वैबस्वतादि मन्वन्तर (वर्तमान मन्वंतर) वर्णन।।मनु की पहेली, मन्वंतर अवतार और विश्व शिक्षक भविष्यवाणियां।

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

Note:The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. 
Jai shree Krishna.🙏ॐ
अवतार लेकर क्रियाओं का विस्तार करेंगे।   हे राजन् ! उस तरह भूत, भविष्यत् वर्तमान तीनों काल में होने वाले चौदह मन्वन्तरों का वर्णन है। हजार चौकड़ी में ये चौदह मनु बीतते हैं। तब एक कल्प कहाता है।



नवीन सुख सागर  श्रीमद्भागवद पुराण  तेरहवाँ अध्याय स्कंध ८ वैबस्वतादि मन्वन्तर वर्णन मन्वंतर  एक समय काल को भी दर्शाता है। अतएव उस काल की सम्पूर्ण प्रजा को भी।  दोहा-तेरहवें में वैवस्वत मनु सप्तम राजत जोय। भाषे जौन भविष्य जो कथा कही सब सोय।।    श्री शुकदेव जी बोले- हे राजन् ! सप्तम वर्तमान मनु श्राद्ध देव नामक विवस्वान सूर्य का पुत्र हुआ, अब मैं इसके पुत्रादिकों का वर्णन करता हूँ ।   वैवस्वतु मनु का सम्पूर्ण वर्णन।।   पुत्र   इक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याति, निरयन्त, दिष्ट, करुष, पषध और वसुमान ये दस पुत्र वैवस्वत मनु के हैं।   देवता   और श्रादित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेवा, मरुद्गण और अश्विनीकुमार ये इस मनु के देवता हैं और इन्द्र का नाम पुरन्दर है।   ॠषि   कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज ये सात ऋषि है।   कश्यप के घर में अदिति से भगवान ने जन्म लिया, आदित्यों (शब्द आदित्यों को ऐसे जानना चाहिए,  जैसे कुन्ती पुत्रों के सम्बोधन में कौन्तेय) से छोटा रुप वामन नाम धारण किया है।    अब आगे होने वाले सात मन्वन्तरों का वर्णन किया जाता है।    विवस्वत के दो स्त्री थीं। ये दोनों विश्वकर्मा की पुत्री थीं, इनके नाम संज्ञा और छाया थे । संज्ञा के यम, यमी, और श्रद्धदेव ये तीन सन्तान हुई और छाया के सार्वणि पुत्र हुआ, तपती कन्या हुई जो सम्वरण नाम राजा को ब्याही थी।   और इसी छाया के तीसरा शनैश्चर नाम का पुत्र हुआ तथा बड़वा नाम वाली सूर्य की पत्नी से अश्विनीकुमार दो पुत्र हुए।   सो अब ये सूर्य का पुत्र आठवां सार्वाणमनु होगा और निर्मोक तथा विरजस्क आदि इसके दस पुत्र होंगे, और सुतपा, विरजा तथा अमृत-प्रभा देवता होंगे और बिरोचन का पुत्र बलि इनका इन्द्र होगा।   यह बलि तीन पेंड़ माँगने वाले विष्णु को सब पृथ्वी देकर मिले हुए इन्द्र पद को त्यागकर परम सिद्धि प्राप्त करेगा।   गालव, दीप्तिमान, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, शृङ्गोऋषि, और हमारे पितर वेदव्यास जी ये सात ऋषि होंगे, ये इस समय अपने-अपने आश्रम में विराजमान हैं।   इस मन्वन्तर में सरस्वती के गर्भ से भगवान जन्म लेंगे और इन्द्रासन को पुरन्दर से छीनकर बलि को देंगे।   तदनन्तर वरुण का पुत्र दक्ष सार्वण नाम से नवां मन्वन्तर होगा, भूतकेतु और दिप्ति केतु आदि इसके दस पुत्र होंगे। पारा और मरीचि गर्भादिक देवता होंगे, अद्भुत नाम इन्द्र होगा घतिमनादि ऋषि होगे।   आयुष्मान की अम्बुधारा नाम की स्त्री से ऋषभदेव नाम भगवान उत्पन्न होंगे, जिसकी बढ़ाई हुई त्रिलोकी को अद्भत इन्द्र भोगेगा। इसके पीछे उपश्लोग का बेटा ब्रह्मसार्विण नाम दसवां मनु होगा।   भूरषेणादि इसके पुत्र होगे और हविष्मानादि, इसमें ऋषि होंगे। सुवासन और विरुद्धादिक देवता होंगे, इन्द्र का नाम शम्भु होगा। भगवान विष्वक्सेन विश्वस्त्रष्टाओं के घर में विषूची से जन्म लेकर शम्भु से मैत्री करेंगे।   उसके पीछे धर्मसार्वाण नाम ग्यारहवां मनु होगा इसके अनागत और सत्य धर्मादिक दस पुत्र होंगे । विहङ्गम, कामगम और निर्वाण रुचि देवता होंगे वैधृति, इन्द्र और अरुणादिक ऋषि होंगे।   इस मन्वन्तर में भगवान आर्यक की स्त्रीवैधता से धर्महेतु नाम का अवतार धारण कर त्रिलोको को धारण करेंगे ।   तदनन्तर रुद्रसार्विण बारहवां मनु होगा, देववान् उपदेव और देव श्रेष्ठाविक इसके दश पुत्र होंगे। ऋतुमा नाम इन्द्र और हरितादिक देवता होंगे। तपोमूर्ति तपस्वी और अग्नीघ्रादिक सप्तऋषि होंगे। सत्यसहा सूनुतानाम्नी स्त्री से भगवान सुधामा नाम अवतार धारण कर रुद्रसार्विण मनु का पालन करेंगे।   