Where does the soul goes in between reincarnations?

 श्रीमद भागवद पुराण *छब्बीसवां अध्याय * [स्कंध ५]कहाँ जाता है मनुष्य मरने के बाद? नरक लोक में जीवात्मा।।

(पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations?

दो०-पापी फल पावें जहां, देय दूत यम त्रास।

छब्बीसवें अध्याय में, वरणों नरक निवास।।

२८ नारकों के नाम हे राजन! अष्ठाईस नरक हैं, सो उस के नाम ये हैं उन्हें तुम श्रवण करो, १-तामिस्त्र, २ अंधतामिस्र, ३-रौरव, ४-महा रौरव, १-कुम्भी पाक, ६-काल सूत्र, ७-असिपत्रवन, ८-शूकर मुख, ९-अंधकूप, १०- कृमि भोजन,११-संदेश, १२-तप्त सूर्मि १३-वज्रकंटक, शाल्मली, १४-वैतरणी, १५-पूयोद, १६-प्राणरोध, १७-विशसन, १८-लाला भक्षण, १९-सारभयादन, २०-अवीचि, २१-अय:पान २२-क्षार कदर्म, २३ रक्षोगण भोजन, २४-शूलप्रोत, २५-दंदशूक,२६-अवट निरोधन, २७-पर्यावर्तन, २८-सूचीमुख, यह २८ नर्क हैं जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के कष्ट प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार प्राप्त होते हैं ।



श्री शुकदेव जी के वचन सुन कर परिक्षित ने पूछा-हे मुने ! ईश्वर ने यह सब सृष्टि एकाकार ही क्यों नहीं रची अर्थात यह सब सृष्टि परमात्मा ने अनेक प्रकार की क्योंकर निर्माण की है सो कृपा कर मुझे सुनाओ । श्री शुकदेव बोले-हे परीक्षित! कर्त्ता की इच्छा से श्रद्धा में तीन प्रकार का भेद होने से कर्म की गति भी अलग-अलग न्यूनाधिक होती है । सत्व गुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख, तथा रजोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख और दुःख दोनों तथा तमोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को दुख ही केवल प्राप्त होता है। शास्त्रों में जिसको निषेध कहा है उसी को अधर्म कहते हैं। अतः उन्ही अधम कर्मो के करने को ही अधर्म कहते हैं। उन पापी जनों को नरक की गति मिलती हैं। सो हे राजन! हम तुम्हारे सामने उन्हीं मुख्य-मुख्य नरकों को वर्णन करते हैं । सो तुम उन्हें ध्यान देकर सुनो।

नरकों का सम्पूर्ण विवरण

अवस्थति




हे परीक्षित ! दक्षिण दिशा में पृथ्वी के नीचे और जल के ऊपर है। अर्थात यह नरक सुमेरु पर्वत से निन्यावे योजन दक्षिण धरती से नीचे पानी के ऊपर है। चारों वर्ण के दिव्य पितर उस नरक का दुख देख कर अपने परिवार वालों को मना करने लिये उसके द्वार पर बने रहते हैं। जिसमें हमारे परिवार का कोई ऐसे कर्म न करे कि उसे नरक में आना पड़े। यहाँ पितरों का राजा धर्मराज अपने दूतों के द्वारा मृत आत्माओं के लान पर चित्रगुप्त द्वारा उनके कर्मों के दोष गुणों को विचार कर उसी के अनुसार उसे दण्ड प्रदान कराते हैं ।

