श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध ५] ( अग्नीध्र चरित्र)


श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध ५] ( अग्नीध्र चरित्र) दोहा-सव अग्नीध का, भाषा करदू गाय। या द्वितीय अध्याय में, श्रवण करी मन लाय।।   श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! पहले प्रियव्रत के पुत्र अग्नीध्र का चरित्र वर्णन करते हैं सो ध्यानपूर्वक सुनो। जब सब पुत्रों को पृथक-पृथक राज्य दे प्रियव्रत्त वन को चला गया तो उसके पश्चात अग्नीध्र जम्बूद्वीप का राजा हो प्रजा का पालन करने लगा। एक बार आग्नीध्र ने पुत्र द्वारा पितृ लोक की इच्छा की इस कारण उसने तप करने का निश्चय किया, और तब वह राज्य को छोड़ मंदराचल पर्वत की गुफा में बैठ एक चित हो बृह्मा जी की तपस्या करने लगा । तब वृह्मा जी ने आग्नीध्र की तपस्या से प्रसन्न होकर पूर्वचित्त नाम की अप्सरा को भेजा, जिसकी पायल की झनकार के शब्द से आग्नीध्र का ध्यान टूट गया। जब ध्यान भंग होने पर अग्नि के नेत्र खुले तो उसने अपने आश्रम के निकट ही एक अति सुन्दर नव यौवन अप्सरा को अपने सामने खड़ा देखा (कहीं-कहीं लेख में यह भी पाया जाता है कि इन्द्र ने अपने सिंहासन को छिन जाने के भय से इस अप्सरा को आग्नीध्र का तप भंग करने के लिये भेजा था)   उस सुन्दर अप्सरा को देख कर आग्नीध्र कामातुर हो गया और तब उस अप्सरा से इस प्रकार कहा-हे मृग नयनी! ऋषि जन भी तुम्हारे इस अनुपम सौंदर्य के वशीभूत हो तप को नष्ट कर कर बैठते हैं, सो यह मोह पाँश में बाँधने वाला रूप किससे पाया है। मुझे जान पड़ता है कि विधाता ने तुम्हें मेरे ही लिये भेजा है अब मैं तुम्हें किसी प्रकार भी नहीं छोड़ूंगा अब तुम जिस स्थान पर भी जाओगी मैं भी तुम्हारे साथ ही जाऊँगा। हे परीक्षत! इस प्रकार अग्नीध्र ने अनेक वचन कह कर उस पूर्वचित्त अप्सरा को अपने अनुकूल कर लिया । तब अग्नीध्र के ऊपर वह अप्सरा भी मोहित हो गई। इस प्रकार जब दोनों एक दूसरे पर मोहित हुये तो दोनों ने सत्संग कर गृहस्थाश्रम का पालन किया।    हे राजा परीक्षत! दोनों ने मिल कर दश करोड़ वर्ष पर्यंत संसार के सुखों का भोग किया । हे - राजा परीक्षत ! राजा आग्नीध्र ने अपनी उस भार्या से नौ पुत्र उत्पन्न किये, सोहे राजन् ! उस पूर्वचित्त नाम की अप्सरा ने प्रत्येक वर्ष में एक पुत्र को जन्म दिया, और फिर उन सब पुत्रों को राजा अग्नीध्र के घर में छोड़ कर फिर ब्रह्मा जी के पास चली गयी। उस राजा आग्नीध्र के सभी पुत्र (नौ पुत्र) हृढ़ांग और बलवान हुए। जिनके नाम पर ही राजा अग्नीध्र ने अपने राज्य जंबूदीप के नौ खंड करके पृथक-पृथक राज्य दे दिया, और स्वयं बन में तप करने को चला गया। परन्तु अग्नीध्र का चित्त उसी अप्सरा में लगा था इसी कारण वह परलोक गामी हो गंधर्व तन धारण कर उसी पूर्वचित्त नाम वाली अप्सरा में जा मिला । राजा अग्नीध्र के परलोक गामी होने के पश्चात उसके नौऊ पुत्रों ने मेरु की नौ कन्याओं के साथ अपना विवाह किया, और सब अपने-अपने राज्य का वैभव भोग करने लगे ।


