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मैत्रैय जी द्वारा विद्वान् विदुर जी को आत्मज्ञान देना।

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-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ धर्म कथाएं Bhagwad puran विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ९  श्री मद भागवद पुराण अध

कृष्णा की लीलाओं का वर्णन।।

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 श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ३] मैत्रैय जी द्वारा भगवान लीलाओं का वर्णन दो०-मैत्रय मुनि ने विदुर को, दी जो कथा सुनाय । सो पंचम अध्याय में, लिखी सकल समझाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे राजन् ! खोज करते हुये विदुरजी जब हरिद्वार पहुँचे तो वहाँ उन्होंने गंभीर ज्ञान वाले श्री मैत्रेय जी को विराजमान देखा तो उनके निकट जाय करबद्ध हो प्रणाम किया ।  विदुर जी के मुख को देख कर मैत्रेय जी ने पूछा--  "हे विदुर आप इतने उदास क्यों हो रहे हो, इस प्रकार दुखी होने का कारण क्या है?" मैत्रेय जी द्वारा इस प्रकार पूछने पर विदुर जी ने, भक्त राज उद्धव से अपनी भेंट होने और उनके द्वारा बताई, सभी बातें कह सुनाई । अंत में सब कुछ बता कर विदुर जी ने कहा -- "हे मुनि! भगवान श्री कृष्ण चन्द्र के गोलोक धाम पधारने से मेरे यह दशा हो गई है। अब मेरी इच्छा यह है कि संपूर्ण लोक सुख प्राप्ती के निमित्त अनेक कर्म करता है परन्तु उन कर्मों से न तो सुख ही प्राप्त होता है और न किसी प्रकार उस दुख की ही निवृत्ति हो पाती है। अतः इन दुखों से छुटकारे पाने के लिये और जो उपाय हैं वह आप मुझ से कहिये, कि जिन कर्मों को