सुख सागर अध्याय 17 स्कंध 8 अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म वामन अवतार भाग 1

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध ८]
(अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म )सुख सागर  अध्याय 17 स्कंध 8 अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म वामन अवतार  भाग 1

दोहा-पयोव्रत अदिति कीन्ह जब भये कार्य सब पूर्ण।

सत्रहवें में कथा कही विमल सम्पूर्ण |। १७। | 



नवीन सुख सागर श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध ८] (अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म ) दोहा-पयोव्रत अदिति कीन्ह जब भये कार्य सब पूर्ण। सत्रहवें में कथा कही विमल सम्पूर्ण |। १७। |    श्रीशुकदेवजी बोले- हे राजन् ! स्वामी के आदेशानुसार अदिति ने इन्द्रियरूपी अश्वों को बुद्धीरूपी सारथी से वश में करके एकाग्रचित से भगवान का ध्यान करते हुए इस व्रत का अनुष्ठान किया।   व्रत भगवान पीताम्बर पहरे चारो भुजाओं में शंखचक्र गदा पदम लिये अदिति के सम्मुख प्रकट हुए ।   उनको देख अदिति साष्टग दण्डवत् करके प्रेम से अत्यन्त विब्हल हो गई और धीरे २ गद् गद् वाणी से प्रीति पूर्वक स्तुति करने लगी।   हे अच्युत, हे शरणगत दुःख विनाशक ! आप दीनानाथ हमारा कल्याण कीजिये।   इस प्रकार अदिति की करुणारस परिप्लावित विनती को सुनकर भगवान बोले---   हे देवमात! मैंने आपकी अभिलाषा जानली है। आपकी यह इच्छा है कि बैरियों ने जो आपके पुत्रों की लक्ष्मी हरली है उनके स्थान भ्रष्ट कर दिये हैं, सो उन दुर्मद असुरों को विजय करके आपके पुत्र फिर अपनी गई हुई श्री को प्राप्त करलें। आप इन्द्रादि अपने पुत्र से शत्रुओं का मरण और उनको स्त्रियों का दुःख से रुदन देखना चाहती हैं।   हे देवि ! अभी असुरों का जीतना कठिन है क्योंकि देव और ब्राह्मण उन पर अभी अनुकूल हैं। तथापि मैं कोई न कोई उपाय ढूंढूगा क्योंकि मैं तेरी व्रतचर्या से बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। अपने पुत्रों की रक्षा के निमित्त पयोव्रत द्वारा तूने मेरी अर्चना की है इससे मैं तेरा पुत्र बन तेरे पुत्रों की रक्षा करुगां। तुम कल्मष रहित अपने पति कश्यप की सेवा करो वे इस समय मेरा रूप हैं वैसा ही तुम अपने पति को ध्यान करती रहना। इस बात को कोई पूछे तो भी मत कहना क्योंकि देवताओं के गुरुमन्त्र गुप्त रहने से ही सिद्ध होते है |   हे राजन! यह कहकर भगवान वहीं अन्तर्ध्यान हो गये और अदिति हरि भगवान का दुर्लभ जन्म अपने में पाकर, परम कृत-कृत्य हो कश्यप जी की सेवा करने लगी।   कश्यप जी ने जान लिया कि भगवान अपने अंशों से मुझमें प्रविष्ट हुए है, यह सोच बहुत दिन का सञ्चित वीर्य अपने तपोबल से अदिति में स्थापन किया। अदिति के गर्भ में भगवान आये देख ब्रह्माजी कश्यप जी के आश्रम में आ भगवान की स्तुति करने लगे।   हे उरुगाय ! हे त्रिगुणात्मन्, हे पृश्निगर्भ, हे देव गर्भ ! आपको नमस्कार है, आप ही चराचर जीव और प्रजापतियों के उत्पन्न करने वाले है। स्थान भ्रष्ट देवताओं के आप जैसे आश्रम है जैसे आप जल में डूबने वालों को नाव का आप होता है।




