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राजा मनु का पुर्ण चरित्र व वंश वर्णन। मनु पुत्री का कदर्म ऋषि संग विवाह।।

 श्रीमद भागवद पुराण बाईसवां अध्याय [स्कंध३] देवहूति का कदमजी के साथ विवाह होना दोहा-ज्यों कदम को देवहूति ने मनु को दी सौंपाय। बाईसवे अध्याय में कथा कही दर्शाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार विदुर जी को कथा प्रसंग सुनाते हुए मेत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! जब कर्दम जी के सम्पूर्ण गुणों को प्रसंसा करते हुये आने का प्रयोजन जानने को कहा तो मनु जी बोले हे मुनि आपके दर्शन को हमारे संपूर्ण सन्देह दूर हो गये, मैं इस अपनी कन्या के प्रेम विवश अति किलष्ट चित्त और दीन हूँ, सो आप मुझ दीन की प्रार्थना कृपा करके ध्यान पूर्वक सुनिये। यह हमारी देवहूति नामक कन्या जो कि हमारे पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद की बहन है, सो अवस्था, शील, आदि गुणों से युक्त है। सो यह आपके ही समान गुण वाले पति की अभिलाषा करती है। इस कन्या ने जब से नारदमुनि के मुख से आपके गुण, रूप, शील तथा अवस्था की प्रसंसा सुनी है तब से इसने अपने मन से आपको अपना पति बनाने का निश्चय कर लिया है । सो हे प्रियवर ! मैं अपनी इस 1. कन्या को आपकोश्रद्धा पूर्वक समर्पण करता हूँ । हे विद्वान मैंने यह सुना था कि आप अपने विवाह का उद्योग कर रहे ह

श्रीमद भगवद पुराण ईक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध ३]। विष्णुसार तीर्थ।

श्रीमद भगवद पुराण ईक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध ३]। विष्णुसार तीर्थ शतरुपा और स्वयंभुव मनु द्वारा सृष्टि उत्पत्ति   कर्दम  ऋषि का देवहूति के साथ विवाह दो-ज्यों मुनि ने देवहूति का, ऋषि कर्दम के संग। व्याह किया जिमि रुप से, सो इस माहि प्रसंग। श्री शुकदेव जी ने परीक्षित राजा ने कहा-हे राजन् ! इस प्रकार सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन करते हुये मैत्रेय जी ने कहा-हे विदुर जी ! हम कह चुके हैं कि जब पृथ्वी स्थिर हो चुकी तब श्री परब्रह्म प्रभु की माया से चौबीस तत्व प्रकट हुए और जब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को त्याग दिया था जिस के दाये अंग से स्वायम्भुव मनु और बाएं अंग से शतरूपा उत्पन्न हुये। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें आज्ञा दी कि पहिले तुम श्री नारायण के तप और स्मरण करो तत्पश्चात परस्पर विवाह करके संसारी जीवों की उत्पत्ति करना । तब ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर स्वायंभुव मनु और शतरूपा दोनों ही वन को श्री नारायण जी की तपस्या करने चले गये। पश्चात, उनके बन जाने के ब्रह्मा जी ने श्री नारायण जी से सृष्टि उत्पन्न करने की सामर्थ प्राप्त करने के लिये अनेक प्रार्थना की तो नारायण जी ने उन्हें ध्यान में दर्शन देकर यह उपदेश क

