वैबस्वतादि मन्वन्तर (वर्तमान मन्वंतर) वर्णन।।मनु की पहेली, मन्वंतर अवतार और विश्व शिक्षक भविष्यवाणियां।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
धर्म कथाएं
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?
(पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations?
नवीन सुख सागर
श्रीमद्भागवद पुराण तेरहवाँ अध्याय स्कंध ८।।वैबस्वतादि मन्वन्तर वर्णन।। वर्तमान मन्वंतर।।
मन्वंतर एक समय काल को भी दर्शाता है। अतएव उस काल की सम्पूर्ण प्रजा को भी।
दोहा-तेरहवें में वैवस्वत मनु सप्तम राजत जोय।
भाषे जौन भविष्य जो कथा कही सब सोय।।
श्री शुकदेव जी बोले- हे राजन् ! सप्तम वर्तमान मनु श्राद्ध देव नामक विवस्वान सूर्य का पुत्र हुआ, अब मैं इसके पुत्रादिकों का वर्णन करता हूँ।
वैवस्वतु मनु का सम्पूर्ण वर्णन।।
पुत्र
इक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याति, निरयन्त, दिष्ट, करुष, पषध और वसुमान ये दस पुत्र वैवस्वत मनु के हैं।
देवता
और श्रादित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेवा, मरुद्गण और अश्विनीकुमार ये इस मनु के देवता हैं और इन्द्र का नाम पुरन्दर है।
सप्तऋषि
कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज ये सात ऋषि है।
कश्यप के घर में अदिति से भगवान ने जन्म लिया, आदित्यों (शब्द आदित्यों को ऐसे जानना चाहिए, जैसे कुन्ती पुत्रों के सम्बोधन में कौन्तेय) से छोटा रुप वामन नाम धारण किया है।
महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १
हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ४
प्रह्लाद द्वारा भगवान का स्तवन। महाभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ५।।
अब आगे होने वाले सात मन्वन्तरों का वर्णन किया जाता है।
विवस्वत के दो स्त्री थीं। ये दोनों विश्वकर्मा की पुत्री थीं, इनके नाम संज्ञा और छाया थे । संज्ञा के यम, यमी, और श्रद्धदेव ये तीन सन्तान हुई और छाया के सार्वणि पुत्र हुआ, तपती कन्या हुई जो सम्वरण नाम राजा को ब्याही थी।
और इसी छाया के तीसरा शनैश्चर नाम का पुत्र हुआ तथा बड़वा नाम वाली सूर्य की पत्नी से अश्विनीकुमार दो पुत्र हुए।
सो अब ये सूर्य का पुत्र आठवां सार्वाणमनु होगा और निर्मोक तथा विरजस्क आदि इसके दस पुत्र होंगे, और सुतपा, विरजा तथा अमृत-प्रभा देवता होंगे और बिरोचन का पुत्र बलि इनका इन्द्र होगा।
यह बलि तीन पेंड़ माँगने वाले विष्णु को सब पृथ्वी देकर मिले हुए इन्द्र पद को त्यागकर परम सिद्धि प्राप्त करेगा।
गालव, दीप्तिमान, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, शृङ्गोऋषि, और हमारे पितर वेदव्यास जी ये सात ऋषि होंगे, ये इस समय अपने-अपने आश्रम में विराजमान हैं।
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सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।
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इस मन्वन्तर में सरस्वती के गर्भ से भगवान जन्म लेंगे और इन्द्रासन को पुरन्दर से छीनकर बलि को देंगे।
तदनन्तर वरुण का पुत्र दक्ष सार्वण नाम से नवां मन्वन्तर होगा, भूतकेतु और दिप्ति केतु आदि इसके दस पुत्र होंगे। पारा और मरीचि गर्भादिक देवता होंगे, अद्भुत नाम इन्द्र होगा घतिमनादि ऋषि होगे।
आयुष्मान की अम्बुधारा नाम की स्त्री से ऋषभदेव नाम भगवान उत्पन्न होंगे, जिसकी बढ़ाई हुई त्रिलोकी को अद्भत इन्द्र भोगेगा।
इसके पीछे उपश्लोग का बेटा ब्रह्मसार्विण नाम दसवां मनु होगा।
उसके पीछे धर्मसार्वाण नाम ग्यारहवां मनु होगा इसके अनागत और सत्य धर्मादिक दस पुत्र होंगे । विहङ्गम, कामगम और निर्वाण रुचि देवता होंगे वैधृति, इन्द्र और अरुणादिक ऋषि होंगे।
इस मन्वन्तर में भगवान आर्यक की स्त्रीवैधता से धर्महेतु नाम का अवतार धारण कर त्रिलोको को धारण करेंगे ।