तदनन्तर देवसावर्णि नाम तेरहवां मनु होगा। चित्रसेन और विचित्रादि इसके दश पुत्र होंगे। सुकर्म और सुत्रामादि देवता, दिवस्पति नाम इन्द्र तथा निर्मोक और सत्वदशदि सप्तऋषि होंगे।  देवहोत्र की वृहती स्त्री से भगवान योगेश्वर नाम अवतार धारण करेंगे।   फिर इन्द्र सावर्णि नाम चौदहवाँ मनु होगा उरु और गम्भीर, बुद्धि आदि इसके पुत्र होंगे, पवित्र और चक्षुष देवताशुचिनामा इन्द्र तथा अग्नि बाहु शुचि, शुद्धि और मायधादि सप्तऋषि होंगे। सत्रायण की वितानामा स्त्री से वृहद्भानु भगवान अवतार लेकर क्रियाओं का विस्तार करेंगे।   हे राजन् ! उस तरह भूत, भविष्यत् वर्तमान तीनों काल में होने वाले चौदह मन्वन्तरों का वर्णन है। हजार चौकड़ी में ये चौदह मनु बीतते हैं। तब एक कल्प कहाता है।    मन्वन्तर     मनु  हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु[3].     हिन्दू मापन प्रणाली में मन्वन्तर, लघुगणकीय पैमाने पर   प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है। मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी). उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं। इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं।   चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है[4], जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।   इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है। [5].   सृष्टि कि कुल आयु : 4320000000वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है.   वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे.   1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी 1 चतुर्युगी = चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)   चारों युगों की आयु :-- सतयुग = 1728000 वर्ष त्रेतायुग = 1296000 वर्ष द्वापरयुग = 864000 वर्ष और कलियुग = 432000 वर्ष इस प्रकार 1 चतुर्युगी की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+432000 = 4320000 वर्ष अत :   1 मन्वन्तर = 71 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 306720000 वर्ष चूंकि एेसे - एेसे 6 मन्वन्तर बीत चुके है . इसलिए 6 मन्वन्तर की कुल आयु = 6 × 306720000 = 1840320000 वर्ष वर्तमान मे 7 वें मन्वन्तर के भोग मे यह 28वीं चतुर्युगी है. इस 28वीं चतुर्युगी मे 3 युग अर्थात् सतयुग , त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके है और कलियुग का 5115 वां वर्ष चल रहा है . 27 चतुर्युगी की कुल आयु = 27 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 116640000 वर्ष   और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5115 वर्ष की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+5115 = 3893115 वर्ष इस प्रकार वर्तमान मे 28 वें चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वे चतुर्युगी की कुल आयु + 3893115 = 116640000+3893115 = 120533115 वर्ष इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके है = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7 वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 1840320000+120533115 = 1960853115 वर्ष . अब इसमें प्रत्येक चतुर्युग के संधि काल के समय जो षष्ठांश के बराबर होता है तथा कल्पों के प्रारम्भ और अन्त की सन्ध्या के काल समय जो एक संध्या काल एक त्रेता युग के बराबर होता है, को जोड़ लें। अत: वर्तमान मे 1972949120 वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2347050880 वर्ष भोगने है जो इस प्रकार है ... सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु - 1972949119 = 2347050881 वर्ष | यह गणना लिंग और स्कंध इत्यादि पुराणों से, पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती द्वारा उत्तरोत्तरित है।