किस जगह, किस रूप में विराजमान हैं, श्री हरि व उनके पूजन के मंत्र।

श्रीमद भागवद पुराण* अट्ठारहवां अध्याय * [स्कंध ५] (वर्ष वर्णन) दोहा: शेष वर्ष वर्णन कियो, सेवक जो कहलाय। अष्टम दस अध्याय में, कीरति कही बनाय।। भद्राश्व खण्ड श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! उस भद्राश्व खंड में भद्रश्राव नाम, धर्म का पुत्र उसी खण्ड का स्वामी है। वहाँ पर उसके सेवक जन भगवान हय ग्रीव की मूर्ति की आराधना मन लगा कर इस मंत्र-ओं नमों भगबते धर्मात्याम विशोधनय नमः। का जप करते हैं। प्रलय काल में तमोगुण रूप दैत्य जब वेद को चुरा कर ले गया था, तब हयग्रीव रूप अवतार धारण कर भगवान उन वेदों को पाताल से लाये और फिर उन्होंने ब्रह्मा जो को दिये सो हम उन भगवान को बारम्बार नमस्कार करते हैं। वहाँ प्रहलाद जी उस खण्ड के पुरुषों के साथ अनन्य भक्ति से निरन्तर भगवान विष्णु के नृसिंह रूप की उपासना करते हैं। नृसिंह उपासना का मंत्र यह है-ओं नमो भगवते नरसिंहाय नमस्ते जस्तेजसे आविराविभर्व बज्रनख, बज्रदंष्ट्र, कर्माश्यान रंधय-रंधय तमो ग्रस-ग्रस ओं स्वाहा अभयम भयात्मनि भूयिष्ठा औंक्ष् रौं इसी मंत्र का जाप करते हैं । औंक्ष् रौं यह इनका बीज मंत्र है । यह इतना बड़ा नृसिंह जी का मंत्र है इसे प्रहलाद

सृष्टि विस्तर अर्थ ब्रह्मा जी द्वारा किये गये कर्म एवं देह त्याग।

श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय[स्कंध ३] दोहा-स्वयंभुव मनु के वश से भयौ जगत विस्तार। सो सब या अध्याय में बनू कथा उचार ।। ( सृष्टि विस्तार ) हिरण्यक्ष वध श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी ! हिरण्याक्ष के मरने पर देवता गण अत्यन्त प्रसन्न हुये और भगवान बाराहजी पर पुष्पो की वर्षा करते हुये, अपना मनोरथ पूर्ण हुआ जानकर आनन्द के बाजे बजाने लगे। सब देवताओं सहित वृह्माजी ने श्री बाराह भगवान के समीप जाकर इस प्रकार से स्तुति की, हे अनादि पुरुष वाराह जी ! आपने देवता, सत्पुरुष, ब्राह्मण एवं यज्ञादि की रक्षा करने के निमित्त इस दुष्ट पापाचारी हिरण्याक्ष राक्षस का संहार किया है। आपने ही पृथ्वी को पाताल से निकाल कर जल पर स्थित किया हैं। हे प्रभु ! अब आपकी ही कृपा से सब जीव इस पृथ्वी पर रह कर आनन्द सहित यज्ञ, जप, तप, पूजा एवं दान आदि कर्म किया करेंगे। हे दीनबन्धु! उस दैत्य हिरण्याक्ष के समय में यज्ञ में देवता तथा पितरों को भाग नहीं मिलता था। अब वे सभी देवता तथा पितर अपना-अपना भाग प्राप्त करके आनन्द सहित आपका स्मरण किया करेंगे। जब वृह्माजी सभी देवता और ऋषियों सहित स्तुति कर चुके तो पश्चात पृथ्वी स्त्री

भगवान विष्णु का हिरण्यक्ष को युध्ददान।

 अध्याय १८ श्रीमद भागवद पुराण *अठारहवाँ अध्याय* [स्कंध३] हिरण्याक्ष के साथ भगवान वाराह का युद्ध। दो-या अष्टमदश अध्याय में, वरणी कथा ललाम। वराह और हिरण्याक्ष में हुआ घोर संग्राम ॥ श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी ! जब वरुण जी ने उस महा दुख दाई दैत्य से इस प्रकार बचन कहे तो वह वरुण जी का ठठा कर हँसा और वहाँ से भगवान विष्णु को खोजने के लिये चल पड़ा। तभी मार्ग में उसे हरिगुन गाते हुये नारद मुनि आते हुये मिले । तब उस दैत्य ने नारद जी से कहा-रे नारद! तू इस तरह घूम फिर कर किस के गुण गाता फिरता है। तब नारद जी ने कहा-हे देत्यराज हिरण्याक्ष! यह सब आपही की महिमा है जो मैं इस प्रकार स्वछन्द हो भ्रमण करता हूँ। इससे दैत्य ने प्रसन्न होकर कहा-अच्छा तुमने कहीं विष्णु को भी देखा है । नारद जी ने उचित मौका जान कर कहा हे दैत्यराज ! वह तो इस सम्य बाराह का रूप धारण कर पाताल को गये हैं सो आप शीघ ही उन्हें प्राप्त कर सकते हैं । हे विदुर जी। नारद द्वारा सूचना प्राप्त कर वह देत्य युद्ध को उन्मत्त हुआ पाताल लोक में पहुँचा तो उसने वाराह रूप भगवान विष्णु को अपनी दाड़ों पर पृथ्वी को उठाये जाते हुये देखा। तब हिरण्या