श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध ५] ( अग्नीध्र चरित्र)

दोहा-सव अग्नीध का, भाषा करदू गाय।

या द्वितीय अध्याय में, श्रवण करी मन लाय।।


श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! पहले प्रियव्रत के पुत्र अग्नीध्र का चरित्र वर्णन करते हैं सो ध्यानपूर्वक सुनो। जब सब पुत्रों को पृथक-पृथक राज्य दे प्रियव्रत्त वन को चला गया तो उसके पश्चात अग्नीध्र जम्बूद्वीप का राजा हो प्रजा का पालन करने लगा। एक बार आग्नीध्र ने पुत्र द्वारा पितृ लोक की इच्छा की इस कारण उसने तप करने का निश्चय किया, और तब वह राज्य को छोड़ मंदराचल पर्वत की गुफा में बैठ एक चित हो बृह्मा जी की तपस्या करने लगा । तब वृह्मा जी ने आग्नीध्र की तपस्या से प्रसन्न होकर पूर्वचित्त नाम की अप्सरा को भेजा, जिसकी पायल की झनकार के शब्द से आग्नीध्र का ध्यान टूट गया। जब ध्यान भंग होने पर अग्नि के नेत्र खुले तो उसने अपने आश्रम के निकट ही एक अति सुन्दर नव यौवन अप्सरा को अपने सामने खड़ा देखा (कहीं-कहीं लेख में यह भी पाया जाता है कि इन्द्र ने अपने सिंहासन को छिन जाने के भय से इस अप्सरा को आग्नीध्र का तप भंग करने के लिये भेजा था)

उस सुन्दर अप्सरा को देख कर आग्नीध्र कामातुर हो गया और तब उस अप्सरा से इस प्रकार कहा-हे मृग नयनी! ऋषि जन भी तुम्हारे इस अनुपम सौंदर्य के वशीभूत हो तप को नष्ट कर कर बैठते हैं, सो यह मोह पाँश में बाँधने वाला रूप किससे पाया है। मुझे जान पड़ता है कि विधाता ने तुम्हें मेरे ही लिये भेजा है अब मैं तुम्हें किसी प्रकार भी नहीं छोड़ूंगा अब तुम जिस स्थान पर भी जाओगी मैं भी तुम्हारे साथ ही जाऊँगा। हे परीक्षत! इस प्रकार अग्नीध्र ने अनेक वचन कह कर उस पूर्वचित्त अप्सरा को अपने अनुकूल कर लिया । तब अग्नीध्र के ऊपर वह अप्सरा भी मोहित हो गई। इस प्रकार जब दोनों एक दूसरे पर मोहित हुये तो दोनों ने सत्संग कर गृहस्थाश्रम का पालन किया।



हे राजा परीक्षत! दोनों ने मिल कर दश करोड़ वर्ष पर्यंत संसार के सुखों का भोग किया । हे - राजा परीक्षत ! राजा आग्नीध्र ने अपनी उस भार्या से नौ पुत्र उत्पन्न किये, सोहे राजन् ! उस पूर्वचित्त नाम की अप्सरा ने प्रत्येक वर्ष में एक पुत्र को जन्म दिया, और फिर उन सब पुत्रों को राजा अग्नीध्र के घर में छोड़ कर फिर ब्रह्मा जी के पास चली गयी। उस राजा आग्नीध्र के सभी पुत्र (नौ पुत्र) हृढ़ांग और बलवान हुए। जिनके नाम पर ही राजा अग्नीध्र ने अपने राज्य जंबूदीप के नौ खंड करके पृथक-पृथक राज्य दे दिया, और स्वयं बन में तप करने को चला गया। परन्तु अग्नीध्र का चित्त उसी अप्सरा में लगा था इसी कारण वह परलोक गामी हो गंधर्व तन धारण कर उसी पूर्वचित्त नाम वाली अप्सरा में जा मिला । राजा अग्नीध्र के परलोक गामी होने के पश्चात उसके नौऊ पुत्रों ने मेरु की नौ कन्याओं के साथ अपना विवाह किया, और सब अपने-अपने राज्य का वैभव भोग करने लगे ।

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम द्वितीय अध्याय समाप्तम🥀।।


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