२८ नारकों के नाम


हे राजन! अष्ठाईस नरक हैं, सो उस के नाम ये हैं उन्हें तुम श्रवण करो
 १-तामिस्त्र, २ अंधतामिस्र, ३-रौरव, ४-महा रौरव, १-कुम्भी पाक, ६-कालसूत्र, ७-असिपत्रवन, ८-शूकर मुख, ९-अंधकूप, १०- कृमि भोजन, ११-संदेश, १२-तप्त सूर्मि १३-वज्रकंटक, शाल्मली, १४-वैतरणी, १५-पूयोद, १६-प्राणरोध, १७-विशसन, १८-लाला भक्षण, १९-सारभयादन, २०-अवीचि, २१-अय:पान २२-क्षार कदर्म, २३ रक्षोगण भोजन, २४-शूलप्रोत, २५-दंदशूक,२६-अवट निरोधन, २७-पर्यावर्तन, २८-सूचीमुख, यह २८ नर्क हैं।

  जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के कष्ट प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार प्राप्त होते हैं । हे परीक्षित ! अब हम वह कहते हैं कि किन-किन कर्मों के करने से मनुष्य किस-किस नरक में जाता है, और क्या-क्या कष्ट भोगता है। 


𓆉︎   जो परायण धन, स्त्री, पुत्र आदि का हरण करते हैं, वे यमदूतों द्वारा तामिस्त्र नरक में डाल दिये जाते हैं। 


𓆉︎   जो पुरुष किसी पुरुष को धोखा देकर उसकी स्त्री के साथ संभोग करता हैं वह अंधतामिस्र नरक में पड़ता है, जिसमें अनेक पीड़ा सह कर बुद्धि रहित हो अंधा हो जाता है। 



𓆉︎   जो प्राणी मोह के कारण अपना-अपना कह कर तथा मैं-मैं कर हर बात में अपने लाभ के लिये तथा अपने कुटुम्ब के लाभ के लिये दूसरी से कपट कर धर्म का विचार न कर कुटुम्ब का पालन करता है, और प्राणियों से द्रोह करता है वह प्राणी रौरव नरक में पड़ता है, जहाँ उसके द्वारा ठगे हुये प्राणी रूप नामक दारुण प्राणी बनकर जो कि सर्प से भी अधिक कर होते हैं वे पलटा लेकर ताड़ना देते हैं । 



𓆉︎   जो मनुष्य केवल अपने ही शरीर को पालता है वह महा रौरव नर्क में गिरता है, वहाँ क्रव्यादिक रूरूगण उसके माँस को नौंच-नौंच कर खाते हैं। 



𓆉︎   इसी प्रकार जो मनुष्य उस जीवित पशु पक्षियों को निर्दयता से मारता है वह कुम्भीपाक नरक में पड़ता है। जहाँ पर यम के दूत उस दुष्ट आत्मा को तेल के गरम कढ़ाव में डाल कर तेज आग से भूनते हैं। 



𓆉︎   जो मनुष्य विद्वान व पिता, तथा वेद से द्रोह करता है उसे यम के दूत कामसूत्र नरक में छोड़ देते हैं । वह नरक दस हजार योजन विस्तार वाला है, जिसकी भूमि तपाये हुये तावे के समान तप्त रहती है। ऊपर से सूर्य की धूप की ताप और नीचे से भूमि की तपन से वह झुलस झुलस कर घोर कष्ट को पाता है । 



𓆉 जो मनुष्य बिना किसी विपत्ति के वेदमार्ग को त्याग पाखण्ड मार्ग पर चलता है उसे यम के दूत असिपत्र नरक में पटक कर कोड़ों से पीटते हैं । 


𓆉︎   जो जो दूत पुरुष राजा हो अथवा राजा का कर्मचारी हो प्राणियों को निरपराध दण्ड देता है तथा विद्वानों को प्राणदण्ड देता है उसे यम के दूत सूकरमुख नरक में कोल्हू में डाल कर गन्ने की तरह पेरते हैं। 


𓆉︎   जो मनुष्य दूसरों का रक्त चूसता है वह अंधकूप नरक में पड़ता है और उसको वे सब जीव जिन्हें, उसने दुख दिया होता है दुख देकर चारों ओर से घेरकर रक्त को खींचते हैं। 