हिरण्यकशिपु हिरनक्ष्य की जनम कथा [भाग २]

 श्रीमद भागवद पुराण सोलहवां अध्याय [स्कंध ३] (जय विजय का वेकुँठ से अधः पतन) हिरण्यकशिपु हिरनक्ष्य की जनम कथा [भाग २] दोहा-गीत आप जो विधि कियो,वर्णों सो सब काम या सोलह अध्याय में कीजे श्रवण तमाम । मैत्रेय जी बोले- हे विदुर जी ! उन चारों मुनियों की बात सुन भगवान नारायण ने कहा-है मुने ! दोनों जय विजय नाम के पार्षद हैं । जिन्होंने हमारी आज्ञा का उल्लंघन कर के आपका तिरस्कार करके भारी अपराध किया है आपका जो अनादर मेरे पार्षदों ने किया है सो वह मैंने ही किया है ऐसा मैं मानता हूँ। अतः आपने इनको दंड दिया सो बहुत अच्छा किया है यह सब आपकी सेवा के प्रताप से ही मैं इस कीति और वैकुन्ठ पद को प्राप्त हूँ सो जो आपसे प्रतिकूल होवे मैं स्वयं उसका छेदन करू, चाहे वह मेरी स्वयं की भुजा ही क्यों न हों। आपकी सेवा के प्रभाव से ही हमारे चरण कमलों की रज पवित्र है, कि जिससे संपूर्ण पापों का नाश हो जाता है, अखंड अंकुरित योगमाया के वैभव से युक्त मैं आप जैसे ब्राह्मणों की निर्मल चरण रज को किरीटों पर धारण करता हूँ सो आप जैसे ब्राह्मण ऋषि यदि अपराध करें तो भी उनके वह अपराध सहन करने योग्य हैं । जो लोग मेरे शरीर रूप गौ,

किस कारण हुआ भक्त प्रह्लाद का असुर कुल में जनम?

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 श्रीमद भागवद पुराण चौदहवाँ अध्याय [स्कंध ३] (दिति के गर्भ की उत्पत्ति का वर्णन) दो०-जैसे अदित के गर्भ से भयौ हिरणाक्ष्यजु आय । सो चौदह अध्याय विस कही कथा दर्शाय ।। प्रह्लाद की कथा।। श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परिक्षत ! अब आप वह कथा सुनिये कि जिम प्रकार विदुर जी ने मुनि रूत्तम से हिरणाक्ष राक्षस की उत्पत्ति की कथा सुनी थी। तथा किस प्रकार भगवान ने बाराह अवतार धारण कर पृथ्वी का उद्धार करने के लिये जल में प्रवेश किया और हिरणाक्ष्य का बध कर पृथ्वी का उद्धार किया। तब विदुर जी से मैत्रेय जी बोले- हे विदुर जी! एक बार संध्या समय पर दक्ष प्रजापति की कन्या दिति ने मरीच के पुत्र कश्यप ऋषि से संतान के निमित्त भोग के अर्थ याचना की। उस समय ऋषि यज्ञशाला में स्थित थे तब दिति ने कहा हे स्वामिन् कामदेव मुझे अति दुख देता है आपको अन्य सभी पत्नियों के संतान है और मेरी कोई संतान नहीं है इस कारण मैं बड़े आश्चर्य में हूँ। जब हमारे पिता दक्ष ने हमसे पति गृहण के विषय में पूछा था तब हम तेरह बहिनों ने अपको स्वीकार किया था। हे विद्वान ! तब हमारे पिता ने आपको समर्पण किया था सो हम सब आपके शील स्वभाव के अनुसार ही चल

