इन्द्र को जो वृह्म हत्या लगी। उसके चार भाग।

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६

नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पुराण नौवां अध्याय [स्कंध ६]

इन्द्र को जो वृह्म हत्या लगी। उसके चार भाग। पृथ्वी, जल, वृक्ष, स्त्री।

नवीन सुख सागर   श्रीमद भागवद पुराण  नौवां अध्याय [स्कंध ६] (वृत्तासुर की उत्पत्ति का वर्णन)   दो• क्रोधित हो इन्द्रदेव ने विश्वरूप दियौ मार। तवष्टा ने तब कुपति हो, वृत्तासुर परचार॥   श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षत ! विश्वरूप के तीन सिर थे वह एक सिर से सोम पान करता था, तथा दूसरे सिर से मंदिरा पीता था, तथा तीसरे से अन्न भक्षण करता था।   हे राजन् ! विश्वरूप के पिता देवता थे इसलिये वह देवताओं को तो यज्ञ में भाग देता ही था । परन्तु माता राक्षस कुल की थी इसलिये वह छिपाकर यज्ञ में असुरों को भी भाग दिया करता था। एक दिन देवराज इन्द्र ने उसका यह अनुचित आचरण देख लिया, तब दैत्यों का भय मान इन्द्र ने क्रोधित हो विश्वरूप के तीनों सिर अपने खंग से काट डाले।   विश्वरूप के मारने से इन्द्र को जो वृह्म हत्या लगी उसे वह एक वर्ष तक धारण किये रहा। पश्चात उसने उसके चार भाग करके पृथ्वी, जल, वृक्ष, स्त्री, को पृथक-पृथक बाँट दिये।  सो जितना भूमि का ऊसर भाग है वह सब वृह्म हत्या का ही भाग जानो, तथा वृक्षों ने इस पाप को जब धारण किया कि यह वर लिया कि हम कटने के पश्चात भी फिर उग आवें । वृक्षों में जो गोंद निकलता है वहीं उस वृह्म हत्या का एक भाग है। स्त्रियों ने यह एक भाग लिया तो वर प्राप्त किया कि जब तक बालक हो तब तक मैथुन करने पर भी गर्भ को कोई हानि न होवे तथा गर्भ होने पर पुनः गर्भ न हो। जो मासिक धर्म होता है वही वृह्म हत्या एक भाग हैं। इसी प्रकार जल ने भी उस पाप को धारण कर वर प्राप्त किया कि वह जिस पदार्थ में मिलाया जाय तो वह बढ़ जाय जैसे कि दूध आदि में मिलाने पर दूध बढ़ जाता है, दूसरा यह कि आदि में से जल निकालने पर भी उसका जल न घटे। जल के फेन कोही वृह्म हत्या का चौथाई भाग जानना चाहिये।   जब विश्वरूप को इन्द्र ने मार डाला तो उसके पिता त्वष्ठा ने इन्द्र को मारने के लिए एक यज्ञ इस मंत्र से किया कि उसका अर्थ यह था कि, हे इन्द्र शस्त्रों ! शत्रु को शीघ्र मारो, यह मंत्र पढ़-पढ़ कर यज्ञ में हवन किया।   जिस में दक्षिणाग्रि में से एक अति भयंकर पुरुष उत्पन्न हुआ। वह नित्य प्रति चारों ओर से इतना बढ़ता था कि जितना धनुष पर रख कर छोड़ा हुआ बॉण जितनी दूर जाता है। उसका स्वरूप बड़ा ही भयानक था उसने जब जँभाई ली तो उसकी भयंकर दाड़ों को देख कर सब लोक भय भीत हो जिधर स्थान मिला उधर को भाग गये। इस का नाम वृत्तासुर हुआ जो अंधकार के समान वर्ण वाला था। इसने संपूर्ण लोकों को घेर लिया था इस कारण इस का नाम वृत्तासुर पड़ा था । वृत्तासुर को देखते ही समस्त देवता लोग अपनी सेना लेकर मारने को आए और नाना प्रकार के अनेक अस्त्र शस्त्रों से मारने लगे, परन्तु वह उन अस्त्र शस्त्रों से मार न सके, और वह वृत्तासुर देवताओं के सभी अस्त्र शस्त्र को ले-ले कर निगल गया। यह देख सभी देवता भयभीत हुए उनमें वृत्तासुर के सामने जाकर लड़ने का साहस न रहा, और वे विविधि भाँति भगवान विष्णु की आराधना करने लगे। देवताओं की पुकार सुन दीन वत्सल भगवान अपना चतुर्भुज रुप धारण करके प्रगट हुए, संपूर्ण देवतागण भगवान का दर्शन कर आनंदित हुए, और उनके चरणों में प्रणाम दंडवत करने लगे। देवताओं द्वारा विनय करने पर भगवान विष्णु ने कहा- हे इंद्र ! यदि तुम अपना भला चाहते हो तो दधीच मुनि के आश्रम पर जाय उनके शरीर माँगो और उस ऋषि के शरीर की हडिडयों से बज्र बनाय वृत्तासुर का शिर काट डालो, तो तुम्हारा सब प्रकार से भला होगा।  ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अष्टम अध्याय समाप्तम🥀।।  ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_