𓆉︎   जो पुरुष भोजन करने योग्य उत्तम पदार्थ को अन्य लोगों को बांटकर नहीं खाता है और नित्यप्रति करने योग्य पंचमहायज्ञ को भी कभी नहीं करता हैं, उसे यम के दूत कृमि भोजन नाम वाले नरक में डाल देते हैं। तब उस एकलाख योजन वाले नरक कुण्ड में उस पुरुष को कीड़े खाते हैं । 



𓆉︎   जो पुरुष चोरी अथवा बलात्कार से दूसरों का धनहरण कर लेता है वह संदेश नरक में पड़ता है । वह यम के दूत उसकी खाल को लोहे के गर्म चिमटों से पकड़-पकड़ कर तोड़ते हैं।



𓆉︎   जो पुरुष या स्त्री नहीं गमन करने योग्य से अर्थात जो पुरुष रमण न करने योग्य स्त्री से तथा वह स्त्री जो रमण न करने योग्य पुरुष से रमण करे तो उसे यम के दूत सप्तसूमि नाम नरक में डालते हैं । अर्थात सूरीनाम मूर्ति का है जो लोहे की बनी होती है। जो पुरुष यह पाप करता है तो उसे लोहे की वैसी ही स्त्री की मूर्ति जो तपाई हुई होती है उससे चिपटाया जाता है। यदि स्त्री को यह दण्ड मिलता है तो वह लोहे के गर्म वैसे ही पुरुष से चिपटाई जाती है। 



𓆉︎  जो प्राणी पशु आदि के साथ मैथुन करते हैं, उन्हें यम के दूत वज्रकन्टक शाल्मली नरक में डालते हैं। जहाँ पर यम के दत उस प्राणी को काँटेदार शाल्मली वृक्ष पर चढ़कर खींचते हैं।



𓆉︎  जो राजा या उसके कर्मचारी पाखण्डी बनकर धर्म की मर्यादा को तोड़ते हैं, वे सब नरकों की खाईरूप वैतरणी नाम नरक में पडते हैं। वहाँ पर इन्हें जल के जीव भक्षण करते हैं जो अनेक कष्ट पाने पर भी प्राण विसर्जन नहीं करते हैं। विष्ठा, मूत्र, रक्त, राध, केश, नख, अस्थि,भेद, मांस, चर्बी से युक्त बहने वाली नदी में सब समय पड़े अनेक दुख पाते हैं । 



𓆉︎   जो लोग उच्चवर्ण हो, निर्लज्ज हो वैश्या आदि नीच स्त्रियों के साथ रमण करते हैं, वे पूर्योद नामक नरक में पडते हैं। वहाँ राध, विष्ठा, खखार, मल से भरे कुण्ड में पड़कर वही सब भक्षण करना पड़ता है। 



𓆉︎   हे परीक्षित ! जो पुरुष, ब्राह्मण हो, गधा तथा सूकर एवं बकरा आदि जीव पालते हैं, और वे खेल समझकर आखेट करते हैं और हिंसा करते हैं, वे प्राणरोध नरक में गिरते हैं। वहाँ यम के दूत उन्हें अपने तीक्षण बाणों से बींधते हैं। 



𓆉︎    जो लोग पाखण्ड से रचे यज्ञ में पशु वध करते हैं, उन्हें यम के दूत विशसन नरक में पटकते हैं । वहाँ उन्हें नाना प्रकार के कष्ट देकर उनके अंगों को छिन्न-भिन्न कर दिया जाता है।


 
𓆉︎   जो पुरुष काम के वशीभूत हो अपने गोत्र की स्त्री के साथ मैथुन करता है, उसे यम के दूत ला-ला भक्षण नाम के नरक में डाल देते हैं जहाँ उन्हें वीर्य ही पिलाया जाता है। 



