु को बिठाकर सष्टिक्रम की रक्षा की है।

11- कूर्म अवतार
12- भगवान धन्वन्तरि
13- मोहिनी अवतार
●ग्यारहवां अवतार कमठ (कछुआ) का इस प्रकार है, कि जिस वक्त अमृत के वास्ते देवता और मिलकर समुद्र को मथने लगे, मन्दराचल पर्वत रई बनाकर खड़ा किया था सो नीचे पाताल को चला, तब भगवान ने कछुआ का रूप धारण करके अपनी पीठ पर इसे धारण किया है। देह ऐसा किया कि जिससे सब दैत्य मोहित हो गये। अर्थ यह है कि धन्वतरि अवतार लेकर तो अमृत का कलश लिए निकले फिर मोहनी स्त्री का रूप बना के दैत्यों को मोहा और देवताओं को अमृत पिलाया। 

●चौदहवां अवतार नृसिंह हुए, तब अभिमानी हिरण्यकशिपु दैत्य का पेट फाड़ डाला। 


●पन्द्रहवाँ अवतार वामनजी हुए जिहोंने तीन पैर से त्रिलोकी को नापा।


●फिर सोलहवाँ अवतार परशुरमजी का हुआ है उन्होंने सहस्त्रबाहु आदि राजाओं को मार इक्कीसबार सम्पूर्ण पृथ्वी  के दुष्ट क्षत्रिय नष्ट किये।


●सत्रहवाँ अवतार पाराशर मुनि से सत्यवती में वेदव्यासजी हुए इहोंने अल्प बुद्धि वाले मनुष्यों को देखकर उनके वास्ते वेदरूपी वृक्ष की शाखा बनाई हैं, यानी एक वेद के चार वेद बना दिये हैं। इसलिये इनका नाम वेदव्यास हुआ है। 


●अठारहवाँ अवतार रामचन्द्रजी का हुआ उन्होंने देवताओं के कार्य सिद्धि करने की इच्छा से समुद्र पर पुल बांधा, सेतबन्धु रामेश्वर स्थापित किये और रावण को मारा ।


●उन्नीसवाँ बीसवां अवतार बलदेव व श्रीकृष्ण जी यादवों में हुए हैं उन्होंने पृथ्वी का सम्पूर्ण भार उतारा है। फिर कलियुग प्राप्त होगया तब दैत्यों को मोहने के वास्ते इक्कीसवें मध्य गया देशमें अजनके पुत्र बुद्धावतार भये हैं।




●फिर बाईसवाँ हयग्रीव तथा तेईसवा हंसावतार धारण किया।


●फिर चौबीसवाँ कलियुग के अन्तके समय में सतयुग के आदि की सन्धि में जब राजा लोग चोर हो जावेंगे तब विष्णुयश ब्राह्मण के घर कल्कि अवतार धारण करेंगे।



 



।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम तृतीय अध्याय समाप्तम🥀।। 

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