श्रीशुकदेवजी बोले- हे राजन् ! स्वामी के आदेशानुसार अदिति ने इन्द्रियरूपी अश्वों को बुद्धीरूपी सारथी से वश में करके एकाग्रचित से भगवान का ध्यान करते हुए इस व्रत का अनुष्ठान किया। 













व्रत भगवान पीताम्बर पहरे चारो भुजाओं में शंखचक्र गदा पदम लिये अदिति के सम्मुख प्रकट हुए । 

उनको देख अदिति साष्टग दण्डवत् करके प्रेम से अत्यन्त विब्हल हो गई और धीरे २ गद् गद् वाणी से प्रीति पूर्वक स्तुति करने लगी। 


हे अच्युत, हे शरणगत दुःख विनाशक ! आप दीनानाथ हमारा कल्याण कीजिये। 


इस प्रकार अदिति की करुणारस परिप्लावित विनती को सुनकर भगवान बोले--- 

हे देवमात! मैंने आपकी अभिलाषा जानली है। आपकी यह इच्छा है कि बैरियों ने जो आपके पुत्रों की लक्ष्मी हरली है उनके स्थान भ्रष्ट कर दिये हैं, सो उन दुर्मद असुरों को विजय करके आपके पुत्र फिर अपनी गई हुई श्री को प्राप्त करलें। आप इन्द्रादि अपने पुत्र से शत्रुओं का मरण और उनको स्त्रियों का दुःख से रुदन देखना चाहती हैं। 

हे देवि ! अभी असुरों का जीतना कठिन है क्योंकि देव और ब्राह्मण उन पर अभी अनुकूल हैं। तथापि मैं कोई न कोई उपाय ढूंढूगा क्योंकि मैं तेरी व्रतचर्या से बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। अपने पुत्रों की रक्षा के निमित्त पयोव्रत द्वारा तूने मेरी अर्चना की है इससे मैं तेरा पुत्र बन तेरे पुत्रों की रक्षा करुगां। तुम कल्मष रहित अपने पति कश्यप की सेवा करो वे इस समय मेरा रूप हैं वैसा ही तुम अपने पति को ध्यान करती रहना। इस बात को कोई पूछे तो भी मत कहना क्योंकि देवताओं के गुरुमन्त्र गुप्त रहने से ही सिद्ध होते है | 













हे राजन! यह कहकर भगवान वहीं अन्तर्ध्यान हो गये और अदिति हरि भगवान का दुर्लभ जन्म अपने में पाकर, परम कृत-कृत्य हो कश्यप जी की सेवा करने लगी। 

कश्यप जी ने जान लिया कि भगवान अपने अंशों से मुझमें प्रविष्ट हुए है, यह सोच बहुत दिन का सञ्चित वीर्य अपने तपोबल से अदिति में स्थापन किया। अदिति के गर्भ में भगवान आये देख ब्रह्माजी कश्यप जी के आश्रम में आ भगवान की स्तुति करने लगे। 

हे उरुगाय ! हे त्रिगुणात्मन्, हे पृश्निगर्भ, हे देव गर्भ ! आपको नमस्कार है, आप ही चराचर जीव और प्रजापतियों के उत्पन्न करने वाले है। स्थान भ्रष्ट देवताओं के आप जैसे आश्रम है जैसे आप जल में डूबने वालों को नाव का आप होता है।

महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १




हिरण्यकश्यपु का नरसिंह द्वारा विनाश।। महभक्त प्रह्लाद की कथा भाग 


प्रह्लाद द्वारा भगवान का स्तवन। महाभक्त प्रह्लाद की कथा भाग ५।।


 जय विजय के तीन जनम एवं मोक्ष प्राप्ति। श्रीमद भगवद पुराण प्रथम अध्याय-सातवां स्कन्ध प्रारम्भ

The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. Jai shree Krishna.🙏
ॐ 


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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। 



 Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!
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