वाराह अवतार।श्रीमद भागवदपुराण* तेरहवाँ अध्याय * [स्कंध३]

 श्रीमद भागवदपुराण* तेरहवाँ अध्याय * [स्कंध३] (भगवान का बाराह अवतार वर्णन) दो० वृम्हा जी की नासिका, भये वारह अवतार । तेरहवें अध्याय में वरणो कथा उचार ।। श्री शुकदेवजी बोले हे परीक्षत ! मैत्रेयजी ने विदुरजी से इस प्रकार कहा  जब स्वयंभुव मनु उत्पन्न हुये और साथ ही शतरूपा नाम पत्नी भी हुई तो वृम्हाजी ने प्रजा उत्पन्न करने की आज्ञा दी। तिस पर स्वयंभुव मनु ने वृम्हाजी से हाथ जोड़कर कहा--- " हे पिता! मैं आपकी आज्ञा को शिरोधार्य करके नमस्कार करता हूँ। मैं आपकी आज्ञानुसार प्रजा उत्पन्न करुंगा। परन्तु आप उस उत्पन्न होने वाली प्रजा के लिये स्थान बताइये कि बह कहाँ पर निवास करेगी।  हे पिता! जो पृथ्वी सब जीवों के निवास मात्र थी सो वह महासागर के जल में डूब गई है सो आप उस डूबी हुई पृथ्वी के उद्धार का उपाय करो।"  स्वयं भुव मनु द्वारा कहने पर वृह्मा जी को पृथ्वी के उद्धार को चिन्ता हुई कि वह किस प्रकार पथ्वी का उद्धार कर पावेंगे।  इसी चिन्ता में वृह्मा जी को बहुत काल व्यतीत हो गया परन्तु ऐसी कोई युक्ती न दिखाई दी कि जिससे पृथ्वी का जल से उद्वार किया जा सके। जब वह इस चिन्ता में निमग्न थे तब ब्

कैसे हुई गायत्री मंत्र की उत्त्पत्ति।।

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श्रीमद भगवदपुराण अध्याय१२ [स्कंध ३] ब्रह्मा द्वारा सृष्टि, शिव, इन्द्रियों, ऋषियों, सरस्वती, दिन, रात, वेद, यज्ञ, आश्रम, अक्षर, मंत्र, प्रजा की उत्त्पत्ति अर्थ मैथुन  श्री शुकदेव जी बोले हे राजा परीक्षित ! मैत्रेय जी विदुर जी से इस प्रकार कहने लगे। वृह्मा जी ने सर्व प्रथम सृष्टि को रचते समय तामिस्त्र, महा, मोह, तम इन पाँच को प्रकट किया। यह सृष्टि पापी हुई इस से संतुष्ट न होकर वृह्मा जी ने फिर दूसरी सृष्टि की रचना की। जिसमें सनक, सनन्दन, स्नातन और सन्तकुमार इन चारों को मन से उत्पन्न किया जो नैष्टिक वृह्मचारी होकर रहने का निश्चय किया। तव वृह्मा जी ने इन चारों से सृष्टि रचने के लिये कहा, परन्तु वह इस काम को न कर भगवान की भक्ति में लीन होने चले तो वृम्हा जी को क्रोध  आया, जिसे रोकन का प्रयत्न करने पर भी वृह्मा जी न रोक सके और उस क्रोध से वृह्मा जी को भृकुटियों के मध्य से नील लोहितवर्ण वाला एक वाल स्वरूप उत्पन्न हुआ।  शिव तब उस बालक ने वृम्हा जी से रुदन करते हुये कहा हे विधाता! आप मेरा नाम करण करो और मेरे लिये निवास स्थान बताओ। उस बालक का यह बचन सुन वृम्हा जी ने कल्याणमयी वाणी से कहा-हेबालक