श्रीमद भागवद पुराण नौवां अध्याय [स्कंध ६]

(वृत्तासुर की उत्पत्ति का वर्णन)

दो• क्रोधित हो इन्द्रदेव ने विश्वरूप दियौ मार।

तवष्टा ने तब कुपति हो, वृत्तासुर परचार॥


श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षत ! विश्वरूप के तीन सिर थे वह एक सिर से सोम पान करता था, तथा दूसरे सिर से मंदिरा पीता था, तथा तीसरे से अन्न भक्षण करता था।

हे राजन् ! विश्वरूप के पिता देवता थे इसलिये वह देवताओं को तो यज्ञ में भाग देता ही था । परन्तु माता राक्षस कुल की थी इसलिये वह छिपाकर यज्ञ में असुरों को भी भाग दिया करता था। एक दिन देवराज इन्द्र ने उसका यह अनुचित आचरण देख लिया, तब दैत्यों का भय मान इन्द्र ने क्रोधित हो विश्वरूप के तीनों सिर अपने खंग से काट डाले।

विश्वरूप के मारने से इन्द्र को जो वृह्म हत्या लगी उसे वह एक वर्ष तक धारण किये रहा। पश्चात उसने उसके चार भाग करके पृथ्वी, जल, वृक्ष, स्त्री, को पृथक-पृथक बाँट दिये।


सो जितना भूमि का ऊसर भाग है वह सब वृह्म हत्या का ही भाग जानो, तथा वृक्षों ने इस पाप को जब धारण किया कि यह वर लिया कि हम कटने के पश्चात भी फिर उग आवें । वृक्षों में जो गोंद निकलता है वहीं उस वृह्म हत्या का एक भाग है। स्त्रियों ने यह एक भाग लिया तो वर प्राप्त किया कि जब तक बालक हो तब तक मैथुन करने पर भी गर्भ को कोई हानि न होवे तथा गर्भ होने पर पुनः गर्भ न हो। जो मासिक धर्म होता है वही वृह्म हत्या एक भाग हैं। इसी प्रकार जल ने भी उस पाप को धारण कर वर प्राप्त किया कि वह जिस पदार्थ में मिलाया जाय तो वह बढ़ जाय जैसे कि दूध आदि में मिलाने पर दूध बढ़ जाता है, दूसरा यह कि आदि में से जल निकालने पर भी उसका जल न घटे। जल के फेन कोही वृह्म हत्या का चौथाई भाग जानना चाहिये।

जब विश्वरूप को इन्द्र ने मार डाला तो उसके पिता त्वष्ठा ने इन्द्र को मारने के लिए एक यज्ञ इस मंत्र से किया कि उसका अर्थ यह था कि, हे इन्द्र शस्त्रों ! शत्रु को शीघ्र मारो, यह मंत्र पढ़-पढ़ कर यज्ञ में हवन किया।

जिस में दक्षिणाग्रि में से एक अति भयंकर पुरुष उत्पन्न हुआ। वह नित्य प्रति चारों ओर से इतना बढ़ता था कि जितना धनुष पर रख कर छोड़ा हुआ बॉण जितनी दूर जाता है। उसका स्वरूप बड़ा ही भयानक था उसने जब जँभाई ली तो उसकी भयंकर दाड़ों को देख कर सब लोक भय भीत हो जिधर स्थान मिला उधर को भाग गये। इस का नाम वृत्तासुर हुआ जो अंधकार के समान वर्ण वाला था। इसने संपूर्ण लोकों को घेर लिया था इस कारण इस का नाम वृत्तासुर पड़ा था । वृत्तासुर को देखते ही समस्त देवता लोग अपनी सेना लेकर मारने को आए और नाना प्रकार के अनेक अस्त्र शस्त्रों से मारने लगे, परन्तु वह उन अस्त्र शस्त्रों से मार न सके, और वह वृत्तासुर देवताओं के सभी अस्त्र शस्त्र को ले-ले कर निगल गया। यह देख सभी देवता भयभीत हुए उनमें वृत्तासुर के सामने जाकर लड़ने का साहस न रहा, और वे विविधि भाँति भगवान विष्णु की आराधना करने लगे। देवताओं की पुकार सुन दीन वत्सल भगवान अपना चतुर्भुज रुप धारण करके प्रगट हुए, संपूर्ण देवतागण भगवान का दर्शन कर आनंदित हुए, और उनके चरणों में प्रणाम दंडवत करने लगे। देवताओं द्वारा विनय करने पर भगवान विष्णु ने कहा- हे इंद्र ! यदि तुम अपना भला चाहते हो तो दधीच मुनि के आश्रम पर जाय उनके शरीर माँगो और उस ऋषि के शरीर की हडिडयों से बज्र बनाय वृत्तासुर का शिर काट डालो, तो तुम्हारा सब प्रकार से भला होगा।


।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अष्टम अध्याय समाप्तम🥀।।

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