तदनन्तर रुद्रसार्विण बारहवां मनु होगा, देववान् उपदेव और देव श्रेष्ठाविक इसके दश पुत्र होंगे। ऋतुमा नाम इन्द्र और हरितादिक देवता होंगे। तपोमूर्ति तपस्वी और अग्नीघ्रादिक सप्तऋषि होंगे। सत्यसहा सूनुतानाम्नी स्त्री से भगवान सुधामा नाम अवतार धारण कर रुद्रसार्विण मनु का पालन करेंगे।
तदनन्तर देवसावर्णि नाम तेरहवां मनु होगा। चित्रसेन और विचित्रादि इसके दश पुत्र होंगे। सुकर्म और सुत्रामादि देवता, दिवस्पति नाम इन्द्र तथा निर्मोक और सत्वदशदि सप्तऋषि होंगे। देवहोत्र की वृहती स्त्री से भगवान योगेश्वर नाम अवतार धारण करेंगे।
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फिर इन्द्र सावर्णि नाम चौदहवाँ मनु होगा उरु और गम्भीर, बुद्धि आदि इसके पुत्र होंगे, पवित्र और चक्षुष देवताशुचिनामा इन्द्र तथा अग्नि बाहु शुचि, शुद्धि और मायधादि सप्तऋषि होंगे। सत्रायण की वितानामा स्त्री से वृहद्भानु भगवान अवतार लेकर क्रियाओं का विस्तार करेंगे।हे राजन् ! उस तरह भूत, भविष्यत् वर्तमान तीनों काल में होने वाले चौदह मन्वन्तरों का वर्णन है। हजार चौकड़ी में ये चौदह मनु बीतते हैं। तब एक कल्प कहाता है।
मन्वन्तर
मनु हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु।
हिन्दू मापन प्रणाली में मन्वन्तर, लघुगणकीय पैमाने पर
प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है।
चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है। जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।
इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है।
सृष्टि की कुल आयु : 4320000000वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है।
वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है। इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे.
1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी 1 चतुर्युगी = चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)
चारों युगों की आयु :--
1 मन्वन्तर = 71 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 306720000 वर्ष
और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5115 वर्ष की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+5115 = 3893115 वर्ष इस प्रकार वर्तमान मे 28 वें चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वे चतुर्युगी की कुल आयु + 3893115 = 116640000+3893115 = 120533115 वर्ष इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके है = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7 वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 1840320000+120533115 = 1960853115 वर्ष। अब इसमें प्रत्येक चतुर्युग के संधि काल के समय जो षष्ठांश के बराबर होता है तथा कल्पों के प्रारम्भ और अन्त की सन्ध्या के काल समय जो एक संध्या काल एक त्रेता युग के बराबर होता है, को जोड़ लें। अत: वर्तमान मे 1972949120 वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2347050880 वर्ष भोगने है जो इस प्रकार है ... सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु - 1972949119 = 2347050881 वर्ष |
Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.
तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।
क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य? तंत्र- एक विज्ञान।।
आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।
तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।
मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।
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तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।
सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।
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