𓆉︎   जो पुरुष चोरी करते हैं या किसी के घर आदि में आग लगा देते हैं, अथवा दूसरों के प्राण लेने को धोखे से विष पिला देते हैं, अथवा राजा या राज सेना ग्राम व मेले के प्राणियों को लूट लेते हैं, वे सारभेयादन नरक में निवास करते हैं। वहाँ यम के दूत सातसौ बीस कुत्तों को उनके ऊपर छोड़ते है। तब वे कुत्ते उनकी अस्थियों को फाड़ फड़ कर चबा जाते हैं।



𓆉︎   जो पुरुष गवाही दान व्यवहार आदि में अपने स्वार्थ के लिये असत्य बोलता है, वह अवीचि नरक में पड़ता है। वहाँ यम के दूत सौ योजन ऊँचे पर्वत से उसं नीचे को शिर करके पटक देते हैं। जहाँ पाषाण (पत्थर) वाली भूमि भी जल के समान लगती हैं। 




𓆉︎   जो ब्राह्मण व क्षत्री तथा वैश्य वह शूद्र कोई भी-पुरुष मद्यपान करते है । उन्हें यम के दूत अयःपान नरक में पटककर उनके मुख में गरम करके पिघलाया हुआ गरम लोह डालते हैं। 



𓆉︎   जो पुरुष अहंकार के वशीभूत हो श्रेष्ठ पुरुषों का सत्कार नहीं करता वह क्षार कर्दम नरक में पड़ता है। वहां उसे नीचे को मुख करके अत्यंत दुरंद क्लेश भोगने पड़ते हैं। 



𓆉︎   जो लोग अन्य पुरुष को मारकर भैरव आदि देवताओं के यज्ञ में होम देते हैं, और फिर उसके मांस को भक्षण करते हैं, वे लोग पशु के समान रक्षोगुण भोजन नामक नरक में पड़ते हैं। वहां पूर्व जन्म में मारे हुये, मनुष्यों के आकार वाले राक्षसगण रूप यम दूत उनको भारी दुख देते हैं। 



𓆉︎   जो पुरुष सर्प के समान क्रूर स्वभाव वाले हैं, और प्राणियों को त्रास दिया करते हैं वे लोग शूक नाम नरक में पड़ते हैं। वहाँ पाँच व सात मुख वाले सर्प उन्हें झपट मारकर चूहे के समान निगल जाते हैं। 



𓆉︎. जो पुरुष अंधकार मय कोठे, गड़हे आदि में प्राणियों को बंद करके दुख देते हैं, वे लोग अवटनिरोधन नरक में पड़ते हैं। उन्हें यम के दूत गड्हे अथवा बंद स्थानों में रखकर विषयुक्त धुये से महा क्लेश को प्राप्त कराते हैं। 



𓆉︎   जो पुरुष गृहस्थ होकर अतिथि या अभ्यागत को क्रोध को दृष्टि से देखता है, अथवा क्रूर दृष्टि से देखता है, वह पर्यावर्तन नरक में पड़ता है। उसे गीध,काक, आदि पक्षी नोंक नोच कर खाते हैं, ओर बल से उसके नेत्रों को निकाल लेते हैं।


 
𓆉︎   जो लोग धनाभिमान से दूसरों को कुटिल दृष्टि से देखते हैं, अथवा किसी का भी विश्वास नहीं करता वह सूबीमुख नरक में पड़ता है। वहाँ यमदूत उसके शरीर को सुई धागे से सी-सींकर दुख देते हैं। हे राजन! इस प्रकार के नरक धर्मराज की पुरी में अनेकों हैं । 





जो धर्म करने वाले हैं वे स्वर्गों में जाते है। वहाँ से अपने पुण्य पाप का फल भोगकर शेष कर्मों के आधार पर पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। हे राजन! इस प्रकार हमने अपनी मति के अनुसार तुम्हारे सामने नर्क आदि का वर्णन किया है।


।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम छब्बीसवां अध्याय समाप्तम🥀।।


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