- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
नवीन सुख सागर कथा
श्रीमद् भागवद पुराण * दसवां अध्याय * स्कंध ८( देवासुर संग्राम)
दोहा ॰ दैत्य सुरन सौ जब भयो भीषण युद्ध अपार।
सो दसवें में है कथा जस प्रकटे करतार ||
गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।
महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम
क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.
श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।
Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.
शुकदेवजी बोले-हे राजन्! इस तरह यद्यपि दैत्यों ने समान परिश्रम किया था परन्तु भगवान से विमुख होने के कारण उनको अमृत न मिला।
असुरगण देवताओं की इस परमवृद्धि को न सह सके और शस्त्र लेकर देवताओं पर लड़ने के लिये चढ़ दौड़े।
तब देवता भी अमृत के पीने से निःशङ्क होकर शस्त्र लेकर लड़ने लगे । समुद्र के किनारे पर बड़ा घोर युद्ध हुआ, जिसका नाम देवासुर संग्राम पड़ गया।
राजा बलि का इन्द्र के संग, तारक का स्मारिकार्तिक के सङ्ग, हेति का वरुण के सङ्ग, प्रहेति का भित्र के सङ्ग, कालनाभ का यम के सङ्ग, मय का विश्वकर्मा के सङ्ग, शम्बर का त्वष्टा के सङ्ग और विरोचन का सूर्य के संग।अपराजित के संग नमुचि का, वृषपर्वा के संग अश्विनीकुमार का, राजा बलि के बाणदिक सौ पुत्रों के संग एक सूर्यदेव का, राहु के साथ चन्द्रमा का, पुलोम के साथ अग्नि का, शुम्भ निशुम्भ के साथ भद्रकाली देवी का, युद्ध होने लगा।
संग्राम में गरुड़-वाहन भगवान को देखकर सिंह पर चढ़े हुए कालनेमि ने एक त्रिशूल मारा, भगवान ने उस त्रिशूल को गरुड के मस्तक पर पड़ता देख सहज ही में पकड़कर उसी से सिंह और कालनेमि दोनों को मार डाला। तदनन्तर माली सुमाली नाम दैत्य लड़ने के लिये आये।तब भगवान ने अपने चक्र से उन दोनों के सिर काट लिये इतने में माल्यवान एक बड़ी तीक्ष्ण गदा लेकर गरुड़ के मारने को दौड़ा तब भगवान ने चक्र से उसका भी शिर काट दिया ।