नवीन सुख सागर

श्रीमद्भागवद पुराण  तेरहवाँ अध्याय स्कंध ८।।वैबस्वतादि मन्वन्तर वर्णन।। वर्तमान मन्वंतर।।

मन्वंतर  एक समय काल को भी दर्शाता है। अतएव उस काल की सम्पूर्ण प्रजा को भी। 

दोहा-तेरहवें में वैवस्वत मनु सप्तम राजत जोय।
भाषे जौन भविष्य जो कथा कही सब सोय।।









श्री शुकदेव जी बोले- हे राजन् ! सप्तम वर्तमान मनु श्राद्ध देव नामक विवस्वान सूर्य का पुत्र हुआ, अब मैं इसके पुत्रादिकों का वर्णन करता हूँ।

वैवस्वतु मनु का सम्पूर्ण वर्णन।।


पुत्र

इक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याति, निरयन्त, दिष्ट, करुष, पषध और वसुमान ये दस पुत्र वैवस्वत मनु के हैं।

देवता

और श्रादित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेवा, मरुद्गण और अश्विनीकुमार ये इस मनु के देवता हैं और इन्द्र का नाम पुरन्दर है।

सप्तऋषि 

कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज ये सात ऋषि है।

कश्यप के घर में अदिति से भगवान ने जन्म लिया, आदित्यों (शब्द आदित्यों को ऐसे जानना चाहिए,  जैसे कुन्ती पुत्रों के सम्बोधन में कौन्तेय) से छोटा रुप वामन नाम धारण किया है।

महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १




हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग 


प्रह्लाद द्वारा भगवान का स्तवन। महाभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ५।।


अब आगे होने वाले सात मन्वन्तरों का वर्णन किया जाता है।



विवस्वत के दो स्त्री थीं। ये दोनों विश्वकर्मा की पुत्री थीं, इनके नाम संज्ञा और छाया थे । संज्ञा के यम, यमी, और श्रद्धदेव ये तीन सन्तान हुई और छाया के सार्वणि पुत्र हुआ, तपती कन्या हुई जो सम्वरण नाम राजा को ब्याही थी।

और इसी छाया के तीसरा शनैश्चर नाम का पुत्र हुआ तथा बड़वा नाम वाली सूर्य की पत्नी से अश्विनीकुमार दो पुत्र हुए।

सो अब ये सूर्य का पुत्र आठवां सार्वाणमनु होगा और निर्मोक तथा विरजस्क आदि इसके दस पुत्र होंगे, और सुतपा, विरजा तथा अमृत-प्रभा देवता होंगे और बिरोचन का पुत्र बलि इनका इन्द्र होगा।


यह बलि तीन पेंड़ माँगने वाले विष्णु को सब पृथ्वी देकर मिले हुए इन्द्र पद को त्यागकर परम सिद्धि प्राप्त करेगा।

गालव, दीप्तिमान, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, शृङ्गोऋषि, और हमारे पितर वेदव्यास जी ये सात ऋषि होंगे, ये इस समय अपने-अपने आश्रम में विराजमान हैं।

मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?


यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।। 


सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।


सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !


Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)



सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ

इस मन्वन्तर में सरस्वती के गर्भ से भगवान जन्म लेंगे और इन्द्रासन को पुरन्दर से छीनकर बलि को देंगे।


तदनन्तर वरुण का पुत्र दक्ष सार्वण नाम से नवां मन्वन्तर होगा, भूतकेतु और दिप्ति केतु आदि इसके दस पुत्र होंगे। पारा और मरीचि गर्भादिक देवता होंगे, अद्भुत नाम इन्द्र होगा घतिमनादि ऋषि होगे।

आयुष्मान की अम्बुधारा नाम की स्त्री से ऋषभदेव नाम भगवान उत्पन्न होंगे, जिसकी बढ़ाई हुई त्रिलोकी को अद्भत इन्द्र भोगेगा। 

इसके पीछे उपश्लोग का बेटा ब्रह्मसार्विण नाम दसवां मनु होगा।













भूरषेणादि इसके पुत्र होगे और हविष्मानादि, इसमें ऋषि होंगे। सुवासन और विरुद्धादिक देवता होंगे, इन्द्र का नाम शम्भु होगा। भगवान विष्वक्सेन विश्वस्त्रष्टाओं के घर में विषूची से जन्म लेकर शम्भु से मैत्री करेंगे।

