नारद द्वारा हरि कीर्तन को श्रेस्ठ बतलाकार वेद व्यास के शोक को दूर करना।।

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६

श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७



श्रीमद्भागवद पुराण महात्मय का पंचम आध्यय [स्कंध १]

दोहा-जेहि विधि बखो व्यसो नारद कथा उचार।

सो पंचम अध्याय में वर्णी कथा अपार ।।

नारद द्वारा वेद व्यास जी को ज्ञानोप्देश






सूतजी कहने लगे कि हे शौनक! श्रीवेदव्यासजी को खिन्न मन देखकर नारदमुनि बोले----

----हे महाभाग! तुम आज कोई सोच करते हुए मालूम होते हो सो ये बात क्या है, हमसे कहो।

व्यासजी बोले-महाराज ? मैने चारों वेद तथा पुराण बनाये, मेरे मन में सन्तोष नहीं हुआ है। आप ब्रह्माजी के पुत्र और गम्भीरबोध बाले हो इसलिये मेरा सन्देह दूर कीजिये। 







नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।



सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।


महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १

नारदजी बोले-हे वेदव्यासजी! तुमने जैसे विस्तार पूर्वक धर्म आदिकों का वर्णन किया तैसे मुख्य भाव करके विष्णु भगवान की महिमा नहीं गायी। भक्ति बिना सब शास्त्र वचन की चतुराई मात्र ही हैं।वहीं कर्मों की रचना मनुष्यों के पापों को नष्ट करने वाली होती है कि जिसमें श्लोक-श्लोक में चाहे सुन्दर पद भी न होवे परन्तु अनन्त भगवान के यज्ञ से चिन्हित हुए नाम हो।

उन्हीं काव्यों को साधुजन बक्ता मिलने से सुनते हैं, श्रोता मिलने से गाते हैं, नहीं तो आप ही उच्चारण करते हैं। 

हे महाभाग ! आप परमेश्वर के गुणानुवाद व लीलाओं को अखिल जगत के बन्धन को निवृत्ति के अर्थ एकाग्र मन से स्मरण करके वर्णन करो।

 हे वेदव्यासजी! ये जगत अपने स्वभाव से काम्य कर्मो मे आसक्त है यानी जो आपने धर्म समझाकर इन मनुष्यों को कार्यक्रम, यज्ञ, ब्रत, नियमादि को करना कहा ये अच्छा न किया क्योंकि अमुक कर्म करने से मुझको अमूक लाभ हो जावे।

 ऐसी विषय वासना तो सभी को बन रही है फिर वे ही काम कर्म आपने महाभारत आदि ग्रन्थों में वर्णन किये हैं। वे ही मुख्य धर्म बतला दिये हैं, यह तुम्हारी बड़ी भूल है, क्योंकि आपके उन वचनों को मानकर अज्ञानी जन ऐसा निश्चय कर लेंगे कि बस यही मुख्य धर्म है।

ऐसा समझकर परम तत्व, आत्म-स्वरूप ज्ञान को कमी नहीं
मानेंगे। इस प्रभु परमेश्वर अनन्त भगवान का जो निराकारनिरञ्जन स्वरूप सुख है उसको कोई बिरला ही पण्डितजन अनुभव कर सकता है।

 इसलिये जो अज्ञानी है उनके वास्ते तुम उस परमेश्वर की सगुण लीलाओं को वर्णन करो। 

भगवान की भक्ति की ऐसी महिमा है कि जो पुरुष यज्ञ, अनुष्ठान आदि  अपने को त्यागकर केवल श्रीकृष्ण भगवान के चरण की ही सेवन करता है। ऐसा भजन कि वो बीच में अपदव भक्ति में ही मर जावे चाहे किसी योनि में जन्म ले परन्तु उसका कभा भी अमङ्ग नहीं होता। और जिसने केवल अपने धर्म करने को ही प्रधान समझकर भगवद्भजन से व्रहीमुख हो उसे वहीं के होकर उसे त्याग कर दिया, उसकी कहो उस स्वधर्मचरण से क्या गठरी मिल गई? 


विष्णु भगवान के चरणों की सेवा करने वाला जन कभी किसी योनि में भी अन्य पुरुषों की तरह बारम्बार जन्म मरण बंधन को प्राप्त नहीं होता है। 


हे मुनि ! मैं पूर्व जन्म में किसी एक दासी का पुत्र था, सो बालकपन में ही वेदान्ती योगीजनों की सेवा करने में मेरी माता ने मुझको लगा दिया। वे योगीजन यहां पर चातुर्मास (चार महीने) ठहर रहे थे।
 वे योगीजन सब जगह समान दृष्टि से देखने वाले थे। परन्तु मैंने उनकी सेवा बहुत प्रीति से की। वे साधु लोग दिन प्रति दिन श्रीकृष्ण महाराज की कथाओं को गाते थे तब मैं उनके मुखसे मनोहर भागवत कथाओं को उनके अनुग्रह से सुनता रहता था। 

ऐसे दिन प्रति दिन श्रद्धा पूर्वक हरि की कथा सुनने से मेरी रुचि परमेश्वर में हो गई, और यह शरीर मेरा नहीं है ऐसा ज्ञान हो गया। उस पूर्व जन्म में मुझे इस प्रकार त्रिकाल समय हरि का यश सुनते-सुनते वर्षा ऋतु बीत गई और । महात्मा मुनि लोगों से कहे हुए हरि के गुणानुवाद को सुनकर मेरे मन में रजोगुण व तमोगुण को दूर करनेवाली भगवतभक्ति उत्पन्न हो गईं। फिर इस प्रकार उन साधुओं के संग में लगा हुआ, विनीत पाप रहित, श्रद्धा को धारण करने वाला, इन्द्रियों को वश में रखने वाला बालक, अनुचर ऐसे मुझे उन दीनदयालु महात्माओं ने चलने के वक्त दया भाव भागवत शास्त्र का साक्षात गुह्य ज्ञान का उपदेश दिया । 

उस ही ज्ञान से मैं जगत्कर्तावासुदेव भगवान की माया प्रभाव को जान गया, जिससे भगवान के उत्तम परम पद की प्राप्ति होती है । हे ब्राह्मण ! तीन प्रकार के सन्तापों की औषधि तुमसे यही कही है जो परमेश्वर परब्रह्म में सम्पूर्ण कर्म अर्पण कर देना अर्थात भगवान की भक्ति करके निष्काम कर्म करना बताती है।

 हे ब्राह्मण ! इस प्रकार मैनें भगवत भक्ति के आचरण किया तब परमेश्वर ने मेरे मन में अपना भक्ति भाव पहिचानकर मुझको ज्ञान रूपी ऐश्वर्य तथा विषे प्रीति दी। हे बहश्रुत वेदव्यासजी! तुम भी जिसके जानने से पंडित जनों को अन्य कुछ जानने की अपेक्षा नहीं रहती है ऐसे प्रभू के यश को वर्णन करो, क्योंकि जो बारम्बार दुःखों से पीड़ित हैं उनका क्लेश दूर होने का अन्य कोई दूसरा उपाय नहीं हैं।


तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

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तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।

मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।


Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?


तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।

Sukh ka arth

सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।


सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा।।

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