युग, काल एवं घड़ी, मुहूर्त, आदि की व्याख्या।।

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 श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ११ [स्कंध ३] (मनवन्तर आदि के समय का परमाण वर्णन) दोहा-काल प्रमाण परणाम लहि, जा विधि कहयो सुनाय । ग्यारहवें अध्याय में सकल कहयो समझाय।। परिमाणु,अणु, त्रिसरेणु, त्रुटि, वेध, लव, निमेष, क्षण,काष्ठा, लघुता, घड़ी, दण्ड, मुहूर्त,याम, पहर, दिन, पक्ष,अयन, वर्ष, सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलयुग, की अवधि एवं व्याख्या। श्री शुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा  हे परीक्षित! विदुरजी को समझाते हुये श्री मैत्रेयजी ने इस प्रकार कहा--- हे बिदुरजी जिससे सूक्ष्म अन्य कोई वस्तु नहीं है वह परिमाणु कहा जाता है। इसी प्रकार सूक्ष स्थूल रूप से काल का अनुमान किया है। दो परिमाणओं को मिलाकर एक अणु होता हैं । तीन अणुओं के संगृह को एक त्रिसरेणु कहते है। यह त्रिसरेणु वह होता है, जो झरोखे में से आती हुई सूर्य की किरणों के साथ महीन-महीन कण जैसे उड़ते हुये दिखाई पड़ते हैं। इन तीन त्रिसरेणु को एक त्रुटी होती हैं अर्थात् एक चुटकी बजाने के बराबर जानना चाहिये। और त्रुटी का एक वेध होता है, और तीन वेधों के बराबर एक लव होता है, तथा तीन लव का एक निमेष जानना चाहिये,तीन निमेष का एक क्षण कहा जाता है तथा पाँच

मैत्रैय जी द्वारा विद्वान् विदुर जी को आत्मज्ञान देना।

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-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ धर्म कथाएं Bhagwad puran विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ९  श्री मद भागवद पुराण अध

विराट अवतार की सृष्टि का वर्णन।।

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  ।। श्री गणेशाय नमः।। -  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ धर्म कथाएं Bhagwad puran विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ९

कृष्णा की लीलाओं का वर्णन।।

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 श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ३] मैत्रैय जी द्वारा भगवान लीलाओं का वर्णन दो०-मैत्रय मुनि ने विदुर को, दी जो कथा सुनाय । सो पंचम अध्याय में, लिखी सकल समझाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे राजन् ! खोज करते हुये विदुरजी जब हरिद्वार पहुँचे तो वहाँ उन्होंने गंभीर ज्ञान वाले श्री मैत्रेय जी को विराजमान देखा तो उनके निकट जाय करबद्ध हो प्रणाम किया ।  विदुर जी के मुख को देख कर मैत्रेय जी ने पूछा--  "हे विदुर आप इतने उदास क्यों हो रहे हो, इस प्रकार दुखी होने का कारण क्या है?" मैत्रेय जी द्वारा इस प्रकार पूछने पर विदुर जी ने, भक्त राज उद्धव से अपनी भेंट होने और उनके द्वारा बताई, सभी बातें कह सुनाई । अंत में सब कुछ बता कर विदुर जी ने कहा -- "हे मुनि! भगवान श्री कृष्ण चन्द्र के गोलोक धाम पधारने से मेरे यह दशा हो गई है। अब मेरी इच्छा यह है कि संपूर्ण लोक सुख प्राप्ती के निमित्त अनेक कर्म करता है परन्तु उन कर्मों से न तो सुख ही प्राप्त होता है और न किसी प्रकार उस दुख की ही निवृत्ति हो पाती है। अतः इन दुखों से छुटकारे पाने के लिये और जो उपाय हैं वह आप मुझ से कहिये, कि जिन कर्मों को

श्रीकृष्ण जी का उध्यव जी को आत्मज्ञान।। श्रीमद भागवद पुराण* * चौथा अध्याय*स्कंध ३

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।। श्री गणेशाय नमः।। -  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ धर्म कथाएं Bhagwad puran विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ९ ▲─