उसके पीछे धर्मसार्वाण नाम ग्यारहवां मनु होगा इसके अनागत और सत्य धर्मादिक दस पुत्र होंगे । विहङ्गम, कामगम और निर्वाण रुचि देवता होंगे वैधृति, इन्द्र और अरुणादिक ऋषि होंगे।

इस मन्वन्तर में भगवान आर्यक की स्त्रीवैधता से धर्महेतु नाम का अवतार धारण कर त्रिलोको को धारण करेंगे ।

तदनन्तर रुद्रसार्विण बारहवां मनु होगा, देववान् उपदेव और देव श्रेष्ठाविक इसके दश पुत्र होंगे। ऋतुमा नाम इन्द्र और हरितादिक देवता होंगे। तपोमूर्ति तपस्वी और अग्नीघ्रादिक सप्तऋषि होंगे। सत्यसहा सूनुतानाम्नी स्त्री से भगवान सुधामा नाम अवतार धारण कर रुद्रसार्विण मनु का पालन करेंगे।

तदनन्तर देवसावर्णि नाम तेरहवां मनु होगा। चित्रसेन और विचित्रादि इसके दश पुत्र होंगे। सुकर्म और सुत्रामादि देवता, दिवस्पति नाम इन्द्र तथा निर्मोक और सत्वदशदि सप्तऋषि होंगे।  देवहोत्र की वृहती स्त्री से भगवान योगेश्वर नाम अवतार धारण करेंगे।

गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।


महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम


क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.


श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।


Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.



हम किसी भी व्यक्ति का नाम विभीषण क्यों नहीं रखते ?

फिर इन्द्र सावर्णि नाम चौदहवाँ मनु होगा उरु और गम्भीर, बुद्धि आदि इसके पुत्र होंगे, पवित्र और चक्षुष देवताशुचिनामा इन्द्र तथा अग्नि बाहु शुचि, शुद्धि और मायधादि सप्तऋषि होंगे। सत्रायण की वितानामा स्त्री से वृहद्भानु भगवान अवतार लेकर क्रियाओं का विस्तार करेंगे।

हे राजन् ! उस तरह भूत, भविष्यत् वर्तमान तीनों काल में होने वाले चौदह मन्वन्तरों का वर्णन है। हजार चौकड़ी में ये चौदह मनु बीतते हैं। तब एक कल्प कहाता है।



मन्वन्तर 

 मनु  हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु।




हिन्दू मापन प्रणाली में मन्वन्तर, लघुगणकीय पैमाने पर

प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है। 


मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी)। उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं। इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं।

चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है। जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।

इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है। 

सृष्टि की कुल आयु : 4320000000वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है।

वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है। इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे.

1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी 1 चतुर्युगी = चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)

चारों युगों की आयु :--

 सतयुग = 1728000 वर्ष 
त्रेतायुग = 1296000 वर्ष 
द्वापरयुग = 864000 वर्ष और कलियुग = 432000 वर्ष 

इस प्रकार 1 चतुर्युगी की कुल आयु =1728000+1296000+864000+432000 = 4320000 वर्ष अत :

1 मन्वन्तर = 71 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 306720000 वर्ष 



चूंकि एसे - ऐसे 6 मन्वन्तर बीत चुके है। इसलिए 6 मन्वन्तर की कुल आयु = 6 × 306720000 = 1840320000 वर्ष वर्तमान मे 7 वें मन्वन्तर के भोग मे यह 28वीं चतुर्युगी है। इस 28वीं चतुर्युगी मे 3 युग अर्थात् सतयुग , त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके है और कलियुग का 5115 वां वर्ष चल रहा है। 

27 चतुर्युगी की कुल आयु = 27 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 116640000 वर्ष

और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5115 वर्ष की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+5115 = 3893115 वर्ष इस प्रकार वर्तमान मे 28 वें चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वे चतुर्युगी की कुल आयु + 3893115 = 116640000+3893115 = 120533115 वर्ष इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके है = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7 वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 1840320000+120533115 = 1960853115 वर्ष। अब इसमें प्रत्येक चतुर्युग के संधि काल के समय जो षष्ठांश के बराबर होता है तथा कल्पों के प्रारम्भ और अन्त की सन्ध्या के काल समय जो एक संध्या काल एक त्रेता युग के बराबर होता है, को जोड़ लें। अत: वर्तमान मे 1972949120 वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2347050880 वर्ष भोगने है जो इस प्रकार है ... सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु - 1972949119 = 2347050881 वर्ष | 



यह गणना लिंग और स्कंध इत्यादि पुराणों से, पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती द्वारा उत्तरोत्तरित है।

Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.


तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य?  तंत्र- एक विज्ञान।।

जनेऊ का महत्व।।


आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।


तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।

मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।


Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?


तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।

Sukh ka arth

सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।


सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा।।


आधुनिक विज्ञान ब्रह्मांड में अभी तक १० लाख आकाश गंगाओं का पता लगा पाया है !

प्रत्येक आकाशगंगा में १०० लाख तारे हैं , जिनकी गणना प्रकाशपुंज की लंबाई के आधार पर विज्ञान ने की है !

ब्रह्मांड में कुल कितनी आकाश गंगाएं हैं , बताने में विज्ञान समर्थ नहीं है !

यद्यपि आध्यात्मिक अवधारणाओं में " हरि अनंत हरि कथा अनंता " और " नेति नेति " कह कर ब्रह्मांड की विराटता को व्यक्त किया गया है !

ऋषि मुनियों ने समय को नापा और ज्योतिष ने सृष्टि प्रारंभ होने से लेकर आज तक के समय की गणना १९४ करोड़ वर्ष की है !

ब्रह्मांड की असली आयु की खोज अभी जारी है !

हमारे यहां काल की गणना युग , चतुर्युग , मन्वंतर और कल्प आदि के आधार पर निर्धारित कर की गई है । इसके अनुसार कलयुग की आयु ही चार लाख वर्षों से अधिक है । द्वापर की आठ लाख , त्रेता की बारह लाख और सतयुग की अठारह लाख वर्षों से अधिक है ।

मतलब कलयुग बेशक करीब पांच हजार वर्ष पुराना हुआ हो , त्रेता का रामयुग तो आठ लाख वर्ष आयु से पहला है । राम को अवतरित हुए और गंगा को धरती पर आए कम से कम आठ लाख वर्ष तो बीत ही गए । तब बड़ा आश्चर्य होता है जब आज के विद्वान राम के त्रेता युग को मात्र सात हजार वर्ष पुराना बताकर प्रचारित करते हैं ? इन विद्वानों में कुछ प्रवक्ता भी शामिल हैं । यह मजाक तो नासा भी स्वीकार नहीं करता और राम सेतु को ही लाखों वर्ष पुराना बताता है । फिर हम राम की प्राचीनता को मात्र सात हजार वर्ष बताकर क्या साबित करना चाहते हैं ?

जीव वैज्ञानिकों के अनुसार करोड़ों वर्ष पुराने फॉसिल्स मिले हैं । धरती पर डायनासोर को लुप्त हुए छह करोड़ वर्ष बीत गए । हिमालय और आल्प्स पर्वतों की बर्फ में मिले जीवाश्म मनुष्य की विकासवाद की कहानी बताते हैं । डार्विन की जीवन विकासवाद की थ्योरी विकास की यही कहानी बयां करती है । विज्ञान ने हमारी प्राचीनता के बारे में बहुत कुछ खोजा । हमारा चिंतन , दर्शन और अध्यात्म भी वही कहता है जो आज विज्ञान कहता है ।

बड़ा गुस्सा आता है जब लोग भारत की संस्कृति को कुल सात हजार वर्ष पुरानी बताते हैं । यह अज्ञान है । देश को फर्जी इतिहास के इसी मायाजाल को विखंडित कर बाहर निकलना होगा ।

देश में इस समय उस भ्रम को तोड़ने का काम हो रहा है जो गलत इतिहास पढ़ाकर फैलाया गया । इतिहास को मुगलों ने बदला , मैकाले के वंशजों ने बदला , कम्युनिस्टों ने बदला , अर्बन नक्सल्स ने बदला । गलत इतिहास पढ़ाने का प्रमाण है कि हमनें खुद पर और अपनी प्राचीन उपलब्धियों को अंधविश्वास बता दिया । हम आर्यभट्ट , वराहमिहिर , कणाद , चरक , पातंजल जैसे वैज्ञानिकों को भूल गए । वे कब से बता चुके हैं कि हमारा ब्रह्मांड अनंत है , जिसमें अरबों आकाश गंगाएं और खरबों तारे हैं । ऋषियों ने जो भी प्रतिपादित किया , वह विज्ञान ही तो है । अब नासा ने १० लाख आकाश गंगाएं बताई तो हमने विश्वास कर लिया , अपनी जानकारियों को अवैज्ञानिक बताकर खारिज कर दिया ।

यही अज्ञान है , जिसे दूर करने का बीड़ा अब भारत सरकार ने उठा लिया है ।


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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।

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